हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #167 – लघुकथा – कम्बल… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक अप्रतिम लघुकथा  “कम्बल…”)

☆  तन्मय साहित्य  #167 ☆

☆ लघुकथा – कम्बल

जनवरी की कड़कड़ाती ठंड और ऊपर से बेमौसम की बरसात। आँधी-पानी और ओलों के हाड़ कँपाने वाले मौसम में चाय की चुस्कियाँ लेते हुए घर के पीछे निर्माणाधीन अधूरे मकान में आसरा लिए कुछ मजदूरों के बारे में मैं चिंतित हो रहा था।

ये मजदूर जो बिना खिड़की-दरवाजों के इस मकान में नीचे सीमेंट की बोरियाँ बिछाये सोते हैं, इस ठंड को कैसे सह पाएंगे। इन परिवारों से यदा-कदा एक छोटे बच्चे के रोने की आवाज भी सुनाई पड़ती है।

ये सभी लोग एन सुबह थोड़ी दूरी पर बन रहे मकान पर काम करने चले जाते हैं और शाम को आसपास से लकड़ियाँ बीनते हुए अपने इस आसरे में लौट आते हैं। अधिकतर शाम को ही इनकी आवाजें सुनाई पड़ती है।

स्वावभाववश  मैं उस मजदूर बच्चे के बारे में सोच-सोच कर बेचैन हो रहा था, इस मौसम को कैसे झेल पायेगा वह नन्हा बच्चा!

शाम को बेटे के ऑफिस से लौटने पर मैंने उसे पीछे रह रहे मजदूरों को घर में पड़े कम्बल व हमसे अनुपयोगी हो चुके कुछ गरम कपड़े देने की बात कही।

“कोई जरूरत नहीं है कुछ देने की” पता नहीं किस मानसिकता में उसने मुझे यह रूखा सा जवाब दे दिया।

आहत मन लिए मैं बहु को रात का खाना नहीं खाने का कह कर अपने कमरे में आ गया। न जाने कब बिना कुछ ओढ़े, सोचते-सोचते बिस्तर पर कब नींद के आगोश में पहुँच गया पता ही नहीं चला।

सुबह नींद खुली तो अपने को रजाई और कम्बल ओढ़े पाया। बहु से चाय की प्याली लेते हुए पूछा-

“बेटा उठ गया क्या?”

उसने बताया- हाँ उठ गए हैं और कुछ  कम्बल व कपड़े लेकर पीछे मजदूरों को देने गए हैं, साथ ही मुझे कह गए हैं कि, पिताजी को बता देना की समय से खाना जरूर खा लें और सोते समय कम्बल-रजाई जरूर ओढ़ लिया करें।

यह सुनकर आज की चाय की मिठास के साथ उसके स्वाद का आनंद कुछ अधिक ही बढ़ गया।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – “पुरस्कार का हश्र” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ लघुकथा – “पुरस्कार का हश्र” ☆ श्री कमलेश भारतीय

(तुम्हें याद हो कि न हो याद हो …)

मित्रो । जिंदगी के पहले पुरस्कार का हश्र क्या हुआ ? बताता हूं । पंजाब के एक समाचार पत्र ने सन् 1972 में लघुकथा प्रतियोगिता की घोषणा की । मैने अपनी रचना आज का रांझा भेज दी । पुरस्कारों की घोषणा हुई । मेरी लघुकथा को प्रथम पुरस्कार मिला और एक टिपण्णी प्रशंसा भरी ।

मैं समाचार पत्र के कार्यालय गया । पहली बार संपादक महोदय के दर्शन हुए । उन्होंने प्रेमपूर्वक पूछा कि पुरस्कार की राशि मिली ? मैने कहा कि नहीं।

वे मुझे मालिक के ऑफिस में ले गये और परिचय करवाया । फिर बोले कि अकाउंटेंट से पुरस्कार राशि दिलवा दूं ? मालिक ने स्वीकृति दे दी ।

अकाउंटेंट से राशि लेकर एक पुलक सी महसूस की । मैने साहित्य संपादक महोदय से कहा कि आइए, चाय का कप । सेलिब्रेट कर लेते हैं । बोले : इतनी गर्मी है युवा कथाकार । बीयर लेते हैं।

दफ्तर के सामने ही होटल था । अंदर गये । बीयर का ऑर्डर । आमलेट । छोटे छोटे घूंट के बीच कहा : युवा कथाकार अभी और प्रतियोगिताएं होंगी । रचनाएं भेजते रहना । समझ रहे हो न ?

बिल आया । मैने पुरस्कार राशि रख दी । तीन रुपये वापस आये । बैरे को टिप के रूप में देकर मैं बाहर आ गया ।

पुरस्कार के लिए फिर मेरा कोई रचना भेजने का मन नहीं हुआ ।

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – लिखना-पढ़ना ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 माँ सरस्वती साधना संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी से हम आपको शीघ्र ही अवगत कराएँगे। 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – लिखना-पढ़ना ??

…कैसा चल रहा है लिखना-पढ़ना?

…कुछ अपना लिखता हूँ, बहुत कुछ अपना बाँचता हूँ।

…अपना लिखना अच्छी बात है पर अपना ही लिखा बाँचना…?

