श्री यशवंत कोठारी
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री यशवन्त कोठारी जी का ई-अभिव्यक्ति में स्वागत। आपके लगभग 2000 लेख, निबन्ध, कहानियाँ, आवरण कथाएँ, धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, सारिका, नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान, राजस्थान पत्रिका, भास्कर, नवज्योती, राष्ट्रदूत साप्ताहिक, अमर उजाला, नई दुनिया, स्वतंत्र भारत, मिलाप, ट्रिव्यून, मधुमती, स्वागत आदि में प्रकाशित/ आकाशवाणी / दूरदर्शन …इन्टरनेट से प्रसारित। अमेज़न KINDLE , pocket FM .in पर ऑडियो बुक्स व् Matrbharati पर बुक्स उपलब्ध। 40 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। सेमिनार-कांफ्रेस:– देश-विदेश में दस राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में आमंत्रित / भाग लिया। राजस्थान साहित्य अकादमी की समितियों के सदस्य 1991-93, 1995-97 , ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार की राजभाषा समिति के सदस्य-2010-14.)
☆ आलेख ☆ लुगदी साहित्य व छद्म लेखन –की दुनिया… ☆ श्री यशवंत कोठारी ☆
पिछले दिनों यू ट्यूब पर लुगदी साहित्य व प्रेत लेखन के बारे में कुछ नई जानकारियां मिली. यशवंत व्यास ने इस क्षेत्र में कई लोगों से मुलाकात की और कई जानकारियां जुटाई. एक पुरानी दुनिया से नया साक्षात्कार हुआ, उसी पर एक श्रोता –दर्शक के रूप में मेरी यह टीप.
इस क्रम में मैंने सुरेन्द्र मोहन पाठक, मिथिलेश गुप्ता आबिद सुरती, योगेश मित्तल, वेद प्रकाश काम्बोज, वेद प्रकाश शर्मा, परशुराम शर्मा, प्रदीप चन्द्र, फारूख अर्गली, सुबोध भारतीय, एस हुसैन जैदी, जैसे पल्प लेखकों, उनके जीवन, प्रकाशकों के किस्से भी सुने.
दिल्ली मेरठ, मुंबई, बेंगलोर भी चर्चा में आये. योगेश जी की पुस्तक –प्रेत लेखन भी देखी. गुलशन नंदा, चेतन भगत का भी जिक्र आया. 300 -400 उपन्यासों के लेखन के बाद भी लेखकों की माली हालत ज्यादा अच्छी नहीं हो पाई. एक प्रकाशक ने तो तीस रूपये में ही उपन्यास ले लिया. प्रकाशक लेखक से किताब ले कर अपने ट्रैड मार्क से छाप लेते थे. उपन्यासों में चरित्र तक कोपी राइट करते थे, नक़ल करना मामूली बात थी. मिलते जुलते नामों से सेकड़ों किताबें छपती थी. पाठक जी के अलावा कोई भी कोर्ट में नहीं गया. पाठक जी ने केस जीते.
भारतीय फिल्मों, पत्रकारिता व मंचीय कविता में घोस्ट राइटिंग तो लम्बे समय से चल रहा है. अख़बारों की दुनिया में भी प्रेत लेखन चलता है. सॉफ्ट वेयर में भी कोपी राईट के मामले आये हैं.
योगेश मित्तल तो गायक भी है संगीत की भी जानकारी रखते हैं, अभिनय भी किया है, सब से खास बात ये की पाठक जी के अलावा सभी स्वतंत्र लेखक है, मसिजीवी रहे हैं, आज इस की कल्पना भी नहीं की जा सकती. छद्म लेखन की यहीं कहानी हर बार दोहराई जाती है.
प्रेत लेखकों का कहना था की जो किताब हमारे नाम से नहीं छपती और बिकती वहीँ किताब रजिस्टर्ड लेखकों के नाम से बिकती थी. मेरठ में तो सेकड़ों पॉकेट बुक्स के प्रकाशक हो गए, लेकिन अब यह सब समाप्ति की ओर है, लेकिन मिथिलेश के अनुसार ये सभी अब ऑडियो के रूप में चल सकते हैं, ऑडियो बुक्स या पॉडकास्ट का भविश्य है एफएम रेडियो इसी लाइन पर काम कर रहे हैं लेकिन पाठक अलग था और आज का श्रोता अलग है नए पाठक या नए श्रोता ढूँढना कोई आसान काम नहीं है.
कुकूएफएम व अन्य सेकड़ों एफएम बाज़ार में हैं कई दैनिक पत्र पत्रिकायें भी पॉडकास्ट पर काम कर रहे हैं. शिविका झरोखा व मातृभारती ने भी काम किया है. कुछ लोग गूगल की मदद से पोड कास्ट बना रहे हैं लेकिन गुणवत्ता कमज़ोर है.
भविष्य में किताबों की ऑडियो सी डी चलेगी, जो आवाज़ में होंगे.
मुख्य धारा का साहित्य ओर लोकप्रिय साहित्य की यह बहस आगे भी चलती रहेगी. देवकी नंदन खत्री, कुशवाहा कान्त, दत्त भारती, मस्तराम, पम्मी, संगीता और ऐसे सेकड़ों नाम जेहन में आते हैं, कर्नल रणजीत, मेजर बलवंत का नाम भी खूब चला था. पॉकेट बुक्स के वे दिन भी क्या दिन थे?. गुलशान नंदा ने जो झंडे गाड़े उन का क्या कहना. उनके बारे में एक किस्सा मशहूर है की वे दिल्ली एयर पोर्ट पर उतरते तो प्रकाशक अटेची ले कर खड़े रहते थे, जिसको पाण्डुलिपि दे देते वो प्रकाशक निहाल हो जाता.
साक्षरता बढ़ी, जनसँख्या बढ़ी आय बढ़ी लेकिन पाठक श्रोता नहीं बढे. नयी वाली हिंदी का शोर तो खूब है लेकिन आधार कमज़ोर है, इस क्षेत्र के लेखक दूसरी तीसरी किताब तक आने में ही हांफने लग जाते हैं.
छद्म लेखकों का कहना है की किताब तेयार करने में बहुत ज्यादा होम वर्क करना पड़ता है, लेकिन मिलता क्या है ? यही सब से बड़ा यक्ष प्रश्न है. आबिद सुरती तो सब किस्मत पर छोड़ देते हैं. पल्प फिक्शन पर फिल्म भी बनी है.
हिंदी व भारतीय भाषाओँ में पल्प साहित्य पर बहुत काम करने की आवश्यकता है.
(यशवंत व्यास के यू ट्यूब चैनल पर आधारित)
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© श्री यशवन्त कोठारी
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
अत्यंत रोचक, विस्मयकारी और सनसनीखेज़ जानकारियां।
आदरणीय भाई यशवंत कोठारी का ई-अभिव्यक्ति में स्वागत है। उनसे आग्रह है कि अपनी रचनाएं इस प्रतिष्ठित पत्रिका के पाठकों से साझा करते रहें।