English Literature – Poetry ☆ The Grey Lights# 21 – “Wolf…!” ☆ Shri Ashish Mulay ☆

Shri Ashish Mulay

? The Grey Lights# 21 ?

☆ – “Wolf…!” – ☆ Shri Ashish Mulay 

Wolf!   O my wolf!

Starry sky is your roof. 

Why is this agony? 

Is your fur your only company. 

When the distant moon shines,

What happens to you?

Does it disturb your solitude? 

or the solitude disturbs you. 

You the born survivor

Do you lose the will too?

What the silent moon tells you

Do you hear that too?

Though the winds

are just passerby 

Does it carry the scent

of someone near you?

Wolf! O mighty wolf

caged in picturesque

moment of night

do you feel the pain too?

© Shri Ashish Mulay

Sangli 

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 161 ☆ दोहा सलिला – आम खास का खास है… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं – दोहा सलिला – आम खास का खास है…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 161 ☆

☆ दोहा सलिला – आम खास का खास है… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आम खास का खास है, खास आम का आम.

‘सलिल’ दाम दे आम ले, गुठली ले बेदाम..

आम न जो वह खास है, खास न जो वह आम.

आम खास है, खास है आम, नहीं बेनाम..

पन्हा अमावट आमरस, अमकलियाँ अमचूर.

चटखारे ले चाटिये, मजा मिले भरपूर..

दर्प न सहता है तनिक, बहुत विनत है आम.

अच्छे-अच्छों के करे. खट्टे दाँत- सलाम..

छककर खाएं अचार, या मधुर मुरब्बा आम .

पेड़ा बरफी कलौंजी, स्वाद अमोल-अदाम..

लंगड़ा, हापुस, दशहरी, कलमी चिनाबदाम.

सिंदूरी, नीलमपरी, चुसना आम ललाम..

चौसा बैगनपरी खा, चाहे हो जो दाम.

‘सलिल’ आम अनमोल है, सोच न- खर्च छदाम..

तोताचश्म न आम है, तोतापरी सुनाम.

चंचु सदृश दो नोक औ’, तोते जैसा चाम..

हुआ मलीहाबाद का, सारे जग में नाम.

अमराई में विचरिये, खाकर मीठे आम..

लाल बसंती हरा या, पीत रंग निष्काम.

बढ़ता फलता मौन हो, सहे ग्रीष्म की घाम..

आम्र रसाल अमिय फल, अमिया जिसके नाम.

चढ़े देवफल भोग में, हो न विधाता वाम..

‘सलिल’ आम के आम ले, गुठली के भी दाम.

उदर रोग की दवा है, कोठा रहे न जाम..

चाटी अमिया बहू ने, भला करो हे राम!.

सासू जी नत सर खड़ीं, गृह मंदिर सुर-धाम..

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

बेंगलुरु, २२.९.२०१५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (23 अक्टूबर से 29 अक्टूबर 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (23 अक्टूबर से 29 अक्टूबर 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

आप सभी को पंडित अनिल पाण्डेय की तरफ से नवरात्रि और विजयदशमी की हार्दिक बधाई। 23 अक्टूबर को दुर्गा नवमी का त्यौहार मनाया जाएगा। इसमें विशेष बात यह है कि उसे पूरे दिन सर्वार्थ सिद्ध योग भी है। अर्थात आप दुर्गा नवमी को जो भी कार्य करेंगे सभी में सामान्यतः सफलता प्राप्त होगी। कोई भी अच्छे कार्य को करने के लिए 23 अक्टूबर का दिन अत्यंत शुभ है।

आइये अब हम 23 अक्टूबर से 29 अक्टूबर 2023 अर्थात विक्रम संवत 2080 शक संवत 1945 के अश्वनी शुक्ल पक्ष की नवमी से कार्तिक कृष्ण पक्ष के सप्ताह के ग्रह गोचर की चर्चा करते हैं।

इस सप्ताह चंद्रमा प्रारंभ में मकर राशि में रहेगा। दिनांक 30 अक्टूबर को 2:30 रात से वह कुंभ राशि में प्रवेश करेगा। 25 तारीख को 4:48 से मीन राशि में गोचर करेगा तथा 28 तारीख को 7:36 प्रातः से मेष राशि का हो जाएगा। इस सप्ताह सूर्य मंगल और बुद्ध तुला राशि में रहेंगे। शुक्र ग्रह सिंह राशि में विचरण करेगा। इस सप्ताह चार ग्रह बक्री रहेंगे। गुरु मेष राशि में बक्री रहेगा। शनि कुंभ राशि में वक्री, राहु मेष राशि में वक्री और केतु तुला राशि में बक्री रहेंगे। पूरे सप्ताह सूर्य अपनी नीच राशि में रहेगा। यह सूर्य मेष, वृष, कर्क, तुला, वृश्चिक, मकर, कुंभ और मीन राशि वालों के लिए लाभप्रद होगा।

आइये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी को कई सफलताएं मिल सकती हैं। व्यापार में उन्नति होगी। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए पूर्ण प्रयास करें। धन आने में बाधाएं आयेंगी। आपका स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। संतान से आपको कोई विशेष लाभ प्राप्त नहीं होगा। भाई बहनों के साथ आपके संबंधों में तनाव आ सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 23, 28 और 29 तारीख सफलता दायक है। 26 और 27 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपको अपने शत्रुओं से मुक्ति मिल सकती है। इसके लिए आपको प्रयास करने होंगे। पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी तकलीफ हो सकती है। आपके सुख में वृद्धि होगी जनता में आपका सम्मान बढ़ेगा। कोई नया सामान खरीद सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 24 और 25 अक्टूबर परिणाम दायक हैं। 28 और 29 अक्टूबर को आपको सावधान रहकर कोई कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन पीपल के पेड़ के नीचे मिट्टी का दिया जलाकर पीपल की सात बार परिक्रमा करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

मिथुन राशि के जातकों का स्वास्थ्य इस सप्ताह उत्तम रहेगा। भाग्य से कोई विशेष मदद नहीं मिल पाएगी परंतु छोटे-मोटे काम आपके भाग्य के भरोसे हो सकते हैं। धन आने की पूरी उम्मीद है। आपको अपने संतान से लाभ प्राप्त हो सकता है। आपके किसी एक संतान को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। इस सप्ताह आपकी अपने भाई बहनों से भी लड़ाई हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 26 और 27 अक्टूबर कार्यों को पूर्ण करने के लिए उत्तम है। आपको 23 अक्टूबर को सावधान रहकर कार्य करने चाहिए अन्यथा आप कार्यों में असफल हो जाएंगे। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन स्नान करने के उपरांत तांबे के पत्र में जल लाल पुष्प और अक्षत लेकर सूर्य मंत्रों के साथ भगवान सूर्य को जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका और जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके व्यापार में वृद्धि होगी। भाग्य से भी आपको मदद मिल सकती है। कार्यालय में आपकी स्थिति मजबूत हो सकती है। आपको अपने संतान से कोई खास सहयोग प्राप्त नहीं होगा। भाई बहनों से भी आपके सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। धन प्राप्त होने में कई बधाएं आएंगी। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 28 तथा 29 अक्टूबर उत्तम है। आपको 24 और 25 अक्टूबर को सावधान रहकर के ही कोई कार्य करना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपके पराक्रम में वृद्धि होगी। अपने क्रोध पर आपको कंट्रोल करना पड़ेगा। अन्यथा आप हानि उठा सकते हैं। भाग्य आपका साथ देगा। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक हो सकते हैं। एक भाई के साथ तकरार संभव है। इस सप्ताह आपको मामूली शारीरिक कष्ट हो सकता है। जिससे कि आपको सावधान रहना चाहिए। आपके जीवनसाथी को भी शारीरिक कष्ट होने की संभावना है। इस सप्ताह आपके लिए 24 और 25 अक्टूबर उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रहने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

