श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “आप मुझे अच्छे लगने लगे।)

?अभी अभी # 676 ⇒ आप मुझे अच्छे लगने लगे ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जब हम अच्छे होते हैं, हमें अपने आसपास सब कुछ अच्छा अच्छा ही लगता है। हम सब, स्वभावतः होते तो अच्छे ही हैं, लेकिन कभी कभी हमें सब कुछ अच्छा नजर नहीं आता। हमारे मन की अवस्था के अनुसार हमारा स्वभाव बनता, बिगड़ता रहता है।

समय और परिस्थिति भी तो कहां हमेशा एक समान होती है।

जब मन चंगा होता है, तो गंगा नहाने का मन करता है। एकाएक सब कुछ अच्छा नजर आने लगता है। शायद फील गुड फैक्टर को ही अच्छा लगना कहते होंगे। मन की ऐसी उन्मुक्त अवस्था में, कोई व्यक्ति विशेष हमें अधिक पसंद आने लगता है, और हम अनायास ही कह उठते हैं, आप मुझे अच्छे लगने लगे। ।

कभी कभी आत्ममुग्ध अवस्था में हम भी अपने प्रियजनों से प्रश्न कर लिया करते हैं, मैं कैसा/कैसी लग रहा/लग रही हूं। मां बेटे से, बेटी मां से, पत्नी पति से, और एक सहेली दूसरी सहेली से, अक्सर यही तो प्रश्न करती रहती है। अगर वह अच्छा दिखेगा तो किसी को अच्छा लगेगा भी। तारीफ करना और सुनना किसे पसंद नहीं।

अगर आप किसी को अच्छे लग रहे हैं, तो अवश्य आपमें कुछ विशेष आकर्षण होगा। हमें भी यूं ही तो कोई नहीं भा जाता। अगर हम निश्छल और अलौकिक प्रेम की बात करें, तो अच्छा लगना एक ईश्वरीय अनुभूति है। मोहिनी मूरत, सांवली सूरत किसे पसंद नहीं। जहां सलोनापन, सादगी और भोलापन है, वहां शब्दाडंबर नहीं होता, अतिशयोक्ति नहीं होती, कोई अलंकार, रूपक, उपमा नहीं, बस मन से यही उद्गार प्रकट होते हैं, आप मुझे अच्छे लगने लगे। ।

ऐसी अनुभूति के क्षण हम सबके जीवन में आते रहते हैं। अगर हमारे चित्त परस्पर शुद्ध हों, तो शायद यह अनुभूति और अधिक व्यापक रूप से हम सभी के हृदय में जगह बना ले।

आज का हमारा जीवन इतना जटिल हो चुका है कि अच्छे और बुरे का तो भेद ही समाप्त हो गया है।

क्या अच्छे दिन, अच्छे लोगों के साथ ही समाप्त हो गए हैं।

अचानक दरवाजे पर दस्तक होती है, पड़ोस की एक दो वर्ष की कन्या मुझे तलाशती हुई कमरे में प्रवेश करती है। मुझे मानो मेरे प्रश्न का समाधान मिल गया हो। वह बोलती नहीं, लेकिन इशारों इशारों में सब कुछ कह जाती है।

उस बच्ची की आँखें मुझे देख मानो कह रही हैं, आप मुझे अच्छे लगने लगे। और मेरा भी उसको यही जवाब है, आप भी मुझे अच्छे लगने लगे। मैं यह भली भांति जानता हूं, मुझसे अच्छे इस दुनिया में कई लोग होंगे, लेकिन उस प्यारी दो वर्ष की कन्या जैसा अच्छा कोई हो ही नहीं सकता।

तुमसे अच्छा कौन है ?

आप मुझे अच्छे लगने लगे।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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