श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

(मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह और शोकयुक्त वचन)

अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्‌।

यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः ॥

अरे,अरे,धिक पाप में गहन फँसे हम आज

जो सुख,राज्य के लोभवश लड़ने चला समाज।।45।।

भावार्थ :  हा! शोक! हम लोग बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने को तैयार हो गए हैं, जो राज्य और सुख के लोभ से स्वजनों को मारने के लिए उद्यत हो गए हैं।।45।।

 

Alas! We are involved in a great sin in that we are prepared to kill our kinsmen through greed for the pleasures of a kingdom ।।45।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

vivek1959@yahoo.co.in

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments