डॉ उमेश चन्द्र शुक्ल  

यहाँ सब बिकता है 

(प्रस्तुत है  डॉ उमेश चंद्र शुक्ल जी  की एक बेहतरीन गजल)

 

खुला नया बाज़ार यहाँ सब बिकता है,
कर लो तुम एतबार यहाँ सब बिकता है॥

जाति धर्म उन्माद की भीड़ जुटा करके,
खोल लिया व्यापार यहाँ सब बिकता है॥

बदल गई हर रस्म वफा के गीतों की,
फेंको बस कलदार यहाँ सब बिकता है॥

दीन धरम ईमान जालसाजी गद्दारी,
क्या लोगे सरकार यहाँ सब बिकता है॥

एक के बदले एक छूट में दूँगा मैं,
एक कुर्सी की दरकार यहाँ सब बिकता है॥

सुरा-सुन्दरी नोट की गड्डी दिखलाओ,
लो दिल्ली दरबार यहाँ सब बिकता है॥

अगर चाहिए लोकतन्त्र की लाश तुम्हें,
सस्ता दूँगा यार यहाँ सब बिकता है॥

 

©  डॉ उमेश चन्द्र शुक्ल, मुंबई 

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Bharati Srivastava

सुंदर रचना सर

Sarita chaubey...

समय की माँग को पष्ट करती हुई अप्रतीम रचना सर जी…

Bharati Srivastava

खूबसूरत रचना सर

पवन तिवारी

बहुत ख़ूब

Anupama Tiwari

बहुत बढ़िया रचना सर

किशन तिवारी

शानदार

किशन तिवारी

Mohd Nehal

बहुत ही सुन्दर रचना है

PREMNATH TIWARI

Bahut hi satik aur Katu satya per aadharit rachna hai.

Ambika Yadav

बहुत अच्छा लिखा है सर |

पूर्णिमा पांडेय

अगर चाहिए लोकतंत्र की लाश तुम्हे
सस्ता दूँगा यार ……
कड़वा व्यंग्य सर