श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “कश्मीर टी हाउस…“।)
अभी अभी # 687 ⇒ ☕कश्मीर टी हाउस 🍵 श्री प्रदीप शर्मा
हम तो नहा धो भी लिए, और अचानक पता चला, आज तो चाय दिवस है। वह भी कोई छोटा मोटा चाय दिवस नहीं, अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस। तो इस अवसर पर तो आज G 7 में भी Tea सेवन ही हो रहा होगा और उसकी अध्यक्षता और कोई नहीं हमारे बहुचर्चित चाय पुरुष नरेंद्र भाई मोदी ही कर रहे होंगे। वाघ बकरी चाय के लिए भी आज का यह दिन कितना शुभ होगा। एक चाय वाला, चाय दिवस पर चाय की टेबल पर अपने हाथों से चाय पिलाकर वाघ और बकरी के बीच शांति वार्ता के जरिए सुलह करवाकर ही मानेगा।
चाय दिवस पर यह कश्मीर टी हाउस का शीर्षक मैने यूं ही नहीं दे दिया।
मेरे शहर में कभी जहां प्रकाश टाकीज था, वहीं उसके पास एक होटल भी थी, जिसका नाम कश्मीर टी हाउस था। वह कप और प्याली में चाय नहीं देता था, छोटे कांच के ग्लास में चाय भरकर देता था। पहले ग्लास में थोड़ा दूध डालकर रखता था और उसके बाद उस ग्लास में केतली से खौलती चाय भरता था। कश्मीर की चाय तो खैर हमने कभी पी नहीं, लेकिन लोगों को कश्मीर टी हाउस की चाय बहुत पसंद थी।।
इंदौर वैसे तो आज भी चाय का गढ़ है, एक समय वह भी था, जब इस शहर में २४ घंटे गर्म चाय पोहे होटलों में उपलब्ध होते थे। वह समय तब का था, जब शहर के सभी दो दर्जन सिनेमाघर अपने शबाब पर रहते थे। सुबह से ही सिने और पोस्टर प्रेमी सिनेमाघरों के आसपास मधु मक्खी जैसे मंडराया करते थे तो कुछ एडवांस बुकिंग की लाइन में खड़े होकर हाउस फुल फिल्म के टिकट पहले से ही खरीदकर ब्लैक में टिकट बेच अपना पेट पालते थे। कुछ लोग केवल पोस्टर देखकर ही तसल्ली कर लिया करते थे।
फिल्मों के अलावा होटल और चाय पोहे की सबसे अधिक खपत मिल मजदूरों की होती थी। कितनी टेक्सटाइल मिल्स थी इंदौर में। अगर उंगलियों पर गिनें तो, हुकुमचंद, राजकुमार, भंडारी, मालवा, स्वदेशी और कल्याण। मजदूरों का शहर था इंदौर और यहां सभी कॉटन किंग रहते थे। महाराजा तुकोजीराव के नाम से एम टी क्लॉथ मार्केट आज भी कपड़ा व्यवसाय की जान है।।
वहीं आसपास कांच महल और शीश महल, बड़ा और छोटा सराफा, बोहरा बाजार, मारोठिया बाजार, सांटा बाजार, बर्तन बाजार, खजूरी बाजार और नया और जूना राजवाड़ा। जी हां, जूना तो अभी भी पूरे मध्यप्रदेश का गौरव है, लेकिन नए को भूल जाइए।
अब आप सोच लीजिए, तब रात दिन कितनी रौनक रहती होती होगी, खाने पीने की और चाय नाश्ते की। रेलवे स्टेशन हो, सरवटे बस स्टैंड हो, अथवा सियागंज क्रॉसिंग, सब जगह होटलें ही होटलें, चाय, चाय और चाय।।
राजवाड़े के सामने शिमला और राज होटल थी, जिनमें शटर ही नहीं थे। पास में ही एक और कोहिनूर होटल थी। सुबह मिल के सायरन बजते ही सड़कों पर साइकिल सवार नज़र आ जाते थे। जो थोड़ा जल्दी निकलते थे, रास्ते
में ही चाय के एक कप की ताजगी लेकर मिल में प्रवेश करते थे। रात की मिल की आखरी पाली और सिनेमा का आखरी शो खत्म होने के बाद ही, केवल कुछ घंटों के लिए ही इंदौर शहर सो पाता था।
वह यह चाय की ही शक्ति थी, जो इंदौर को 24 घंटे तरो ताजा रखती थी।
चाय के अपने अपने अड्डे थे, अपना अपना स्वाद था। जनता चाय, समाजवादी चाय, क्रांतिवादी चाय और नमकीन चाय। चार आने की कट चाय अलका टाकीज के सामने। सब आज सपना नजर आता है। जहां कभी जेल रोड पर प्रशांत होटल थी, आज वह पूरा एरिया नॉवेल्टी मार्केट बन चुका है।।
चाय के शौकीन आज भी हैं। एक इंदौरी को किसी भी समय उठाकर चाय की दावत दी जा सकती है। आज ना सही, लेकिन कभी भी किसी भी समय, आप हमारे घर चाय के लिए सादर आमंत्रित हैं। जो नटे, उसका पुण्य घटे।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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