श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अस्तित्व ? ?

पहाड़ की ऊँची चोटियों के बीच

अपने कद को बेहद छोटा पाया,

पलट कर देखा,

काफ़ी नीचे सड़क पर

कुछ बिंदुओं को हिलते डुलते पाया,

ये वही राहगीर थे,

जिन्हें मैं पीछे छोड़ आया था,

ऊँचाई पर हूँ, ऊँचा हूँ,

सोचकर मन भरमाया,

एकाएक चोटियों से साक्षात्कार हुआ,

भीतर और बाहर एकाकार हुआ,

ऊँचाई पर पहुँच कर भी,

छोटापन नहीं छूटा

तो फिर क्या छूटा?

शिखर पर आकर भी

खुद को नहीं जीता

तो फिर क्या जीता?

पर्वतों के साये में,

आसमान के नीचे,

मन बौनापन अनुभव कर रहा था,

पर अब मेरा कद

चोटियों को छू रहा था..!

?

 

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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