हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 72 – मनोज के दोहे – ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 72 – मनोज के दोहे – ☆

1 सुकुमार

लखन राम सुकुमार सिय, चले कौशलाधीश।

मात-पिता आशीष ले, बढ़े नवा कर शीश।।

2 राधिका

प्रेम राधिका का अमर, जग करता नित याद।

भक्त सभी जपते सदा, जब आता अवसाद।।

3 उपवास

तन-मन को निर्मल करे, जो करता उपवास।

रोग शोक व्यापे नहीं, जीवन भर मधुमास।।

4 लोचन

लोचन हैं राजीव के, श्याम वर्ण अभिराम।

द्वापर में फिर आ गए, अवतारी घन-श्याम।।

5 मिठास

वाणी सिक्त मिठास की, होती है अनमोल।

जीवन भर जो स्वाद ले, बोले मिश्री घोल।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – रंगोत्सव ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – रंगोत्सव ??

होली अर्थात विभिन्न रंगों का साथ आना। साथ आना, एकात्म होना। रंग लगाना अर्थात अपने रंग या अपनी सोच अथवा विचार में किसी को रँगना। विभिन्न रंगों से रँगा व्यक्ति जानता है कि उसका विचार ही अंतिम नहीं है। रंग लगानेवाला स्वयं भी सामासिकता और एकात्मता के रंग में रँगता चला जाता है। रँगना भी ऐसा कि रँगा सियार भी हृदय परिवर्तन के लिए विवश हो जाए। अपनी एक कविता स्मरण हो आती है,

सारे विरोध उनके तिरोहित हुए,

भाव मेरे मन के पुरोहित हुए,

मतभेदों की समिधा,

संवाद के यज्ञ में,

सद्भाव के घृत से,

सत्य के पावक में होम हुई,

आर-पार अब

एक ही परिदृश्य बसता है,

मेरे मन के भावों का

उनके ह्रदय में,

उनके विचार का

मेरे मानसपटल पर

प्रतिबिंब दिखता है…!

होली या फाग हमारी सामासिकता का इंद्रधनुषी प्रतीक है। यही कारण है कि होली क्षमापना का भी पर्व है। क्षमापना अर्थात वर्षभर की ईर्ष्या मत्सर, शत्रुता को भूलकर सहयोग- समन्वय का नया पर्व आरंभ करना।

जाने-अनजाने विगत वर्षभर में किसी कृत्य से किसी का मन दुखा हो तो हृदय से क्षमायाचना। आइए, शेष जीवन में हिल-मिलकर अशेष रंगों का आनंद उठाएँ, होली मनाएँ।

? शुभ धूलिवंदन ?

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से आरम्भ होगी। यह श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च को विराम लेगी।

💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈



हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ होली पर्व विशेष – विधान सभा का होली सत्र ☆ श्री नवेन्दु उन्मेष ☆

श्री नवेन्दु उन्मेष

☆ व्यंग्य ☆ होली पर्व विशेष – विधान सभा का होली सत्र ☆ श्री नवेन्दु उन्मेष

विधानसभा का होली सत्र राज्यपाल के अभिभाषण के बाद शुरू हो चुका था। सदन के अंदर माननीय सदस्य हंगामा कर रहे थे कि राज्यपाल के अभिभाषण में राज्य के विकास की बातें तो हैं लेकिन हम सदस्यों को होली का कुछ भी उपहार नहीं मिला है। सरकार की ओर से जवाब आया कि माननीय सदस्य शांत रहें और सदन का होली सत्र चलने दें। पहले सरकार राज्य के लोगों का होली पर विकास करना चाहती है। इसके बाद ही माननीय सदस्यों को होली का उपहार दिया जायेगा।

इसी बीच वित मंत्री ने स्पीकर के आदेश पर होली का बजट पढ़ना शुरू किया। उन्होंने कहा कि होली पर राज्य के युवाओं को एक दिन के लिए नौकरी दी जायेगी और दूसरे दिन वे रिटायर करा दिये जायेंगे। इस पर टोकते हुए एक सदस्य ने कहा यह तो युवाओं को ठगने का काम किया जा रहा है। वित मंत्री ने उन्हें उत्तर देते हुए कहा कि इससे युवाओं को नौकरी करने का अवसर प्राप्त होगा। उन्हें भी महसूस होगा कि वे बेरोजगार नहीं हैं। भले ही नौकरी एक दिन के लिए ही क्यों न हो।

