श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सामूहिक इच्छा शक्ति…“।)
अभी अभी # 678 ⇒ सामूहिक इच्छा शक्ति
श्री प्रदीप शर्मा
[ COLLECTIVE WILL ]
अगर इंसान में प्रबल इच्छा शक्ति हो तो वह अपनी इच्छाओं को दबा भी सकता है, और अगर वह अपनी इच्छाओं का गुलाम बनता चला गया, तो उसकी शक्तियां भी क्षीण होती चली जाती है। जहां चाह है, वहां राह है, यहां चाह से मतलब किसी की पसंद, रुचि अथवा wish से नहीं है, यह वही दृढ़ इच्छा शक्ति है जिसे अंग्रेजी में will कहा गया है। Where there is a will, there is a way. लोग भी कम नहीं, वे वसीयत में भी रास्ते ढूंढ निकालते हैं।।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह चाहता है, उसका एक घर हो, उसका एक परिवार हो। केवल घर परिवार से ही उसका काम नहीं चलता, उसे अच्छा पास पड़ोस भी चाहिए और आसपास का वातावरण भी शुद्ध चाहिए। वह चाहता है, वह चार लोगों के बीच उठे बैठे, हंसे बोले। बस यहीं से उसे अपने साथ, अपने परिवार के साथ अपने पास पड़ोस, मोहल्ले वाले, कुनबे वाले और पूरे देश के रहने वालों के प्रति मन में रुचि और रुझान पैदा हो जाता है। किसी भी अच्छी खबर से वह प्रसन्न होता है और बुरी खबर से उसका मन खिन्न हो जाता हैं। समय के साथ रिश्ते मजबूत होते हैं और एक दूसरे के लिए अपनेपन की भावना जागृत हो जाती है।।
इंसान में अगर भावना है तो संवेदना भी है। वह अच्छी और बुरी दोनों आदतों का पुतला है। परिवार ही उसकी प्रेम की पाठशाला भी है और अच्छी और बुरी संगति का उस पर समान असर पड़ता है। एक तरफ वह परस्पर सहयोग का पाठ सीखता है तो दूसरी ओर स्वार्थ और मतलब उसमें राग द्वेष और प्रतिस्पर्धा के बीज बो देते हैं। इन्हीं गुण अवगुणों के बीच ही तो एक समाज और देश का निर्माण होता है।
एकता में बल है ! बच्चों के सामने यह उदाहरण अक्सर एक कहानी के रूप में इस तरह पेश किया जाता है ;
एक बहेलिया था, जो पक्षियों को शिकार करने के लिए जाल बिछाया करता था। किसी जगह अन्न के दाने डालकर पहले वह उन पक्षियों को ललचाता था, और फिर उन पर जाल डालकर उन्हें पकड़ लेता था। लेकिन एक बार उसकी युक्ति काम नहीं आई। पक्षी जाल में फंस तो गए, लेकिन एक समझदार पक्षी ने बुद्धिमानी से काम लिया। उसने सभी पक्षियों को जोर लगाकर जाल सहित उड़ने की सलाह दी। सभी पक्षियों ने जोर लगाया और जाल सहित आसमान में उड़ पड़े। बाद में किसी सुरक्षित स्थान पर जाकर अपनी चोंच से जाल काटकर अपने आपको मुक्त कर लिया।
गुलामी की जंजीर भी एक ऐसा ही मायाजाल है, जिसके बंधन से मुक्त होना किसी एक व्यक्ति का करिश्मा नहीं हो सकता। किसी का विचार, किसी की राय, किसी का त्याग, किसी का शुभ संकल्प, कब एक सामूहिक संकल्प बन जाता है, एक आव्हान होता है और सामूहिक संकल्प और इच्छा शक्ति से गुलामी की बेड़ियां हमेशा के लिए टूट जाती हैं। कितने पक्षियों ने बहेलिये के जाल में फंसकर अपने प्राण गवाएं होंगे। पक्षियों की क्रांति का कोई इतिहास नहीं होता। लेकिन एक पक्षी आपको प्रेरणा तो दे ही सकता है। उसकी आहुति आपके मन में उत्साह और उमंग की आग तो पैदा कर ही सकती है। हमने भी अगर अपनी सामूहिक इच्छा शक्ति को पहचाना तो हम क्या नहीं कर सकते।।
कहने को आज हम आजाद हैं लेकिन अगर हमारी इच्छाएं और इरादे नेक नहीं हुए और उन्हें पूरा करने के लिए हम एकजुट नहीं हुए तो हमारी इच्छा सदिच्छा नहीं बन पाएंगी। आपसी मनमुटाव, असहमति और राजनीतिक उठापटक के जंजाल से हमें कौन मुक्ति दिलाएगा।
जब तक हमारी शक्ति और युक्ति बंटी हुई है, तब तक हम अपनी ही इच्छाओं के जाल में उलझे हुए हैं। कौन बहेलिया हमें बहला रहा है, फुसला रहा है, हमें पता ही नहीं है। हम आने वाले खतरे से अनजान, चुपचाप आराम से अपना दाना चुग रहे हैं। आपकी सामूहिक इच्छा शक्ति बार बार आपका आव्हान कर रही है;
कौन किसी को बांध सका
सय्याद तो एक दीवाना है।
तोड़ के पिंजरा,
एक न एक दिन
पंछी को उड़ जाना है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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