कन्या राशि

कन्या राशि के जातकों का स्वास्थ्य इस सप्ताह उत्तम रहेगा। उनके माता-पिता और जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। थोड़ा बहुत धन भी आएगा। कचहरी के कार्यों में इस सप्ताह आपके रिस्क नहीं लेना चाहिए। शत्रुओं की संख्या में वृद्धि हो सकती है। पेट में पीड़ा हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 26 और 27 अक्टूबर उत्तम है। 26 और 27 अक्टूबर को आप जो भी कार्य करना चाहेंगे उनमें से अधिकांश कार्यों में आप सफल रहेंगे। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सतर्क रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

तुला राशि

तुला राशि जातकों को इस सप्ताह पुरानी बीमारी से छुटकारा मिल सकता है। उनके जीवनसाथी के पेट में कष्ट हो सकता है। धन आने के साधनों में कमी आएगी। संतान से कोई सहयोग प्राप्त नहीं होगा। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक नहीं रहेंगे। आपके सुख में वृद्धि होगी। छोटी-मोटी दुर्घटना हो सकती है। माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 23, 28 और 29 तारीख सफलता दायक है। इन तारीखों में आप जो भी काम करेंगे अधिकांश कार्यों में आप सफल रहेंगे। 26 और 27 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शनिवार के दिन मंदिर में जाकर शनिदेव का पूजन करें और उनको तेल चढ़ाएं। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

वृश्चिक राशि

वृश्चिक राशि के जातकों के लिए यह सप्ताह ठीक-ठाक है। कचहरी के कार्य में उनको सफलता मिल सकती है। उनके शत्रुओं का विनाश हो सकता है। वृश्चिक राशि के जातकों के माता जी और पिताजी को कष्ट हो सकता है। कार्यालय में उनका विशेष सम्मान प्राप्त नहीं होगा। भाग्य सामान्य है। उनके क्रोध में वृद्धि होगी। जीवनसाथी को कष्ट हो सकता है इस सप्ताह आपके लिए 24 और 25 अक्टूबर उत्तम है। 28 और 29 अक्टूबर को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाई खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपके सुख में वृद्धि होगी। धन आने की मात्रा में कमी आएगी। भाग्य से कुछ खास नहीं मिल पाएगा। आपको अपने संतान से कष्ट हो सकता है। माताजी, पिताजी और जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ेगी। आपके लिए 26 और 27 अक्टूबर किसी भी कार्य को करने के लिए उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिन सामान्य है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। इसके अलावा आपको प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ भी करना चाहिए। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपको अपने कार्यालय में प्रतिष्ठा प्राप्त होगी होगी। अगर आप व्यापारी है तो आपके व्यापार में वृद्धि होगी। सभी कार्यालयों में आपका काम आराम से हो जाएंगे। माता जी और पिताजी दोनों के स्वास्थ्य में थोड़ी दिक्कत हो सकती है। आपको अपनी संतान से कोई विशेष लाभ प्राप्त नहीं होगा। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे, अर्थात जैसे थे वैसे ही रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 23, 28 और 29 तारीख कार्यों को करने के लिए शुभ है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप विष्णु सहस्त्रनाम का प्रतिदिन पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका विशेष रूप से साथ देगा देगा। माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपका अपने भाई बहनों के साथ संबंध खराब हो सकता है। इस सप्ताह आपको और आपके जीवन साथी को नसों संबंधी रोग हो सकता है। अगर आप अविवाहित हैं तो विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। प्रेम संबंधों में भी वृद्धि हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 24 और 25 अक्टूबर सफलता दायक हैं। 23 अक्टूबर को आपको सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का जाप करें। इसके अलावा गुरुवार को विष्णु जी के मंदिर में जाकर उनकी पूजा करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपका, आपके जीवनसाथी का, आपके माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। इस बात की पूरी संभावना है कि किसी दुर्घटना से आप साफ-साफ बच जाए। शत्रुओं की संख्या में वृद्धि होगी। उनसे आपको सावधान भी रहना चाहिए। कचहरी के कार्यों में असफलता मिल सकती है। गलत रास्ते से धन आने का योग है। इस सप्ताह आपके लिए 26 और 27 अक्टूबर उत्तम और फलदायक हैं। 24 और 25 अक्टूबर को आपको कोई भी कार्य पूरी सावधानी से करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप पंछियों को दाना दें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

 

आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट का उपयोग करें और हमें इस पोस्ट के बारे में बतायें।

मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ आम्ही… ☆ श्री शरद कुलकर्णी ☆

श्री शरद कुलकर्णी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ आम्ही… ☆ श्री शरद कुलकर्णी ☆

युद्धाचे परिणाम माहीत

नसल्यामुळेच . .

तिने लढाया केल्या.

मला कारणं माहीत होती,

म्हणूनच मी तह केले.

त्यांनी विजोड जोड्या लावल्या

म्हणून आम्हीही गाळलेले

शब्द भरले.

व्यत्त्यासाने प्रमेये सिद्ध केली-

भूमितीची.

हातचे वापरुन गणितं सोडवली. . व्यवहाराची.

दुर्देवाचे सगळे फेरे.

प्रगतीबुकावर लाल शेरे.

तरीही पुढची यत्ता गाठली.

इतुके यश होते रगड.

अगदीच नव्हतो आम्ही दगड .

© श्री शरद  कुलकर्णी

मिरज

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ साज सजणीचा! ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

? कवितेचा उत्सव ? 

☆ 💓 💃 साज सजणीचा! 💃💓 ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

शोभा वाढवी कुंतलाची

झुले भाळावरी पदक,

चाले जणू भांगेतुनी  

नागिण “बिंदी” मादक !

 

करती कानांशी सलगी

घेती बोलतांना हिंदोळे,

लक्ष वेधती साऱ्या सख्यांचे

सुंदर सोन्याची कर्णफुले !

 

टोचून चाफेकळीला

सोडत नाही जी साथ,

शुभ्र टपोऱ्या मोत्यांसवे 

शोभून दिसे हिऱ्याची नथ !

 

गोल गळ्याची शोभा

वाढविती नानाविध हार,

चिंचपेटी, बोरमाळ, ठुशिसवे

उठून दिसे नवलखा हार !

 

पाटल्या, तोडे, कंकण,

चुड्यासवे करती किणकिण,

लांब सडक बोटांवरती

अंगठ्या हिऱ्यांच्या छान !

 

शोभा वाढवी सिंहकटीची

साजरी रत्नजडीत मेखला,

कंबर पट्टा वेलबुटींचा

मत्सराने खाली झुकला !

 

जरी चालसी हलक्या पावली

नाद मंजुळ करती पैंजणे,

येता अशी तू सजूनी धजूनी

कलीजा खलास होई सजणे !

कलीजा खलास होई सजणे !

© प्रमोद वामन वर्तक

सध्या सिंगापूर 9892561086

संपर्क – दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.)

मो – 9892561086 ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – विविधा ☆ माझी मराठी… ☆ श्री राजीव गजानन पुजारी ☆

श्री राजीव गजानन पुजारी

? विविधा ?