दूसरे सदस्य ने पप्रश्न किया कि एक दिन में आखिर युवा सरकारी नौकरी पाकर कौन सा तीर मार लेंगे। वित मंत्री ने जबाव दिया वे एक दिन में भांग घोटेंगे। होली पर राज्य के लोगों को भांग पिलाया जायेगा ताकि वे आंदोलन की राह छोड़कर विकास की राह पर चल सकें।

वित मंत्री ने होली का अपना बजट पढ़ना जारी रखा और कहा होली पर सड़कों के किनारे भांग का शिविर लगाया जायेगा। राज्य के सभी नागरिकों को एक-एक गिलास भांग मुफ्त दिया जायेगा। दूसरा गिलास मांगने पर उसकी कीमत एक रूपये वसूली जायेगी। इससे सरकार को जो आय प्राप्त होगी उसे राज्य के बेरोजगार युवाओं के बीच बांटा जायेगा।

वित मंत्री ने आगे बताया होली के बाद सड़कों की सफाई के लिए भी सरकार के पास योजनाएं हैं। तभी कुछ लोग पानी-पानी चिल्लाने लगे। एक सदस्य ने कहा कि होली पर राज्य में पानी की कमी हो जाती है। कई इलाके के लोग होली खेलने के बाद पानी की कमी के कारण स्नान नहीं कर पाते हैं। वित मंत्री ने उन्हें बताया कि ऐसे लोगों के लिए आसपास की नदियों से पानी की आपूर्ति की जायेगी। इस बीच एक सदस्य ने कहा राज्य की नदियों में पानी नहीं है। नदियां नाले में तब्दील हो चुकी हैं।

तब पर्यावरण मंत्री का जबाव आया नदियों की सफाई की व्यवस्था की जा रही है। होली खेलने के बाद जो लोग स्नान नहीं कर पायेंगे उन्हें सरकारी वाहन से नदियों के तट पर पहुंचाया जायेगा और साबून इत्यादि देकर स्नान कराया जायेगा। नदी में कोई गिर न जाये इसके लिए एनडीआरएफ की टीम की तैनाती की जायेगी। ताकि गिरे हुए व्यक्ति को तत्काल नदी से निकाला जा सके।

गृह मंत्री भी पूरे होली के मूड में थे। उन्होंने बताया कि होली के लिए प्रत्येक थाने में भांग की व्यवस्था की जायेगी। भांग पीने के बाद अगर कोई व्यक्ति सड़कों पर हंगामा करता हुए पाया गया तो उसे थाने के लॉकर में बंद कर भांग के डंडे से पीटा जायेगा। इसके लिए सरकार ने भांग के डंडों की व्यवस्था थाने में की है। गृह मंत्री ने आगे बताया कि इस बार राज्य के अधिकारी होली नहीं खेलेंगे। अगर कोई अधिकारी होली खेलते हुए पकड़ा गया तो उसे होली अदालत में प्रस्तुत किया जायेगा। उसके साथ होली की धाराओं के तहत मुकदमा चलाया जायेगा और अगर वह दोषी पाया जाता है तो उसे आगामी साल की होली के दिन जमकर भांग पिलाया जायेगा। इसका समर्थन सत्ता पक्ष के सदस्यों ने मेज थपथपाकर की।

अब बारी थी स्वास्थ्य मंत्री की। उन्होंने होली के अवसर पर लोगों के स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान देने की बातें कहीं। उन्होंने बताया कि इस बार सरकारी अस्पतालों में होली आउटडोर का विषेष प्रबंध किया जायेगा। वहां होली के चिकित्सक होली का आला लटकाकर बैठेंगे और सभी मरीजों को होली की दवाइयां देंगे। अगर कोई मरीज होली के दिन बीमार पड़ जाता है तो उसकी पूरी देखभाल की जायेगी। इसके लिए होली एंबुलेस की व्यवस्था की जायेगी। होली सीटीस्कैन से लेकर होली एक्सरे किया जायेगा। गर्भवती महिलाओं को अगर होली के लिए बच्चा होता है तो उन्हें होली का विशेष सर्टिफिकेट दिया जायेगा। ऐसी महिलाओं को होलीश्री या होली माता की उपाधि से नवाजा जायेगा। उनके साथ चिकित्सक फोटो खींचायेंगे जिसे राज्य की पत्रिका में छापा जायेगा।

