श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
संजय दृष्टि – टिटहरी
भीषण सूखे में भी
पल्लवित होने के प्रयास में
जस- तस अंकुर दर्शाती,
अपने होने का भास कराती,
आशाओं को, अंगुली थाम
नदी किनारे छोड़ आता हूँ।
आशाओं को
अब मिल पाएगा
पर्याप्त जल और
उपजाऊ जमीन।
ईमानदारी से मानता हूँ
नहीं है मेरा सामर्थ्य
नदी को खींचकर
अपनी सूखी जमीन तक लाने का,
न कोई अलौकिक बल
बंजर सूखे को
नदी किनारे बसाने का।
वर्तमान का असहाय सैनिक सही
भविष्य का परास्त योद्धा नहीं हूँ,
ये पिद्दी-सी आशाएँ,
ये ठेंगु-से सपने,
पलेंगे, बढ़ेंगे,
भविष्य में बनेंगे
सशक्त, समर्थ यथार्थ,
एक दिन रंग लाएगा
मेरा टिटहरी प्रयास।
जड़ों के माध्यम से
आशाओं के वृक्ष
सोखेंगे जल, खनिज
और उर्वरापन,
अंकुरों की नई फसल उगेगी,
पेड़ दर पेड़ बढ़ते जाएँगे,
लक्ष्य की दिशा में
यात्रा करते जाएँगे।
मैं तो नहीं रहूँगा
पर देखना तुम,
नदी बहा ले जाएगी
सारा नपुंसक सूखा,
नदी कुलाँचें भरेगी
मेरी जमीन पर,
सुदूर बंजर में
जन्मते अंकुर
शरण लेंगे
मेरी जमीन पर,
और हाँ..,
पनपेंगे घने जंगल
मेरी जमीन पर..!
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
writersanjay@gmail.com
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
हमारी अगली साधना श्री विष्णु साधना शनिवार दि. 7 जून 2025 (भागवत एकादशी) से रविवार 6 जुलाई 2025 (देवशयनी एकादशी) तक चलेगी
इस साधना का मंत्र होगा – ॐ नमो नारायणाय।
इसके साथ ही 5 या 11 बार श्री विष्णु के निम्नलिखित मंत्र का भी जाप करें। साधना के साथ ध्यान और आत्म परिष्कार तो चलेंगे ही –
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ||
संभव हो तो परिवार के अन्य सदस्यों को भी इससे जोड़ें
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