श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मृत्यु से साक्षात्कार…“।)
अभी अभी # 688 ⇒ मृत्यु से साक्षात्कार
श्री प्रदीप शर्मा
मौत को किसने देखा है ! बिना मरे स्वर्ग तो बहुत दूर की बात है, मृत्यु से तो साक्षात्कार के लिए भी मरना पड़ता है। ऐसी किसकी गरज है कि सिर्फ साक्षात्कार के लिए मरना पड़े। मरने दो, नहीं करना हमें मृत्यु से साक्षात्कार।
अच्छा, ईश्वर से साक्षात्कार करना चाहोगे ? वाह, क्यों नहीं ! ये हुई न बात। कब करवा रहे हो। लेकिन ईश्वर कहीं मौजूद हो तो उससे साक्षात्कार करवा दें, उसका भी कोई पता नहीं। ईश्वर से साक्षात्कार के लिए कोई गुरु के पास जा रहा है, कोई जंगल, पहाड़, वन वन, बाबा बन, भटक रहा है, सब ईश्वर को ढूंढ रहे हैं। सबको ईश्वर का साक्षात्कार चाहिए। जिंदगी भर ईश्वर को ढूंढते रहे, जब ईश्वर कहीं नहीं मिला, तो ईश्वर को प्यारे हो गए। पहले मृत्यु से साक्षात्कार हुआ, ईश्वर अभी कतार में हैं।।
हमने न तो मृत्यु को देखा और न ही ईश्वर को ! लेकिन कभी ईश्वर को याद करते हैं तो कभी मृत्यु से डरते हैं। ईश्वर को पाने के लिए तो हमें प्रयत्न करना पड़ता है।
बिना मनुष्य जन्म लिए, ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती लेकिन मृत्यु कितनी सहज है, बिना मांगे ही मिल जाती है। हम जो चाहते हैं, वह हमें कब मिला है। हम मौत को गले नहीं लगाना चाहते। हम चाहते हैं, ईश्वर हमें गले लगाए। हम ईश्वर के ही तो बालक हैं। फिर भी इतनी दूरी, और मौत, कितनी करीब ! मानो कह रही हो, आ गले लग जा।
कौन लगाता है, मौत को हंसते हंसते गले। खुद ही हमारे गले पड़ती है। मानो कोई स्वयंवर चल रहा हो। जिसके गले में उसने वरमाला डाली, उसे मौत ने वर लिया। लो हो गया मौत से साक्षात्कार। कितना पवित्र संस्कार ! उसने आपको चुना है, आपको वरा है। लेकिन आप सुखी नहीं। मुझे अभी मृत्यु से साक्षात्कार नहीं करना। पहले एक बार ईश्वर से साक्षात्कार हो जाए, तो मैं मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कर लूंगा। और उधर उपनिषद कह रहा है, जिसने मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली, उसे ईश्वर का साक्षात्कार हो गया।।
जो सत्य है, उससे हम भाग रहे हैं। जहांआस्था है, वहां विश्वास है और जहां भय है वहां मृत्यु। आस्था हमें जीवित रख रही है, भय हमें मार रहा है। कोरोना के भय से हम रोज बाहर से जब घर आ रहे हैं, तो कपड़े बदल रहे हैं, नहा रहे हैं। अपने आपको सुरक्षित रख रहे हैं। लेकिन यहां गीता का ज्ञान हमारे काम नहीं आता ;
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।। २३।।
इस आत्माको शस्त्र काट नहीं सकते, आग जला नहीं सकती, जल गला नहीं सकता और वायु सुखा नहीं सकती।
जब भी हम शरीर की बात करते हैं, हमें आत्मा परमात्मा की बातों में भटकाया जाता है, उलझाया जाता है। आत्मा वस्त्र बदलती है, जैसे आप बदलते हो। फिलहाल हमें न तो मृत्यु से और न ही ईश्वर से साक्षात्कार करना। हमें मौत से नहीं, कोरोना से डर है। एक बार इससे निपट लें, फिर मृत्यु और ईश्वर दोनों से साक्षात्कार कर लेंगे। क्योंकि हम जानते हैं, मनुष्य जन्म दुबारा नहीं मिलता। देवता भी कतार में हैं।।
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