विधान सभा का होली सत्र चल ही रहा था कि तभी वहां पागलखाने से कुछ वार्डर पहुंच गये और मंत्री से लेकर विधायक बने लोगों को पहचान लिया और दो-दो डंडे लगाते हुए कहा-साले हम सुबह से तुम लोगों को खोजने में परेशान है और तुमलोग यहां विधानसभा का होली सत्र चला रहे हो। एक पत्रकार को पकड़ने हुए कहा पागलखाने में तो तुम सिर्फ न्यूज की बातें किया करते थे। यहां विधानसभा का न्यूज लिख रहे हो। लगता है कि इस न्यूज को अपने बाप के अखबार में छापोगे।

तभी स्पीकर बने पागल ने घोषणा कर दी कि विधानसभा की कार्यवाही आगामी सत्र के लिए स्थगित कर दी जाती हैं। उसे भी दो डंडे लगाकर पागलखाने के वार्डर अपने साथ लेते चले गये। इस प्रकार विधानसभा का होली सत्र माननीय सदस्यों को वार्डरों का डंडा लगने के बाद खत्म हो गया। वार्डरों ने फर्जी विधानसभा के परिसर में माननीय सदस्यों को दौड़-दौड़कर पकड़ा और वापस पागलखाने लेकर चले गये।

© श्री नवेन्दु उन्मेष

संपर्क – शारदा सदन,  इन्द्रपुरी मार्ग-एक, रातू रोड, रांची-834005 (झारखंड) मो  -9334966328

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – कविता ☆ होली पर्व विशेष – “होली का गीत” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆ ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ कविता ☆ होली पर्व विशेष – “होली का गीत” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

हे! गिरिधारी नंदलाल,तुम होली पर आ जाओ।।

राधारानी को सँग लेकर,फिर से रँग बरसाओ।।

 

प्रेम आजअभिशाप हो रहा,

बढ़ता नित संताप है।

भटकावों का राज हो गया,

विहँस रहा अब पाप है।।

प्रेम,प्रीति की गरिमा लौटे,अंतस में बस जाओ। ।

राधारानी को सँग लेकर,फिर से रँग बरसाओ।।

 

मक्कारों की बन आई है,

फूहड़ता की महफिल।

फेंक रहे सब नकली पाँसे,

व्याकुल हैं सच्चे दिल।।

द्रोपदियाँ तो डरी हुई हैं,बंशी मधुर बजाओ।

राधारानी को सँग लेकर,फिर से रँग बरसाओ।।

 

आशाएँ तो रोज़ सिसकतीं,

मातम का है मेला ।

कहने को है प्यार यहाँ पर,

हर दिल आज अकेला ।।

हे नटनागर ! रासरचैया,मंगलगान सुनाओ।

राधारानी को सँग लेकर,फिर से रँग बरसाओ।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – कविता ☆ होली पर्व विशेष – होली प्रेम प्रतीक है…☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ कविता ☆ होली पर्व विशेष – होली प्रेम प्रतीक है… ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

रंगीन त्यौहार है आया, कि  मन खुशियों से झूमे है।

हरे ,नीले, लाल रंग ने, अनेकों रंग बिखेरे हैं।

 

मगर एक रंग है अदभुत, जो प्रकृति में अनौखा है।

प्रेम रंग रंग है ऐसा, जिसे कान्हा में देखा है।

मगर एक रंग है अदभुत, जो प्रकृति में निराला है।

प्रेम रंग रंग है ऐसा, विष भी अमृत का प्याला है।

 

रंगीन त्यौहार है आया , कि  मन खुशियों से झूमे है।

हरे ,नीले, लाल रंग ने, अनेकों रंग बिखेरे हैं।

 

भाव ऐसा जगा कान्हा, कि कटु दुर्भाव मिट जाए।

आहुति नफरत की देकर, प्रेम रंग में ही रंग जाएं।

ये रुसवाई मिटा कान्हा, प्रेम ज्योति में छिप जाए।

रहे कोई ना बेगाना, सभी मुझमें ही रम जाएं।

 

रंगीन त्यौहार है आया, कि मन खुशियों से झूमे है।

हरे, नीले लाल रंग ने, अनेकों रंग बिखेरे हैं।

 

बुराई पर अच्छाई जीत की, हासिल करो एक बार।

सोच बदलो, नजर बदलो, नजरिया बदल जाए हर बार।

फिर पतझड़ में भी आ जाए, बसंत मन फूलों सी बहार।

फिर देखो खुशनुमा और जगमगाता आपका संसार।

 

रंगीन त्यौहार आया है, कि  मन खुशियों से झूमे है।

हरे, नीले, लाल रंग ने, अनेकों रंग बिखेरे हैं।

©  डॉ निशा अग्रवाल

(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर ,राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 131 – “कोणार्क” – डा संजीव कुमार ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है डा संजीव कुमार जी की पुस्तक “कोणार्क ” पर पुस्तक चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 131 ☆

☆ “कोणार्क” – डा संजीव कुमार ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

कोणार्क

डा संजीव कुमार

इंडिया नेट बुक्स,नोयडा

मूल्य १७५ रु, पृष्ठ ११६

चर्चा… विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

कोणार्क पर हिन्दी साहित्य में बहुत कुछ लिखा गया है. कोणार्क मंदिर के इतिहास पर परिचयात्मक किताबें हैं. प्रतिभा राय का उपन्यास कोणार्क मैंने पढ़ा है. जगदीश चंद्र माथुर का नाटक “कोणार्क” भी है. स्फुट लेख और अनेक कवियों ने कोणार्क पर केंद्रित कवितायें लिखी हैं. इसी क्रम में साहित्य सेवी डा संजीव कुमार ने कोणार्क नाम से हाल में ही मुक्त छंद में कविता संग्रह या बेहतर होगा कि कहें कि उन्होने खण्ड काव्य लिखा है.

पुरी और भुवनेश्वर मंदिरों की नगरियां है. कोणार्क सूर्य मंदिर ओडिशा के पुरी में आज से लगभग ९०० वर्षो पूर्व बनवाया गया था. पुरातत्वविदों के अनुसार यह कलिंग शैली में बना मंदिर है. यह स्वयं में अनूठा है, क्योंकि मंदिर  रथ की आकृति में हैं.  12 जोड़ी भव्य विशाल पहियों की आकृतियां  हैं, 7 घोड़े रथ को खींच रहे हैं. इस दृष्टि से सूर्य देव के रथ की आध्यात्मिक भारतीय कल्पना को मूर्त रूप दिया गया है. समुद्र तट पर मंदिर इस तरह निर्मित है कि सूरज की पहली किरण मंदिर के प्रवेश द्वार पर पड़ती है. समय की आध्यात्मिकता दर्शाते कोणार्क की कहानी रोचक है. इस मंदिर को वर्ष 1984 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था. इस महत्व के दृष्तिगत कोणार्क पर लिखा जाना सर्वथा प्रासंगिक है. मैने पर्यटन के उद्देश्य से कोणार्क की सपरिवार यात्रा की है. वहां मोमेंटो की दूकानो पर कोणार्क पर लिखी किताबें भी देखी थीं, उनमें एक श्रीवृद्धि डा संजीव कुमार की किताब से और हो गई है.

कोणार्क का मंदिर तो बना पर,आज तक वहां कभी विधिवत पूजा नहीं हुई. इसी तरह  भोपाल के निकट भोजपुर में भी एक विशालतम शिवलिंग की स्थापना की गई थी पर वहां भी  आज तक  कभी विधिवत पूजा नहीं हुई. कोणार्क को  लेकर किवदंतियां हमेशा से ही लोगों के बीच चर्चित रही हैं. ये ही कथानक संजीव जी की कविताओ की विषय वस्तु हैं. खजुराहो की ही तरह मंदिर की बाहरी दीवारों पर रति रत मूर्तियां हैं, जो  संदेश देती हैं कि परमात्मा का सानिध्य पाना है तो भीतर झांको किन्तु वासना को बाहर छोडकर आना होगा.

संजीव जी मंदिर के महा शिल्पी को इंगित करते हुये लिखते हैं

समेटे अपने आँचल में

खड़ा है आज भी

एक कालखंड

जिसमें निहित थी

कल्पना की उड़ान

नभ पर उड़ते सूर्य को

अपनी धरती पर उतार लाने का स्वप्न

जो अपनी अभिनवता में

भर लाया होगा।

उत्साह का पारावार और कल्पना के उत्कर्ष

उकेर गया होगा

उन पत्थरों पर

जो हो उठा जीवंत

कला की प्राचुर्यता के साथ विभिन्न मुद्राओं में

जीवन की भंगिमाओं में

मैने स्व अंबिका प्रसाद दिव्य का उपन्यास खजुराहो की अतिरूपा पढ़ा था. उसमें वे कल्पना करते हैं कि शिल्पी ने अतिरूपा को विभिन्न काम मुद्राओ में सामने कर उन जीवंत मूर्तियों को देह के प्रेम की  व्याख्या हेतु तराशा रहा होगा.

कवि डा संजीव कुमार भी लिखते हैं

संगिका थी वह

 मेरे बचपन की

 जिसे पाया था मैंने

 बाल हठ से

 कितने ही वर्षों के बाद

 और आज

 हमारी देहों का

 कण कण

 महकता था

 हमारे प्रेम का साक्षी बनकर

 हमने खेले थे

 बचपन के खेल भी

 और तरूणाई की केलि भी

 पर यौवन हो गया

 समर्पित

 किसी राजहठ को

 और बस

 एक असंभव को

 संभव बनाने में

विभिन्न कविताओ से गुजरते हुये कोणार्क के महाशिल्पी उसके पुत्र की कथा चित्रमय होकर पाठक के सम्मुख उभरती है. 

मंदिर की वर्तमान भग्नावस्था को देख वे लिखते हैं…

 काश! उग सकता

 वह स्वप्न आज भी

 इन भग्नावशेषों के बीच

 जहाँ उतरता

 किरणों भरा रथ

 दिवाकर का

 और जाज्वल्यमान

 हो उठता

 भारत का कण क

 बरस जाती चेतनता विहस पड़ता

 नव जीवन

 उसी कोणार्क के उच्च शिखरों से

 भुवन भर में

 और नवचेतना

 संगीत लहरियों में बसकर

 हवा में बहती.

कोणार्क पर काव्य रूप में लिखी गई पुस्तकों में यह एक बेहतरीन कृति है, जिसके लिये डा संजीव कुमार बधाई के सुपात्र हैं.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 152 – होलिका दहन ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है समसामयिक विषय,स्त्री विमर्श  एवं होली पर्व पर आधारित एक सुखांत एवं भावप्रवण लघुकथा होलिका दहन”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 152 ☆

🌹 लघुकथा 🌹 होली पर्व विशेष – ❤️ होलिका दहन ?

मेघा पढ़ाई पूरी करके एक अच्छी कंपनी में जॉब करती थी। सोशल मीडिया और मोबाइल आज की जिंदगी में सभी पर हावी है। ऐसे ही शिकार हुई अपने ऑफिस के सुधीर के साथ और लिव-इन-रिलेशनशिप  में रहने लगे।

समय पंख लगा कर उड़ चला पता ही नहीं चला। किसी बात को लेकर दोनों में दूरी हो गई और मामला अलग अलग होने का हो गया।

मेघा मानसिक परेशान हो अपने घर वापस आ गई। वर्क फ्रॉम होम करते हुए घर परिवार में स्थिर हो खुश रहना चाहती थी। परंतु सुधीर के साथ बिताए हुए पल और उसके साथ की सभी मोबाइल पर तस्वीरें उसे परेशान कर रही थी।

घरवालों मेघा को कुछ समझ पाते, इसके पहले ही विवाह का निर्णय लेने लगे। घर पर खुशियाँ छा गई।

मेघा की शादी होना है। एक अच्छे परिवार से लड़का शिवा से उसका विवाह निश्चित हुआ। मेघा को डर था कि वह कि वह आज का लड़का है।  उसकी सारी बातें वह सब जान जायेगा।और सुधीर की बातें शिवा के सामने आ जायेगी।

शादी को कुछ वक्त था। मेघा का होने वाला पति शिवा होलिका दहन के दिन अचानक आ गया। सभी उसकी खातिरदारी में लग गए। मेघा के चेहरे का रंग उड़ा जा रहा था।

वह बड़े प्यार से मेघा के कमरे में आया। “मेघा… चलो आज हम होलिका दहन, शादी के पहले देख आएं।”

“शादी के बाद तो ससुराल की पहली होली होती है। पर मैं चाहता हूं शादी के पहले होलिका दहन में तुम्हें लेकर जाऊं।”

तैयार हो घरवालों का आदेश ले शिवा के साथचल पड़ी। पास ही मैदान में होलिका को सजाया गया था। शिवा धीरे से मेघा का हाथ अपने हाथ में लेकर बोला…” मुझे सुधीर ने सब कुछ बता दिया है। वह बहुत अच्छा लड़का है।”

” मुझे तुम्हारे पुराने रिश्ते से कोई परेशानी नहीं है, परंतु मैं चाहता हूं तुम सब कुछ भूल कर इस होलिका दहन में खत्म करके नए सिरे से मेरे साथ विश्वास और पूरी जिंदगी खुशी के साथ रहना चाहोगी। वचन दो  यदि तुम्हें मंजूर है तो…” मेघा इतना सुनते ही पास रखी थाली से गुलाल ले आसमान में खुशी से उछाल कर होली के गीत पर नाचने लगी।

