श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( विभूति योग)

 

मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्‌।

कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ।।9।।

 

मुझको अर्पित प्राण मन आपस में विद्धान

करते हैं चर्चा मेरी करके कई अनुमान।।9।।

 

भावार्थ :  निरंतर मुझमें मन लगाने वाले और मुझमें ही प्राणों को अर्पण करने वाले (मुझ वासुदेव के लिए ही जिन्होंने अपना जीवन अर्पण कर दिया है उनका नाम मद्गतप्राणाः है।) भक्तजन मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा आपस में मेरे प्रभाव को जानते हुए तथा गुण और प्रभाव सहित मेरा कथन करते हुए ही निरंतर संतुष्ट होते हैं और मुझ वासुदेव में ही निरंतर रमण करते हैं।।9।।

 

With their minds and lives entirely absorbed in Me, enlightening each other and always speaking of Me, they are satisfied and delighted.।।9।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

vivek1959@yahoo.co.in

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