श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – कविता – आत्मघात  ??

उसके भीतर

ठंडे पानी का

एक सोता है,

दुनिया जानती है..,

 

उसके भीतर

खौलते पानी का

एक सोता भी है,

वह जानता है..,

 

मुखौटे ओढ़ने की

कारीगरी

खूब भाती है उसे,

गर्म भाप को कोहरे में

ढालने की कला

बखूबी आती है उसे..,

 

धूप-छाँव अपना

स्थान बदलने को हैं

जीवन का मौसम

अब ढलने को है..,

 

जैसा है यदि

वैसा रहा होता

शीतोष्ण का अनुपम

उदाहरण हुआ होता..,

 

अपनी संभावनाएँ

आप ही निगल गया

गंगोत्री-यमुनोत्री

होते हुए भी

ठूँठ पहाड़ ही रह गया…!

©  संजय भारद्वाज

(सांझ 4:52 बजे, 13.5.2021)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆  ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares
4 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

2 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Rita Singh

निःशब्द

Sushil Kumar Tiwari

अप्रतिम रचना