श्री रामदेव धुरंधर

(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी के चुनिन्दा साहित्य को हम अपने प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करते रहते हैं। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं।

(ई-अभिव्यक्ति में “दस्तावेज़” श्रृंखला के माध्यम से अमूल्य और ऐतिहासिक तथ्यों को सहेजने का प्रयास है। दस्तावेज़ में ऐसे ऐतिहासिक दस्तावेजों को स्थान देने में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है। इस शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है मारिशस से आदरणीय श्री रामदेव धुरंधर जी का एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ गद्य – क्षणिका : मेरे लेखन का एक सबल पक्ष ।) 

☆ दस्तावेज़ # 30 – मारिशस से ~ गद्य – क्षणिका : मेरे लेखन का एक सबल पक्ष ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆ 

गद्य क्षणिका के जनक श्री रामदेव धुरंधर जी का यह आलेख हिन्दी साहित्य के इतिहास का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है, जिसमें उन्होने गद्य क्षणिका के इतिहास की विवेचना की है। 1970 के आसपास राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर जी की पद्य क्षणिका ने उनके मानस पर अमिट छाप छोड़ी थी। 40 वर्ष तक पद्य क्षणिका के वे शब्द उन्हें कुछ नया करने के लिए प्रेरित करते रहे। चालीस वर्षों के उस मानसिक द्वंद्व ने 2010 के आसपास उन्होने गद्य क्षणिका की सृष्टि की। गद्य क्षणिका को 80 से कम शब्दों में सीमित कर इस अप्रतिम प्रयोग को सफल बनाया। हम लोग इस इतिहास के सृजन के साक्षी हैं। डॉ नूतन पाण्डेय जी के शब्दों में “किसी नव्य साहित्यिक रूप को विधा के रूप में मान्यता और स्थापना दिलाना सहज नहीं होता, आलोचकों और पाठकों की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए उसके सृष्टिकर्ता को अनेकों चुनौतियों और संघर्ष का सामना करना पड़ता है।” मेरे विचार से श्री रामदेव धुरंधर जी द्वारा इन 15 वर्षों में 3000 से अधिक गद्य क्षणिका की रचना करने के पश्चात उनके असंख्य गद्य – क्षणिका के पाठकों का स्नेह और गद्य – क्षणिका के लेखकों जिनमें डॉ महथाराम कृष्णमूर्ति जी, श्री संजय पवार जी तथा अज्ञात लेखकों द्वारा इस विधा के योगदान को हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान तो मिलना ही चाहिए साथ ही इस विधा में अब तक किए गए कार्य पर शोध की भी उतनी ही आवश्यकता है। निकट भविष्य में विश्व के किसी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा इस विधा पर अवश्य विचार किया जाएगा।  मुझे पूर्ण विश्वास है यह अमूल्य दस्तावेज़ आपको गद्य क्षणिका के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराने में सफल होगा । इस ऐतिहासिक आलेख की रचना के मेरे आग्रह को स्वीकारने के लिए श्री रामदेव धुरंधर जी का हृदय से आभार। साथ ही इस विधा की सृष्टि के लिए ई-अभिव्यक्ति एवं साहित्यकार मित्रों की ओर से हार्दिक बधाई।

– हेमन्त बावनकर, संपादक ई-अभिव्यक्ति

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मेरी मातृभूमि मॉरिशस में ‘अंग्रेजी’ राज भाषा है, लेकिन यहाँ फ्रेंच का अधिकाधिक आधिपत्य बना रहता है। फ्रांसीसी इस देश में पहले आए थे। उन्होंने जमीन का पूरा लाभ उठाया और फ्रेंच उनकी भाषा होने से यह भाषा यहाँ मजबूती से जम गई। अंग्रेजों ने समुद्री सैन्य बल से सन् 1810 में इस देश में आक्रमण किया था और उनकी जय हुई थी। अंग्रेज आए तो जाहिर है उनके साथ उनकी भाषा अंग्रेजी भी आई। पर अंग्रेजी ने फ्रेंच को पार करने में कभी सफलता अर्जित नहीं की।

सन् 1834 में प्रथम भारतीय यहाँ मजदूर के रूप में आए तो बस उनके साथ धार्मिकता थी और वे जो बोल रहे थे वही उनकी भाषा थी। दूसरे शब्दों में अंग्रेजी और फ्रेंच ने ही उन पर शासन किया और उनकी हिन्दी, भोजपुरी, मराठी, तमिल, तेलुगु सब के सब धार्मिक भाषा के रूप में कायम रहीं। पर जो धर्म था वह बलिष्ठ ही था जो रह गया और आज हम अपने पूर्वजों की थाती के रूप में यहाँ अडिग और अपराजित के तेवर से अपना जीवन यापन कर रहे हैं।

यह तो मॉरिशस के इतिहास से ले कर वर्तमान तक की एक झाँकी हुई। यहाँ मुझे विशेष कर अपनी गद्य — क्षणिकाओं की बात करनी है। मित्र हेमंत बावंकर जी ने इसी के लिए मुझसे कहा है अतः उनकी मांग के अनुसार मैं गद्य – क्षणिकाओं की अपनी बात सामने रखने का प्रयास कर रहा हूँ।

मैंने गद्य – क्षणिका के संदर्भ में पहले जो लिखा है वही यहाँ भी लिख रहा हूँ। गद्य – क्षणिका का मेरा प्रेरणा स्रोत वहाँ से है सन् 1970 के आसपास मैंने धर्मयुग में पढ़ा था — 

गवाक्ष* तब भी था जब खोला नहीं गया था

सत्य तब भी था जब बोला नहीं गया था

शब्दकार — डाक्टर रामधारी सिंह दिनकर

गवाक्ष* — खिड़की 

उसे ‘पद्य – क्षणिका’ नाम से प्रकाशित किया गया था। वह पद्य — क्षणिका दो पँक्तियों में ही थी। मैंने पढ़ने पर उसे शायद बार – बार गुनगुनाया हो और मुझे वह जुबानी याद रह गया हो।

मेरा सौभाग्य रहा सन् 1973 में मेरी पहली कहानी मुम्बई से प्रकाशित होने वाली धर्मयुग पत्रिका में प्रकाशित हुई थी और कालांतर में मेरी और भी कहानियाँ धर्मयुग में प्रकाशित होती गईं। मेरी पहली कहानी जो धर्मयुग में छपी थी उसका शीर्षक था ‘प्रतिफल।’ महाराष्ट्र की एक पत्रिका में वह मराठी में अनुदित छपी थी। मराठी की वह प्रति हवाई डाक से मुझे भेजी गई थी। दुर्भाग्यवश, वह प्रति अब मेरे पास रही नहीं। शायद ‘स्त्री’ नाम से वह पत्रिका थी।

लगभग चालीस साल बाद सन् 2010 के आस पास अचानक मेरे मन में आया हो रामधारी सिंह जी की पद्य – क्षणिका को मैं अपने लिए गद्य – क्षणिका में परिवर्तित कर दूँ। विशालकाय उपन्यास को छोटा करें तो वह कहानी हो जाये। कहानी को छोटा करें तो वह लघुकथा हो जाये। इसके नीचे मेरी गद्य — क्षणिका की बारी आती है। बारी आयी तो मैंने उसे बहुत कस कर थामा है। मैंने गद्य – क्षणिका पहले कहीं न सुन कर स्वयं बना लिया और लोगों ने माना भी यह मेरी अपनी पहल है। डॉ. महथाराम कृष्णमूर्ति जी ने मुझे बताया था वे मुझसे प्रेरित हो कर गद्य क्षणिका लिख रहे हैं। उन्होंने गद्य क्षणिका की अपनी पहली प्रकाशित कृति मुझे समर्पित की है। मराठी भाषा के श्री संजय पवार जी जो महाराष्ट्र में ही वास करते हैं उन्होंने भी मुझे बताया था गद्य क्षणिका में उनका हाथ ठीक ही चल रहा है। उन्होंने अपनी क्षणिका – कृति की भूमिका मुझसे लिखवायी है।

गद्य क्षणिका के बारे में मेरी बात इस तरह से है अस्सी से कम शब्दों की मेरी हर गद्य – क्षणिका स्वयं में एक पूरी कहानी है। मुझे छोटी सी क्षणिका में उतरना हो तो मेरे मन में ऐसा मलाल पैदा होता नहीं है कि लंबी कहानी की संभावना को मैं सीमित कर रहा हूँ। वास्तव में गद्य – क्षणिका के प्रतिमान से इसे छोटा ही रहना पड़ता है। इसके पीछे मेरी मंशा यह होती है अस्सी से कम शब्दों में मैं जो बोलने की कोशिश कर रहा हूँ वह पूरा बोल सकूँ और पढ़ने वालों को लगे उन्होंने एक पूरी कहानी पढ़ी।