माझी मराठी… ☆ श्री राजीव गजानन पुजारी

मराठी भाषा ही १५०० वर्षे जूनी असून तिचा उगम संस्कृत मधून झाला. समाज जीवनातल्या बदलानुसार ही भाषा बदलत गेली. मराठीचा आद्यकाल हा इ. स. १२०० च्या पूर्वीचा म्हणजे ज्ञानेश्वरीच्या लिखाणाच्याही आधीचा होय. या काळात विवेकसिंधू या साहित्यकृतीची निर्मिती झाली. यानंतरच्या काळाला यादवकाल म्हणता येईल. इ.स. १२५० ते इ. स.१३५० हा तो काळ. या काळात महाराष्ट्रावर देवागिरीच्या यादवांचे राज्य होते. मराठी भाषेला राजभाषेचा दर्जा होता. लेखक व कवी यांना राजाश्रय होता. याच काळात वारकरी संप्रदायची सुरुवात झाली. महाराष्ट्राच्या सर्व जातींमध्ये संत परंपरा जन्माला आली. त्यांनी वेगवेगळ्या प्रकारे काव्य रचनेस सुरुवात केली. नामदेव, गोरा कुंभार, सावता माळी, चोखा मेळा, कान्होपात्रा यांनी भक्तीपर रचना केल्या व मराठी भाषेचे दालन भाषिक वैविध्याने समृद्ध व्हायला सुरुवात झाली. इ. स. १२९० साली ज्ञानेश्वरमाऊलींनी ज्ञानेश्वरी मराठी भाषेत लिहिली. ती लिहिण्यापूर्वी माऊली म्हणतात,

‘माझा मराठीची बोलू कौतुके |

परि अमृतातेही पैजा जिंके |

ऐसी अक्षरे रसिके मेळवीन ||’

आणि ज्ञानेश्वरी वाचल्यावर मराठी भाषा अमृताहून गोड आहे याची सार्थ जाणीव होते. याच काळात महानुभव पंथ उदयास आला. चक्रधर स्वामी, नागदेव यांनी मराठी वाङमयात मोलाची भर घातली. त्यानंतर येतो बहामनी काळ. हा काळ इ. स.१३५० ते इ. स. १६०० असा मानता येईल. सरकारी भाषा फारसी झाल्याने, मराठी भाषेत अनेक फारसी शब्द घुसले. या मुसलमानी आक्रमणाच्या धामधूमीच्या काळातही मराठी भाषेत चांगल्या साहित्याची भर पडली. नृसिंहसरस्वती, एकनाथ, दासोपंत, जनार्दन स्वामी यांनी मराठी भाषेत भक्तीपर काव्यांची भर घातली. यानंतर येतो शिवकाल. तो साधारण इ.स.१६०० ते इ. स.१७०० असा सांगता येईल. हिंदवी स्वराज्याची स्थापना झाली होती. शिवाजी महाराजांनी रघुनाथ पंडित यांना राज्यव्यवहार कोष बनवितांना फारसी ऐवजी संस्कृत शब्दयोजना करण्यास सांगितले. याच काळात मराठीस राज्य मान्यतेसोबत संत तुकाराम, संत रामदास यांचेमुळे लोकमान्यताही मिळू लागली. यानंतर येतो पेशवेकाल. हा इ. स.१७०० ते इ. स. १८२० असा सांगता येईल. या काळात मोरोपंतांनी ग्रंथ रचना केली. कवी श्रीधर यांनी आपले हरिविजय व पांडव प्रताप या काव्यांद्वारे खेड्यापाड्यात मराठी भाषा रुजविली. याच काळात शृंगार व वीर रसांना वाङमयात स्वतंत्र स्थान मिळाले. यासाठी लावणी व पोवाडा यांची निर्मिती झाली. वाङमय हा रंजनाचा प्रकार आहे हे समाजाने मान्य करण्यास सुरुवात केली. वामन पंडित, रामजोशी, होनाजी बाळा हे या काळातील महत्वाचे कवी होत. या नंतरचा काळ आंग्लकाळ म्हणता येईल. हा इ. स. १८२० ते इ. स.१९४७ पर्यंतचा मानता येईल. याच काळात कथा व कादंबरी लेखनाची बीजे रोवली गेली. नियतकालिके छपाईच्या सुरुवातीचा हा काळ. त्यानंतर मराठी भाषेचा उत्कर्ष वेगाने होत गेला. १९४७ ते १९८० हा काळ सर्वदृष्टीने मराठीच्या उत्कर्षाचा काळ म्हणता येईल. विजय तेंडुलकरांच्या नाटकांनी मराठीला वास्तववादी बनविले. छबीलदास चळवळ या काळात जोरात होती. दलित साहित्याचा उदयही याच काळातला. सरोजिनी वैद्य, विजया राजाध्यक्ष यांच्या साहित्य व समीक्षांचा दबदबा या काळात होता. मध्यम वर्गीयांसाठी पु.ल., व.पु. होते. प्रस्थापिताला समांतर असे श्री. पु. भागवतांचे ‘सत्यकथा’ व वाङमयीन क्षेत्रातील गॉसिपचे व्यासपीठ ‘ललित’ याच काळातील. याच काळात ‘घाशीराम कोतवाल’, ‘सखाराम बाईंडर’, ‘गिधाडे’ ही काळाच्या पुढची नाटके येऊन गेली. थोडक्यात म्हणजे इ.स.१२०० च्या सुमारास सुरु झालेली मराठी भाषेची प्रगती इ.स. १९८० पर्यंत चरम सीमेला पोहोचली. समजातील सर्व विषय कवेत घेणारी अशी ही मराठी भारतीय भाषा भगिनींमध्ये मुकुटमणी आहे.

मराठीत पु. ल. देशपांडे, चि. वि. जोशी यांनी लिहिलेले विनोदी लिखाण आहे, ज्ञानदेव, तुकारामादि संतांनी लिहिलेले भक्तीरसाने ओथंबलेले संत वाङ्मय आहे, ना.सी.फडके आदिंनी लिहिलेले शृंगारिक वाङ्मय आहे, लावणीसारखा शृंगारिक काव्यप्रकार आहे, आचार्य अत्रे लिखित ‘झेंडूची फुले’ सारखे विडंबनात्मक साहित्य आहे, वि.स.वाळिंबे सारख्यांनी लिहिलेले चरित्रग्रंथ आहेत, नारळीकर, बाळ फोंडके लिखित वैज्ञानिक कथा आहेत, स्वातंत्र्यवीर सावरकर लिखित ‘१८५७ चे स्वातंत्र्य समर’ सारखे वीर रसाने युक्त ग्रंथ आहेत, पोवाडे आहेत, अनंत कणेकर, पु. ल. देशपांडे सारख्यानी लिहिलेली उत्तमोत्तम प्रवासवर्णने आहेत, ग. दि. मा. लिखित ‘गीत रामायण’ म्हणजे नवरसांचे संमेलनच जणू!! यातील प्रत्येक काव्य वेगळ्या रसात आहे. मराठीत बाबुराव अर्नाळकर लिखित गुप्तहेरकथा व भयकथा आहेत, नारायण धारप लिखित गूढकथा आहेत, साने गुरुजींची शामची आई म्हणजे मराठीचे अमूल्य रत्नच जणू! रामदास स्वामींनी लिहिलेला दासबोध म्हणजे निवृत्ती व प्रवृत्ती यांचे सुयोग्य संमिलनच आहे. त्यांनीच लिहिलेल्या मनाच्या श्लोकांत मानसशास्त्राची मूलभूत तत्वे सामावलेली आहेत. मराठीत इतर भाषांतून अनुवादिलेल्या उत्तमोत्तम कलाकृती आहेत. मराठी नाटक म्हणजे मराठी भाषेतील रत्नालंकार होत. अगदी राम गणेश गडकरींचा ‘एकच प्याला’ ते विजय तेंडुलकरांच्या ‘घाशीराम कोतवाल’ पर्यंत मराठी नाटकांचा एक विस्तृत पटच आहे. हे सर्व बघितल्यावर मराठी ही एक अभिजात भाषा आहे याची खात्री पटते.

