श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(भगवत्प्राप्ति का उपाय और गुणातीत पुरुष के लक्षण)

 

मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते ।

स गुणान्समतीत्येतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते ।।26।।

 

अचल भक्ति रस जो सदा करता मेरा ध्यान

वह ही है गुणातीत सच होता ब्रह्म समान।।26।।

भावार्थ :  और जो पुरुष अव्यभिचारी भक्ति योग (केवल एक सर्वशक्तिमान परमेश्वर वासुदेव भगवान को ही अपना स्वामी मानता हुआ, स्वार्थ और अभिमान को त्याग कर श्रद्धा और भाव सहित परम प्रेम से निरन्तर चिन्तन करने को ‘अव्यभिचारी भक्तियोग’ कहते हैं) द्वारा मुझको निरन्तर भजता है, वह भी इन तीनों गुणों को भलीभाँति लाँघकर सच्चिदानन्दघन ब्रह्म को प्राप्त होने के लिए योग्य बन जाता है ।।26।।

 

And he who serves me with unswerving devotion, he, crossing beyond the qualities, is fit for becoming Brahman.।।26।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

vivek1959@yahoo.co.in

मो ७०००३७५७९८

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