प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ – मुस्कानों का गीत – ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे 

मुस्कानों को जब बाँटोगे,तब जीने का मान है।

मानवता जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर,

जो देता है सम्बल

पेट है भूखा,तो दे रोटी,

दे सर्दी में कम्बल

अंतर्मन में है करुणा तो,मानव गुण की खान है।

मानवता जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

धन-दौलत मत करो इकट्ठा,

कुछ नहिं पाओगे

जब आएगा तुम्हें बुलावा,

तुम पछताओगे

हमको निज कर्त्तव्य निभाकर,पा लेनी पहचान है।

मानवता जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

शानोशौकत नहीं काम की,

चमक-दमक में क्या रक्खा

वहीं जानता सेवा का फल,

जिसने है इसको चक्खा

देव नहीं,मानव कहलाऊँ,यही आज अरमान है।

मानवता जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

ख़ुद तक रहता है जो सीमित,

वह बिरथा इंसान है

अवसादों को अपनाता जो,

वह पाता अवसान है

अंतर्मन में नेह पालना,करुणा-दया-विधान है।

मानवता जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments