हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सम्पन्नता ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सम्पन्नता ??

बूढ़े जीवन ने

यकायक पूछा,

कभी सोचा;

अब तक

क्या खोया,

क्या पाया,?

अपनी संपन्नता पर

मैं इतराया,

मर्त्यलोक में

क्षरण के मूल्य पर

अक्षय पाता रहा,

साँसे खोता रहा

अनुभवी होता रहा,

रीता आया था;

सृष्टि सम्पन्न लौट रहा हूँ,

सो खोया कुछ नहीं

बस, पाया ही पाया..!

© संजय भारद्वाज 

30.7.2017, रात्रि 8.18 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




English Literature – Poetry ☆ ‘साथ-साथ…’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Together’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem साथ-साथ.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – साथ-साथ  ??

चलो कहीं साथ मिल बैठें,

न कोई शब्द बुनें,

न कोई शब्द गुनें,

बस खामोशी कहें,

बस खामोशी सुनें..!

© संजय भारद्वाज 

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? ~ Together…??

Let’s go somewhere

and sit together…

Neither shall we

weave any words,

Nor would we utter

any  words…

We will just talk silently,

Would listen to the

stark silence only..!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈




हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 135 ⇒ सच उगलवाने की मशीन… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सच उगलवाने की मशीन “।)  

? अभी अभी # 135 ⇒ सच उगलवाने की मशीन? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

 

कलयुग में हम झूठ बोलते हैं, और सच हमसे उगलवाया जाता है। वैसे शास्त्रों के अनुसार झूठ बोलना पाप है, लेकिन सत्यवादी हरिश्चंद्र बनना भी कोई समझदारी नहीं।

आज की मिलावट की दुनिया में सच और झूठ के अनुपात से ही दुनिया चलती है। इसीलिए अदालतों में सच बोलने के लिए भी कसम खानी पड़ती है, गीता पर हाथ रखना पड़ता है।

हमारे सच झूठ से कोई पहाड़ नहीं टूट जाता, लेकिन अपराधियों से सच उगलवाना बहुत जरूरी हो जाता है, जिसके लिए उनका lie detector test होता है, जिसे पॉलीग्राफ टेस्ट भी कहते हैं, जो शरीर के हाव भाव, दिल की धड़कन और सांस के चलने की गति के आधार पर झूठ को पकड़ता है और सच उगलवाता है।।

लेकिन कोई जरूरी नहीं कि इस तरीके से आदतन अपराधियों से सच उगलवा लिया जाए, और झूठ पकड़ में आ जाए। हमारी पुलिस की शुद्ध हिंदी और थर्ड डिग्री भी जब काम नहीं करती, तब इन अपराधियों का नार्को टेस्ट होता है, जिसमें इन्हें दवा के जरिए उस अर्ध – अचेतावस्था में लाया जाता हैं, जहां ये सच उगल दें।

आम जिंदगी में झूठ बोलना कोई अपराध नहीं !

तारीफ इसमें है कि झूठ इस तरीके से, आत्म विश्वास से, बार बार बोला जाए, कि वह सच की शक्ल अख्तियार कर ले।

जब पुख्ता सबूतों के साथ झूठ बोला जाता है, तो कभी कभी तो बेचारे सच को भी शर्मिंदा होना पड़ता है।।

सच बोलने के लिए आपको सिर्फ भगवान से डरना पड़ता है। जब एक बार वह डर भी गायब हो जाए, फिर तो झूठ का रास्ता साफ हो जाता है। लोग झूठे के मुंह ही नहीं लगते। वैसे भी, हट झूठे कहीं के, और खाओ मेरी कसम, तो हमारा आम तकिया कलाम है ही।

जिन लोगों में आत्म विश्वास की कमी है जिनकी याददाश्त कमजोर है, और जिनमें झूठ बोलने से अपराध बोध होता है, उन्हें झूठ बोलने से परहेज करना चाहिए। गप मारना और लंबी लंबी हांकने का जिनको अभ्यास होता है, वे बड़े लोकप्रिय होते हैं। दफ्तरों में उनके पास टाइम पास करने वालों की भीड़ लगी रहती है। जिस दिन वे दफ्तर नहीं आते, दफ्तर की रौनक गायब हो जाती है।।

झूठ अगर तेज है तो सच ओज है। झूठ अगर आडंबर, दिखावा और चमक दमक है, तो सच सादगी, ईमान और सरलता है। सच शाश्वत, सनातन है, झूठ नश्वर है, भ्रम जाल है।

सच वह टंच सोना है, जिससे आभूषण नहीं बनाए जा सकते। थोड़ा झूठ का खोट हो, तो सच भी आकर्षक बन जाता है। रोटी में नमक जितना झूठ तो सच में भी चल सकता है, लेकिन अधिक झूठ चरित्र के लिए घातक है।

हमारी दुआ में असर नहीं, और तो और बद्दुआ भी नहीं लगती। भगवान हमारी नहीं सुनता, सच का कोई साथ नहीं देता। शायद यह सत्य का ही प्रताप हो, जब किसी जमाने में, पीड़ित का दिया शाप फलीभूत हो जाता था। हाथ में लेकर जल छोड़ने के साथ जो संकल्प ले लिया, सो ले लिया, शाप दे दिया सो दे दिया। फिर भले ही आप भगवान ही क्यों न हो।।

हम पुण्यात्माओं के शाप से तो बच सकते हैं, लेकिन झूठ का अभिशाप फिर भी हमारा पीछा नहीं छोड़ने वाला। जब नियति और प्रकृति आपको शाप देने लगे, तो आप कहां जाओगे। त्राहिमाम त्राहिमाम !

झूठ का दामन छोड़, जितनी जल्दी सच के रास्ते पर हम चल निकलें, इसी में हमारी और इस संसार की भलाई है ;

बहुत कठिन है

डगर पनघट की।

कैसे भर लाऊं,

मैं जमना से मटकी।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #196 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 196 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे… ☆

तन – मन आनंदित हुआ, चले पवन हर ओर।

खिलती बूंदे ओस – सी, मन में उठी झकोर।।

बाट पिया की जोहते, देख रहे हर ओर।

आहट सुनते ही हुआ, चितवन भाव विभोर।।

मन उपवन विचरण करे, प्रेमी चाँद चकोर।

हिल मिल ऐसे मिल रहे, हिया में उठे हिलोर।।

साजन मिलने आ रहे, सजनी उठती भोर।

रग रग में ऐसे उठी, तरंगित हर हिलोर।।

चैन चुराया आपने, ओ मेरे चितचोर।

मेरे मन मोहन बसे, नैना नंदकिशोर।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #181 ☆ संतोष के दोहे  – “सावन” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे  – “सावन”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 181 ☆

☆ संतोष के दोहे  – “सावन”  ☆ श्री संतोष नेमा ☆

सावन की बूंदे कहें, आ जाओ मन मीत

गिर कर डालूं प्रेम की, सारी अपनी शीत

भरा क्षोभ से आज मन, मिट्टी मिली फुहार

कहती सावन की घटा, आओ मेरे द्वार

बरस पडूं मैं एक दिन, तेरे ऊपर खूब

भीगे तन मन प्यार से, सुन मेरे महबूब

बार बार आता नहीं, मौसम का यह प्यार

साजन आओ आँगना, छोड़ सभी तकरार

हरी चुनरिया ओढ़कर, धरती करे पुकार

राग-द्वेष सब छोड़िये, देख मेरा श्रंगार

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – कुंडलिया – “सावन और अति वर्षा” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ कुंडलिया – “सावन और अति वर्षा” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

[1]

सावन आया जल बहक, मौसम में आवेग।

मेघों ने हमको दिया, जल का पावन नेग।।

जल का पावन नेग, क्यारियों में रौनक है।

नदियों में सैलाब, बस्तियों में धक-धक है।

राखी का त्योहार, खुशी के पल लाया है।

ख़ूब पले अनुराग, देख सावन आया है।।

[2]

सावन आया ऐ सुनो, सब कुछ नहीं अनुकूल।

बाढ़ों के चुभने लगे, अब तो तीखे शूल।।

अब तो तीखे शूल,  ज़िन्दगी देखो हारी।

मौसम चढ़ा बुखार, धरा पर भय है ज़ारी।।

बस्ती पाई दर्द, बाढ़ का पानी आया।

बिलखें पीड़ित लोग, जोश में सावन आया।।

[3]

सावन आया मीत सुन, ठंडी चले बयार।

फिर भी कम्बल दूर है, सूना है संसार।।

सूना है संसार, नहीं कुछ भी है भाता।

बस्ती है बेचैन, एक पल चैन न आता।।

दिल में है अब शोक, दुखों का भाव समाया।

आज यही बस सत्य, दर्दमय सावन आया।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ आला श्रावण श्रावण ! ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

? कवितेचा उत्सव ? 

🦚 आला श्रावण श्रावण ! 🌴 श्री प्रमोद वामन वर्तक ⭐

आला श्रावण श्रावण

धरली पावसाने धार,

नव्या नवरीच्या मनी

नाचे आनंदाने मोर !

 

आला श्रावण श्रावण

सय येते माहेराची,

दारी उभी वाट पाहे

माय तिची कधीची !

 

आला श्रावण श्रावण

सख्या माहेरी भेटतील,

होतो सासरी का जाच ?

लाडे लाडे पुसतील !

 

आला श्रावण श्रावण

सण ये मंगळागौरीचा,

पुजून देवी अन्नपूर्णेला

रात खेळून जागायाचा !

 

आला श्रावण श्रावण

व्रत वैकल्याचा मास,

ताबा ठेवून जिभेवर

करा उपास तापास !

करा उपास तापास !

© प्रमोद वामन वर्तक

दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.)

मो – 9892561086 ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सृष्टि… ☆ सुश्री अरूणा मुल्हेरकर☆

सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ ‘सृष्टी…’ ☆ सुश्री अरूणा मुल्हेरकर ☆

(सृष्टी वृत्त ~मंजूघोषा(गलगागाx३))

श्रावणाच्या पावसाने स्नात आहे

खोडकर वार्‍यासवे ती गात आहे

 

सूर्य डोकावे ढगाआडून विलसे

तेज त्याचे सावळ्या मेघात आहे

 

शाल हिरवी ही धरेने पांघरावी

शुभ्र मोत्यांची जणू बरसात आहे

 

मोगरा जाई जुईचा गंध सुटला

केतकीचा दर्प हा श्वासात आहे

 

शंकराला वाहताना बिल्वपत्रे

पारिजातक गालिचा परसात आहे

 

धुंद केले श्रावणाच्या या सरींनी

हासते सृष्टी कशी दिनरात आहे

 

देखणे हे दृष्य अवघे श्रावणाचे

शांतता जीवास लाभे ज्ञात आहे

 

©  सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

डेट्राॅईट (मिशिगन) यू.एस्.ए.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विजय साहित्य #187 ☆ 🇮🇳 यशस्वी मोहीम चांद्रयान-३ !! 🚀 ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 187 – विजय साहित्य ?

☆ 🇮🇳 यशस्वी मोहीम चांद्रयान-३ !! 🚀 ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

यशवंत यशोगाथा

अंतराळी चांद्रयान

भारतीय शास्त्रज्ञांचे

संशोधक अभियान…! १

 

धृव दक्षिण चंद्राचा

तिथे यान उतरले

चार वर्षे परीश्रम

मोहिमेत सामावले…! २

 

वैज्ञानीक प्रगतीचा

उत्तुंगसा अविष्कार

चांद्रयान तीन जणू

तिरंग्याचा पदभार…! ३

 

खगोलीय ज्ञानालय

इस्त्रो शास्त्रज्ञ अभ्यासू

गुणातीत चंद्रकला

मती सकल प्रकाशू..! ४

 

देऊ कौतुकाचे बोल

जयहिंद मुखी नारा

अंतराळी विश्वामाजी

बुद्धी चातुर्याची धारा..! ५

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – विविधा ☆ “घनिष्ठ मैत्री…” ☆ श्री वैभव चौगुले ☆

? विविधा ?

☆ “घनिष्ठ मैत्री…” ☆ श्री वैभव चौगुले ☆

निस्वार्थ विश्वास जिथे असतो,  मानवी परिवर्तन जिथे होते, मर्यादितता, बंदिस्तता मधून जिथे मोकळा श्वास घेता येतो अशा ठिकाणी मैत्रीचे भक्कम कायमस्वरूपी वसलेले घर असते.

कृष्ण सुदामासारखी, कर्ण दुर्योधनासारखी मैत्री हल्ली कोठे अनुभवयाला मिळत नाही. मला मैत्रीची नक्की व्याख्या आपल्याला सांगता येणार नाही. पण माझ्या कल्पनेने, अनुभवानी,समोर घडलेल्या गोष्टी, ऐकलेल्या गोष्टी ज्या मैत्री या विषयाशी जोडल्या गेल्या आहेत त्यावरून मी मैत्रीवर थोडं लिहीत आहे.

घनिष्ठ मैत्री आयुष्याचा अविस्मरणीय ठेवा असतो हे खरे, पण केव्हा? जर मैत्री निभवली तर. ती ही मरेपर्यत!  ही मैत्री भविष्यकाळात येणा-या परिस्थितीवर बदलणा-या  मनावर, क्षणीक सुखाच्या मोहावर अंवलबून असेल तर ती कशी टिकेल?

घनिष्ठ मैत्री होण्यासाठी खूप वेळ जातो. ही मैत्री कुठे विकत मिळत नाही. या मैत्रीला कोणती कंपनी नाही. मैत्री सर्वांशी होत नाही आणि मुद्दाम कोणीशी मैत्री जाऊ न करावी म्हटली तरीही ती करता येत नाही.

आजारावर औषधं डॉक्टरांच्या सल्याने आपण घेत असतो. योगासनामध्ये हसण्याचे भाग घेतले जातात. कारण तो भाग योग अभ्यासामध्ये येतो. हसण्याने माणसाचे आयुष्यमान वाढते. असं मी नेहमीच ऐकतो. वरवरून नाईलाज म्हणून आपण खोटे हसू चेह-यावर आणत असतो.

एक सांगू ?  आनंदावर, मनातून येणा-या हसण्यावर जर का प्रभावी औषध असेल  तर ते औषध अंतरमनातून निखळ निर्माण झालेल्या मैत्रीतूनच मिळत असते. असे मला वाटते.

मैत्रीत एक हात धरून दुसरा हात दुस -या ठिकाणी बळकट करत, पहिला हात सोडून पुन्हा पहिला हात रिकामा ठेवून दुस-या हात शोधत मैत्रीला डाग लावत फिरणा-या मैत्रीचा प्रकार ही पहावयास मिळतो. मी या मैत्रीला न्यू आफ्टर ब्रेकअप फ्रेडशीप म्हणेन 😊 हे कधी होतं मनात काही गोष्टी लपवून ठेवणे, काही गोष्टीचा त्याग न करता सर्वच गोष्टाीना महत्व देत बसणे, अशा गोष्टी समोर येवू  लागल्या की मैत्रीमधला दुरावा निश्चित होत जातो. पण या सवयीमध्ये एक मन निर्णय घेण्यात यशस्वी होतं आणि दुसरं मन मानसिकतेचं शिकार होवून जातं. किती प्रकार आहेत मैत्रीचे माहित नाहीत. मी घनिष्ठ मैत्रीवर लिहीत आहे हे लक्षात घ्या.

प्रेमांनी ओंजळ भरणे, भावनांच मोल जपणे, मळभ भरणे, मनाला निरभ्र करणे, आयुष्य वाटून घेणे, दिलासा देणे, काळवंडल्या क्षणातून बाहेर पाडणे. ही घनिष्ठ मैत्रीतले घटक मी म्हणेन! न बंधन न कुंपण घालता दुस-याच्या जीवनात फुलपाखरासारखे बागडणे, विचाराचे आदान प्रदान निखळपणे, निस्वार्थीपणे करणे पण हे शक्य होतं का हा प्रश्नच?

माणसाला मेल्यानंतर दफन करायला किंवा जाळायला जितकी जागा लागते ना तितक्याच मैत्रीच्या जागेत स्वर्गसुखाचा आनंद मिळतो. पण या जगा मध्ये अनेक नको असलेल्या गोष्टीकडे माणसाचं चंचल मन वळत असतं! काय तर मनाचं मनोरंजन होत नाही. म्हणून जीवाला जीव देणारं मन भेटलं तर वाळल्या उचापती होतात का? हे कळत नाही.काय लागतं जीवन जगायला दोन प्रेमाचे शब्द,  अन्न, वस्त्र व निवारा या तीन गोष्टी सोबत एक गोष्ट वाढली आहे ती म्हणजे इटरनेट..🙂 इंटरनेट नसेल तर माणसाचे आयुष्य संपल्यासारखेच आहे. दोन चार दिवस माणसाला इन्टरनेट नाही मिळालं की डायरेक्ट सलाईनच लावावे लागेल. कारण जाळं, खूप पसरलेलं आहे. मनाचं पण आणि इंटरनेटचं पण. उभे आयुष्य कोणताही मोह न करता सुखाने जगता येतं, फक्त आयुष्यात एका मनाशी घनीष्ठ मैत्री होवून मरेपर्यत टिकली पाहिजे. हे तितकेच खरे वाटते . पण त्या जागेमध्ये आणि  मैत्रीमध्ये कोणत्याही आमीश दाखवणा-या चिटपाखरूचा चुकून सुध्दा वावर होवू न देणे.

