श्री प्रतुल श्रीवास्तव
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।
प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन
आज प्रस्तुत है पर्यावरण दिवस पर आपका एक बुन्देली गीत “पर्यावरण बचाने हे हमें”।)
☆ पर्यावरण दिवस विशेष ☆
बुन्देली गीत – “पर्यावरण बचाने हे हमें” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆
(5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष)
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दद्दा सुन लो, दादी सुन लो, सुन लो प्यारी अम्मा
भौजी सुन लो, जिज्जी सुन लो, सुन लो प्यारे मुन्ना
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पर्यावरण बचाने हे हमें पर्यावरण बचाने
पर्यावरण बचाने हे हमें पर्यावरण बचाने
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जो जीवन में बोत जरूरी सबई कछू हे ईमें,
हवा हे ईमें, पानी ईमें, जंगल सोई हें ईमें,
ईमें फसलें, ईमें खाना, ईमें जनम बिताने।
पर्यावरण बचाने हे हमें पर्यावरण..
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कूरा – करकट – परली जल रई बारूदी भई सांसें,
एसी फ्रिज की गैसें, बच हें धूल – धुआं से कैसें,
इनसें बच कें हमें हमारी दुनिया स्वस्थ बनाने ।
पर्यावरण बचाने हे हमें पर्यावरण…
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मन मरजी सें पेड़ काट रए, जंगल घटतई जा रए,
गरमी बढ़ रई, बरसा घट रई, सब प्रानी अकुला रए,
पेड़ लगा के उने बचाओ दुनिया अगर सजाने ।
पर्यावरण बचाने हे हमें पर्यावरण…
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खाद रसायन डार – डार कें, कीड़ा मार रए हें,
भोजन जहर बना लओ, नकली गोरस बना रए हें,
बढ़ी बीमारी, उमर घट रई अब काहे चिचयाने।
पर्यावरण बचाने हे हमें पर्यावरण…
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देवी पूजन या अजान हो बिन भोंपू नईं हो रए।
रामकथा, भागवत, जनम दिन सब हुल्लड़ में खो गए,
कानफोड़ू डी जे के आगे खूब पड़त चिल्लाने।
पर्यावरण बचाने हे हमें पर्यावरण…
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© श्री प्रतुल श्रीवास्तव
संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