दोनों हाथों से लाल रंग लिए शिवा उसके मुखड़े पर लगा रहा था।

होलिका की परिक्रमा लगाते मेघा के नैन अश्रुं से भीगते चले जा रहे थे।

लाल गुलाबी चुनर से मेघा का सिर ढाकते शिवा होलिका दहन पर विजयी अनुभव कर रहा था।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ परदेश – भाग – 24 – मित्रता की स्वर्ण जयंती ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 24 – मित्रता की स्वर्ण जयंती ☆ श्री राकेश कुमार ☆

सन ’72 में गोविंद राम सक्सेरिया महाविद्यालय, जबलपुर में अध्यन के लिए प्रवेश लिया, तो कक्षा के सभी सहपाठी अनजान थे, क्योंकि पाठशाला में विज्ञान से उत्तीर्ण होकर वाणिज्य विषय चयनित किया था।

विगत दिनों जबलपुर के पुराने सहपाठी से विदेश में पचास घंटे साथ व्यतीत करने का अवसर प्राप्त हुआ। ये संयोग ही था कि मित्रता को भी पचास वर्ष पूरे हुए हैं।

महाविद्यालय में साथ बिताए हुए पांच वर्ष की स्मृतियों को मानस पटल पर आने में कुछ क्षण ही लगे। मानव प्रवृत्ति ऐसी ही होती हैं, जब कोई पुराना मित्र या पुराने स्थान से संबंधित कोई भी वस्तु सामने होती है, तो मन के विचार प्रकाश की गति से भी तीव्र गति से दिमाग में आकर स्फूर्ति प्रदान कर देते हैं। हम अपने आप को उस समय की आयु का समझ कर हाव भाव व्यक्त करते हैं। पुरानी यादें, पुराने मित्र या पुरानी शराब का नशा कुछ अलग प्रकार का होता है।

हम दोनों मित्रों ने अगस्त 88 में जबलपुर से विदा ली थी। मित्र अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में जीवकोपार्जन के लिए निकल गए थे, और हमें पदोन्नत होने पर इस्पात नगरी, भिलाई जाना पड़ा था।

मित्र के साथ बिताए हुए समय का केंद्र बिंदु तो जबलपुर ही था, परंतु उनके वर्तमान देश अमेरिका के बारे में भी चर्चाएं होना भी स्वाभाविक है। बातचीत में मित्र ने बताया कि- “US is land full of Golden opportunities and they want each and every one in US शुड 1. Be a homeowner and 2. Be a business owner.”

क्योंकि ये देश ही तो विश्व में पूंजीवाद का सिरमौर है।

© श्री राकेश कुमार

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सप्तरंग ☆ सौ. विद्या वसंत पराडकर ☆

सौ. विद्या वसंत पराडकर

? कवितेचा उत्सव ?

💐 सप्तरंग 💐 सौ. विद्या वसंत पराडकर ☆

(होळीच्या सर्व रसिकांना शुभेच्छा)

कुवासनेची करुनी होळी

दुर्गुणांची ही इंधन मोळी

मानवतेचे चंदन भाळी

उधळवु सप्तरंग आभाळी

 

अंहकारा देऊ मुठमाती

षडविकारा वीर जिंकती

समतेचे झेंडे फडकती

तेथे प्रेमरंग उधळती

 

सप्तरंग प्रतीक असता

संयम,शांती. मिळे शुचिता

सद्भभावनामय ज्याची कांती

रंग धुळवडी जाते भ्रांती

 

दुर्वासना विषाचे दहन

विषयांचे करु उच्चाटन

पर्व पहा प्रकाश पावन

श्रीरंगातच उजळू जीवन ☘️

© सौ विद्या वसंत पराडकर

वारजे पुणे.

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #178 ☆ भावनांचा रंग… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 178 ?

भावनांचा रंग… ☆

भावनांचा रंग आहे वेगळा

ओठ माझा त्यास वाटे जांभळा

 

डाग नाही एकही अंगावरी

टाकुनी तो रंग झाला मोकळा

 

काय सांगू मी घरी सांगा मला

खंत नाही त्यास तो तर बावळा

 

पेटते होळी तशी देहातही

साजरा दोघे करूया सोहळा

 

धूळ माती फासली अंगास तू

रंग गोरा जाहला बघ सावळा

 

आग आकाशात होती पोचली

पाहिलेला सोहळा मी आगळा

 

शांत झाली आग आहे कालची

लाकडांचा फक्त दिसतो सापळा

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