डॉ ज्योत्सना सिंह राजावत

 

( आज प्रस्तुत है डॉ. ज्योत्सना सिंह रजावत जी की एक समसामयिक विचारणीय कविता  “दौर का दर्द. यह सत्य है, इस दौर का दर्द उनकी पीढ़ियां याद रखेंगी जो भुगत रही हैं। अगली ब्रेकिंग न्यूज़ की चादर पिछली ब्रेकिंग न्यूज़ को ढांक देती है क्योंकि अधिकतर दर्शक संवेदनहीन मूक दर्शक हैं जिन्हें अगली ब्रेकिंग न्यूज़ की प्रतीक्षा रहती है। डॉ ज्योत्सना जी ने एक संवेदनशील साहित्यकार का कर्तव्य मानवता की कसौटी पर उतारने का सफल प्रयास किया है। इसके लिए उनके लेखनी को सादर नमन। )

☆ दौर का दर्द ☆

एक छलावा निगल गया

हर शहर की रौनक को

गरीबी को छल गया,

जो कल निकले थे

शहर में कमाने को

रोजी रोटी जुटाने को

आज लौट रहे हैं गाँव को

अपने घर को

फिर से जीने के लिए,

कुदरत का कहर या

सुविधाओं की कमी

मार रही बीच सड़क पर

कुचल रही रेल की पटरियों पर

दहाड़ मार मार कर रो रही गरीबी

सिर पटकती लाचारी

बेबसी मौन है अपने हालात पर,

चाहत गठरी उठाये चल रही

कल के सूरज की आस लिए

खेतों को देख रही हैं

दूरियों को नाप रही है

पैदल कोसों,

मुठ्ठी भर हौसलों संग

ठसीं ट्रकों की ट्रालियों में

ट्रैक्टरों में लदी

बैलगाड़ी खींचती हुई

चली जा रही है।

देश की सभ्यता

विकास की तस्वीर

घर बैठे टीवी चैनलों पर

खूब प्रसारित हो रही है।

समाचार की सुर्खियों का

शोर धीरे धीरे थम जायेगा

मगर इस दौर का दर्द

कभी न भूल पायेंगे ।।

 

© डॉ ज्योत्स्ना सिंह राजावत

सहायक प्राध्यापक, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर मध्य प्रदेश

सी 111 गोविन्दपुरी ग्वालियर, मध्यप्रदेश

९४२५३३९११६,

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Pravin Raghuvanshi

आज की परिस्थितियों का भावपूर्ण चित्रण… आत्मा को चीरता हुआ!