मातृभाषेची गोडी शालेय वयापासून लावणे हे पालक व शिक्षकांचे कर्तव्य आहे. स्वातंत्र्योत्तर काळ ते साधारण १९८० पर्यंत मराठी शाळांची स्थिती ‘चांगली’ म्हणावी अशी होती. पालक मुलांना मराठी शाळांत पाठवत. घरी देखील मराठी बोलले जाई. पण १९८० नंतर हळूहळू सर्व बदलत गेले. इंग्रजी माध्यमांच्या शाळांचे पेव फुटले. पालक मुलाला इंग्रजी माध्यमाच्या शाळेत घालणे प्रतिष्ठेचे मानू लागले. जागतिकरणानंतर स्थिती आणखी बिघडली. खेडोपाडी व घराघरात पाश्चात्य संस्कृतीबरोबरच पाश्चात्य भाषेनेही सर्रास प्रवेश केला. ‘माझ्या मुलाला /मुलीला मराठी बोलता येत नाही’ असं सांगणं यात पालकांना प्रतिष्ठा वाटू लागली. अशा परिस्थितीत मराठीचे भवितव्य काय?

मला तर वाटतं मराठीचे भवितव्य उज्वलच आहे. याचे महत्वाचे कारण ‘नवीन शैक्षणिक धोरण’. यात मातृभाषेतून शिक्षणावर भर देण्यात आला आहे.अगदी अभियांत्रिकी व वैद्यकीय शिक्षण देखील मातृभाषेतून देण्यात यावे असे सरकारचे धोरण आहे. विज्ञानातील मूलभूत संकल्पना मातृभाषेतून चांगल्या समजतात हे आता सर्वमान्य झाले आहे. त्यामुळे अधिकाधिक विध्यार्थी मराठीकडे वळतील व मराठीला पूर्वीचे वैभव प्राप्त होईल. यासाठी आपलीही कांही जबाबदारी आहे. अगदी आपल्या राज्यातही परभाषी व्यक्तीशी आपण हिंदीतून अथवा इंग्रजीतून बोलतो. असे न करता आपण आवर्जून मराठीतूनच बोलले पाहिजे. मराठीतून बोलण्यात न्यूनगंड बाळगण्यासारखे अजिबात नाही. जेव्हा पत्रकार परिषद होते तेंव्हा आपले नेते प्रथम मराठीतून बोलतात, पण जेंव्हा एकदा पत्रकार ‘हिंदीमे बोलिये’ असे म्हणतो, तेंव्हा आपले नेते परत तीच वक्तव्ये हिंदीत करतात. हे आवर्जून टाळायला हवे. नेत्यांनी पत्रकाराला ठणकवायला हवं कि, मी हिंदीत वगैरे अजिबात बोलणार नाही, तूच मराठीत बोल. अशा छोटया छोटया गोष्टी आपण करत गेलो कि, आपोआपच मराठीला इतर लोकंही सन्मानाने वागवायला लागतील.

© श्री राजीव  गजानन पुजारी 

विश्रामबाग, सांगली

ईमेल – [email protected] मो. 9527547629

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




Select मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ घराचं वाटणीपत्र… – भाग-२ ☆ श्री व्यंकटेश देवनपल्ली ☆

श्री व्यंकटेश देवनपल्ली

? जीवनरंग ❤️

☆ घराचं वाटणीपत्र… – भाग-२ ☆ श्री व्यंकटेश देवनपल्ली

(आत डोकावून पाहिलं. भिंती बांधून वाड्याचं रूपांतर असंख्य खोल्यांत झालं होतं.) इथून पुढे — 

“वास्तविक, गेल्यावर्षी या घराचं वाटणीपत्र झालं. तेच तुझ्या वहिनीच्या जिव्हारी लागलं. ‘तुम्ही भावांच्या मुलांना इंग्रजी शाळेत पाठवून चांगलं शिक्षण दिलंत आणि आपल्या मुलांकडे मात्र दुर्लक्ष केलंत. तुम्हीच स्वत:ला घरातला एकमेव कर्तासवरता समजून स्वत:च्या उत्पन्नाची उधळपट्टी करीत होता. कुठलाही भाऊ स्वत:च्या खिशात हात घालत नव्हता. माझ्या या वेडीचं म्हणणं तुम्ही कधीच ऐकून घेतलं नाही. आता अशी पश्चाताप करायची वेळच आली नसती.’ म्हणून ती खंत व्यक्त करायची. 

मी तिला सांगायचो, ‘अगं ज्याच्या त्याच्या नशिबात असतं, ज्याचे त्याला मिळत असते आभाळगाणे किंवा माती. भले आपली मुलं जास्त शिकली नसतील. पण आज स्वत:च्या कर्तबगारीच्या जोरावर काहीतरी कमवत आहेत ना? ते महत्वाचे आहे. आपल्या दोघांना फुलासारखं जपताहेत ना? बस्स, अजून काय हवं आहे?’ पण ते तिला पटायचं नाही. आणि एके दिवशी ध्यानी-मनी नसताना अचानक हृदयघाताने देवाघरी गेली.” 

तितक्यात सतीशच्या सुनेने चहा आणला. ‘माझी मोठी सून निर्मला’ असं सांगत सतीशने तिला माझी ओळख करून दिली. निर्मलाने मला नमस्कार केला. “मामंजीकडून आणि आमच्या सासूबाईंच्याकडून मी तुमच्याबद्दल खूप ऐकलंय.” असं म्हणत ती निघून गेली. 

चहा घेता घेता सतीश म्हणाला, “माझी दोन्ही मुलं वेगवेगळा व्यवसाय करतात. तुझी वहिनी गेल्यावर मीच त्या दोघांना दोन खोल्यांत वेगळा  संसार थाटून दिला. माझ्या जेवण्याखाण्याची व्यवस्था एक महिना माझी मोठी सून पाहते. एक महिना माझी धाकटी सून पाहते. एरव्ही देखील काही चांगलंचुंगलं केलं की ते माझ्यासाठी पाठवतातच.

दोघीही सुना मला हवं नको ते पाहतात. न्याहारी, चहा, दोन वेळचं जेवण अगदी वेळेवर माझ्या खोलीत आणून देतात. सकाळी कामावर जाताना आणि रात्री कामावरून आली की दोन्ही मुलं माझ्याकडे येऊन विचारपूस करून जातात. आणखी काय हवंय सांग? 

तुला आठवतं का? तुझ्या आग्रहाला बळी पडून मी एक विमा उतरवला होता. सुदैवाने त्याचे हप्ते नियमितपणे भरत होतो. गेल्या वर्षी त्याची बर्‍यापैकी रक्कम आली आणि तेच पैसे बॅंकेत गुंतवले. महिन्याला बाराशे रूपये व्याज येतं. त्यात माझं औषधपाणी व इतर खर्च भागतात. कुणाकडे एक रूपया मागत नाही. झालंच तर दोन्ही सुनांच्या घरी अधूनमधून पालेभाजी आणून देतो.”           

“तुझा वेळ कसा जातो?” असं विचारल्यावर सतीश थोडासा खुलला. “अरे ती काही समस्या नाही. लायब्ररीतली सगळी पुस्तकं आपले मित्र आहेत. बहुतेक करून आत्मचरित्रे वाचतो. आपल्यासारख्या सामान्य माणसांच्या आयुष्यात कुठे येतात असे डोळे दिपवून टाकणारे सोनेरी क्षण? तसंच अगदी कडेलोट व्हायच्या क्षणी ही माणसं स्वत:ला सावरून परत कशी ठामपणे उभी राहतात, आणि आपण कसे लहान लहान संकटात कोलमडून जातो हे लक्षात येतं.

पुस्तक वाचून झालं की उत्तराची अपेक्षा न ठेवता मी त्या लेखकाला पोस्टकार्डावर एक खुशीपत्र लिहून पाठवतो. दुसर्‍याला अत्तर लावताना तुमची बोटंही सुगंधी होतात म्हणतो ना तसे. 

