श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “गाय और कुत्ता।)

?अभी अभी # 686 ⇒ गाय और कुत्ता ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

पहली रोटी गाय की और दूसरी कुत्ते की ! यह हमारी संस्कृति है कि घर पर आया कोई प्राणी कभी भूखा न जाए। पक्षियों को दाना पानी तो ठीक, चींटियों के भी भोजन की व्यवस्था ईश्वर हमारे द्वारा करवाता है। कर्ता तो वह बनता है, कर्म हमसे करवाता है।

अपने आपको पढ़ा लिखा समझदार समझने वाला आदमी कब से गाँव से शहर की ओर कूच कर चुका है। उसकी आगामी पीढ़ी उससे दो कदम आगे महानगर और विदेशों की ओर कदम बढ़ा चुकी है। गऊ माता को पीछे छोड़ वह कुत्ते को अपने ड्रॉइंग रूम तक लाने में सफल हो गया है। इंसान किसी भी नस्ल का हो, लेकिन उसका कुत्ता अच्छी नस्ल का होना चाहिए। ।

गाय को हमने माँ का दर्ज़ा तो दे दिया, पर गाय हमें नहीं पाल सकती, हमें ही गाय को पालना पड़ता है। माँ के दूध के पश्चात गाय का दूध ही अधिक पौष्टिक होता है, अतः गाय को भी माँ मानने में औचित्य नज़र आता है।

गाय की पूँछ पकड़ संसार रूपी वैतरणी पार की जा सकती है, गोलोक अथवा वैकुण्ठ में प्रवेश किया जा सकता है। जहाँ गाय है, वहाँ गोकुल है, गोप गोपियाँ, गोपाल है। दुःख है, आज गऊ माता या तो गौशाला में है, या फिर शहर बदर है। गाय की रोटी पर कुत्ते का वारिसाना हक़ है। ।

एक गाय आपको वैकुण्ठ में प्रवेश करवा सकती है, लेकिन एक कुत्ता आपका नमक खाकर केवल स्वामिभक्त ही बना रह सकता है। पूरे महाभारत में जिस कुत्ते का कहीं कोई पता नहीं, वह धर्मराज युधिष्ठिर के साथ सशरीर स्वर्ग सिधार गया। यह धर्मराज की महिमा है, उस कुत्ते की नहीं। ।

धार्मिक कथा-कहानियों में हमें विश्वास तो है, लेकिन हम इतने समझदार हो गए हैं कि सार सार को प्रसाद की तरह ग्रहण कर लेते हैं और थोथे को अफवाह की तरह उड़ा देते हैं। गाय को माँ मानने में हमें कोई आपत्ति नहीं, लेकिन गाय को पालने की अपेक्षा हम गौशाला में चंदा देना अधिक उपयुक्त समझते हैं।

पालने की दृष्टि से हमें गाय की अपेक्षा कुत्ता अधिक रुचिकर लगता है। हम इतने लालची भी नहीं कि दूध और गोबर के लालच में माँ समान गाय को पालें। हम तो इतने निःस्वार्थी हैं कि उस कुत्ते को भी पाल लेते हैं जो दूध तो छोड़िए, गोबर तक नहीं देता। फिर भी कुत्ते को हम अपनी जान से भी ज़्यादा चाहते हैं। क्या भरोसा कभी ऐसा सुयोग भी आ जाए, कि धर्मराज की तरह कोई खुशनसीब कुत्ता हमारे साथ साथ स्वर्ग का भागी बन जाए।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments