हिन्दी साहित्य – कविता ☆ माटी कहे कुम्हार से… ☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆

सुश्री रुचिता तुषार नीमा

☆ कविता ☆ माटी कहे कुम्हार से…   ☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆

मैं भी माटी का बना हुआ

तू भी माटी से बना हुआ

 

मैं भट्टी की आंच में पका हुआ

तू जीवन संघर्ष से तपा हुआ

 

मैं प्यासे की प्यास बुझाता हुआ

तू अपनों की आस लगाता हुआ

 

मैं भी इंसानों की प्रतिक्षा में

तू भी उनकी राह तकता हुआ

 

मैं हर रंग, रूप और आकार में

तू अनुभव के स्वरूप साकार में

 

बस तुझमें मुझमें इतना अंतर

मैं चोट लगी तो टूट जाऊंगा

तू चोट लेकर और पक जाएगा।।।।

 

© सुश्री रुचिता तुषार नीमा

इंदौर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