आता बघ, संध्याकाळचे साडेसहा वाजले की दंगा करणारी ही सगळी कार्टी, हातपाय तोंड धुऊन दप्तर घेऊन माझ्या खोलीत येतात. आसनं टाकून शुभं करोति म्हणून झाल्यावर अभ्यासाला लागतात. मी तिथंच पुस्तकात डोकं खुपसून बसलेला असतो. कुणाला काही अडलं की माझ्या जवळ येऊन विचारतात. गणित, सायन्स, इंग्रजी, हिंदी आणि मराठी या विषयातलं काहीही.

आपल्या मास्तर लोकांनी असं काही घोटून घेतलंय की आज पन्नास वर्षानंतर देखील ते पुसलं गेलेलं नाही. माझ्या खोलीत काळा कापडी बोर्ड लटकवलेला आहे. त्यावर मी गणितं सोडवून दाखवतो. निबंध कसे लिहायचे त्याचे मुद्दे सांगतो. ही मुलं दोन तास अभ्यासात अगदी गढून जातात आणि साडे आठ वाजले की भुर्र्कन उडून जातात. माझाही वेळ अगदी पंख लावल्यागत उडून जातो.”         

सतीशने समोरच्या हातगाडीवाल्याला बोलावून अर्धा डझन केळी विकत घेतली. तितक्यात खेळ संपवून परत आलेल्या प्रत्येक मुलाच्या हातात सतीशनं एक एक केळं ठेवलं. सगळी पोरं धूम ठोकून पळाली. 

मी सहजच म्हटलं, “सतीश, यात तुझी नातवंडं कुठली?” 

सतीश केविलवाणं हसत म्हणाला, “खरं सांगू? या सहा नातवंडात, चार नातवंडे माझ्या दोघा भावांची आहेत. अरे, या घराच्या वाटण्या झाल्या आहेत. पण नातवंडांच्या वाटण्या झाल्या नाहीत, त्यामुळे ही सहाही नातवंडे अगदी माझ्याच वाटणीला आली आहेत असं समजतो. माझे भाऊ, मला मोठा भाऊ मानत असतील की नाही माहीत नाही पण मी या सर्व नातवंडांचा ‘मोठा आजोबा’ आहे. अगदी लहानपणापासून ही मुलं माझ्या अंगाखांद्यावर खेळलेली आहेत. मी या जगातून जाईपर्यंत ही सगळी नातवंडं फक्त माझीच असणार आहेत!” 

सतीश बराच भावुक झाला होता. संध्याकाळ होत आली होती. बाहेर चिमण्यांचा चिवचिवाट वाढला होता. आता निघावं म्हणून मी उठायला लागलो. तेंव्हा सतीशनं थरथरत्या हातानं माझा हात घट्ट धरून ठेवला होता. जणू त्याला मला सोडायचंच नव्हतं. ‘पुढच्या वेळी आल्यावर निवांत भेटेन’, असं म्हणत जड मनाने मी माझ्या मित्राचा निरोप घेतला.    

– समाप्त –

© श्री व्यंकटेश देवनपल्ली

बेंगळुरू

मो ९५३५०२२११२

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆– नक्षत्रे अवतरली पोस्टात..! – ☆ सुश्री पद्मजा फेणाणी जोगळेकर ☆

सुश्री पद्मजा फेणाणी जोगळेकर

? मनमंजुषेतून ?

☆ – नक्षत्रे अवतरली पोस्टात..! – ☆ सुश्री पद्मजा फेणाणी जोगळेकर

 (पोस्टाची संगीतसेवा…)

९ ऑक्टोबर. जागतिक पोस्ट दिनानिमित्त एक सुखद आठवण आपल्या सर्वांबरोबर शेअर करताना खूप आनंद होत आहे…

३ सप्टेंबर २०१४, हा माझ्यासाठी फार सुंदर आणि ऐतिहासिक दिवस होता. ज्या भारतीय पोस्ट खात्याची, ‘जगातील सर्वोत्तम नेटवर्क’ अशी ख्याती आहे, अशा पोस्टाने माझ्या हातून एक मोठ्ठी ‘संगीत सेवा’ करण्याची मला संधी दिली!

भारतरत्न पं. रविशंकर आणि भारतरत्न पं भीमसेन जोशी तसंच सर्व पद्मविभूषण सन्मानप्राप्त – उ. अली अकबर खाँसाहेब, पं. मल्लिकार्जुन मन्सूर, पं. कुमार गंधर्व, पंडिता डी. के. पट्टमल, गंगुबाई हनगल आणि पद्मभूषण उ. विलायत खाँसाहेब अशा संगीतातील थोर विभूतींचे स्टॅम्प्स (पोस्टाची तिकिटे) आज माझ्या हस्ते प्रकाशित झाले आणि या सोहळ्यात सहभागी होण्याची संधी मला मिळाली, हाच मी माझा मोठा सन्मान समजते. 

स्वरसम्राज्ञी ‘भारतरत्न’ लतादीदींच्या पंच्याहत्तरीनिमित्त त्यांच्याच गाण्यांचा ‘तेरे सूर और मेरे गीत’ हा कार्यक्रम मी त्यांना मानवंदना म्हणून जेव्हा अर्पण करायचा ठरवला, त्या वेळी गंमत म्हणजे ‘जाने कैसे सपनों में खो गईं अखियाँ’ तसंच ‘कैसे दिन बीते’ व ‘हाये रे वो दिन’ ही अनुराधा चित्रपटातली तीन गाणी, माझी अत्यंत आवडती गाणी म्हणून सर्वांत प्रथम निवडली गेली… ज्याचे संगीतकार पं. रविशंकरजी होते. नृत्याचे बालपणीच धडे घेतलेल्या रवीजींच्या रक्तात जशी झुळझुळ झर्‍यासारखी लय वाहत होती, तशीच ती त्यांच्या शास्त्रीय सतार वादनात आणि स्वरबद्ध केलेल्या सुगम संगीतातही होती. त्यांनी अनेक सुंदर रागांचे मिश्रण करून राग सादर केले…. उदा. श्यामतिलक या रागातील ‘जाने कैसे सपनों में’ (श्यामकल्याण + तिलककामोद). शास्त्रीय संगीत काय किंवा सुगम संगीत काय, दोन्हींत त्यांनी अत्युच्च दर्जाचं काम केलंय. ‘कैसे दिन बीते’ या गाण्यातली सौंदर्यस्थळं तर, काश्मीरच्या सौंदर्य स्थळांपेक्षा कितीतरी सरस आहेत. उदा. ‘हायेऽऽऽ कैसे दिन बीते, कैसे बीती रतियाँ, पिया जाने ना’ यातील तीव्र आणि शुद्ध या दोन्ही मध्यमांचा (म॑धम॑, मगरेगऽसा) असा उपयोग रवीजींनी अफाट सुंदर केला आहे.

यानंतर मी पं. भीमसेनजींची एक छोटीशी आठवण सांगितली. १९८२ मध्ये मुंबई दूरदर्शनच्या ‘शब्दांच्या पलीकडले’ या कार्यक्रमात लतादीदींनी आणि माझे गुरू पद्मश्री पं. हृदयनाथ मंगेशकर यांनी माझ्याकडून ‘तरुण आहे रात्र अजुनी’ ही गझल गाऊन घेतली होती. हे गाणं ऐकून पं. भीमसेनजींनी त्यांचे संवादिनीवादक, थोर कलावंत पं. अप्पासाहेब जळगावकर यांच्यामार्फत “अप्पा, काल टीव्हीवर बाळच्या कार्यक्रमात ही मुलगी फाऽऽरच सुंदर गायली!” असा मला निरोप पाठवून खूप मोठा आशीर्वाद दिला. वास्तविक शास्त्रीय संगीतात अत्युच्च स्थानावर असूनही, पंडितजींनी माझ्यासारख्या नवोदित गायिकेचं कौतुक केलं. असं कौतुक कोणत्याही कलावंताला कारकीर्दीच्या सुरुवातीला उंच भरारीचं बळ देतं!