आज नयी कविता या कथा लिखता हूँ, मित्रों के साथ साझा करता हूँ। अगले दिन से मित्रों के लेखन में अपनी ही रचना के अलग-अलग संस्करण बाँचता हूँ।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈



हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 53 ☆ स्वतंत्र कविता – पुनर्जन्म… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण स्वतंत्र कविता “पुनर्जन्म…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 53 ✒️

?  स्वतंत्र कविता – पुनर्जन्म…  ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

रुकती हुई ,

सांसों के बीच

कल सुना था मैंने

कि तुम ने कर ली है

” आत्महत्या “

इस कटु सत्य का

हृदय नहीं कर पाता विश्वास !

” राजन्य “

तुम कब हुए हताश – निराश “

स्वेच्छा से बन गए काल ग्रास ।।

 

अंकित किया केवल एक प्रश्न ,

क्यों ? केवल क्यों ?

इतना बता सकते हो ,

तो बताओ ।

क्यों त्यागा ? रम्य जगत को ?

क्यों किया मृत्यु का वरण ?

अनंत – असीम जगती में क्या ?

कहीं भी ना मिलती तुम्हें शरण ?

 

अपनी वेदना तो कहते,

शून्य- शुष्क , रिक्त जीवन ,

की व्यथा ओढ़ लेती

तुम्हारी जननी ,

शित-शिथिल भावों को बांट लेते ,

भ्राता – भागीदार –

शैशवावस्था में तुम्हें

गीले से सूखे में लिटाती ,

शीर्ष चूमती रही बार-बार ,

रात्रि में जाग – जागकर,

बदलती रही वस्त्र ,

तब तुम बने रहे सुकुमार ,

वेदना की व्यथा ,

आंचल में समेट लेती ,

काश!जननी से कहते तो एक बार।।

 

” परन्तु “

तुम शिला के भांति रहे निर्विकार ,

स्वार्थी , समयाबादी और गद्दार ,

तभी वृद्ध – जर्जर हृदयों पर ,

कर प्रहार

सांझ ढले उन्हें छोड़ा मझदार ,

रिक्त जीवन दे ,

चल पड़े अज्ञात की ओर ,

बनाने नूतन विच्छन्न प्रवास ।।

 

क्यों कर आया किया

यह घृणित कार्य ,

क्या इतना सहज है ,

त्यागना संसार ,

काश ! तुम कर्मयोगी बनते

मां के संजोए हुए सपनों को बुनते ,

प्रमाद में विस्तृत कर ,

अपना इतिहास ,

केवल बनकर रह गए उपहास ।।

 

“आत्महत्या “

आवेश है एक क्षण का ,

पतीली पर से भाप की ,

शक्ति से ऊपर उठता हुआ ढक्कन ,

जो भाप के निकल जाने पर ,

पुनः अपने स्थान पर हो

जाता है स्थित ,

काश ! भाप सम तुम भी ,

निकाल देते उद्वेलित

हृदय का आवेश और फिर ,

ढक्कन की भांति अपना ,

स्थान बनाने का करते प्रयास ,

तब तुम आत्महत्या ना

कर पाते अनायास।।

 

तुमने सुना होता जननी

का करुण – क्रंदन ,

पिता का टूट कर बिखरना,

भ्राताओं की चीत्कार ,

दोस्तों की आंखों का सूनापन ,

आर्तनाद करते प्राकार ,

तब संभव था कि तुम फिर

व्याकुल हो उठते

पुनःजन्म लेने के लिए ,

पुनर्जन्म के लिए ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




सूचना/Information ☆ ।। स्मृतिशेष डॉ. विजया के अमृत महोत्सवी वर्ष पर “शब्दसृष्टि” द्वारा “विजयिता” ग्रंथ का लोकार्पण एवम “डॉ. विजया स्मृति अंतरराष्ट्रीय अनुवाद व अनुसंधान केंद्र” का उद्घाटन संपन्न ।। ☆ डॉ प्रेरणा उबाळे ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🍁।। स्मृतिशेष डॉ. विजया के अमृत महोत्सवी वर्ष पर “शब्दसृष्टि” द्वारा “विजयिता” ग्रंथ का लोकार्पण

एवम

“डॉ. विजया स्मृति अंतरराष्ट्रीय अनुवाद व अनुसंधान केंद्र” का उद्घाटन संपन्न ।।🍁

” शब्दसृष्टि” प्रतिष्ठान की सहसंस्थापक व पत्रिका की संस्थापक-संपादक तथा हिंदी की चर्चित लेखिका, कवयित्री, समीक्षक व अनुवादक के रूप में सुपरिचित स्मृतिशेष डॉ. विजया जी के पचहत्तरवें जन्मदिन (अमृत महोत्सवी वर्ष) के अवसर पर “शब्दसृष्टि” की परामर्शदाता तथा ज्येष्ठ लेखिका व विख्यात हिंदी कथाकार मा. डॉ. सूर्यबाला जी के करकमलों द्वारा ” विजयिता” (डॉ. विजया का चुनिंदा रचना-संसार) ग्रंथ का प्रकाशन हुआ तथा “शब्दसृष्टि” के परामर्शदाता तथा ज्येष्ठ पत्रकार व “नवनीत” (हिंदी मासिक पत्रिका) के संपादक मा. श्री विश्वनाथ सचदेव जी द्वारा “डॉ. विजया स्मृति अंतरराष्ट्रीय अनुवाद एवं अनुसंधान केंद्र” का उद्घाटन हुआ. समारोह का अध्यक्षस्थान “शब्दसृष्टि” के परामर्शदाता तथा ज्येष्ठ अनुवादक मा. प्राचार्य श्रीप्रकाश अधिकारी जी ने विभूषित किया. इस समारोह में प्रमुख अतिथि के रूप में “शब्दसृष्टि” के प्रमुख परामर्शदाता तथा हिंदी-मराठी के सांस्कृतिक सेतु अनुवाद तपस्वी मा. श्री प्रकाश भातम्ब्रेकर जी उपस्थित थे.

“राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भाषावैविध्य के यथार्थ ने अनुवाद-कार्य का महत्त्व पहले ही सिद्ध है. इन दोनों स्तरों पर उत्तरोत्तर वृद्धिंगत होते हुए परस्पर संपर्क ने अनुवाद की आवश्यकता को और भी विकसित किया है. यही कारण है कि वर्तमान काल को ‘अनुवाद युग’ कहा जाता है. ‘जो भी हवा चलती है, वह अनुवाद से गुजरती है’ कहकर अनुवाद-क्षेत्र की व्यापकता और सार्वत्रिकता को अधोरेखित किया जा सकता है.” यह वक्तव्य ज्येष्ठ व श्रेष्ठ अनुवादक तथा “शब्दसृष्टि” के परामर्शदाता मा. प्रो. डॉ. गजानन चव्हाण जी ने “शब्दसृष्टि प्रतिष्ठान”” मनोहर मीडिया” की ओर से स्मृतिशेष डॉ. विजया जी के पचहत्तरवें जन्मदिन (28.01.2023) के शुभ अवसर (अमृत महोत्सवी वर्ष) पर आयोजित ग्रंथ-प्रकाशन व केंद्र-उद्घाटन समारोह को शुभकामनाओं के साथ दिया. उन्होंने प्रसन्नता जाहिर की और कहा कि “डॉ. विजया स्मृति अंतरराष्ट्रीय अनुवाद एवं अनुसंधान केंद्र” की स्थापना कर “शब्दसृष्टि” परिवार ने इस क्षेत्र में कार्य हेतु अनुवादकर्ता तथा अनुवाद-अध्येताओं के लिए व्यापक अवसर के द्वार खोल दिए हैं. केंद्र द्वारा जो प्रमुख गतिविधियां संपन्न की जा सकती है, इस पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला.

समारोह के प्रारंभ में, विगत काल में स्मृतिशेष हुए “शब्दसृष्टि” के परामर्शदाता तथा ज्येष्ठ साहित्यिक-समीक्षक-संशोधक आदरणीय डॉ. नागनाथ कोत्तापल्ले जी को “भावपूर्ण श्रद्धांजलि” अर्पित की गयी.

“शब्दसृष्टि” के संस्थापक-अध्यक्ष व “मनोहर मीडिया” के संचालक तथा “विजयिता” (डॉ. विजया का चुनिंदा संसार) ग्रंथ के मुख्य संपादक प्रा. डॉ. मनोहर जी ने अपने प्रास्ताविक में कहा कि— “डॉ. विजया अमृत महोत्सवी वर्ष” का यह प्रथम समारोह है. जिसमें “विजयिता” (डॉ. विजया का चुनिंदा रचना-संसार), “डॉ. विजया स्मृति अंतरराष्ट्रीय अनुवाद एवं अनुसंधान केंद्र” का उद्घाटन तथा “डॉ. विजया स्मृति जीवन गौरव सम्मान” प्रदान करना सम्मिलित है. इस वर्ष में उनका संपूर्ण साहित्य “दस खंडात्मक डॉ. विजया समग्र” रूप में प्रकाशित होगा तथा संगोष्ठियों का आयोजन, आदि संपन्न किया जाएगा. इसके पश्चात उन्होंने डॉ. विजया जी के जीवन व साहित्य यात्रा पर विस्तृत प्रकाश डाला. “विजयिता” ग्रंथ के संदर्भ में, सम्मान के संदर्भ में तथा “डॉ. विजया स्मृति अंतरराष्ट्रीय अनुवाद एवं अनुसंधान केंद्र” के संदर्भ में अपनी बात रखी.

“विजयिता” ग्रंथ का प्रकाशन करते हुए मा. डॉ. सूर्यबाला जी ने डॉ. विजया जी के संदर्भ में अपने अनुभव कथन किए और उनकी समीक्षात्मक दृष्टि पर प्रकाश डाला . “अंतरराष्ट्रीय अनुवाद व अनुसंधान केंद्र” का उद्घाटन करते हुए मा. श्री विश्वनाथ सचदेव जी ने केंद्र की संभाव्य गतिविधियों के संदर्भ में सटीक मार्गदर्शन के साथ केंद्र की उर्जितावस्था व सफलता के लिए शुभकामनाएं प्रेषित की.

“विजयिता” ग्रंथ पर मा. प्रो. डॉ. उषा मिश्र तथा मा. डॉ. श्यामसुंदर पांडेय जी ने अपने समीक्षात्मक वक्तव्य प्रस्तुत किया. केंद्र के निदेशक मा. डॉ. सतीश पावडे जी की केंद्र व पत्रिका के संदर्भ में उनकी भूमिका उनकी अनुपस्थिति में केंद्र के सहनिदेशक मा. प्रशांत देशपांडे जी ने प्रस्तुत की.

समारोह के अध्यक्ष मा. प्राचार्य श्रीप्रकाश अधिकारी जी ने समयोचित वक्तव्य देते हुए डॉ. विजया के कर्तृत्व पर प्रकाश डाला. इस अवसर पर “शब्दसृष्टि” के प्रमुख परामर्शदाता श्री प्रकाश भातम्ब्रेकर जी के करकमलों द्वारा मा. डॉ. प्रेरणा उबाळे जीमा. प्रशांत देशपांडे जी को “उपनिदेशक” पद के नियुक्ति पत्र” प्रदान किए गए.

अतिथियों का स्वागत मा. डॉ. हूबनाथ पांडेय जी ने व आभार-ज्ञापन मा. डॉ. प्रेरणा उबाळे जी ने किया तथा संपूर्ण समारोह का सूत्र-संचालन “शब्दसृष्टि” के न्यासी-कार्याध्यक्ष व “विजयिता” ग्रंथ के संपादक मा. प्राचार्य मुकुंद आंधळकर जी द्वारा कुशलतापूर्वक किया गया तथा “शब्दसृष्टि” की न्यासी-मानद सचिव व “विजयिता” ग्रंथ की संपादक सुश्री आशा रानी जी ने “संपादकीय मनोगत” के साथ-साथ “सम्मानपत्र वाचन” भी किया.

इस समारोह का तकनीकी संयोजन समन्वयन “शब्दसृष्टि” प्रतिष्ठिन के उपाध्यक्ष व पत्रिका के डिजिटल संपादक डॉ. अनिल गायकवाड जी तथा मा. डॉ. शेखर चक्रबर्ती जी ने किया. इस समारोह में अनुवाद जगत की महनीय हस्तियां तथा शोधछात्र-छात्राएं तथा अभ्यासकों ने उपस्थित रहकर समारोह की शोभा बढ़ायी.

प्रस्तुति : सुमन सागर (मनोहर मीडिया)

साभार – डॉ. प्रेरणा उबाळे

सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत्त), शिवाजीनगर,  पुणे ०५

संपर्क – 7028525378 / [email protected]

 ≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




सूचना/Information ☆ ।। वेद राही जी को “डॉ. विजया स्मृति जीवन गौरव सम्मान-2021” – अभिनंदन ।। ☆ डॉ प्रेरणा उबाळे ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🍁 ।। वेद राही जी को “डॉ. विजया स्मृति जीवन गौरव सम्मान-2021” – अभिनंदन ।। ☆ डॉ प्रेरणा उबाळे 🍁

मुंबई, दिनांक 30 जनवरी— भारतीय साहित्य, कला व सांस्कृतिक प्रतिष्ठान ‘शब्दसृष्टि’ का तृतीय ”डॉ. विजया स्मृति जीवन गौरव सम्मान” विख्यात भारतीय साहित्यकार (डोगरी-उर्दू-हिंदी-अंग्रेजी-फ़ारसी भाषा में लेखनरत कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार व अनुवादक) तथा फिल्मकार (फिल्म-धारावाहिक निर्माता, निर्देशक, पटकथा-संवाद लेखक) श्री वेद राही जी को ‘शब्दसृष्टि’ प्रतिष्ठान की सहसंस्थापक व पत्रिका की संस्थापक-संपादक तथा हिंदी की चर्चित लेखिका, कवयित्री, समीक्षक व अनुवादक के रूप में सुपरिचित स्मृतिशेष डॉ. विजया जी के पचहत्तरवें जन्मदिन (अमृत महोत्सवी वर्ष) के अवसर पर शनिवार, दिनांक 28 जनवरी 2023 को “शब्दसृष्टि प्रतिष्ठान” तथा “मनोहर मीडिया” द्वारा ठाणे में (वेद राही जी के निवास पर) आयोजित छोटेखानी समारोह में “शब्दसृष्टि” के परामर्शदाता तथा ज्येष्ठ पत्रकार व “नवनीत” (हिंदी मासिक पत्रिका) के संपादक मा. श्री विश्वनाथ सचदेव जी के करकमलों द्वारा प्रदान किया गया. समारोह का अध्यक्षस्थान “शब्दसृष्टि” के प्रमुख परामर्शदाता व अनुवाद तपस्वी श्री प्रकाश भातम्ब्रेकर जी ने विभूषित किया.