डाक्टर नूतन पाण्डेय जी ने 1200 के मेरे गद्य — क्षणिका संग्रह ‘तारों का जमघट’ की भूमिका लिखी है। उनके शब्द इस तरह से हैं :

रामदेव रामदेव धुरंधर जी ने साहित्यिक जगत के समक्ष अपनी अभिनव दृष्टि द्वारा गद्य क्षणिका के रूप में साहित्य प्रेमियों के समक्ष एक नया गवाक्ष खोला है, नवीन चिंतन दृष्टि प्रदान की है और नवीन मार्ग का उन्मेष किया है | पर किसी नव्य साहित्यिक रूप को विधा के रूप में मान्यता और स्थापना दिलाना सहज नहीं होता, आलोचकों और पाठकों की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए उसके सृष्टिकर्ता को अनेकों चुनौतियों और संघर्ष का सामना करना पड़ता है | इसके लिए रचनाकार और उसकी कृति में इतनी सामर्थ्य होनी चाहिए कि वह एक विशाल पाठक वर्ग तैयार कर सके ,साथ ही उसका एक ऐसा विशिष्ट अनुगामी वर्ग भी हो, जो साहित्यिक रूप से सक्रिय होकर इस नवीन विधा में खुद लिखने की रुचि ले। इन सबके साथ ही शायद साहित्यिक लेखन के किसी रूप को विधा के रूप में पहचान दिलाने में बहुत बड़ी भूमिका उन साहित्यालोचकों की भी होती है जो इस विधा में रुचि लें, साहित्यिक जगत में उसकी यथोचित चर्चा करें, उसके गुण –दोषों का सूक्ष्म और निरपेक्ष ढंग से परख-विवेचन करें, तत्पश्चात उसके मानदंड विकसित करके उसे विधा के रूप में मान्यता दिलाएँ और उसे साहित्यिक सहयोग देकर अपने पुनीत साहित्यिक कर्तव्य को संपन्न करें |

अब अपेक्षा यह है कि अन्य साहित्यकार भी इस दिशा में आगे आएँ और इस विधा में लिखकर रामदेव धुरंधर जी के इस महत प्रयास को अपनी सकारात्मक ऊर्जा और सामूहिक प्रयत्नों से इसमें गतिशीलता प्रस्फुरित करें | साहित्यकारों का कर्तव्य है कि वे अपने साहित्यिक अनुभवों और नूतन प्रयोगों द्वारा इसे और भी अधिक आकर्षक रूप में साहित्य जगत के समक्ष  प्रस्तुत करें और लोकप्रिय साहित्यिक विधा के रूप में इसकी स्थिति सुनिश्चित करें ।

डॉक्टर नूतन पाण्डेय

दिल्ली

सन् 2023

***

मैं अपनी गद्य क्षणिकाओं पर प्राप्त कुछ प्रतिक्रियाएँ यहाँ संलग्न कर रहा हूँ। मैंने ये टिप्पणियाँ फेसबुक से एकत्रित की हैं।

सुशील मिश्रा  –-

मान्यवर, मानस को झकझोर देने वाली ये सूक्ष्म कथाएँ आपका ही प्रयोग हैं। सचमुच ये गद्य क्षणिकाएँ गागर में सागर हैं। पाठकों के लिए संग्रहणीय सृजन। आपकी रचनाएँ बरबस खलील जिब्रान की याद दिला जाती हैं। फर्क बस इतना ही है वे संदर्भ को विस्तार दे देते हैं और आप पूरी कहानी को क्षणिका में समेट लेते हैं। जीवन – दर्शन हर हालत में निहित होता है। नमन लेखनी को। 

श्रीवल्लभ विजयवर्गीय –-

आपकी क्षणिकाएँ सहेज कर रखने वाली निधियाँ हैं रामदेव साहब। आपकी अनेक क्षणिकाएँ मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करने में सफल निश्चित ही हो कर रहेंगी।

कुमार शैलेद्र  —

अभिनन्दन भाषा साहित्य सृजन समर्पण। आप हिन्दी हिन्दुस्तान के मात्र विलक्षण प्रतिभा संपन्न व्यक्तित्व ही नहीं, अपितु एक महा धुरंधर, महान धरोहर, ऊर्जा स्रोत प्रेरणा पुरुष हैं जो हमारे लिए गौरव की बात है। आपका हार्दिक अभिनन्दन। आभार आदरणीय।

दिनेश द्विवेदी  —

आपकी क्षणिका का इंगित इसी हृदयहीनता, निष्ठुरता और क्रूर नृशंसता की ओर है। आपकी लक्षणा और व्यंजना शक्ति को मानना पड़ेगा।

डाक्टर धनंजयसिंह  —

बहुत मार्मिक, पर सच को सामने रखती क्षणिका …आपकी लेखनी को नमन बंधु।

अखिलेश सिंह —

आपके सार्थक एवं अथक प्रयासों को हिन्दी साहित्य का इतिहास अवश्य याद रखेगा। आपकी क्षणिकाओं में सामाजिक यथार्थ होता है और वह भी इतनी सहजता से प्रकट होता है कि पाठक ने कब उसे स्वीकार कर लिया, यह स्वयं पाठक को पता नहीं चलता। धीमे – धीमे आपकी क्षणिकाएँ एक मुहिम बन रही हैं और वह दिन दूर नहीं जब fb को आपकी क्षणिकाओं के लिए भी जाना जायेगा। 

अशोक भाटिया —

रचनाधर्मियों का मनोविज्ञान बखूबी समझा है आपने। आपका लिखा लगता है कि अरे, यह घटना तो हाल में ही कहीं आस पास में घटी है, हमारे ही इर्द गिर्द। शब्द कम, लेकिन गहरी बात।

कवि डी. एम.मिश्रा  —

बहुत खूब। प्रेरक कथाओं के आप जादूगर हैं। मैंने आपकी बहुत सारी क्षणिकाएँ पढ़ने का सुख प्राप्त किया है। आपकी क्षणिकाएँ पाठक के हृदय पर सीधा असर करती हैं। जीवन के तमाम गूढ़ रहस्य आप छोटी सी कहानी में बड़ी आसानी से व्यक्त कर देते हैं। एक सधे हुए कुशल रचनाकार की यही विशेषता होनी चाहिए। आपका सम्मान पूरे हिन्दी जगत का सम्मान है। आप इसके हकदार हैं। साधुवाद। 

अश्विनी तिवारी  —

बहुत सुन्दर मित्रवर रामदेव जी। आपकी क्षणिकाएँ मुझे बार – बार उकसा रही हैं एक प्रयास मैं भी करूँ… बहुत – बहुत प्रभावी।

हरेराम पांडेय  —

वाह महोदय, आपके लेखन से परिचित हो कर एक ताजगी का एहसास होता है। आपकी क्षणिकाएँ बड़ी तीक्ष्णता से मानवीय संवेदनाओं को उकेरती हैं। नमन है आपके साहित्यिक अवबोध को।

इन्द्रकुमार दीक्षित  —

गद्य क्षणिका बनाने में आपका सानी नहीं। बधाई।  

जगदीश प्रसाद जेंद —

रामदेव धुरंधर ने गागर में सागर भर कर परोस दी है गद्य क्षणिकाओं में। उत्कृष्ट सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई।

जयप्रकाश कर्दम —

आप तो शब्द — सम्राट हैं धुरंधर जी। भारत में बहुत लोग आपको चाहते हैं तथा आपको प्यार और सम्मान करते हैं। बहुत – बहुत बधाई और हार्दिक मंगल कामनाएँ। आप हिन्दी साहित्य के गौरव हैं। मुझे व्यक्तिगत रूप से आप पर गर्व है।

किशोर अग्रवाल  —

परदेश में अपना देश बसा कर अपनी भाषा व भावों में आज भी वहाँ सुगंध बचा कर रखी है आपने। यहाँ तो सब छिज बिज गया। काश आपकी तरह हम भी किसी और आईलेंड पर ले जा कर बचा पाते। अभिनन्दन भाषा साहित्य सृजन समर्पण।

