श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पानी पतरा।)

?अभी अभी # 695 ⇒ पानी पतरा ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जहां आज भी कच्चे मकान हैं, वहां छत पर लोहे की नालीदार शीट लगी होती है, और उन मकानों को पतरों वाला मकान कहते हैं। अक्सर इन छतों पर कवेलू भी बिछाए जाते हैं। बारिश के शुरू होते ही, पतरे टप टप आवाज करने लगते हैं। आज के मकानों की तो पूछिए ही मत ! पूरे वाटर प्रूफ होते हैं। केवल टीवी और मोबाइल से ही बारिश का पता चलता है। घर में सूखा, और बाहर निकलते ही सड़कों पर ही नदी नाले का नजारा।

पानी पतरा एक कम सुना हुआ शब्द है। वह जमाना वर्ली मटके का था। रतन खत्री कभी मटका किंग था। सट्टा बाजार एक फिल्म भी आई थी। कभी शायद किसकी लॉटरी भी लगी हो ! क्योंकि आजकल तो लॉटरी पर भी प्रतिबंध है। सट्टा लगाया जाता है, और जुआ खेला जाता है। दोनों ही कानूनन अपराध हैं।।

अक्सर पुरानी फिल्मों में एक रईस लालाजी होते थे, जिनकी एक खूबसूरत लड़की होती थी। अच्छा भला लाखों -करोड़ों का कारोबार होता था। अचानक कहीं से फोन की घंटी बजती। उधर से आवाज आती, लालाजी, आपने जिस घोड़े पर पैसा लगाया था, वह हार गया। आप बर्बाद हो गए। और लालाजी को दिल का दौरा पड़ जाता था।

मुंबई का वह एरिया आज भी महालक्ष्मी कहलाता है, जहां घुड़दौड़ होती है और लाखों के वारे न्यारे होते हैं। आज का शेयर मार्केट लोगों को बनाता भी है और बर्बाद भी कर देता है। यह पूरी तरह वैध है, No risk no gain.

आइए, पानी पतरे के लिए सराफे चलें। माफ कीजिए आज वहां आपको सोना चांदी तो मिल जाएगा, रात में सभी पकवान, मिठाई, चाट और पानी पूरी भी मिल जाएगी, लेकिन कहीं भी पानी पतरे के दर्शन नहीं होंगे। आखिर क्या है यह पानी पतरा।।

आज से वर्षों पूर्व जब इसी सराफे में पतरे वाले पुराने मकान थे, तब पानी पतरा खेला जाता था। जी हां, यह एक तरह का सट्टा ही था। लोग दुकानों में बैठे हैं। सबकी निगाह आसमान में बादलों पर है। और बैठे बैठे ही सौदे हो रहे हैं। इधर पतरे भीगे और उधर लाखों के वारे न्यारे।

बड़ा ही विचित्र नजारा होता था पानी पतरे का।

इशारों ही इशारों में हार जीत हो जाती थी। बादलों पर कालिदास ने मेघदूतम् जैसा दूत काव्य रच दिया।

और वही बादल यहां लक्ष्मी पुत्रों पर धन की वर्षा कर रहे हैं।।

समय का खेल निराला है। खेल वही खेलें जो युक्तिपूर्ण हो और पूरी तरह कानूनी हो। सट्टा छोड़ें, सत्ता से नाता जोड़ें। एक और परिश्रम है और एक ओर अनुमान। यह युग सट्टे का नहीं निवेश अर्थात् इन्वेस्टमेंट का है।

मोहरे भले ही बदल जाएं, चालें तो वही होती हैं।

वार त्योहार का मौसम है आइए पानी पतरे को मारें गोली, पूजा पत्री की बात करें। इंद्रदेव तो मेहरबान हैं ही, गणेशोत्सव की तैयारी करें।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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