अशीच एक सुंदर आठवण उस्ताद अली अकबर खाँसाहेबांची, १९८५ सालची! पंडित रविशंकर आणि उस्ताद अली अकबर खाँसाहेब यांनी संपूर्ण विश्वभर हिंदुस्तानी संगीताचा प्रचार आणि प्रसार केला. यात त्यांचा फार मोठा मोलाचा, सिंहाचा वाटा आहे. मी उस्ताद अली अकबर खाँसाहेबांच्या सॅनफ्रान्सिस्कोमधील अकॅडमीला भेट द्यायला गेल्यावेळी, त्यांनी मला कौतुकानं एक गोष्ट खिलवली…. काय बरं असेल ती चीज? आश्चर्याची गोष्ट म्हणजे… ती होती ‘चिकन जिलेबी’! अगदी वेगळा, पण खरंच खूप छान प्रकार त्यांनी मला प्रेमानं खिलवला..

पं. मल्लिकार्जुनजींची ही आठवण सांगताना मला खूप गंमत आली. मी आणि सुनील जोगळेकर १९८८ मध्ये, साखरपुड्याच्या बंधनात अडकलो आणि त्याच्या दुसर्‍याच दिवशी आम्ही एकत्र बाहेर जायचं ठरवलं. कुठं बरं गेलो असू? काही अंदाज? गेलो ते चक्क वानखेडे स्टेडियममध्ये सुरू असलेल्या, पंडित मल्लिकार्जुनजींच्या मैफिलीला! अवघ्या १५ ते २० मिनिटांत एक राग संपूर्णपणे, सक्षम उभा करण्याची त्यांची हातोटी! ती ‘मैफील’ आम्ही दोघांनीही अतिशय मनापासून, समरसून आनंद घेत ऐकली.

‘स्त्रियांनी गाणं’ हे ज्या काळात शिष्टसंमत नव्हतं, त्या काळात पंडिता डी. के. पट्टमल यांनी, बालपणापासून मैफिली गाजवल्या आणि स्त्रियांच्या गाण्याला उच्च स्थान व दर्जा मिळवून दिला. म्हणूनच मला वाटतं, आजच्या सर्व गायिकांनी त्यांच्याप्रती उतराई व्हायला हवं! मुख्यत्वे, त्यांनी गायलेली कृष्ण भजनं ऐकताना रसिकांचे डोळे नेहमी पाणवायचे, इतकी त्यात भक्ती होती, भाव होता, आवाजात सणसणीत ताकद आणि खर्ज होता, तेज होतं! हीच बाब, पंडिता गंगुबाई हनगल यांच्याविषयी खरी ठरते. नागपूरमध्ये झालेल्या ‘सप्तक’ या संस्थेच्या शास्त्रीय संगीताच्या संमेलनात मी ‘राग बिहाग’ गायले. माझ्यानंतर लगेचच गंगुबाईंचं गाणं होतं. मी स्टेजवरून उतरताना गंगुबाईंना नमस्कार केला. त्यांनी प्रेमभराने, माझ्या पाठीवरून हात फिरवत माझं कौतुक केलं व भरभरून आशीर्वाद दिले!

पं. कुमार गंधर्व यांनी वयाच्या आठव्या वर्षी अनेक दिग्गज गायकांची शैली आत्मसात करून ‘चमत्कार’ सादर केला. पं. कुमार गंधर्व यांची जशी ‘शास्त्रीय’ संगीताला देणगी आहे तशीच त्यांनी ‘लोकसंगीताचा’ उपयोग करून, संगीतबद्ध करून गायलेली निर्गुणी भजनं, ही देखील त्यांचीच ‘किमया’ आहे. तसंच नवनवीन राग, बंदिशी आणि रचना यांची त्यांनी केलेली निर्मिती ही भारतीय संगीताला मिळालेली अमूल्य ‘देणगी’ आहे. उदा. लगनगंधार, शिवभटियार इ…

उ. विलायत खाँसाहेबांचंही असंच भारतीय शास्त्रीय व सुगम संगीतातही मोठं योगदान आहे. ‘जलसाघर’सारख्या सुप्रसिद्ध बंगाली चित्रपटासाठी त्यांनी संगीत दिलं होतं, जे खूप गाजलं. सत्यजित रे यांच्यासारख्या दिग्गज दिग्दर्शकांबरोबर त्यांनी, सुगम संगीतातही अपूर्व असं काम केलं.

संगीत हा आपल्या जीवनाचा अविभाज्य घटक आहे. ज्या मंडळींनी भारतीय संगीतविश्व समृद्ध केलं, तसंच तळागाळातल्या रसिकांपासून ते जगभरातील हिंदुस्थानी अभिजात संगीतावर प्रेम करणार्‍या रसिकांचं आयुष्यही समृद्ध केलं, अशा या सर्वश्रेष्ठ संगीततज्ज्ञांच्या नावे आज पोस्टाची तिकिटे ‘प्रकाशित’ झाली.

आज पोस्ट खात्याने अशा दिग्गजांचं स्मरण करून त्यांना मानवंदना दिली, ही संगीत क्षेत्रासाठी कितीतरी आनंदाची नि अभिमानाची गोष्ट आहे! त्यासाठी पोस्ट खात्याचं अभिनंदन करावं तेवढं थोडंच आहे! आपल्या भारतीय एकशे चाळीस कोटी जनतेला आपण शासकीय खात्यातील सर्वांत चांगलं खातं कोणतं? हा प्रश्न विचारला तर, एकमुखानं चांगलं बोललं जाईल, ते म्हणजे केवळ ‘पोस्टखात्या’बद्दलच!

मनीऑर्डर, instant money transfers, ATM, बचत खातं, पोस्टाचा बटवडा, इ. प्रचंड मोठी जबाबदारी पोस्टखात्यावर आहे. इतका जनतेचा आणि सरकारचाही पोस्टावर विश्वास आहे.

आजच्या इंटरनेट आणि एसएमएसच्या युगात, पोस्टानं आलेलं आणि हाती लिहिलेलं पत्र काय आनंद देऊन जातं, हे त्या पत्र घेणार्‍याला आणि वाचणाऱ्यालाच ठाऊक! गावोगावी तर अशिक्षितांसाठी पत्र वाचणारा आणि लिहूनही देणारा ‘पोस्टमन’ म्हणजे देवदूतच जणू!

आजही माझ्या ‘बालमोहन विद्यामंदिर’ या शाळेत मातृदिनाला आपल्या आईला, तिच्याबद्दलचं ऋण व्यक्त करताना विद्यार्थी अन्तर्देशीय पत्र / पोस्ट कार्ड लिहितो. ते पत्र वाचताना, प्रत्येक आईला किती अमाप आनंद होत असेल?

आज मला २७ वर्षांपूर्वीची आसामच्या, कोक्राझारमधील चाळीस हजार रसिकांसमोर, मी सादर केलेली शास्त्रीय संगीताची मैफिल आठवते. त्यात एक विशेष व्यक्ती होती आणि ती म्हणजे शिलाँगचे ‘पोस्टमास्टर जनरल’! त्यांची नी माझी कधीच भेट झाली नाही परंतु त्यानंतर, त्यांचं मला कौतुकाचं एक सुरेख पत्र आलं! त्यावर केवळ पत्ता होता…. पद्मजा फेणाणी, माहीम, मुंबई. आणि…… चक्क पत्र पोहोचलं! त्यावेळी “तू स्वतःला काय महात्मा गांधीजी समजतेस?” अशी घरच्यांनी गंमतीने माझी चेष्टा केली. त्या काळात गूगल मॅप नसतानाही पोस्टाची ही विश्वासार्हता आणि चोख काम…. याचं कौतुक करावं तेवढं थोडंच!

