श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “लड़की आँख मारे।)

?अभी अभी # 682 ⇒ लड़की आँख मारे ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

मुझे मरने मारने की बातें पसंद नहीं ! इनसे मुझे हिंसा और अपराध की बू आती है। वैसे आँख मारना भले ही हिंसा की श्रेणी में न आता हो, लेकिन आँख मारना एक अशालीन हरकत है और यह एक छेड़छाड़ का मामला होकर दंडनीय अपराध है।

यह सच है कि आँख मारने से एक मक्खी भी नहीं मरती ! लेकिन हमारा सभ्य समाज इसे मक्खी मारने से भी अधिक घृणित कार्य मानता है। आँख मारना, यह मनचलों, आवारा, छिछोरे छोरों का जन्मसिद्ध अधिकार है। संसद तो इसे एक असंसदीय आचरण भी घोषित कर चुकी है।।

कल एक विवाह समारोह में आयोजित महिला संगीत में जब एक छोटी सी बालिका ने, वो लड़की आँख मारे वाले गाने पर डांस प्रस्तुत किया तो सबकी आँखें खुली की खुली रह गई। मैं ऐसे वक्त डीजे के शोर से कानों को बचाता हुआ, चोरी से झपकी भी ले लिया करता हूँ। लेकिन इस गीत ने मेरी भी आँखें खोल दीं। बार बार कानों में जब आँख, आँख, आँख, आँख जैसा कर्कश शब्द पड़ने लगे तो कान भी सब कुछ सुनने के साथ देखने को भी मज़बूर हो जाते हैं।

लड़की आँख मारे और सीटी बजाए ! अब बोलिये, कौन से अपराध की कौन सी धारा लगाएंगे भद्र जन ;

वे क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता। हम उफ़ भी करते हैं, तो हो जाते हैं बदनाम।

कहाँ गई वो कमसिन अदाएँ जिस पर हर शायर का कुर्बान होने को दिल करता था।।

मुक्त और उन्मुक्त में थोड़ा ही फ़र्क होता है। फिल्मी गाने जिस रफ़्तार से उन्मुक्त होते जा रहे हैं, हमारा सभ्य समाज भी अपने आपको उस शैली में ढाल रहा है। आज की पीढ़ी अपने कैरियर और पढ़ाई के तनाव को हल्के फुल्के मनोरंजन से ही दूर कर सकती है।

शादी विवाह एक ऐसा मौका होता है जहाँ अपनों के बीच इंसान अपने को अधिक तनावमुक्त महसूस करता है। महिला संगीत में फिल्मी गानों पर ही सही, डांस की हफ्तों प्रैक्टिस की जाती है। टीवी पर प्रसारित म्यूजिक और डांस के प्रोग्राम और फिल्में ही इनका आदर्श होती हैं।।

मन में मलिनता न हो, नज़र में खोट न हो, तो दुनिया में कहीं गंदगी नज़र न आए। शादियों में हँसी मज़ाक, गीत सङ्गीत जीवन में उत्साह और उमंग पैदा करता है। सभी अपने हैं, कैसी वर्जना, कैसी मर्यादा। कोई बुरा नहीं मानता, जब लड़की आँख मारे।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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