मेघसिंह मेघ  —

आपके लेखन में मॉरिशस के दर्द के पन्ने खुलते हैं तो उसमें भारत का भी दर्द उजागर होता है। मैं आजकल आपका उपन्यास ‘पथरीला सोना’ पढ़ रहा हूँ। आप्रवासी भारतीयों की दर्द भरी दास्तान से साक्षात्कार बहुत ही मार्मिक व दर्दिला सिद्ध हो रहा है। आपकी लेखनी से प्रवाहित दर्द को कोटि – कोटि प्रणाम। आप माँ हिन्दी के सच्चे वरद सपूत हैं। आपने हिन्दी जगत के लिए इतने वृहद पैमाने पर जो सर्जन किया है, वह अपने आप में हिन्दी जगत के लिए अमर योगदान है। इस महान उपन्यास ‘पथरीला सोना’ [पूरे छह खंड ]  के सृजन में आपने जो सृजन प्रसव पीड़ा उठायी होगी उसके लिए हम हिन्दी जगत के सभी साहित्य प्रेमी सदैव आपके एवं आपके लेखन कर्म के ऋणी रहेंगे।

मोहन पाठक  —

हार्दिक बधाई और शुभ कामना, आदरणीय। युगों — युगों तक हिन्दी का परचम आपकी रचनाओं से लहराता रहेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।

अनिल कुमार नामदेव  —

छोटी रचना में बड़ी बात कह पाना कोई रामदेव जी से सीखे। शायद साहित्य का सृजन ऐसे ही होता है।

परशुराम पाण्डेय  —

कथा प्रवाह के साथ बंध कर रह गया। बड़े भाई, क्या  लेखन शैली है आपकी। आपकी रचना पढ़ कर मन अघा जाता है। बड़े भाई धुरंधर जी, आपकी क्षणिका हमारे लिए प्रज्वलित दीप है जो हमें ज्ञान – प्रकाश से प्रकाशित करती आ रही है। आगे भी यही अपेक्षा है।   

प्रणीता मुखर्जी  —

रामदेव जी, नमस्कार। आपकी क्षणिका पढ़ कर मन को बहुत संतोष हुआ। कम से कम विदेश में रह कर मॉरिशस की खुशबू तो मिली।

राजनाथ तिवारी  —

आप अनेक अर्थ वाली रचना में दक्ष हैं। कल्पनाशील व्यक्ति ही जीवन में बड़ा सामाजिक कार्य कर सकता है। आपके दृष्टिबोध को मैं प्रणाम करता हूँ। आप सामान्य लेखन नहीं, विशेष लेखन करते हैं। आपके लेखन में जीवन व दर्शन दोनों मुखर हो उठता है। इसलिए आप मेरे लिए आदरणीय हैं।

राजेश्वर वशिष्ठ  —

आप भावनाओं के अंतिम छोर को पकड़ कर जीवंत रचना बुनते हैं। आप क्षणिकाओं के माध्यम से मनोविज्ञान का बेहद सूक्ष्म विश्लेषण करते हैं। यह लेखन पूरी दुनिया में हिन्दी का गौरव बढ़ा रहा है। प्रणाम।

राकेश के आर.पाण्डेय  —

हिन्दी जगत आपकी साधना को नहीं भूलेगा। अग्रज रामदेव जी, आपके अभिव्यक्ति कौशल को देख कर मन मोहित है। बाहरी ढंग से प्रस्तुत करना आपकी विशिष्टता है। आपके अपनेपन से सने शब्दों को नियमित पढ़ता हूँ। विषय वस्तु के मूल को अभिव्यक्त करना आपसे सीखता हूँ। सादर चरण स्पर्श। आपके लेखन को शत शत नमन।

राम नंदन प्रसाद  —

हम भारतीयों को तो आपके सम्मान के बारे में सोचना चाहिए। बधाई आपको, श्रीमान। अजस्र ऊर्जा के साथ आप चालीस साल से हिन्दी की सेवा में लगे हैं। यह किसी की भी असाधारण उपलब्धि होगी।

रवि के. आ.. भटनागर  —

बहुत सुन्दर। कवि के कविता बनने की प्रक्रिया पर पूरी व्याख्या एक क्षणिका में। सर, धन्य है आपकी लेखनी।