बालपणी आम्ही भावंडं एकत्र खेळताना, “मोठेपणी तू कोण होणार?” हा प्रश्न विचारला जाई. कुणी कंडक्टर, कुणी पोलीस, कुणी काही सांगे. पण स्टॅम्प्स गोळा करण्याचा छंद असलेला माझा एक चुलत भाऊ म्हणाला, “मी कोण होणार ठाऊक नाही, पण मी असं काम करीन की, माझ्या नावे पोस्टाचं तिकीट कधीतरी निघेल!” यावरून ‘स्टॅम्प’वर फोटो असण्याचं महत्त्व आणि प्रतिष्ठा कळते! या जन्मात, आम्ही राम आणि कृष्ण काही पाहिले नाहीत, परंतु संगीतातल्या अशा या सर्व दिग्गज मंडळींना मी पाहिलं, त्यांचं संगीत अभ्यासलं, त्यातल्या काहींचा आशीर्वादही लाभला, हे मी माझं भाग्यच समजते! या व्यक्ती स्टॅम्प्सच्या रूपाने आम्हाला व पुढच्या पिढ्यांना कायम स्फूर्ती देत राहतील, हे फार मोठं कार्य पोस्टाने केल्याबद्दल आणि माझ्या हस्ते या स्टॅम्प्सचे लोकार्पण करण्याचा मान मला दिल्याबद्दल, मी सर्वांचे मनःपूर्वक आभार मानले.

©  सुश्री पद्मजा फेणाणी जोगळेकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ या भाळांवर कुंकवाचा सूर्य रेखूया… (aathawi माळ) – ☆ श्री संभाजी बबन गायके ☆

श्री संभाजी बबन गायके

? इंद्रधनुष्य ?

☆या भाळांवर कुंकवाचा सूर्य रेखूया… (सातवी माळ) – जन्मदात्री सैन्याधिकारी….लेफ़्टनंट श्वेता शर्मा ! ☆ श्री संभाजी बबन गायके 

मुजफ्फरपुर एक्सप्रेस आपल्या सुसाट वेगात धावते आहे. दुसरे स्टेशन येण्यास आणखी बराच वेळ लागणार होता….आणि एकीच्या पोटातलं बाळ आत्ताच जन्म घ्यायचा यावर हटून बसलं. रेल्वेच्या त्या डब्यात बहुसंख्य पुरूषांचाच भरणा आणि ज्या महिला होत्या त्या भांबावून गेलेल्या. त्या फक्त धीर देऊ शकत होत्या. प्रसुतिकळांनी जीव नकोसा वाटू लागलेली ती आकांत मांडून बसलेली. अवघड या शब्दाची प्रचिती यावी अशी स्थिती….!

त्याच रेल्वे गाडीत प्रवासात असलेल्या लेफ़्ट्नंट श्वेता शर्मा यांचेपर्यंत हा आवाज पोहोचला ! आणि अशा प्रसंगी काय करायचं हे श्वेता यांना अनुभवाने आणि प्रशिक्षणामुळे माहीत होतं.

श्वेताजींचे आजोबा बलदेवदास शर्मा आणि पणजोबा मुसद्दी राम हे दोघेही भारतीय लष्करात सेवा बजावून गेलेले. वडील विनोदकुमार शर्मा आय.टी.बी.पी अर्थात इंडो तिबेट बॉर्डर पोलिस मध्ये डेप्युटी कमांडत पदावर कार्यरत आहेत. म्हणजे मागील तिन्ही पिढ्या देशसेवेत.  श्वेता यांनी काहीही करून याच क्षेत्रात जायचं ठरवलं. भारतीय सेना एक महासागर आहे. इथं ज्याला खरंच इच्छा आहे, तो हरतऱ्हेने देशसेवा करू शकतो. आणि प्रत्येक सेवेकऱ्यास गणवेश आणि सन्मान आहे.

वैद्यकीय सेवा हा या सेनेमधला एक मोठा आणि महत्त्वाचा विभाग आहे. डॉक्टर म्हणून तर सेनेत खूप महत्त्वाची जबाबदारी दिली जाते. आपल्या मराठी माणसांचा अभिमान असणाऱ्या डॉ.माधुरी कानिटकर मॅडम तर लेफ्टनंट जनरल पदापर्यंत पोहोचल्या होत्या. पण ज्यांना डॉक्टर होणं काही कारणांमुळे शक्य होत नाही, अशा महिला नर्सिंग असिस्टंट म्हणूनही कमिशन्ड होऊ शकतात. पुरूषांनाही ही संधी असतेच. आणि नर्सिंग असिस्टंट अर्थात वैद्यकीय परिचारिका साहाय्यकांनाही सन्मानाची पदे मिळतात.

घराण्याचा लष्करी सेवेचा वारसा पुढे नेण्यासाठी श्वेता शर्मा यांनी मग परिचर्येचा मार्ग निवडला. मागील वर्षी मार्च २०२२ मध्ये त्यांना ‘सोल्जर नर्सिंग असिस्टंट’ म्हणून नेमणूक मिळाली आणि त्यांनी लष्करी गणवेश परिधान केला. बारावी शास्त्र शाखा आणि रसायनशास्त्र, जीवशास्त्र यांसारख्या विषयातील उत्तम गुण, उत्तम शारीरिक पात्रता, या गोष्टी तर गरजेच्या आहेतच. परंतु भारतभरातून या पदासाठी मोठी स्पर्धा असते. यातून पार पडावे लागते. मेहनत तर अनिवार्य. श्वेता यांनी २०१७ मध्येच यासाठीची आवश्यक पात्रता प्राप्त केलेली होती. त्या सध्या हमीरपूर हवाईदल केंद्रात कार्यरत आहेत.असो.

लेफ्टनंट श्वेता यांनी त्यावेळी रेल्वेत घडत असलेल्या त्या परिस्थितीचे गांभीर्य ताबडतोब ओळखले. डब्यातील गर्दी हटवली. ज्यांना मदत करण्याची इच्छा आहे त्यांना सूचना दिल्या. महिलांना मदतीला घेतले. आणि हाती काहीही वैद्यकीय साधनं नसताना केवळ अनुभव, वैद्यकीय कौशल्य आणि कर्तव्य पूर्तीची अदम्य इच्छा, या बळावर धावत्या रेल्वेगाडीत एका महिलेची सुखरूप सुटका केली…एका महिलेचा आणि बाळाचा जीव वाचवला ! एका सैनिक अधिका-याच्या हस्ते या जगात पदार्पण करणारे ते बालक सुदैवीच म्हटले पाहिजे. बाळ आणि बाळंतीण सुखरूप आहेत !

एका सैनिक मुलीस अशा प्रकारे हा पराक्रम करण्याची संधी मिळाली आणि तिने ती यशस्वीही केली. होय, त्या परिस्थितीत हे कार्य करणे याला पराक्रमच म्हटले पाहिजे. नवरात्राच्या या दिवसांत माता दुर्गाच सुईण बनून धावून आली असे म्हटले तर वावगे ठरेल काय?

नर्सिंग ऑफिसर लेफ्टनंट श्वेता शर्मा…आम्हांला आपला अत्यंत अभिमान वाटतो. परिस्थिती गंभीर तर सेना खंबीर याची तुम्ही प्रचिती आणून दिलीत. नारीशक्तीला सलाम. …. आपल्यामुळे देशातील असंख्य तरुणी प्रोत्साहित होतील आणि देशसेवेच्या याही मार्गाचा अवलंब करतील अशी आशा आहे.

