मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ दुसरी आई ☆ प्रस्तुती – श्री सुनीत मुळे ☆

?  वाचताना वेचलेले ? 

☆  दुसरी आई  ☆ प्रस्तुती – श्री सुनीत मुळे☆

 एकदा एका गरोदर पत्नीने मोठया उत्सुकतेने आपल्या पतीला विचारले-

“आपल्याला काय होईल?

काय अपेक्षा आहे तुमची,

 मुलगा की मुलगी?

तुम्हाला काय वाटतं ?”

 

 त्यावर पती म्हणाला:-

“जर आपल्याला मुलगा झाला तर,मी त्याचा अभ्यास घेईन,

त्याला गणितं शिकवीन,

त्याच्याबरोबर मी मैदानावर

खेळायला, पळायला पण जाईन,पोहायला शिकवीन अशाअनेक गोष्टी मी त्याला शिकवीन.”

 

हसत हसत बायकोने

यावर प्रतिप्रश्न केला:-

“आणि मुलगी झाली तर?”

 

यावर पतीने खूप छान उत्तर दिले-

 

“जर आपल्याला मुलगी झाली तर मला तिला काही शिकवावेच लागणार नाही.”

 

 पत्नीने मोठया कुतूहलाने विचारले-

 “का?असे का.?”

 

पती म्हणाला,

” मुलगी म्हणजे जगातील एक अशी व्यक्ती आहे की तीच मला सगळं शिकवेल.

 

मी कसे आणि कोणते कपडे घालावेत,मी काय खायचं, काय नाही खायचं,कसं खायचं, मी काय बोललं पाहिजे,

आणि काय नाही बोलायचं,हे सारं ती मला पुन्हा एकदा शिकवेल.

थोडक्यात जणू माझी

‘दुसरी आई’होऊन ती माझी काळजी घेईल.

 

मी आयुष्यात काही विशेष कर्तृत्व नाही केलं तरी मी तिच्यासाठी तिचा आदर्श हिरो असेन.

 

एखादया गोष्टीसाठी मी जर तिला नकार दिला तर तोही ती आनंदाने समजून घेईल.”

 

पति पुढे म्हणाला-

“तिला नेहमी असे वाटत राहील की माझा नवरा माझ्या वडिलांसारखाच असला पाहिजे.

 मुलगी कितीही मोठी झाली तरी तिला वाटतं, की माझ्या बाबांची मी छोटीशी आणि गोड बाहुलीच आहे.माझ्यासाठी ती आख्ख्या जगाशी वैर पत्करायला तयार होईल.”

 

यावर पत्नीने पुन्हा हसून विचारले-

“म्हणजे तुम्हाला असं म्हणायचंय का,

की फक्त मुलगीच ह्या सर्व गोष्टी करेल,

आणि मुलगा तुमच्यासाठी काहीच करणार नाही “

यावर नवरा समजुतीच्या स्वरात म्हणाला:-

“अगं तसं नव्हे गं,कदाचित हे सगळं माझा मुलगाही माझ्यासाठी करेल,

 पण त्याला हे सगळं शिकावं लागेल ,मुलीचं तसं नाही,

 मुली या जन्मतः हे सगळं शिकूनच जन्माला येतात.

एक वडील म्हणून तिला माझा,आणि मला तिचा नेहमीच अभिमान वाटेल”

 

निराशेच्या सुरात पत्नी म्हणाली,

“पण ती आपल्या सोबत आयुष्यभर थोडीच रहाणार आहे?”

 

यावर आपले पाणावलेले डोळे पुसत पती म्हणाला-

“हो.तू म्हणतीयेस ते खरंय.ती आपल्या सोबत नसेल,पण जगाच्या पाठीवर ती कुठेही गेली तरी मला काही फरक पडणार नाही.कारण ती आपल्या सोबत नसली तरी,आपण मात्र नक्की तिच्या सोबत असू.तिच्या हृदयात, तिच्या मनात, कायमचे!!

अगदी तिच्या शेवटच्या श्वासा पर्यंत.

 

 कारण,

 मुली ह्या परी सारख्या असतात,त्या जन्मभरासाठी, आपुलकी, माया आणि निस्वार्थ प्रेम घेऊनच जन्माला येतात !

 

खरोखर मुली ह्या,

परी सारख्याच असतात!

संग्राहक : सुनीत मुळे 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) –सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈



हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 111 – कविता – सुमित्र के दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – सुमित्र के दोहे ।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 111 – सुमित्र के दोहे ✍

दीप पर्व फिर आ गया, कहां गया था यार ।

वह तो मन में ही रहा, बाहर था अँधियार।।

आखिर कब तक रखोगे, मन में तिमिर संभाल ।

खड़ा द्वार पर उजेला, पहिनाओ जयमाल।।

तीर मारता उजाला, तो सह लो कुछ देर।

तुमने तो काफी सहा, रजनी का अँधेर।।

दीप – दीप कहते सभी, बाती भी तो बोल।

बाती ही तो कर रही, संगम ज्योति खगोल।।

दीवाली की दस्तकें, दीपक की पदचाप।

आओ खुशियां मनायें, क्यों बैठे चुपचाप।।

अंधियारे की शक्ल में, बैठे कई सवाल ।

 कर लेना फिर सामना, पहले दीप उजाल।।

कष्टों का अंबार है, दुःखों का अँधियार ।

हम तुम दीपक बनें तो, फैलेगा   उजियार।।

जितने उजले चेहरे, नहीं तुम्हारे मित्र।।

जिनकी श्यामल सूरते, संभव वही सुमित्र।।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 113 – “आदमी हूँ…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “आदमी हूँ ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 113 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “आदमी हूँ” || ☆

 

गलतफहमी नहीं

छोटी सी कमी हूँ

आदमी हूँ

 

इस सफलता के

अधूरे दौर में

बन रहा था किस

तरह सिरमौर में

 

चाँदनी को मेरा

मिलना जरूरी

चाँद को भी मैं

यहाँ पर लाजिमी हूँ

 

खिड़कियों पर हिल

रहे रुमाल ज्यों

मैं किसी उम्मीद

का फिलहाल ज्यों

 

एक अर्वाचीन

सा संकेत ले

सधा किरदार

कोई मौसमी हूँ

 

शब्द वंचित इस

बड़े  सुनसान में

अभी बाकी बचा

हूँ अनुमान में

 

लुटाता रहा

खुशियाँ यहाँ पर

तुम्हारे लिये फिर

क्यों मातमी हूँ

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

20-10-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈



हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दीपावली ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री महालक्ष्मी साधना सम्पन्न हुई 🌻

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – दीपावली  ??

अँधेरा मुझे डराता रहा,

हर अँधेरे के विरुद्ध

एक दीप मैं जलाता रहा,

उजास की मेरी मुहिम

शनै:-शनै: रंग लाई,

अनगिन दीयों से

रात झिलमिलाई,

सिर पर पैर रख

अँधेरा पलायन कर गया

और इस अमावस

मैंने दीपावली मनाई !

एक-दूसरे के घर जाकर दीपावली मिलने की परंपरा को बढ़ावा दें। सामासिकता एवं सांस्कृतिक एकात्मता का विस्तार करें।

ई-अभिव्यक्ति के सभी पाठकों को महापर्व दीपावली की हार्दिक बधाई एवं मंगलकामनायें।…

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈



हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 160 ☆ “चिंतन” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर एवं विचारणीय आलेख – “चिंतन”)  

☆ आलेख # 160 ☆ “चिंतन” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

पाठक सबसे बड़ा समीक्षक होता है ,और सोशल  मीडिया शुध्द समीक्षक बनकर इन दिनों अपने जलवे दिखा रहा है , किताब खोलने और पढ़ने में लोग भले आलसी हो गए हैं पर सोशल मीडिया में पेन की जगह बेताब अंगुली  अपना करतब दिखा रही है , आगे चलकर तो ये होने वाला है कि अंगुली की जगह दिमाग में सोचे विचार सीधे टाईप होकर सोशल मीडिया में मिलने वाले हैं , तब कन्नी काटने वालों का भविष्य और उज्जवल हो जाएगा , क्योंकि तब निंदा रस दिमाग से अनवरत बहने लगेगा , ईष्या रूपी राक्षस दिमाग में कब्जा कर लेगा ,तब देखना मजा ही मजा आएगा , व्यंग्यकार ,कहानीकार पंतग की तरह सद्दी से कटते नजर आएंगे , बड़ी मुश्किल में व्यंग्य शूद्र से उठकर सर्वजातीय बनने के रास्ते में चला ,पर महत्वाकांक्षी लोग व्यंग्य की सूरत बिगाड़ने में तुले हैं, व्यंग्य लेखन गंभीर कर्म है, जिम्मेदारी से विसंगतियों और विद्रूपताओं पर प्रहार कर बेहतर समाज बनाने की सोच है व्यंग्य।

व्यंग्य का लेखक अपने युग ‘राडार’ के गुणों से युक्त होना चाहिए, अपने समय से आगे का ब्लु प्रिंट तैयार करने वाले वैज्ञानिक जैसा हो उसके पास ऐसी पेनी दृष्टि हो कि घटनाओं के भीतर छुपे हुए संबंधों के बीच तालमेल स्थापित कर सके, और एक चिकित्सक की तरह उस नासूर की शल्यक्रिया करने में वह माहिर हो, व्यंग्यकार वर्तमान समय के साथ ‘जागते रहो’ की टेर लगाता कोटवार हो उसे पुरस्कार और सम्मान की भूख न लगी हो, और अपनी रचना से समाज में जागृति ला सके, उसके अंदर बर्र के छत्ते को छेड़ने का दुस्साहस तो होना ही चाहिए।

व्यंग्य के लेखक के पास सूक्ष्म दृष्टि, संवेदना, विषय पर गहरी पकड़, निर्भीकता होनी आवश्यक है। व्यंग्य के लेखक में कटुता नही तीक्ष्णता ,सुई सी नोक या तलवार सी धार होना अनिवार्य् है। सबसे बड़ी बात ये है कि व्यंग्य लिखने के लिए पढ़ना बहुत जरूरी है, और असली बात ये है कि व्यंग्य को संवेदनशील पाठक ही समझ पाते हैं।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 103 ☆ # चलो एक दीपक जलाएं… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है दीप पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता “#चलो एक दीपक जलाएं …#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 103 ☆

☆ # चलो एक दीपक जलाएं… # ☆ 

आज अमावस की काली रात है

बु‌री आत्माओं की बरसात है

तारें भी टिम टिमा रहे हैं

अंधेरे को बढ़ा रहे हैं

रात नागिन सी चल रही है

धीरे धीरे, हौले हौले ढल रही है

नींद ने आगोश में भर लिया है

अपने सम्मोहन में कर लिया है

चलो रोशनी का कोई जरिया बनाऐ

चलो एक दीपक जलाएं

 

यह अट्टालिका यें जगमगा रही है

रोशनी इनसे छन कर आ रही है

आतिशबाजी मन लुभा रही है

अंबर पर रंगोली सजा रही है

पर इस बस्ती में कितना अंधेरा है

रात बैरन का यहीं पर डेरा है

भूख और गरीबी के सब मारें है

निर्धन, बेबस ईश्वर के सहारे है

इनके जीवन में कुछ खुशियां लाए

चलो एक दीपक जलाएं

 

जो उजाले में मेरे साथ साथ चले

बेपरवाह मेरे मिलते थे गले

साथ निभाने की कसमें खाई थी

मेरा दिन और रात जगमगाई थी

उसके चेहरे पर बरस रहा था नूर

अपने प्यार पर मुझको था गुरूर

अंधेरे से घबराकर अकेला छोड़ गए

पलभर में रिश्ते नाते तोड़ गए

प्रित की मजार पर

दिलों को जलाकर

कुछ रोशनी करें

कुछ फूल चढ़ायें

चलो एक दीपक जलाएं/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ माझे फूल… ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ माझे फूल… ☆ श्री आशिष मुळे ☆

जगण्याच्या त्या निरर्थक कोलाहलात

फूल एक उभे गर्दीतल्या एकांतात।

देणगी त्यासी सुंदर कोमलतेची

किनार पुसट त्याला असहायतेची।

सोसे बहू संघर्षाच्या जीवनात

फरक नाहीं त्याच्या सुवासात।

असती जरी काटे स्वभावात

दडले मुळ त्यांचे अनुभवात।

येती भुंगे कोमल सहवासात

चोरूनी मधुपर्क नेती विरहात।

त्यापरी वाटे फ़ुलदाणीत शोभावे

त्यासी लागत असे खुडावे।

प्रश्न कोमल जीवास कसोटीचा

इकडे आडाचा तिकडे विहिरीचा।

मज सतावे व्यथा त्या उत्तराची

तुर्तास देतो साथ एका आश्रुची॥

© आशिष मुळे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 103 ☆ स्वप्ने गोड असतात… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 103 ? 

☆ स्वप्ने गोड असतात… ☆

(विषय:- जगू पुन्हा बालपण…)

जगू पुन्हा बालपण,

होऊ लहान लहान

मौज मस्ती करतांना,

करू अ,आ,इ मनन.!!

 

जगू पुन्हा बालपण,

आई सोबती असेल

माया तिची अनमोल,

सर कशात नसेल..!!

 

जगू पुन्हा बालपण,

मना उधाण येईल

रात्री तारे मोजतांना,

भान-सुद्धा हरपेल..!!

 

जगू पुन्हा बालपण,

शाळा भरेल एकदा

छडी गुरुजी मारता,

रड येईल खूपदा..!!

 

जगू पुन्हा बालपण,

कैरी आंब्याची पाडूया

बोरे आंबट आंबट,

चिंचा लीलया तोडूया..!!

 

जगू पुन्हा बालपण,

नौका कागदाची बरी

सोडू पाण्यात सहज,

अंगी येई तरतरी..!!

 

जगू पुन्हा बालपण,

नसे कुणाचे बंधन

कधी अनवाणी पाय,

देव करेल रक्षण..!!

 

जगू पुन्हा बालपण,

माय पदर धरेल

ऊन लागणार नाही,

छत्र प्रेमाचे असेल..!!

 

जगू पुन्हा बालपण,

कवी राज उक्त झाला

नाही होणार हे सर्व,

भाव फक्त जागवीला..!!

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – विविधा ☆ विचार–पुष्प – पुष्प – भाग ४० – परिव्राजक १८. गोमंतक ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर ☆

डाॅ.नयना कासखेडीकर

?  विविधा ?

☆ विचार– विचार–पुष्प – भाग ४० – परिव्राजक १८. गोमंतक ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर 

स्वामी विवेकानंद यांच्या जीवनातील घटना-घडामोडींचा आणि प्रसंगांचा आढावा घेणारी मालिका विचार–पुष्प.

बेळगावहून स्वामीजी मार्मा गोवा मेलने निघाले आणि मडगाव येथे उतरले. बेळगावचे सुप्रसिद्ध डॉक्टर विष्णुपंत शिरगावकर यांनी गोव्यातल्या व्यवस्थेसाठी मडगाव इथले त्यांचे विद्वान मित्र सुब्राय लक्ष्मण नायक यांना परिचय पत्र दिले होते आणि स्वामीजींची निवास आणि भोजन व्यवस्था करायला सांगितली होती. स्वामीजींना घ्यायला स्टेशनवर नायक स्वत: जातीने हजर होते, तेही शेकडो लोकांच्या समवेत. आणि काय आश्चर्य त्यांनी स्वामीजींना घोडा गाडीतून मिरवणूक काढून समारंभपूर्वक घरी नेले. हे सर्व स्वामीजींना खूपच अनपेक्षित होते. आयुष्यात त्यांना असा अनुभव प्रथमच आला होता. स्वामीजींचा परिचय झाल्यावर त्यांनी सुब्राय नायक यांना आपला गोव्याला येण्याचा हेतु सांगितला. ख्रिस्त धर्माविषयीचे मूळ ग्रंथ त्यांना इथे अभ्यासायचे होते. ज्या ज्या प्रांतात जी जी वैशिष्ठ्ये असायची त्याची माहिती ते करून घेत.  

सुब्राय नायक हे तीव्र मेधाशक्ती असलेले वेदान्त आणि आयुर्वेद शास्त्राचे जाणकार होते. शिवाय संस्कृतमधील न्यायमीमांसा व  ज्योतिष यातही पारंगत होते. नायक हे त्यावेळी धार्मिक आणि सामाजिक नवजागरणाची धुरा वहात होते. त्यांच्यासाठी तर स्वामीजींचे आपल्या घरात वास्तव्य आणि सहवास म्हणजे एक चांगली पर्वणीच होती.

मठग्राम म्हणजेच मडगाव हे पोर्तुगीजांचा प्रभाव असलेले दक्षिण गोव्यातले ऐतिहासिक शहर. महाराष्ट्र आणि कर्नाटकच्या मध्यभागी  पश्चिम घाटात वसलेला गोवा समुद्र तटावरील रमणीय भूभाग म्हणून सर्वांनाच आकर्षित करतो. १५१० पासून हा भाग पोर्तुगीजांच्या हुकूमाखाली जवळ जवळ साडेचारशे वर्ष होता. पोर्तुगीजांनी साम, दाम, दंड, भेद य मार्गाने इथले अनेक तालुके काबीज केले होते. आशियातले सर्वात मोठे ख्रिश्चन यात्रा स्थळ, ‘बसिलिका ऑफ बॉम जिझस’ इथे गोव्यात आहे. प्राचीन मंदिरं आहेत. या वास्तू वैशिष्ठ्यपूर्ण वास्तूकलेसाठीही प्रसिद्ध आहेत. विवेकानंदांचा गोव्याला भेट देण्याचा हाच उद्देश होता. देवदर्शना बरोबरच गोव्यातली प्रमुख स्थळे, तिथली धर्मपीठे, जुने चर्च, फोंडा प्रदेशातील मंदिरे, पुरातन देवालये यांची माहिती करून घेणे आणि या प्रदेशातील ग्रामीण आणि शहरी लोकजीवन, समाजावरील धर्माचा प्रभाव व इतिहास जाणून घेणे हा पण दूसरा उद्देश होता.

सुब्राय नायक यांच्या घराला ऐतिहासिक पार्श्वभूमी आहे. चारशे वर्षापूर्वी धर्मांध ख्रिश्चनांनी मडगावची ग्रामदेवता असलेल्या श्री दामोदर मंदिराचा आणि गावातल्या इतर हिंदू मंदिरांचा विध्वंस केला. हिंदूंना गावात एकही मंदिर शिल्लक राहिलं नाही. अशा परिस्थितीत नायक कुटुंबाने श्री दामोदर या आपल्या कुलदेवतेला राहत्या घराच्या मोठ्या गर्भगृहात स्थान देऊन वाचविले आणि पुढे सर्व हिंदूंना ते भक्तीसाठी खुले करून दिले. इथेच नंतर मठग्रामस्थ हिंदू सभेची स्थापना केली गेली. मडगावातल्या आबाद फारीया  रोडवरचं ‘नायक मॅन्शन’ सामाजिक संस्कृतिक आणि नियमित उपक्रमाचं स्थान बनलं. याला दामोदर साल म्हणून ओळखतात. साल म्हणजे हॉल. गोव्यातील काही विशिष्ट घरांपैकी सुब्राय नायक यांचं पारंपारिक चौसोपी वाड्याचे एक प्रशस्त घर जिथे स्वामीजी काही दिवस राहिले होते.

स्वामीजींच्या सहवासामुळे त्यांची समाजोद्धाराची तळमळ, वैदिक तत्वज्ञानाद्वारे लोकांची उन्नती करण्याची त्यांची क्षमता, जीवनातील सर्वोच्च कर्तव्याविषयी असलेली अत्त्युच निष्ठा पाहून सुब्राय नायक प्रभावित झाले . स्वामीजींच्या गायन वादनातल्या परिपक्वतेचा अनुभव सुद्धा यावेळी गोवेकर मंडळींनी घेतला.

इथल्या वास्तव्यात स्वामीजींनी एकदा एक चीज काही रागातून पाऊण तास गायली. सर्वजण आश्चर्य चकित झाले. नायक यांनी, लयकारीची उत्तम जाण असलेले प्रसिद्ध तबला वादक व संगीतातल्या पिढीजात घराण्यात जन्मलेले खाप्रूजी अर्थात लक्ष्मणराव पर्वतकर, यांना बोलवून घेतले आणि स्वामीजींसमोर तबला वादन करायला सांगितले. त्यांनी सफाईदार तबलावादन सादर केले. हे ऐकून स्वामीजी म्हणाले, “लाकडाच्या खोक्याच्या कडेवर बोटे फिरवून आवाज काढता, तसाच आवाज वरच्या चामड्याच्या थरातून काढता आला पाहिजे”. खाप्रुजींना हे काही पटेना. त्यांना वाटलं स्वामी चेष्टाच करताहेत. तोच स्वामीजी उठले, कोचावरून खाली बैठक मारून बसले आणि तबल्याच्या चामड्यातून सुंदर आवाज काढून दाखविला. हा प्रकार पाहून सर्व श्रोते दि:ग्मूढ झाले. पर्वतकर यांनी स्वामीजींची क्षमा मागून साष्टांग नमस्कार घातला. याच खाप्रूमामा पर्वतकरांना पुढे १९३८ मध्ये प्रख्यात गायक अल्लादिया खाँ यांच्या हस्ते ‘लयभास्कर’ पदवीने गौरविण्यात आले. स्वामीजींची भेट ही पर्वतकर मामांच्या आयुष्यातली भाग्याचीच घटना म्हणायला हवी.

स्वामीजींना गोव्यातील ग्रंथालयात उपलब्ध असलेल्या पुरातन लॅटिन ग्रंथातून ख्रिश्चन धर्माचा इतिहास व तत्वज्ञान याचा अभ्यास करायचा होता. तिथल्या समाजावर होणार्‍या धर्मपरिवर्तनाचा प्रभाव जाणून घ्यायचा होता. असे दुर्मिळ ग्रंथ इथे उपलब्ध होते. रायतूर (राशेल) येथील सेमिनरी १५७६ मध्ये बांधलेले असे प्राचीन होते, तिथे प्राचीन हस्तलिखिते आणि मडगावतील प्रसिद्ध वकील जुजे फिलिप अल्वारीस यांना बोलवून स्वामीजीची ओळख करून दिली आणि सेमिनरी व तिथले ग्रंथ दाखविण्याची सोय नायक यांनी केली. तिथल्या पाद्रींची ओळख करून दिली, स्वामीजी दोन दिवस रायतूरला सेमिनरीत राहिले, स्वामीजींनी त्या सेमिनरीतल्या विद्यार्थ्यांची पण भेट घेऊन त्यांची मते जाणून घेतली. आजही त्या लायब्ररीत स्वामीजींचा फोटो लावला आहे.

रायतूरच्या भेटीनंतर मडगावात स्वामीजींच्या व्यक्तिमत्वाची जिकडे तिकडे चर्चा झाली. दूरदुरून पाद्री लोक तसेच ख्रिश्चन समाजातील अनेक विद्वान, जज्ज, बॅरिस्टर मडगावमध्ये त्यांना भेटायला येत. स्वामीजी फ्रेंच, लॅटिन, इंग्रजी भाषेत त्यांना आपली अभ्यासपूर्ण मतं समजाऊन सांगत. अशी अधिकारसंपन्न व्यक्ती सर्वजण प्रथमच पाहत होते, हे बघून सगळीकडे त्यांचं कौतुक होत होतं. सुब्राय नायक यांनी तर स्वामीजींच्या गुण गौरवासाठी श्री दामोदरच्या प्रांगणात मोठी सभा भरवली. याला लोक प्रचंड संख्येने हजर होते. त्यांनी शिकागोच्या धर्म परिषदेला जाण्यासाठी स्वामीजींना शुभेच्छा दिल्या. स्वामीजी वेंगुर्ल्याच्या नगर वाचनालयात ‘संचित,प्रारब्ध व क्रियामाण’ या विषयावर व्याख्यान द्यायला पण गेले होते. वेंगुर्ला हे अरब,डच, पोर्तुगीज या राजसत्तांनी निर्माण केलेलं महत्त्वाच व्यापारी बंदर होतं. इथे १६३८ मध्ये डच वखार होती. हा इतिहास जाणून घेण्यासाठी स्वामीजी प्रत्यक्ष तिथे गेल्याचे दिसते.

गोवा येथील कवळ्याच्या शांतादुर्गा मंदिरात त्यांनी काली मातेचं एक पद खड्या आवाजात म्हणून लोकांना मंत्रमुग्ध केलं होतं. म्हाडदोळच्या म्हाळसादेवी पुढे सुंदर ख्याल गायन केलं, श्री मंगेशाच्या देवळात रागदारीतलं ध्रुपद गायन केलं.

असा भरगच्च कार्यक्रम गोवा इथं पार पाडून स्वामीजी पुढच्या प्रवासासाठी धारवाडला जायला निघाले. तेंव्हा सुब्राय नायकांबरोबर अनेक प्रतिष्ठित लोक, शेकडो नागरिक, कॅथॉलिक पाद्री निरोप द्यायला आले होते. निघण्यापूर्वी नायकांनी स्वामीजींना एक फोटो काढून मागितला होता. हाच फोटो आज पण त्या दामोदर साल मध्ये लावला आहे. ज्या खोलीत ते राहिले ती खोली, त्या वस्तु आजही नायकांच्या वारसांनी सुरक्षित जपून ठेवल्या आहेत. सुब्राय नायकांनी पुढे १९१० मध्ये संन्यास घेतला आणि ते स्वामी सुब्रम्हण्यानंद तीर्थ म्हणून ओळखले जाऊ लागले.  

क्रमशः…

© डॉ.नयना कासखेडीकर 

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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ आर्यनची नौका – एक विज्ञान कथा…भाग 4 ☆ श्री राजीव गजानन पुजारी ☆

श्री राजीव गजानन पुजारी

? जीवनरंग ?

☆ आर्यनची नौका – एक विज्ञान कथा…भाग 4 ☆ श्री राजीव ग पुजारी 

(या विश्वातील मानवाच्या अस्तित्वाची जबाबदारी आपल्या खांद्यावर आहे. आपल्या देशाला हजारो वर्षांचा वैज्ञानिक वारसा आहे. तोच आपण मंगळावरही पुढे चालवायचा आहे.”) इथून पुढे —-

पुढील दोन वर्षांत डायपोल मॅग्नेट व त्याला प्रस्थापित करणारा डॉ. कलाम उपग्रह, PET फिल्म व ती वाहून नेणारा डॉ. नारळीकर उपग्रह, जनुकांत बदल करून गोठविलेल्या सायनोबॅक्टेरिया जिवाणूंचे सीलबंद केलेले प्रत्येकी दहा किलोंचे चारशे डबे, विक्रम लँडर, प्रग्यान रोव्हर व पुष्पक हेलिकॉप्टर आदिंचे उत्पादन युद्धपातळीवर करण्यात आले. प्रकल्पाला “ मंगळ पुनरुज्जीवन “ असे नाव देण्यात आले.

    २६ जानेवारी २०२५– भारताचा गणतंत्र दिवस. श्रीहरीकोटा येथील लॉन्च पॅड क्रमांक दोन वरून GSLV-mk3 प्रक्षेपकाने पहाटे पाच वाजून तेवीस मिनिटांनी अंतराळात झेप घेतली.२४ ऑगस्ट २०२६ ला डॉ. कलाम उपग्रह मंगळाच्या L1 बिंदूच्या होलो कक्षेत सोडण्यात आला. नंतर यान मंगळाच्या भूस्थिर कक्षेत आले. तेथे डॉ. नारळीकर उपग्रह प्रस्थापित करण्यात आला. त्यानंतर यानाच्या क्रूझ स्टेजपासून डिसेंट स्टेज वेगळी झाली. पॅरेशूट व डिसेंट स्टेजवरील थ्रस्टर्स यांच्या मदतीने रोव्हर मंगळावर उतरला. डिसेंट स्टेज रोव्हरपासून वेगळी झाली व पॅरेशूटच्या सहाय्याने बाजूला जाऊन उतरली. आता रोव्हर वर्षभरानंतर कार्यरत होणार होता. MMRTG (मल्टीमिशन रेडिओआयसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर ) तंत्रज्ञानाने त्याला अव्याहत वीज पुरवठा होत होता. रोव्हरच्या पोटात सायनोबॅक्टेरिया जीवाणूंचे डबे व पोटाखाली हेलिकॉप्टर बांधलेले होते.

