श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

 

 

 

 

जीवन-प्रवाह  

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की  विश्व कविता दिवस पर जीवन की कविता –जीवन –प्रवाह” )

 

सबसे बड़ी होती है आग,

और सबसे बड़ा होता है पानी,

तुम आग पानी से बच गए,

तो तुम्हारे काम की चीज़ है धरती,

धरती से पहचान कर लोगे,

तो हवा भी मिल सकती है,

धरती के आंचल से लिपट लोगे,

तो रोशनी में पहचान बन सकती है,

तुम चाहो तो धरती की गोद में,

पांव फैलाकर सो भी सकते हो,

धरती को नाखूनों से खोदकर,

अमूल्य रत्नों भी पा सकते हो,

या धरती में खड़े होकर,

अथाह समुद्र नाप भी सकते हो,

तुम मन भर जी भी सकते हो,

धरती पकडे यूं मर भी सकतेहो,

कोई फर्क नहीं पड़ता,

यदि जीवन खतम होने लगे,

असली बात तो ये है कि,

         धरती पर जीवन प्रवाह चलता रहे। 

 

© जय प्रकाश पाण्डेय, जबलपुर

(श्री जय प्रकाश पाण्डेय, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा हिन्दी व्यंग्य है। )

 

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