(नवरात्रीत नऊ कथा कशा लिहायच्या ही चिंता नाही. अशा अनेक दुर्गा आहेत आसपास…त्यांच्याबद्द्ल लिहायला अशा शेकडो नवरात्री अपु-या पडतील. सकारात्मक गोष्टी सर्वांना समजायला हव्यात म्हणून हा अट्टाहास.)

© श्री संभाजी बबन गायके 

पुणे

9881298260

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ अन देवी प्रसन्न हसली… लेखक – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सौ. दीप्ती गौतम ☆

📖 वाचताना वेचलेले 📖

☆ अन देवी प्रसन्न हसली… लेखक – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सौ. दीप्ती गौतम 

तिने परत एकदा आरसा

न्याहाळला, नथ पक्की दाबली

आणि पदर सावरून

ती हॉल मध्ये आली.

तो सुद्धा कुर्ता घालून तयार

होऊन बसला होता.

“अरे व्वा …!!

सुरेख तयार झाली आहे गं ..!!

लग्नानंतरचं पहिलं नवरात्र म्हणून यावर्षी मी खास ही

गर्भरेशमी पैठणी आणली आहे देवीसाठी.

यानी ओटी भर बरं का.

बाकी तांदूळ, नारळ आणि

ओटीचं सगळं सामान या

पिशवीत ठेवलंय.

जोड्याने जाऊन या दर्शनाला.”

सासूबाई नव्या सुनेला म्हणाल्या.

त्यांच्या उत्साहाचं तिला कौतुक वाटलं.

        

दोघे मंदिराजवळ पोहोचले

तेव्हा ओटी भरायला आलेल्या

बायकांची चांगलीच गर्दी झाली

होती. शिवाय पुरुषांची पण

दर्शनाची वेगळी रांग होती.

तिला रांगेजवळ सोडून तो

गाडी पार्क करायला गेला.

 

रस्त्याच्या कडेला फुलांची,ओटीच्या

सामानाची बरीच दुकानं होती,

तिने आठवणीने सोनचाफ्याची वेणी

देवीसाठी घेतली, 

तिच्या घमघमणाऱ्या गंधाने

तिला आणखीनच प्रसन्न वाटलं.

तिने स्वतःच्या केसात चमेलीचा

गजरा माळला. हिरवाकंच चुडा

सुध्दा तिने ओटीच्या पिशवीत

टाकला.

एव्हाना तोही दर्शनाच्या रांगेत

सामील झाला होता. 

ती ओटी भरणाऱ्या बायकांच्या

रांगेत जाऊन उभी राहिली.

आई सोबत लहान पणापासून

नवरात्रीत देवीच्या दर्शनाला ती

नेहमी जायची. तिथल्या गर्दीचा

कंटाळा यायचा खरं तर.

पण वर्षातून एकदाच गावाबाहेरच्या

देवीच्या मंदिरात तिला जायला

आवडायचं सुध्दा.

ती आईला म्हणायची,

“आई या मंदिरात ओटीच्या

नावाखाली किती कचरा

करतात गं या बायका.

देवीला पण राग येत असेल बघ.

तिचा चेहरा नं मला वैतागलेला

दिसतो दरवर्षी.”

आई नुसती हसायची. 

आईच्या आठवणीत ती

हरवून गेली थोडा वेळ.

 

तेवढ्यात आपला पदर कोणीतरी ओढतअसल्याचं

जाणवलं तिला.

काखेला खोचलेलं पोर घेऊन एक डोंबारिण तिला पैसे मागत होती. रस्त्याच्या पलीकडे डोंबाऱ्याचा खेळ रंगात आला होता. म्हणून त्याची बायको पैसे मागत मागत रांगेजवळ आली होती. तिने अंगावर

चढवलेला ब्लाऊज आणि

परकर पार विटलेला,

फाटलेला होता .

तिच्या मागे उभी असलेली

बाई तिच्यावर खेकसलीच, 

“एऽऽऽऽ, अंगाला हात लावू नको गं.”

 

तिने पैसे काढेपर्यंत डोंबरीण पैसे मागत बरीच पुढे निघून गेली.

हळूहळू रांग पुढे सरकत होती.

आता तिची सात आठ वर्षाची मुलगी सुद्धा येऊन पैसे मागत होती.

 

शेवटी एकदाची ती

गाभाऱ्याच्या आत जाऊन

पोहोचली.

पुजारी खूप घाई करत होते. तिने पटकन समोरच्या ताटात

पिशवीतली पैठणी ठेवली,

मग घाईने तिने त्यावर नारळ ठेवले, त्याला हळद कुंकू लावून तिने ओटीचे सगळे तांदूळ, हळकुंड , सुपारी, बदाम ,खारका,

नाणे ओंजळीने ताटात ठेवले.

पुजारी जोरजोरात

“चला,  चलाऽऽऽ ….” ओरडत होते.

देवीच्या उजव्या बाजूच्या

कोपऱ्यात नारळाचा खच पडला होता, तर डाव्या बाजूला पुजारी ओटीच्या साड्या जवळ जवळ

भिरकावत होते.

एवढ्या गोंधळात तिने देवीच्या मुखवट्याकडे क्षणभर पाहिले,

आजही तिला देवी त्रासलेली वाटत होती.

 

मग हात जोडून ती ओटीचं

अख्खं ताट घेऊन बाहेर आली. आणि तिने मोकळा श्वास घेतला.

 

तोसुद्धा दर्शन घेऊन तिच्या

जवळ आला.  “काय गं?

ओटी घेऊन आलीस बाहेर ?”त्याने विचारलं. 

 

 “तू थांब इथे.

मी मला दिसलेल्या देवीची

ओटी भरून येते.”

असं म्हणून ती ताट घेऊन

भराभर पायऱ्या उतरून खाली रस्त्यावर आली,

झाडाच्या सावलीत आडोशाला तिला डोंबारीण दिसली,

तिच्या बाळाला ती छातीशी घेऊन पाजत होती.

“दीदी, हलदी कुमकुम

लगाती हूं आपको.”असं म्हणून तिने तिला

ठसठशीत कुंकू लावले.

ताट बाजूला ठेवून तिने

तिची ओटी भरली.

सोबत सोनचाफ्याची वेणी

आणि हिरव्या बांगड्यांचा चुडापण दिला. मग तिने तिला नमस्कार केला. 

डोंबारणीचं पोर तिच्या कुशीत झोपून गेलं होतं. 

तेवढ्यात तोही तिथं आला

आणि त्याने फळांची आणि खाऊची पिशवी तिच्या हातात दिली. ती म्हणाली,”ये लो दिदी, छोटू और उसकी बहन

के लिये.”डोंबारीण परत एकदा डोळ्यांनी हसली.

ती पैठणीवरून हळुवारपणे हात फिरवू लागली.

तिच्या चेहऱ्यावरचे आनंदी भाव वेचून ती दोघं परत मंदिरात आले.

आता गर्दी बरीच कमी झाली होती. गाभाऱ्यात जाऊन दोघांनी डोळे भरून देवीचे दर्शन घेतले.

        

तिला आता देवीचा मुखवटा खूप प्रसन्न वाटला.

इतक्यात गाभारा

सोनचाफ्याच्या गंधाने दरवळून गेला. त्या दोघांच्या पाठीमागे

डोंबारीण तिच्या मुलांसोबत आणि नवऱ्या सोबत पैठणी

गुंडाळून , हिरवा चुडा आणि

वेणी घालून देवीचं दर्शन

घ्यायला आली होती.

देवीचा मुखवटा तेजाने

आणखीनच उजळून

निघाला होता.

लेखक – अज्ञात 

संग्राहिका : सौ. दीप्ती गौतम

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