श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “ऑर्गेनिक केमिस्ट्री…“।)
अभी अभी # 672 ⇒ ऑर्गेनिक केमिस्ट्री
श्री प्रदीप शर्मा
मुझे शास्त्र और विज्ञान में कोई खास रुचि नहीं रही। मैं अन्य विद्यार्थियों की तरह विज्ञान का अध्ययन करता रहा, करता रहा, लेकिन करत करत अभ्यास के, कभी जड़मति से सुजान नहीं बन पाया। खाने में भले ही मेरी पसंद चलती हो, मेरे भविष्य की चिंता मुझसे ज्यादा मेरे बड़े भाई साहब को रहती थी। वे मुझे एक अच्छा पढ़ा लिखा इंसान बनाना चाहते थे और तब यह विज्ञान के अध्ययन से ही संभव था।
पढ़ाई में मैं कमज़ोर रहा, क्योंकि मेरा गणित ही कमज़ोर था। जिनका गणित अच्छा होता है, वे छात्र बुद्धिमान कहलाते हैं, फटाफट आगे बढ़ जाते हैं। मैने सिन्हा और रॉय चौधरी की फिजिक्स भी पढ़ी, और भाल और तुली की केमिस्ट्री भी। ए.सी.दत्ता की बॉटनी और आर. डी.विद्यार्थी की ज़ूओलाजी जैसी मोटी मोटी किताबें मैने पढ़ी हैं ! I am B.Sc. return. Appeared but never cleared.
जिन लोगो को विज्ञान में रस था, वे डॉक्टर इंजिनियर बन गए, कॉमर्स वाले सी.ए. और आर्ट्स वाले वकील बन गए। कोई पुलिस में भर्ती हो गया तो कोई फौज़ में चला गया। जब हम कुछ न बन सके तो, बैंक में बाबू बन गए। ।
रस, रसायन और रसिक का आपस में कितना संबंध है, मैं नहीं जानता, लेकिन मुझे साहित्य और संगीत में रस ही रस नजर आता है। मेरी केमिस्ट्री किसी रसिक की भले ही ना हो, मुझे संतोष है, राम रसायन मेरे पास है, और मैं रघुपति का दास हूं।
रसायन शास्त्र को अंग्रेजी में केमिस्ट्री कहते हैं। केमिस्ट्री भी दो होती है, ऑर्गेनिक और इन -ऑर्गेनिक। बचपन में कभी ध्यान नहीं दिया, हमारा भोजन ऑर्गेनिक है कि नहीं। क्योंकि तब भोजन में स्वाद था। खेत के छोड़ और ताज़े मीठे बटलों के स्वाद की तो पूछिए ही मत। गाजर, मूली, टमाटर और दांतों से छीला हुआ गन्ना। न कभी पेट भरता था, न कभी पेट दुखता था। कंकर पत्थर सब हजम। तब हम नहीं जानते थे, जो कुछ हम खा रहे हैं, सब ऑर्गेनिक फूड है। यही रसायन है और यही हमारे शरीर को पुष्ट बना रहा है। ।
हमने भले ही विज्ञान नहीं पढ़ा, लेकिन विज्ञान प्रगति करता रहा। अगर विज्ञान प्रगति नहीं करता, तो शायद मैं इतनी आसानी से विज्ञान की तारीफ भी नहीं कर पाता। भला हो आज की टेक्नोलॉजी का, फेसबुक का, जो मुझसे रोज पूछती रहती हैं, एक शुभचिंतक दोस्त की तरह, आप क्या सोच रहे हैं। यहां कुछ लिखें। और मैं आग्रह का कच्चा, रोज कुछ न कुछ लिख देता हूं।
आज प्रदूषण और पर्यावरण के साथ प्रदूषित, केमिकल फर्टिलाइजर वाले खाद्य पदार्थों का भी जिक्र हो रहा है, जिससे मनुष्य का शरीर बीमारियों का घर बना हुआ है। कीटनाशक दवाइयों का भोजन जब फसल को ही परोसा जाएगा, तो वह वही तो देगी, जो उसे हवा और दाना पानी में मिलाकर दिया गया है। एक गाय भी अच्छा दूध तभी देती है, जब उसका दाना पानी ठीकठाक हो। जर्सी गाय दूध अधिक देती है, लेकिन उसकी गुणवत्ता वह नहीं होती। जमीन को भी खाद के रूप में वही दिया जाए, जो जमीन से ही पैदा हुआ हो। हमारी धरती आजकल अन्न, फल और सब्जियां नहीं, जहर उगल रही है और वह जहर हम निगल रहे हैं। ।
विज्ञान ने हमें बड़ा ज्ञानी और बुद्धिमान बना दिया। झट से दो मिनिट में मैगी और पास्ता बनाकर अगर आज की पीढ़ी पढ़ लिखकर आगे बढ़ रही है, तो क्या गुनाह कर रही है। हर अवसर पर केक, पेस्ट्री, कोक और आइसक्रीम उपलब्ध है तो कौन घर में चूल्हा फूंके।
जब केमिस्ट्री पढ़नी थी, तब कभी पढ़ी नहीं, लेकिन लगता है अब अपने शरीर की केमिस्ट्री एक बार पढ़नी पड़ेगी। उसके नफे नुकसान के बारे में भी सोचना पड़ेगा। एक जैविक हथियार जब हवा में से ऑक्सीजन तक इस हद तक कम कर सकता है कि हर स्वस्थ व्यक्ति को एक बीमार की तरह ऑक्सीजन का सिलेंडर लगाना पड़े, तो समझ लीजिए, कयामत का दिन नज़दीक है। अगर वातावरण में जहर है, तो अपने अंदर के जहर को बाहर निकालें। अपनी प्रतिरक्षा शक्ति (इम्यून सिस्टम) बढ़ाएं। योग, प्राणायाम करें और हां आज नहीं तो कल, अपने शरीर की केमिस्ट्री समझें और….
GO ORGANIC ..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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