॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #7 (41-45) ॥ ☆

 

रणांगण में उड़ते सघन धूलकण बीच, रथ चक्रध्वनि से ही थे जाने जाते

नृपनाम से सैन्य अपनी परायी, व घंटो से हाथी थे पहचान पाते ॥ 41॥

 

रण में बढ़े दृष्टिरोधी अँधेरे में, जो धूलिकण की सघनता से छाया

शस्त्रों से मारे गये अश्व द्विप, वीरों का रूधिर ज्यों बालरवि दृष्टि आया ॥ 42॥

 

आघात के रूधिर से रक्तरंजित, धराधूलि अंगार सी दी दिखाई

और वायुसंग उमड़ती धूल नभ में ज्वलनपूर्व उठते धुंयें सी थी छाई ॥ 43॥

 

रथारूढ़ आघात – मूर्छित पुनः जग झिड़क सारथियों को – था जिनने बचाया

उन्ही को, ध्वजा देख जिनसे थे हारे, फिर क्रोधित कर लक्ष्य लड़ने बनाया। 44।

 

अरिबाण से छिन्न हो बीच में भी योद्धाओं के बाण की फाल बढ़कर

अपने प्रबल वेग से लक्ष्य को भेद, रख देते थे छिन्नकर या मिटाकर ॥ 45॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments