श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “साहब का कुत्ता…“।)
अभी अभी # 694 ⇒ साहब का कुत्ता 🐶 श्री प्रदीप शर्मा
दिन भर की दफ्तर, फाइल और मीटिंग की थकान के बाद दूसरे दिन सुबह ही तो थोड़ा सुकून मिलता है जब साहब अपने कुत्ते के साथ ताजी हवा का सेवन करने स्टेडियम निकल जाते हैं।
अंग्रेज अफसरों के लिए रेसिडेंसी एरिया में क्लब और बंगले बना गए और नौकर चाकर भी दे गए।
अगर किसी बंगले में कुत्ता ना हो, तो वह बंगला सिंदूर बिना सुहागन सा नजर आता है।
राजनीति में जिस तरह आजकल नेता भक्त बिना नहीं रह सकता, साहब को एक कुत्ते के अलावा कोई स्वामिभक्त नजर नहीं आता। एक कुत्ता ही तो होता है, जिसके पीछे अफसर भी दौड़ता नजर आता है। समय का फेर देखिए। एक कुत्ते ने साहब और मेम साहब को कितना दौड़ा दिया। गेंद सीधी स्टेडियम से बाहर।।
कितनी पैनी नजर है हमारे मीडिया की और उससे भी अधिक चुस्त और सजग हमारी सरकार, जो नौकरशाही पर मानो किसी ड्रोन से नज़र रख रही हो।
चौतरफा तारीफ, वाहवाही। चट मीडिया में तस्वीर पट न्याय। इसे कहते हैं गुड गवर्नेंस। हम तो इस खुशी में कल नेहरू को भी भूल गए।
इस संदर्भ में अफसरों पर गाज गिरना कोई नई बात नहीं। हमारे मंत्री समझदार हैं, वे अफसरों की तरह कुत्ते नहीं पालते। वे भक्त पालते हैं, जो उनके पहले ही सात समंदर पार, मीडिया सहित पहुंच जाते हैं, दुनिया के किसी भी स्टेडियम में।
जहां भक्त है, वहां सम्मान है, जहां स्वामिभक्त है वहां सैकड़ों मील दूर ट्रांसफर है।।
एक धर्मराज थे जो कुत्ते सहित स्वर्ग पधार गए और एक हमारे साहब हैं, जो कुत्ते को स्टेडियम ले गए तो इनके काम लग गए।
साहबों के भी साहस और दुस्साहस में बड़ा अंतर होता है। एक दुस्साहसी महिला पुलिस अफसर ने दिल्ली में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री की गाड़ी का चालान बनाया तो वह किरण बेदी कहलाई लेकिन जब खिलाड़ियों के स्टेडियम में कोई अफसर कुत्ता घुमाएगा तो अच्छे अच्छों का सर चकराएगा।
जिन्हें भारतीय मीडिया से शिकायत है, उनके लिए यह एक सुखद संकेत है। वह पत्रकार भी बधाई का पात्र है जिसने हिम्मत दिखाकर इस घटना को सार्वजनिक किया। और सोने में सुहागा सरकार की ताबड़तोड़ त्वरित कार्यवाही। काश कोई कुत्ते की मनोदशा भांप पाता जिसके कारण यह सब घटना घटी। वैसे स्टेडियम में कुत्ते का खेल के बीच आना कोई बड़ी घटना नहीं। वे कई बार पहले भी पिच का निरीक्षण कर गए हैं। खैर है इन बेजुबान प्राणियों पर कोई भारतीय दंड संहिता अथवा आचार संहिता लागू नहीं होती।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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