कमळाच्या फुलातील परागकण खाण्यासाठी भुंगा ज्याप्रमाणे त्याच्या आजुबाजूच्या परिस्थितीकडे दुर्लक्ष करतो त्याच प्रमाणे घनिष्ठ मैत्री जपण्यासाठी आजुबाजूच्या परिस्थितीकडे दुलर्क्ष केले किंवा मनावर न घेता त्या गोष्टी व्यवहाराने हातळल्या की घनिष्ठ मैत्रीमध्ये दुरावा निर्माण होणार नाही. पण हे करताना आपल्या दुस-या मनाला सांगून विचारात घेऊन निर्णय घेणे तितकेच आवश्यक आहे.

भावनेशी संबंध असलेलं हे एकच नातं जे रक्तांच्या अनेक नात्यापेक्षा पवित्र आणि परिपूर्ण असलेलं घनीष्ठ मैत्रीचं नातं आहे. असे म्हणावे लागेल. मैत्री टिकवून ठेवणं हे सर्वानाच जमते असे नाही. हव्यासा पोटी मोहाला बळी पडून चांगली मैत्री संपुष्टातसुध्दा आलेली पाहिली आहे.

When I am free you should also free..असं जर समजलं तर मैत्रीमध्ये दुरावा होत जातो. येथे समजून घेण्याची ताकत कमी पडते आणि मनाची चिडचिड होते, मानसिकता खचते. संयम सुटतो व नको ते होवून जाते. मैत्री ही मोहक वा-याची झुळूक असते. मैत्री करताना त्यांच्या गुणदोषासंगे स्वीकार करण्याची तयारी दर्शिवलेली असते. पण ज्यावेळी दोन मनांचे रस्ते एक होतात त्यावेळी आपला स्वभाव व चंचलपणा बदलावा लागतो, एकमेकांचा आदर करावा लागतो, कित्येक गोष्टीचा त्याग करावा लागतो. चालायला लागले की मग मागे हटण्याचा विचार मनात यायलाच नाही पाहिजे. जिथे अपेक्षा संपतात, जिथे शोध संपतो, जिथे अपेक्षाच राहत नाहीत तिथे अपेक्षा येतात कोठून आणि मग अपेक्षा भंग होण्याचे कारण तरी काय असू शकते. द्या ना जितका वेळ द्यायचा तितका  तुमच्या मैत्रीला. सर्व सोडून मैत्रीमध्ये सर्वस्व अर्पण केलेलं असतं. मात्र तिथे कानाडोळा, लपवाछपवी केली तर ख-या मैत्रीचा स्वप्नचुरा होण्यास कितीसा वेळ लागणार आहे.

मैत्री ही अशी भावना आहे जी दोन मनांना अंतःकरणापासून जोडते. खरा मित्र त्याला योग्य सल्ला आणि योग्य दिशाच दाखवत असतो. मैत्री ही फक्त आनंदातील क्षणांची सोबत नसून दु:खात ढाल होवून समोर येण्याची ताकत असते.

घनिष्ठ मैत्रीचा विश्वास हाच पाया असतो. मैत्रीही दु:खात हसवते, संकटावर मात करायला शिकवते, जगायला शिकवते. संयमी राहायला शिकवते, चांगले कठोर निर्णय घ्यायला शिकवते. मैत्री ही आधार होऊन राहते. आणि शेवटी इतकच म्हणेन मैत्री ही हृदयाचे निखळ सौंदर्य दाखवणारा आरसा असते…

© श्री वैभव चौगुले

सांगली

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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