भारती वर्मा बुड़ाई  —

आपकी ये गद्य – क्षणिकाएँ गागर में सागर के समान हैं।

शैलेन्द्र सिंह  —

सर, ‘गद्य – क्षणिका’ का प्रयोग बहुत ही रुचिकर दिख रहा है। अभिनन्दन भाषा साहित्य सृजन समर्पण। कम शब्दों में गहन संवेदनशील अभिव्यक्ति का शानदार प्रयोग।

सोमनाथ पिपलानी  —

श्री रामदेव धुरंधर साहब, वास्तव में आप एक वरिष्ठ साहित्यकार हैं। आपकी हर क्षणिका अंतर्मन को उद्वेलित करने योग्य है। आपकी क्षणिकाओं में विविधता, गहरी संवेदना, गूढ़ अर्थ होती है जो मन मस्तिष्क पर गहरी अमिट चाप छोड़ती है। प्रतिदिन आपकी पोस्ट का इन्तजार रहता है। बहुत गूढ़, रहस्यपपूर्ण क्षणिका आप जैसे विद्वान की कलम से ही रचित हो सकती है। बहुत बधाई आदरणीय। आपकी लेखनी को शत – शत नमन।

उदयवीर सिंह  —

आपकी क्षणिकाएँ अपने आप में एक मुकम्मल दस्तावेज सी होती हैं। प्रखरता और विद्वता की पराकाष्ठा हैं। बहुत कम लोग इस तरह साहस कर के लिख पाते हैं बेमिसाल। धुरंधर जी अग्रदूत हैं संस्कृति, परंपरा व मूल्य व प्रतिमानों के…. ईश्वर आपको गतिमान स्वस्थ व प्रखरता नवाजे, मेरी अरदास है।

 कुलदीप गुलाटी  -–

मेरी तुच्छ बुद्धि आपके विस्तृत ज्ञान के आगे नत्मस्तक हो जाती है। बस लाईक और वंदन तक ही रह जाता हूँ। आपकी अद्भुत कला और ज्ञान के कण मात्र भी प्राप्त कर सका तो स्वयं को भाग्यशाली समझूँगा।

ज्योति शेखर —

आदरणीय, बहुत बड़े फलक की पड़ताल कर डाली चंद पँक्तियों की क्षणिका में। अति सुन्दर, प्रणाम आपको।

राजेश सिंह श्रेयस —

सर अद्भुत। गंभीर लेखन। अद्वितीय कल्पनाशीलता एवं विशाल अनुभव के दम पर उतारी गयी यह क्षणिका एक नवीन आयाम के साथ महाकवि कालिदास जी के महाज्ञानी होने वाले पक्ष को बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करती है। आपकी सोच की परिधि के भीतर असंख्य बेशकीमती क्षणिकाएँ भरी पड़ी हैं।

हरेराम पाठक —

बूँद और समुद्र’ की सार्थकता को आलोकित करती इस वैचारिक क्षणिका के लिए आपको हार्दिक बधाई।

तारा सिंह —

आपकी क्षणिकाएँ बहुत कुछ सोचने के लिए प्रेरित करती हैं। थोड़े से शब्दों में यथार्थ को कहने की कला आप में है।

रिंकु चटर्जी  —

आपकी क्षणिका मन को स्पर्श कर जाती हैं।

चंद्रप्रकाश पाण्डेय —

प्रतिभा के सूर्य को अंधेरे की कालिमा में बांधा नहीं जा सकता। वह तमस के सघन अवरोधों को विदीर्ण कर प्रकाशित हो जाता है। भाई रामदेव जी ने गद्य क्षणिका की साधना और तपस्या की है। कथावृत्त / मिथक और काल्पनिकता की त्रिवेणी हैं उनकी सुन्दर क्षणिकाएँ। सुन्दर भाव विधान से रचित आपकी गद्य क्षणिकाएँ मिथक का सा आनन्द देती हैं। प्रशंसनीय है मान्यवर रामदेव जी।

नंद किशोर वर्मा  —

आपकी गद्य क्षणिकाएँ दिमाग में गहरा असर बनाती हैं। अति उत्तम आदरणीय। गागर में सागर भरने का कमाल हम आपसे सीख रहे हैं।

कृष्णलता सिंह  —

क्षणिका के द्वारा वर्तमान स्थिति का सही आकलन करने के लिए साधुवाद, धुरंधर जी।

कमलेश कुमार वर्मा  —

आप मन प्राण से हिन्दी के समर्पित, साधक, विचारक रचनाकार हैं। आपकी क्षणिकाएँ सीधे मन में उतर जाती हैं। हार्दिक शुभ कामनाएँ।

विजय प्रकाश भारद्वाज कवि —

आपका यह ग्रंथ साहित्य यात्रा में एक मील का पत्थर साबित होगा। भागदौड़ भरी जिंदगी के इस नये कालखंड में जहाँ लघुकथाओं तक पढ़ने का समय निकाल नहीं पा रहे ऐसे समय में केवल अस्सी से कम शब्दों में कहा गया सूत्र ज्ञान ऐसे लोगों के लिए उनकी संस्कृति के परिचय का एक अच्छा माध्यम भी बन सकेगा।

ओंकार प्रसाद सिंह —

कोई शब्द नहीं टिप्पणी करने को। बहुत सुन्दर क्षणिका। प्रणाम आदरणीय।

शिवजी श्रीवास्तव जी —

किसी भी कला की उपादेयता है कि वह हृदय में सोयी हुई सद्प्रवृत्तियों को जाग्रत कर सके। सुन्दर क्षणिका। प्रणाम।

***

डाक्टर रामबहादुर मिसिर

आप गद्य क्षणिका के प्रवर्तक हैं। पौराणिक और मिथकीय संदर्भों के जरिए सामाजिक विसंगतियों और सुसंगतियों पर बहुत ही प्रभावशाली ढंग से “गागर में सागर” उक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं।

एक बात और ये क्षणिकाएं कथ्य और शिल्प की दृष्टि से बेजोड़ हैं।

***

मैं अपनी ओर से न भी बोलूँ तो मित्रों की ये प्रतिक्रियाएँ गवाह हैं अस्सी से कम शब्दों की मेरी गद्य – क्षणिकाओं का स्वरूप कैसा होता है। मैंने सन् 30 जून 2025 तक फेसबुक में 1000 तक गद्य क्षणिकाएँ पोस्ट कर दी हैं। मैंने ऊपर में लिखा और उसी बात से अंत कर रहा हूँ गद्य – क्षणिका के संदर्भ में मेरी साहित्यिक साधना इस तरह से हो गई है एक विशाल बात मेरे मन में आए जिसे मैं बस छोटा ही करता जाऊँ और अस्सी शब्दों में आ कर वह ठहर जाए।  

लोगों ने लिखा है गागर में सागर का मैं एक सफल लेखक हुआ करता हूँ। मैं अपने प्रति इस उक्ति के प्रति वंदन की भावना रखता हूँ।

मेरे चार गद्य – क्षणिका संग्रह प्रकाशित हुए हैं –

1 — गद्य – क्षणिका : एक प्रयोग — 520 गद्य क्षणिकाएँ

2 — तारों का जमघट — 1200 गद्य क्षणिकाएँ

3 — छोटे – छोटे समंदर –- 660 गद्य क्षणिकाएँ

4 – गागर में सागर — 640 गद्य क्षणिकाएँ

सर्वजोड़ प्रकाशित 3000 गद्य – क्षणिकाओं से अधिक ही।

***

© श्री रामदेव धुरंधर

दिनांक

01 – 06 – 2025

संपर्क : रायल रोड, कारोलीन बेल एर, रिविएर सेचे, मोरिशस फोन : +230 5753 7057   ईमेल : rdhoorundhur@gmail.com

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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Dr Bhavna Shukla

बेहतरीन कार्य हार्दिक बधाई

Vivek Ranjan Shrivastava

जो लोग नई धारा बनाते हैं वे भगीरथ कहलाते हैं .
आपकी प्रतिभा धुरंधर है । भोपाल से विवेक के प्रणाम ।

लंबे समय से पुस्तक समीक्षा को मैने पुस्तक चर्चा नाम से लिखना शुरू किया था। क्योंकि समीक्षा में साहित्य के मानकों पर आलोचना वांछित है जो अब जब लेखक अपने व्यय पर पुस्तक प्रकाशन कर रहे हैं, उन्हें नागवार गुजरती है, अतः मैने कंटेंट की ही चर्चा प्रारंभ की , अब अधिकतर यही शब्द प्रयुक्त हो रहा है।