सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ रूह से रूह तक ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

मोबाइल को

कभी नहीं कोसती मैं।

जब तक माँ के लरजते हाथों में

मोबाइल था

वे दूरस्थ बच्चों से बातें कर

दो घड़ी

निकट होने का एहसास पाती रहीं

मोबाइल से हाथों की

पकड़ क्या छूटी

उन्होंने दुनिया  छोड़ दी।

 

कहने से कहां कुछ

छूटता है भला

माँ तो यादों में बहती हैं वक्त सी

कुछ लोकोक्तियां ,कहावतें

कुछ शब्द ,कोई गंध ,कोई रेसिपी

 कोई हिदायत ,कोई समझाइश

धरती जैसी

 

रूहानी दुनिया के बारे में

हजार बातें ज़ेहन में आती हैं

पर चैन नहीं आता

बस याद ही

रूह से रूह तक के

फासले मिटाती है

 

12 मई

समूचा पटल माँ के नाम पैगाम और कसीदे से भरा पड़ा है

पर जाने क्यों, कुछ भी

लिखने कहने का

मन नहीं है

 

दर्द मेरा है

मुझ तक रहे

शब्दों को सजा क्यों दूँ

 

कभी अपनी दुनिया की

मसरूफियत बताकर

जो हकीकत भी थी

 ज्यादा कुछ कर न सकी

माँ के लिये

ये टीस अहर्निश सालती है

पर

माँ तो माँ है

अपने बच्चों से बैर कहाँ पालती है।।

💧🐣💧

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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