    डॉक्टर कलाम उपग्रहावरील डायपोल चुंबकाने त्याचे काम करायला सुरुवात केली. आता सौरवादळे व अंतरिक्ष प्रारणे यापासून मंगळ सुरक्षित झाला होता. डॉक्टर नारळीकर उपग्रहाला जोडलेली PET फिल्म उलगडून हळू हळू १२५ कि. मी. त्रिज्येचा आरसा तयार झाला. सूर्यापासून येणाऱ्या प्रकाशाचे परावर्तन करायला त्याने सुरुवात केली. मंगळाभोवती भ्रमण करणारे मंगळयान मंगळाच्या हवामानाचा वास्तविक (इन रिअल टाइम ) अहवाल इस्रोकडे पाठवीत होते. हळूहळू ध्रुव प्रदेशातील शुष्क कार्बन डाय ऑक्साइडचे वायूत रूपांतर होऊ लागले. सौर वादळे नसल्याने हा वायुरूपातील कार्बन डाय ऑक्साइड वातावरणात साठू लागला. त्याच्या हरितगृह परिणामामुळे मंगळाचे तापमान वाढू लागले. जमिनीखालील व खडकांच्या भेगांतील गोठलेले पाणी द्रवरूपात भूपृष्ठावर येऊन त्याचे ओहोळ वाहू लागले. हळूहळू ओहोळांचे रूपांतर ओढे, नाले, नद्या यांमध्ये झाले. खोलगट ठिकाणे पाण्याने भरून गेली. या सर्वांची छायाचित्रे मंगळयान इस्रोकडे पाठवीत होते. इकडे मंगळावर पाण्याचे ओहोळ वहात होते, तर तिकडे इस्रोच्या शास्त्रज्ञांच्या डोळ्यांतून आनंदाश्रूंचे ओघळ वहात होते. एक वर्षानंतर म्हणजे ऑगस्ट २०२७ च्या शेवटच्या आठवड्यात इस्रोकडून सूचना आल्यावर पुष्पक हेलिकॉप्टर प्रज्ञान रोव्हर पासून वेगळे झाले. रोव्हरच्या यांत्रिक हाताने जिवाणूंनी भरलेला दहा किलोचा डबा हेलिकॉप्टरमध्ये ठेवला. हेलिकॉप्टरने उड्डाण केले व इस्रोच्या सूचनेनुसार ठरविलेल्या पाणथळ जागेवर जाऊन डब्यातील जिवाणू त्या जागेवर पसरले. रोज दहा खेपा असे करून चाळीस दिवसांत मंगळावरील सर्व पाणथळ जागांवर जिवाणू पसरण्यात आले. दर महिन्याने हेलिकॉप्टर पूर्ण मंगळावर फेरी मारून विविध ठिकाणांचे तापमान व प्राणवायूचे प्रमाण मोजून ते रोव्हरकडे, रोव्हर मंगळयानाकडे व मंगळयान पृथ्वीकडे पाठवू लागले. असे करता करता दहा वर्षे लोटली. आता मंगळाचे सरासरी तापमान १५° सेंटीग्रेड व हवेतील प्राणवायूचे प्रमाण २१% झाले.

    आता मानवाने मंगळावर जायला हरकत नव्हती. कोणाला निवडायचे हा प्रश्न भास्कराचार्य सुपरकॉंप्युटरने सोडवला. देशातील सर्व नागरिकांचा माहितीसंच त्याच्याकडे होता. त्यामध्ये माणसाचे नाव, जन्मतारीख, उंची, वजन वगैरे बरोबरच त्याच्या शारीरिक व मानसिक आरोग्याविषयी माहिती, त्याचा भूतकाळ, तो कोणकोणत्या संघटनांशी संलग्न आहे, त्याची विचारधारा वगैरे सर्व माहिती त्यात होती. भास्कराचार्याने त्याच्याकडील माहितीसंच बघून देशातील पन्नास सुयोग्य व्यक्तींची निवड केली. त्यामध्ये आर्यन व मधुरा हेदेखील होते. सर्वांना इस्रोमध्ये अंतराळ प्रवासाचे शास्त्रोक्त प्रशिक्षण देण्यात आले.

    १० डिसेंबर २०३७ रोजी ‘नौका ‘ अंतराळयान श्रीहरीकोटा येथील प्रक्षेपण तळावर GSLV-mk3 प्रक्षेपकावर स्थित होते. त्यात आर्यन व मधुरा यांचेसह देशातील सर्व दृष्टीने सुयोग्य असे पन्नास नागरिक होते. त्यांच्याकडे ज्ञानाच्या सर्व शाखांतील माहितीसाठा असलेला सुपरकॉम्पुटर होता, तसेच सर्व प्राणी व वनस्पती यांचे नमुने बीज स्वरूपात होते. त्यांचे फलन मंगळावर करण्यात येणार होते. काउंटडाऊन संपले. प्रक्षेपकाने अंतराळात झेप घेतली. १० जुलै २०३८ रोजी ‘नौका’ अंतराळयान मंगळावर उतरले. त्यावेळी सूर्य नुकताच क्षितिजावरून वर येत होता. एका नव्या युगाची सुरुवात होत होती……. 

— समाप्त —

© श्री राजीव  गजानन पुजारी 

संपर्क – फ्लॅट नं ३, भाग्यश्री अपार्टमेंट, सावरकर मार्ग क्र.१, विश्रामबाग, सांगली. मो. 9527547629 [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