हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी ⇒ सीखने की उम्र… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆
श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सीखने की उम्र”।)
सीखने की कोई उम्र नहीं होती,यह उक्ति उन्हीं पर लागू होती है,जो इस उम्र में भी कुछ. सीखना चाहते हैं । जो लोग यह मानते हैं,कि सीखने की भी एक उम्र होती है, और हम सब सीख चुके, तय मानिये,उनके सीखने की उम्र वाकई गई ।
बच्चों की उम्र सीखने की होती है ! ज़्यादातर सीख बच्चे ही झेलते हैं । उन्हें सीखने के लिए स्कूल भेजा जाता है । सीख को ही अभ्यास अथवा पाठ कहते हैं । पाठशाला में पाठ पढ़ाए जाते हैं,अंग्रेज़ी की किताब में उसे ही lesson कहा जाता है । पढ़ाई को अभ्यास कहते हैं । जो बड़े होने पर study कहलाती है और पढ़ने वाला student .
पढ़ने से विद्या आती है,इसलिए पढ़ाई करने वाला विद्यार्थी भी कहलाता है । जो कभी हमारे देश की गुरुकुल परंपरा थी,वह बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय से होती हुई आज शासकीय विद्यालय तक पहुँच गई है । लेकिन यह भी कड़वा सच है कि पब्लिक स्कूल ही आज के गुरुकुल हैं,नालंदा विश्वविद्यालय हैं । आप चाहें तो उन्हें आज के भारत का ऑक्सफ़ोर्ड अथवा कैंब्रिज भी कह सकते हैं ।
सीखने की कला को अभ्यास कहते हैं । अक्षर ज्ञान और अंकों का ज्ञान ,किसी अबोध बालक को इतनी आसानी से नहीं आता । कितनी बार १ के अंक पर ,और ” अ ” अनार के अक्षर पर पेंसिल चलाई होगी,आज याद नहीं । मास्टरजी का दिया हुआ सबक रोज याद करना पड़ता था । गिनती,पहाड़े का सामूहिक पाठ हुआ करता था । कितनी कविता,पहाड़े, और रोज की प्रार्थना कंठस्थ हो जाती थी ! सबक याद न होने पर छड़ी, छमछम पड़ती थी,और विद्या झमझम आती थी । एक प्रार्थना को और अभ्यास को इतनी बार रटना पड़ता था,कि वह कविता,गणित का वह सूत्र आज भी याद है । कितनी भी याददाश्त कमजोर हो,पुराने लोगों को आज भी पहाड़े, गणित के सूत्र और संस्कृत के श्लोक सिर्फ इसलिए याद हैं,क्योंकि बचपन में उन्हें कंठस्थ किया गया था । यही अभ्यास है, सीख है, विद्या है, जो कभी विस्मृत नहीं होती ।।
जिसने जीवन में सीखना छोड़ दिया, उसके ज्ञान का, बुद्धि का,स्मरण शक्ति का ,मानकर चलिए, पूर्ण विराम हो गया । ज्ञान का भंडार अथाह है । केवल किताबों से ही नहीं,बड़ों-छोटों और परिस्थितियों से भी सीख ली जा सकती है । दुश्मन से सिर्फ घृणा ही नहीं की जाती । केवल एक मर्यादा पुरुषोत्तम ही अपने अनुज लक्ष्मण को आखरी साँस ले रहे राक्षसराज रावण से भी कुछ सीख लेने का निर्देश दे सकते हैं ।
दत्तात्रय भगवान के 24 गुरु थे अपने आपको ज्ञान में हमेशा लघु समझना लघुता की नहीं, विद्वत्ता की निशानी है । ज्ञान का स्रोत कभी सूखे नहीं । यह वह झरना है, जो जब बहता है, सृष्टि को तर-बतर कर देता है । इस झरने के पास कभी अज्ञान का मरुस्थल दिखाई नहीं दे सकता । सीखने की कोई भी उम्र हो सकती है ।।
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© श्री प्रदीप शर्मा
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