श्रद्धेय वेद राही जी ने डॉ. विजया जी के स्मृति को प्रणाम करते हुए अपना “मनोगत” व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि— प्रत्येक व्यक्ति के कई परिचय होते है: एक परिचय उसका वह है जो लोग उसके बारे में सोचते हैं. दूसरी पहचान उसकी वह है जो वह खुद अपने बारे में सोचता है और तीसरा परिचय वह है जो वास्तव में वह है.
जो वास्तव में वह है उसकी मूर्ति उसके कामों ने घड़ी होती है. उस कामों की प्रेरणा उसे अपने अंदर से उपलब्ध होती है. आज तक मैंने जो लिखा है वह अपने अंदर की प्रेरणा से लिखा है. उस प्रेरणा की बात उन्होंने कही.

उन्होंने कहा— व्यक्ति अपने बारे में ही गलतफैहमी का शिकार होता है. अपने आपको धोखा देना सब से सरल और दिलचस्प काम है. यह जानते हुए भी मैं यह रिस्क इस समय ले रहा हूं.

अपनी अंदरूनी प्रेरणा का सुराग पाने के लिए मैंने एक कविता लिखी थी, जिसका शीर्षक था— “आदमखोर”.

“मैं हूं आदमखोर
अपने आपको रखता हूं
घूंट घूंट पीकर उम्र
प्यास बुझाता हूं
श्वास श्वास में लगी है आग
जलता ही जाता हूं,
जलता ही जाता हूं
जब न रहेगी आग,
जब न रहेगी प्यास,
जब न रहेगी भूख
तब न रहूंगा मैं
तब न रहूंगा मैं
तब न रहूंगा मैं.

“सोच की ऐसी शिद्दत मुझमें कैसे पैदा हुई यह कहना कठिन है.” कहकर वे अपना ‘जम्मू से मुंबई तक का सफ़रनामा’ प्रस्तुत करते हुए थोड़े भावुक हुए. उन्होंने कहा कि— “मुझे लगता था मैं एक भूलभुलैया में फंस गया हूं. अपने आसपास की हर चीज मुझे धोखा लगती थी. गली में चलते-चलते मैं अक्सर खड़ा हो जाता था. सामने तो वही देखी-भाली हुई गली नजर आती थी पर मुझे पीछे छोड़ी हुई गली का भरोसा नहीं था कि वह वहां है. लगता था पीछे छूटा हुआ सब गायब हो रहा है. बड़ी बेचैनी और बेयकीनी का आलम था. धीरे-धीरे मैं उन भूलभलैयों से बाहर निकल आया पर भीतरी मनोवृत्तियों का अंत कभी नहीं हुआ. उन्हें महाकवि निराला की एक पंक्ति याद आती है— “बाहर कर दिया गया हूं, भीतर भर दिया गया हूं.”

अपने “मनोगत” के अंत में उन्होंने अपनी कुछ कविताओं का पाठ किया, जिसमें फरवरी, 2023 के “नवनीत” अंक में प्रकाशित चार कविताओं का (अंधेरा, प्यार, आदि) का समावेश था.

समारोह के प्रारंभ में ‘शब्दसृष्टि’ के संस्थापक-अध्यक्ष व “मनोहर मीडिया” के संचालक मा. प्रा. डॉ. मनोहर जी ने अपना समयोचित प्रास्ताविक किया. इसके बाद ‘शब्दसृष्टि’ प्रतिष्ठान की न्यासी-मानद सचिव व “विजयिता” (डॉ. विजया का चुनिंदा रचना-संसार) की संपादक मा. सुश्री आशा रानी जी ने 28 जनवरी 2023 को मा. डॉ. सूर्यबाला जी के करकमलों द्वारा प्रकाशित “विजयिता” ग्रंथ की प्रति श्रद्घेय श्री वेद राही जी को भेंट-स्वरूप दी तथा “सम्मान पत्र” का पठन किया. समारोह के प्रमुख अतिथि मा. विश्वनाथ सचदेव जी तथा अध्यक्ष मा. श्री प्रकाश भातम्ब्रेकर जी द्वारा हुए समयोचित वक्तव्यों में मा. श्री वेद राही जी के व्यक्तित्व व कर्तृत्व के विविध पहलूओं पर प्रकाश डाला.

“शब्दसृष्टि प्रतिष्ठान के उपाध्यक्ष व समारोह के संयोजक मा. डॉ. अनिल यादवराव गायकवाड जी ने आभार-ज्ञापन किया तथा संपूर्ण समारोह का कुशलतापूर्वक सूत्र-संचालन “शब्दसृष्टि” प्रतिष्ठान के न्यासी-कार्याध्यक्ष व “विजयिता” ग्रंथ के संपादक मा. प्राचार्य मुकुंद आंधळकर जी ने किया. समारोह में मा. श्री वेद राही जी के परिवार के सदस्य विशेष रूप से उपस्थित थे.

प्रस्तुति : सुमन सागर (मनोहर मीडिया)

साभार – डॉ. प्रेरणा उबाळे

सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत्त), शिवाजीनगर,  पुणे ०५

संपर्क – 7028525378 / [email protected]

 ≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ निःसंग… ☆ सुश्री शोभना आगाशे ☆

सुश्री शोभना आगाशे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ निःसंग… ☆ सुश्री शोभना आगाशे

जन्मा येता

सोडुनि जाशी

तू मातेची कुशी॥

बाल्य सरता

तशा लांघशी

गोकुळच्या वेशी॥

कंसास मारुनि

मथुरेस रक्षिसी

जिंकून शत्रूंसी॥

मथुरा नगरी

सोडुनि जासी

द्वारका वसविसी॥

तीच द्वारका

त्यागुनि देशी

सागरात बुडविशी॥

प्रभास क्षेत्री

अश्वत्थापाशी

मनुष्य देह त्यागिशी॥

मागे कधीही

न वळुनि पाहसी

कसा निःसंग राहसी?॥

– शोभना आगाशे

© सुश्री शोभना आगाशे

सांगली 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 167 ☆ धरणी – आकाश ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 167 ?

☆ धरणी – आकाश ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

डोक्यावरती गगन निळेसे

पाया खाली  काळी धरती

झाडे ,पक्षी, मनुष्य ,प्राणी

इथे जन्मती  आणिक मरती

ईर्षा ,स्पर्धा अखंड चाले

एकेकाची एक कहाणी

असे अग्रणी अकरा वेळा

तोच ठरतसे मूर्खच कोणी

दोन दिसांची मैफल सरते

अखेर पण असते  एकाकी

चढाओढ ही अखंड चाले

नियती फासे उलटे  फेकी

हे जगण्याचे कोडे अवघड

काल हवे जे,आज नकोसे

गूढ मनीचे जाणवताना

 प्राण घेतसे   मूक उसासे

गहन निळे नभ, मूक धरित्री

या दोघांची साथ जन्मभर

सगे सोबती निघून जाती

परी द्वैत हे असे निरंतर

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – विविधा ☆ “व्यक्तिमत्व – चवदार,ठसकेदार…” ☆ सुश्री संध्या बेडेकर ☆

सुश्री संध्या बेडेकर

अल्प परिचय 

पती – कर्नल. डॉ.प्रकाश बेडेकर.

शिक्षण – बी. एस सी, एम.एड

सम्प्रति –  

  • २० वर्षे अध्यापनात कार्यरत
  • १० वर्षे दिल्लीतील एका शैक्षणिक संस्थेत सिनिअर समुपदेशक म्हणून काम केले
  • ललित लेखन करते.

दोन पुस्तके – १. सहजच – मनातलं शब्दात २. मला काही बोलायचय – ही प्रकाशित झालेली आहेत.

? विविधा ?

☆ “व्यक्तिमत्व – चवदार,ठसकेदार…” ☆ सुश्री संध्या बेडेकर ☆

आज दादा वहिनीला श्री.श्रीधर    कुलकर्णी यांचेकडे लग्नाचे  आमंत्रण आहे. कुलकर्णी काका  म्हणजे   आमचे चुलत घराणे.  खूप श्रीमंत.पैशाचा धबधबा पडतो की काय त्यांच्या घरी  ?? असं वाटतं.त्यातच  मुलांचीही बिझनेस मधे  मदत झाली.••• म्हणतात ना,•••• “पैसा पैशाला ओढतो.”••••

ते  काकांकडे बघून पटत. ••••

म्हंटल तर मुलं खूप शिकलेली नाही.पण पिढी  दर पिढी चालत आलेला बिझनेस मात्र उत्तम सांभाळतात. सोन्याचा चमचा तोंडांत घेऊन  जन्माला आलेली ही मुलं, आपल्या बिझनेस मधे चोख आहेत.सरस्वती खूप प्रसन्न नसली तरी लक्ष्मीने मात्र आपला वरदहस्त  त्यांच्यावर छान  ठेवलेला आहे.•••••

श्रीमंतीची सर्व लक्षणे दिसतात. मोठा बंगला, दारासमोर चार गाड्या,घरात नोकर माणसे,म्हणजे घरच्या बायकांना  साधारण बायकांसारखे काम करायची गरज पडत नाही. उठणे बसणे पण अशाच लोकांबरोबर. ••••••

पैशाचा माज  चढला आहे, असं म्हणता येणार नाही. कदाचित ते सहज बोलत असावेत, वागत असावेत. पण ते  आपल्या सारख्या सामान्य  माणसांना कुठे तरी खटकत.,मनाला  लागत. असे  आमच्या दादाचे  नेहमी म्हणणे असते. वहिनीला काही ते पटत नाही व आवडत तर त्याहुनही नाही.  ••••

मागे  दादाच्या मुलाच्या लग्नाचे आमंत्रण द्यायला दादा वहिनी त्यांच्या घरी गेले असताना, त्यांना मिळालेली वागणूक वहिनी  अजूनही  विसरलेली नाही. प्रत्त्येक भेटीची   वहीनीची काही तरी खास आठवण आहेच.  नातं असलं तरी सांपत्तिक परिस्थिती मधे तफावत आहे.   तरीही काही महत्वाच्या  कार्यक्रमात दादा वहिनी जातातच.आपलं नातं टिकवण्यासाठी, कसलाही विचार न करता हजेरी  लावतात.•••••

तेंव्हा अनघा लहान होती,ती पण आई बाबांबरोबर जायची. काही प्रसंग तिच्या बालमनावर चांगले कोरले गेले होते. घरी अलमारी भरून क्रोकरी असताना,आम्हा तिघांना वेगवेगळ्या आकाराच्या स्टील प्लेट, वाटी मधे  चिवडा दिल्याचा प्रसंग तिला आठवतो. दुर्लक्ष केलेले ही आठवते. त्यानंतरची आईची कुरकुर,वाईट वाटणे,कधी कधी  आईचे रडणे,तिच्या चांगले लक्षात होते. एकदा पूजेला गेले असताना, पूजेचे महत्व कमी व श्रीमंत लोकांचा कौतुक समारंभच  जास्त वाटत होता.वहीनी खूप खुशीने तेथे कधीच गेली नाही. ••• 

दादा ची परिस्थिती सामान्य होती. येथे लक्ष्मी नाही,पण  सरस्वती मात्र खूप प्रसन्न होती.दादाची  मुल शिक्षणात हुशार होती,म्हणून त्यांच्या शिक्षणाकरिता दादा वहिनीने  कधी काही कमी पडू दिले नाही.•••

अनघा ने ग्रॅज्युएशन नंतर  स्टेट लेवल, नॅशनल लेवल च्या परीक्षा दिल्या.’ UPSC ‘ पास केली.आज ती पोलीस खात्यात उच्च अधिकारी आहे.••••

आज कुलकर्णी काकांकडे लग्नाला जायचे आहे.अनघा म्हणाली मी पण येईन. ती अशा एका दिवसाची वाट बघतच होती.••••

अचानक तिच्या समोर फ्लॅश बॅक सुरू झाला. आईच्या डोळ्यातील अश्रु आठवले.

 “आपण नेहमी चांगले वागायचे”. असा  बाबांचा  नियम आहे. त्यामुळे नाइलाजाने आई,बाबांबरोबर जात असे.•••

अनघा रंगाने सावळी व जेमतेम उंची, म्हणून तिच्या वर तेथे  कटाक्ष व्हायचे.कसं होईल हिचे ???  ही काळजी  तिच्या आई बाबांपेक्षा त्यांनाच  जास्त होती. त्यांच्या घरी  आई बाबांकडे दुर्लक्ष करतात. ही गोष्ट तिच्या मनात घर करून बसली होती. काही दुःख सारख आपलं डोकं वर काढतात.व तुम्हाला त्याची सतत आठवण करून देत राहतात. व प्रत्त्येक आठवणीबरोबर ती सल वाढतच जाते.••••

आई बाबा  लग्नाला जायला निघाले.अनघा आॅफिस मधून  सरळ हॉलवर येणार होती.•••

तसं  अनघाला सहज सुट्टी घेता आली असती, व छान तयार होऊन लग्नाला जाता आले असते. पण  तिला काळया सावळ्या अनघाचा  ‘रूबाब ‘ दाखवायचा होता. खरं तर हे असे  वागणे तिच्या स्वभावात बसत नव्हते. पण जुन्या प्रसंगाची आठवण व आई बाबांना मिळालेली वागणूकही  ती विसरली नव्हती. आज  आई बाबांना खासकरून आईला तिची  प्रतिष्ठा मिळवून द्यायची   होती. त्यांच्या अपमानाचा बदला घ्यायचा होता. ••••

पोलिस अधिकारी च्या युनिफॉर्म मधे अनघा हॉलवर पोचली. मस्त कडक युनिफॉर्म  त्यावर   ACP rank चे लागलेले  स्टार्स, डोक्यावर लावलेली cap,हातात स्टीक, चकचकीत बूट,  कमरेवर बेल्ट.डोळयांवर काळा चष्मा. तिला आॅफिसकडून मिळालेल्या  गाडीतून अनघा आली.लगेच ड्रायव्हर ने  कारचा दरवाजा   उघडला. अदबीने बाजूला उभे राहून, एक कडक सॅलूट मारला.•••

”  व्वा !!!काय शान होती अनघाची.”

तेथील सर्व लोक बघतच राहिले. लहान मुले तर जवळ येऊन बघू लागली.अनघाचा मोबाईल कारमधेच राहिला होता, तेंव्हा ड्रायव्हर ने तो तिला आणून दिला व पुन्हा एकदा  तसाच कडक सॅलूट मारला.•••

हाॅलमधील सुंदर महागड्या पैठणी निसून, दागिन्यांनी लदलेल्या, ब्युटी पार्लर मधून सरळ हॉलवर आलेल्या so called smart, श्रीमंत बायका बघतच राहिल्या. आता आकर्षणाचा केंद्रबिंदू  पोलिस अधिकारी ‘अनघा ‘ होती.••••

श्रीधर काकां काकू,व त्यांच्या घरचे इतरही  सर्व, अनघाच्या स्वागतासाठी लगेच आले. ••••

अनघाने वेळ कमी असल्यामुळे मी सरळ आॅफिसमधूनच आले व लगेच मला जावे लागेल.  असे सांगितले.••••आज सर्वांशी भेट  होईल,  म्हणून मी आले.••••पुर्वी लहान असताना मी आई बाबांबरोबर येत असे. •••पण  या मधल्या काळात मला येणे जमलेच नाही.•••तिने सर्वांची विचारपूस केली.••• सर्वांना आनंदाने भेटली. वर वधू ला भेटली. फोटोग्राफर ने तिचे आवर्जून बरेच फोटो काढले. आपल्यामुळे वर वधू कडे दुर्लक्ष व्हायला नको, म्हणून तिने लगेच निघायचे  ठरविले •••••

लगेच अनघाच्या जेवणाची सोय झाली. तिच्या ड्रायव्हरला ही  आदराने जेवण दिल्या गेले..आई बाबा हे सर्व डोळे भरून बघत होते.आजही आईच्या डोळ्यात अश्रू आलेच. पण ते  मुलीचे कौतुक बघून, तिचा होणारा मानसन्मान बघून.••••

अनघाच्या  आई-बाबांना लग्न घरात सर्वांसमोर मान मिळाला. आईच्या मनातील सल दूर झाली होती.अनघाचा उद्देश्य पूर्ण झाला  होता,तो ही बाबांचा नियम सांभाळून,”आपण नेहमी चांगले वागावे”.  ••••

निघताना   अनघा आई बाबांना म्हणाली,••••आई-बाबा जास्त उशीर करू नका. अंधाराच्या आत घरी पोहचा. ••••

श्रीधर काकांची पंधरा वर्षांची नात ‘ राधा’ अनघा जवळ येऊन म्हणाली,ताई मला पण तुझ्या सारखे पोलिस अधिकारी बनायचे आहे. बाबा,माझा ताई बरोबर फोटो काढा ना.तो मी माझ्या स्टडी टेबल वर ठेवेन.••••

अनघा म्हणाली,••• हो का  ??

मग छान अभ्यास कर.मी तुला वेळोवेळी guidance देईन. ••••

एकंदरीत अनघाचा प्रभाव जबरदस्त होता.•••

“वक्त वक्त की बात हैं।

 वो भी एक  वक्त था ।

आज भी एक वक्त हैं।”••••

आज कुलकर्णी काकांच्या ड्रायव्हर ने आई-बाबांना घरी पोहचविले.••••

म्हणतात ना,•••

“Your greatest test is how you handle people who have mishandled you.” ••••

© सुश्री संध्या बेडेकर 

पुणे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ संशोधन – सुश्री अर्चना तिवारी ☆ भावानुवाद – सौ. उज्ज्वला केळकर ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

? जीवनरंग ?

☆ संशोधन – सुश्री अर्चना तिवारी ☆ भावानुवाद – सौ. उज्ज्वला केळकर 

‘मुलांनो, मला असं वाटतं, यावेळी शेतकर्यां वर संशोधन प्रबंध हाती घ्यावा.’

‘फारच छान!’

‘मग सगळ्यात आधी नामवंत लेखकांकडून या विषयावरच्या कथा मागवून घ्याव्या.’

‘ठीक आहे सर, पण याबाबतीत एक गोष्ट मनात येतेय.’

‘अरे, नि:संकोचपणे सांग.’

‘सर, शेतकर्यांणवर संशोधन प्रबंध हाती घेत आहोत, तर त्यावरील कथांची गरज आहे का?’

‘म्हणजे काय? संशोधनासाठी कथेत शेतकरी हे पात्र असायलाच हवं.’

‘मला म्हणायचय, प्रत्यक्षात शेतकरी काय करतोय, कसा जगतोय, याचं वर्णन यायला नको का?’

‘अजबच आहे तुझं बोलणं! वास्तवातल्या पात्रांवर कधी संशोधन झालय?’

‘ पण सर, संशोधनात नवीन गोष्टी यायला हव्यात नं?’

‘ओ! समजलं तुला काय म्हणायचय!’

‘मग काय त्याबद्दल माहिती गोळा करूयात?’

अरे बाबा, आपल्याला, लेखकाच्या लेखणीच्या टोकाच्या परिघात असलेल्या कथांमधील शेतकरी पात्रांवर संशोधन करायचय. त्यांच्याबद्दल वाचल्यानंतर अश्रूंसह दयाभव जागृत व्हायला हवा. शेत सोडून रस्त्यावरून ट्रॅक्टर फिरवणार्यां वर आपल्याला संशोधन करायचं नाहीये.’

 ‘पण असं तर ते आंदोलन करण्यासाठीच करताहेत नं!’

 ‘हे बघ, ज्या शेतकर्यां्बद्दल तू बोलतोयस, त्यातील एक तरी अर्धा उघडा, अस्थिपंजर शरीर असलेला आहे का?’

 ‘पण सर, आता काळ बदललाय. प्रत्येक जण प्रगती करतोय.’

 ‘बाबा, एक गोष्ट लक्षात ठेव, संशोधनासाठी शोषित असलेलीच पात्र योग्य ठरतात. अशा पात्रांच्या कथाच काळावर विजय मिळवणार्याट ठरतात.

मूळ कथा – शोध   – मूळ – मूळ लेखिका – सुश्री अर्चना तिवारी  

मराठी अनुवाद – सौ उज्ज्वला केळकर मो. ९४०३३१०१७०

संपर्क – 176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170ईमेल  – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