कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी ने अपने उपनाम  प्रवीण ‘आफताब’ उपनाम से  अप्रतिम साहित्य की रचना की है। आज प्रस्तुत है आपकी ऐसी ही अप्रतिम रचना ताश के महल …

ताश के महल …

वहम होता  है लोगों  का ये

सारा जहाँ पा लिया है हमने

जमीं तो  जमीं, सारा आसमां

फ़तह  कर लिया  है  हमने…

 

दास्ताँ  नहीं, हक़ीक़त  है  ये

रेत के आशियाँ कभी टिकते नहीं

लोगों का ये  है भरम लेकिन,

ताश के महल कभी बनते नहीं…

 

गफ़लतों में रहना अब  छूट चुका

बस इक अदना सा  इंसान हूँ  मैं,

मिट्टी की सी अपनी औक़ात जान

राहें इंसानियत पे निकल पड़ा हूँ मैं

 

~प्रवीन आफ़ताब

© कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

पुणे

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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