सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ रक्त से—यह कैसा चित्र… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

आसमान फट क्यों नहीं जाता

हवाएं खुद के होने पर

शर्मिन्दा क्यों नहीं होतीं

 

हर कहीं लाशों के ढेर

भूख का ताण्डव

घायलों की कराह

चीख पुकार

 

ऐसे में रक्तरंजित मिट्टी की

गुहार

कैसे सुनाई देगी

 

गाज़ा में एक बच्चा

जिसके दोनों हाथ

युद्ध ने छीन लिये

पैरों से लिखता  है

मोबाइल गेम खेलता है

कहता है

माँ

मेरी माँ

खुद को कैसे समझाऊंगा

अब मैं तुम्हें गले नहीं लगा पाऊंगा !

 

मानवता के चीथड़े उड़ गये हैं

ऊपर चीलें मँडरा रही हैं

उनकी कर्णभेदी आवाजें

दिशाओं का दिल

दहला रही हैं

मैं यह मर्मान्तक करूणा

बुद्ध तक पहुँचा रही हूं

 

वक्त ने

रक्त से

यह कैसा चित्र बनाया है

जिसमें रंग के नाम पर

 खून

कैनवस के नाम पर

कुर्सी

और वहशीपन

तूलिका में तब्दील हो गया है।।

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments