श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मस्त नज़र की कटार…“।)
अभी अभी # 689 ⇒ मस्त नज़र की कटार
श्री प्रदीप शर्मा
आपने शायद तलत का यह गीत सुना हो ;
आँखों में मस्ती शराब की काली ज़ुल्फ़ों में आँहें शबाब की।
जाने आई कहाँ से टूट के मेरे दामन में पंखुड़ी गुलाब की। ।
यानी संक्षेप में, मस्त नज़र की बात हो रही है। अरे भाई, ईश्वर ने सबको दो आँखें दी हैं, आंखों का काम देखने का है, लेकिन यहां तो कोई नजरों से शिकार कर रहा है तो कोई नज़रों से ही शराब पिला रहा है। देखिए हमारे बोंगाली मोशाय हेमंत कुमार को;
ज़रा नज़रों से कह दो जी
निशाना चूक ना जाए।
मज़ा जब है,
तुम्हारी हर अदा
कातिल ही कहलाए …
क्या आपने कभी किसी की मस्त नजर देखी है। क्या आपको यकीन होता है कि अगर आपने दिन में काजल लगाया हो, तो रात हो जाएगी। देखिए कैसे कैसे लोग पड़े हैं ;
काजल वाले नैन मिला के कर डाला बेचैन
किसी मतवाली ने। ।
अरे रे रे लूट लिया रे
झाँझर वाली ने। ।
भगवान नज़र सबको देता है, लेकिन मस्त नज़र कहां सबको नसीब होती है। इधर एक हम हैं, हमारी तो बचपन से ही कमजोर नजर है। हमारी नज़रों पर कोई शायर गीत नहीं लिखेगा। नजर तो उस शायर की भी कमज़ोर है। वह भी चश्मा लगाकर ही ऐसे गीत लिखता होगा ;
तुम्हारी मस्त नज़र,
अगर इधर नहीं होती।
नशे में चूर फ़िज़ा
इस क़दर नहीं होती। ।
हमें तो यह मस्त नजर का नशा नहीं लगता। बस थोड़ी चढ़ गई तो शायर साहब को फ़िज़ा भी नशे में चूर नजर आने लगी। ।
क्या आपके पास इन साहबान का कोई इलाज है ;
मैं हूं साक़ी तू है शराबी-शराबी -२
तूने आँखों से पिलाई वो नशा है के दुहाई
हर तरफ़ दिल के चमन में फूल खिले हैं गुलाबी-गुलाबी
मैं हूँ साक़ी …
हमारे धरम पाजी की तो बस पूछिए ही मत। उनकी मस्ती को किसी की नज़र ना लगे, शराब की भी नहीं ;
छलकाएं जाम
आइये आपकी आँखों के नाम
होंठों के नाम।
फूल जैसे तन के जलवे,
ये रँग-ओ-बू के
आज जाम-ए-मय उठे,
इन होंठों को छूके
लचकाइये शाख-ए-बदन, लहराइये ज़ुल्फों की शाम
छलकाएं जाम …
लेकिन कोई चंद्रमुखी अगर आपकी आंखों की नींद और चैन भी चुराकर ले जाए, तब तो यह एक गंभीर मामला बनता है ;
नैन का चैन चुराकर ले गई
कर गई नींद हराम। चन्द्रमा सा मुख था उसका चन्द्रमुखी था नाम। ।
यानी यहां तो नाम और हुलिया भी बयान किया गया है। लेकिन जब मस्त नज़रों से घायल और लुटा हुआ आशिक ही कोई शिकायत नहीं कर रहा हो तो समझिए गई भैंस पानी में। यकीन ना हो तो देखिए ;
शरबती तेरी आँखों की
झील सी गहराई में
मैं डूब डूब जाता हूँ …..
हम तो आखिर में यही कहेंगे ;
मेरी प्यास का कोई हिसाब नहीं
तेरी मस्त नज़र का जवाब नहीं
इसी मस्त नज़र से पिलाए जा
मेरे सामने जाम रहे ना रहे
तेरा, हुस्न रहे मेरा
इश्क़ रहे
तो ये सुबहो ये शाम
रहे ना रहे।
रहे प्यार का नाम जमाने में
किसी और का नाम
रहे ना रहे ..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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