श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’

☆ पितृ दिवस विशेष ☆

☆ कविता ☆ ~ पिता ~ ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆ 

पिता धर्म कर्तव्य कठिन है,

इसमें तपना पड़ता है

यद्यपि माँ का पद ऊंचा है,

पिता को खपना पड़ता है ll 

 *

मुख  में कर्कश स्वर होता है,

मक्खन सा दिल होता है

अंदर प्यारी दुनिया होती,

दर्शन कम ही होता है  ll 

 *

कितना भी हो कष्ट ह्रदय में

बच्चा भूखा ना सोयेगा  l

कर्म के पथ का अनुगामी है ,

घर का  चौखट ना रोयेगा  ll 

 *

खुद को ढलती शाम समझता,

बच्चा उगता  सूरज है  l 

बेटी को मर्यादा माने

जमाता चन्दन – रज है ll 

 *

फर्ज सभी पूरा करना है,

मन में एक विश्वास लिए l

पिता चक्रमण करता रहता,

दिल में पक्का आस लिए ll 

 *

पिता समर्पण,श्रम की मूरत,

अपना कर्तव्य निभाता है  l 

हर अभाव को दिल में रख कर,

बिन बोले  सो जाता है   ll 

 *

धीरे धीरे श्वासों की गति,

अपनी यात्रा पूर्ण करेगी

ईश्वर का आराधन करके

अपने श्रम को दूर करेगी ll 

 *

एक दिन ऐसा भी आएगा,

गाडी पंचर हो जायेगी

ठेला गाडी धक्के खाकर

चलते चलते रुक जायेगी ll 

 *

लेकिन खड़ा हुआ यह पहिया,

रुक कर  राह बताता है l

जीवन के हर मुश्किल का हल,

फिर भी  वह समझाता है ll 

♥♥♥♥

© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”

लखनऊ, उप्र, (भारत )

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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