डॉ. वंदना पाण्डेय दुबे

परिचय 

शिक्षा – एम.एस.सी. होम साइंस, पी- एच.डी.

पद : प्राचार्य,सी.पी.गर्ल्स (चंचलबाई महिला) कॉलेज, जबलपुर, म. प्र. 

विशेष – 

  • 39 वर्ष का शैक्षणिक अनुभव। *अनेक महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय के अध्ययन मंडल में सदस्य ।
  • लगभग 62 राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में शोध-पत्रों का प्रस्तुतीकरण।
  • इंडियन साइंस कांग्रेस मैसूर सन 2016 में प्रस्तुत शोध-पत्र को सम्मानित किया गया।
  • अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान शोध केंद्र इटली में 1999 में शोध से संबंधित मार्गदर्शन प्राप्त किया। 
  • अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘एनकरेज’ ‘अलास्का’ अमेरिका 2010 में प्रस्तुत शोध पत्र अत्यंत सराहा गया।
  • एन.एस.एस.में लगभग 12 वर्षों तक प्रमुख के रूप में कार्य किया।
  • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में अनेक वर्षों तक काउंसलर ।
  • आकाशवाणी से चिंतन एवं वार्ताओं का प्रसारण।
  • लगभग 110 से अधिक आलेख, संस्मरण एवं कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।

 प्रकाशित पुस्तकें- 1.दृष्टिकोण (सम्पादन) 2 माँ फिट तो बच्चे हिट 3.संचार ज्ञान (पाठ्य पुस्तक-स्नातक स्तर)

☆ पर्यावरण दिवस विशेष ☆

☆ “05 जून : विश्व पर्यावरण दिवस” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय दुबे 

पर्यावरण से छेड़छाड़ न करें

धरती और उसके जीवन को बचाएं

जिस पृथ्वी और प्रकृति के बीच हम रह रहे हैं, जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है वही पर्यावरण है। जिसमें समस्त जैविक एवं अजैविक (सजीव और निर्जीव) तत्व सम्मिलित हैं। भौतिक सुख सुविधाओं विलासिता और ऐश्वर्यपूर्ण जीवन की असीम लालसा, पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण ने हमें पेड़-पौधों के झुरमुट उनकी शीतल छाया, नदियों-झरनों से आने वाली मधुर जल-तरंगों, पर्वतों-पहाड़ों जंगलों से आने वाली बयारों, पक्षियों की चहचहाटों उनके कलरवों तथा प्राकृतिक मनमोहक दृश्यों से तो दूर किया ही है, पर्यावरण को भी प्रदूषित कर दिया है। जीवन को चलाने और निर्धारित करने में जिस ‘पर्यावरण’ को प्रकृति ने हमें उपहार स्वरूप प्रदान किया है, जिस प्रकृति की गोद में हम बैठे हैं उसे सुरक्षित रखना और सहेजना हमारा कर्तव्य है। अफसोस की बात है कि विज्ञान और विकास के नाम पर वृक्षों को काटकर प्रकृति की गोद को सूनी कर हम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। चिंतक एवं विचारक पवन दीवान जी की निम्न पंक्तियां अत्यंत सटीक, समीचीन और मार्मिक हैं –

 सिर्फ इतना ही नहीं कि वन कटा है

आरियों की धार से जीवन कटा है

अब कहाँ दरख़्तों की सेना जो लड़े तूफानों से

आंधियों की धार से अब तना कटा है

नीड को तरसे कबूतर शांति का

 साथ वृक्षों के हमारा मन कटा है

आग में जलता हुआ देखे उसे हम

 जिसकी छाँव में जीवन कटा है।

बदलते परिस्थिति चक्र में मिटटी-गारे से बने गोबर से लिपे-पुते कच्चे घर सीमेंट-कंक्रीट में बदल गए हैं, अब हम दातौन से टूथब्रश पर, पंखों से कूलर और ए.सी.पर, साइकिल से गाड़ी-कार पर एवं पीतल, तांबे, कांसे के बर्तनों से स्टील और प्लास्टिक के बर्तनों पर आ गए हैं। रासायनिक खादों, कीटनाशकों, सौंदर्य प्रसाधनों, परफ्यूम, प्रिजर्वेटिव्स(भोज्य सरंक्षक पदार्थ) फास्ट फूड, जंक फूड आदि का प्रयोग बढ़ा है। कृषि उत्पाद एवं दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए ऑक्सीटोसिन जैसे हानिकारक पदार्थों एवं इंजेक्शनों के प्रयोग का चलन बढ़ा है। जिसका स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।

वर्तमान में पर्यावरण और स्वास्थ्य पर जो सर्वाधिक नुकसान दायक प्रभाव डाल रहा है वह है ‘प्लास्टिक’। वैश्विक तौर पर यह चिंता का कारण बन गया है। यही कारण है कि इसके हानिकारक प्रभाव से बचने के लिए एवं लोगों को जागरूक करने के लिए इस वर्ष 2025 में ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ पर ‘प्लास्टिक प्रदूषण समाप्त करना’ थीम रखी गई है।

अध्ययनों एवं शोधों से अब यह स्पष्ट हो चुका है कि बीते वर्षों में जो प्लास्टिक हमारे जीवन में जादुई प्रभाव लेकर आया था, जिसकी बनी सामग्रियां सुंदर-आकर्षक, सुविधाजनक टिकाऊ और सस्ती होती हैं वह प्लास्टिक हमारे ड्राइंग रूम से किचन तक ही नहीं पहुंचा वरन उसने तो माउंटआबू की चोटी से लेकर नदी, तालाब, समुद्रों के तटों – तलहटियों तक अपना साम्राज्य बना लिया है। सभी स्थानों पर सर्वाधिक रूप से पॉलिथीन बैग, पानी की बोतलें, डिब्बों, चाय के कपों आदि का प्रयोग हो रहा है। वस्तुतः प्लास्टिक हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन गया है। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि दुनिया भर में 500 बिलियन से ज्यादा पॉलिथीन बैग (थैलियां) का इस्तेमाल किया जा रहा है। पूरी दुनिया में एक वर्ष में 10 (दस) खरब प्लास्टिक बैगों का प्रयोग कर कचड़े के रूप में खुले वातावरण में नदी-नालों, सड़कों पर फेंक दिया जाता है। पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड, भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार भारत वर्ष में प्रत्येक व्यक्ति प्रतिवर्ष 6 से 7 किलोग्राम प्लास्टिक का प्रयोग कर रहा है। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रयुक्त होने वाला यह प्लास्टिक धीमा जहर बनकर पर्यावरण और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। प्लास्टिक / पॉलिथीन में नष्ट न होने की प्रवृत्ति के कारण यह अधिक हानिकारक प्रभाव छोड़ने में सक्षम है। परिणाम स्वरुप भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है, वातावरण में फैले पॉलिथीन नाले- नालियों, सीवर लाइनों को ब्लॉक कर रहे हैं, इनके पशुओं के शरीर में पहुंचने पर उनके मौत का भी खतरा रहता है। प्लास्टिक -पॉलिथीन के जलने पर अपेक्षाकृत अधिक वायु प्रदूषण होता है। नदियों, जलाशय में इनके पहुंचने पर जल प्रदूषण भी होता है।

20 माइक्रोन और उससे कम वजन वाली पॉलिथिन अधिक हानिकारक होती हैं। सिर्फ पॉलिथीन ही नहीं प्लास्टिक के बोतल, डब्बे चाय कॉफी सूप के कप का प्रयोग भी नुकसानदायक है। गर्म भोज्य पदार्थों के लिए इनका प्रयोग निषेध ही होना चाहिए। यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत घातक है। इनके प्रयोग से कैंसर, ट्यूमर स्ट्रोक जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। गर्भवती महिलाओं को विशेष रूप से इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है। गर्भस्थ शिशु पर इसका दुष्प्रभाव पड़ने की प्रबल आशंका बनी रहती है। यह सच है कि पॉलीथीन बैग तथा अन्य प्लास्टिक सामग्रियों ने हमारे जीवन को अत्यधिक सुगम बना दिया है किंतु सब जानकर तात्कालिक लाभ और सुविधा के लिए, स्वस्थ दीर्घ जीवन को दांव में लगाना सर्वथा अनुचित है। यद्दपि प्रशासन द्वारा 20 माइक्रोन से कम वाली (पतली) पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है किन्तु मोटी पॉलीथिन और प्लास्टिक की वस्तुएं भी एलर्जी, त्वचा रोग, पाचन तथा तांत्रिका संस्थान से संबंधित रोगों के लक्षण उत्पन्न कर स्वास्थ्य स्तर को प्रभावित कर रहे हैं।

आज ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ पर हम सब ‘प्लास्टिक के प्रयोग को रोकने का संकल्प लें। प्रण करें कि हम पॉलिथीन थैलों के स्थान पर पेपर, कपड़े, जूट के थैलों तथा प्लास्टिक की पानी की बोतलों के स्थान पर कांच की बोतलों का प्रयोग करेंगे तथा अन्य प्लास्टिक सामग्रियों का भी बहिष्कार करेंगे।

आईए पर्यावरण जागरूकता की दिशा में एक कदम हम भी बढ़ाएं पर्यावरण बचाने के लिए..

© डॉ. वंदना पाण्डेय दुबे 

प्राचार्य, चंचलाबाई पटेल महिला महाविद्यालय, जबलपुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments