श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भगवान द्वारा अपने प्रभाव का वर्णन और अर्जुन को युद्ध के लिए उत्साहित करना)

तस्मात्त्वमुक्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून्भुङ्‍क्ष्व राज्यं समृद्धम्‌ ।

मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्‌ ।। 33 ।।

 

तो उठ , यश पा , जीत अरि , भोग राज्य समृद्ध।

मैनें पहले ही हने , निमित्त मात्र कर युद्ध ।। 33 ।।

 

भावार्थ :  अतएव तू उठ! यश प्राप्त कर और शत्रुओं को जीतकर धन-धान्य से सम्पन्न राज्य को भोग। ये सब शूरवीर पहले ही से मेरे ही द्वारा मारे हुए हैं। हे सव्यसाचिन! (बाएँ हाथ से भी बाण चलाने का अभ्यास होने से अर्जुन का नाम ‘सव्यसाची’ हुआ था) तू तो केवल निमित्तमात्र बन जा॥33॥

 

Therefore, stand up and obtain fame. Conquer the enemies and enjoy the unrivalled kingdom. Verily, they have already been slain by Me; be thou a mere instrument, O Arjuna!

 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

vivek1959@yahoo.co.in

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments