श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मस्तक…“।)
अभी अभी # 674 ⇒ मस्तक
श्री प्रदीप शर्मा
सिर से पांव तक, अगर पूछा जाए, कि हमारे शरीर में, सबसे ऊंचा स्थान कौन सा है, तो शायद मस्तक ही कहलाएगा। मस्तक ऊंचा ही अच्छा लगता है, मस्तक झुका और इंसान झुका। मस्तक गर्व, गौरव, अभिमान और स्वाभिमान का सूचक है।
एक और प्यारा सा शब्द है, मुखमंडल, कुछ कुछ सुनने में कमंडल सा प्रतीत होता है। मुख कहां से शुरू होता है और कहां खत्म, किस मुंह से कहा जाए। मुख मस्तक, ओंठ, नासिका, शुभ्र दंत पंक्ति और गोरे गोरे गाल, तिस पर दो नैना मतवाले, हम पर जुलम करे। इसी चेहरे पर कहां भाल, ललाट, भौंह और भ्रू मध्य ! किसे माथा कहें, कहां निकालें मांग, कहीं टीका, तिलक, तो कहीं माथेरी बिंदी। बस यही सब तो है हमारे व्यक्तित्व का आभामंडल।।
मुंह, मुख, मुखड़ा, सूरत, और चेहरे के दायरे से क्या अलग है हमारा मस्तक !
जिसे हम मन मस्तिष्क कहते हैं, वह भी तो यहीं कहीं स्थित है। कुछ सोचने अथवा चिंतन की अवस्था में अनायास ही हमारा हाथ हमारे माथे पर चला जाता है। ज्ञान और विवेक का भंडार यह मस्तक, क्या भरोसा किसके आगे झुक जाए।
क्या मत्था, मस्तक से अलग है। कितना सुकून मिलता है, किसी पवित्र स्थान पर मत्था टेकने पर।
किसी के मस्तक अथवा सर पर हाथ रखने का क्या महत्व होता है, महिलाएं बिंदी, और पुरुष टीका, मस्तक के बीचों बीच क्यूं लगाते हैं, ऐसे प्रश्न कभी नहीं पूछे जाते, क्योंकि शायद सभी इसका महत्व जानते हैं, अथवा, बिना जाने ही मान बैठते हैं।।
हमारे मस्तक के ऊपर पहले हमारा ही सर अथवा खोपड़ी है, जिसके ऊपर भले ही सुंदर केश अथवा रेशमी जुल्फें हों, लेकिन अंदर भेजे में, न जाने क्या क्या भरा रहता है। ऊपर भले ही आकाश हो, चिदाकाश भी यहीं कहीं अवस्थित रहता है। क्या हमारा मन, मस्तिष्क अथवा बुद्धि ही हम पर शासन भी करती है, हमें नियंत्रित कर हम पर हुक्म चलाती है।
यह आज्ञा चक्र का क्या चक्कर है, कुछ समझ में नहीं आता।
कभी हम मस्त रहते हैं तो कभी तनावयुक्त ! मस्तक ऊंचा अगर आत्म विश्वास, विजय और गर्व का प्रतीक है तो झुका सर निराशा, पराजय और अवसाद की निशानी। हम अगर खड़े रहें तो पर्वतराज की तरह, किसी ठूंठ की तरह नहीं, और अगर झुकें तो किसी फलदार वृक्ष की भांति, किसी कमजोर अल्पमत वाली सरकार की तरह नहीं। हर व्यक्ति का मस्तकाभिषेक ज्ञान, बुद्धि, विवेक और वैराग्य से हो, स्वाभिमान हो तो सबके लिए मान सम्मान भी हो। अस्त व्यस्त से मस्त तक, सदा चमकता रहे हमारा मस्तक। हम नतमस्तक ..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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