हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आत्मतत्व ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – आत्मतत्व ? ?

आत्मतत्व है तो

देह प्राणवान है,

बिना आत्मतत्व

देह निष्प्राण है..,

दो पहलुओं से

सिक्का ढलता है,

परस्परावलंबिता से

जगत चलता है,

माना आत्मऊर्जा से

देह प्रकाशवान है पर

देह बिना आत्म भी

दिवंगत विधान है..!

© संजय भारद्वाज 

(प्रात: 5.56 बजे, 7.12.19)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #212 ☆ भावना के दोहे … ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  भावना के दोहे…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 212 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे …  डॉ भावना शुक्ल ☆

हवाएं धीमी बह रही, बजे मधुर संगीत।

नई कहानी वो कहे, है जीवन की रीत।।

कलियां कैसे मिल रही, जैसे मिलती बाह।

 कली खिली है ह्रदय में, है आपस में चाह।।

पत्ते – पत्ते झर रहे, झरता है संगीत।

सुख -दुख के वो गा रहे, गाए प्यार का गीत।।

हौले- हौले चल रही, पकड़े ठंडक हाथ।

मौसम करवट बदलता, ठंडी हवा के साथ।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #194 ☆ संतोष के दोहे – शीत ऋतु ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे  – शीत ऋतुआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 194 ☆

☆ संतोष के दोहे  – शीत ऋतु ☆ श्री संतोष नेमा ☆

सर्द हवाएं कह रहीं, बच कर रहिये आप

उचित समय जब भी मिले, धूप लीजिये ताप

वृद्ध सदा बच कर रहें, खून जमे तत्काल

बी पी, हृदयाघात में, करे ठंड बेहाल

काँटों सी चुभने लगी, खूब कपाती ठंड

लगती है जैसे नियति, बाँट रही हो दंड

दांतों का चुम्बन बढ़ा, लाली लिए कपोल

आँखों में है धुंध सी, वदन रहा अब डोल

पिय से कहती रात जब, सदा रहो तुम पास

तड़का लगता देह का, तब बुझती है प्यास

ठंडी से ठंडक मिले, बढ़े मिलन की आस

ज्ञानी कहते ठंड में, रहो पिया के पास

जिनको गर्मी में रहा, रवि से बहुत मलाल

वही ठंड में कर रहे, उसका बहुत खयाल

उठकर देखो सुबह से, लेते सूरज- ताप

लेकर प्याली चाय की, पेपर बांचें आप

श्रमिक कभी ना सोचता, क्या गर्मी क्या ठंड

रोजी-रोटी के लिए, सहे नियति के दंड

पूस माह की ठंड में, रहें न पिय से दूर

प्रेम बरसता उस घड़ी, खुशी मिले भरपूर

कहता है संतोष अब, तापो खूब अलाव

पर रक्खो सबके लिए, दिल में सदा लगाव

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “विवाह मंगल गीत…” ☆ श्री सुनील देशपांडे ☆

श्री सुनील देशपांडे

☆ “विवाह मंगल गीत…” ☆ श्री सुनील देशपांडे ☆

मंगलमय हो, हर दिन हर क्षण, मंगलमय हो  जीवन सारा

आज सभी हम आशिष देते, शुभमंगल सहजीवन सारा । 

बरसे आग किसीके मुखसे,

दूजा मुख बरसाये पानी।

हाथ एकका बढे पोछने,

ऑंख दूजेकी बरसे पानी।

सहजीवन का अर्थ यही है, आशिष साथ सदा है हमारा।

शुभमंगल सावधान बोलो, मंगलमय हो  जीवन सारा

दिन अच्छे हो या बूरे हो,

आते जाते रहते ही है ।

कसकर थामो हाथ दूजेका,

सहजीवन ये तब टिकता है।

जीवन की है यही कहानी, घर घर मे है यही नजारा।

शुभमंगल सावधान बोलो, मंगलमय हो  जीवन सारा।

नफरतका जब त्याग करे तो,

मनमें प्यार ही प्यार रहेगा।

क्रोध जहरको पी सकते तो,

मनमे अमृत ही बरसेगा।

सावधचित्त सुनो ये जुबानी, सुखही सुख बरसे तब सारा।

शुभमंगल सावधान बोलो, मंगलमय हो  जीवन सारा

मंगलमय हो, हर दिन हर क्षण, मंगलमय हो  जीवन सारा

आज यहीं हम चाहे हर दिन, शुभमंगल  सहजीवन सारा।

© श्री सुनील देशपांडे

मो – 9657709640

email : [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




सूचना/Information ☆ आचार्य भगवत दुबे जी – गायत्री शिखर सम्‍मान से सम्मानित – अभिनंदन  ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

? आचार्य भगवत दुबे जी – गायत्री शिखर सम्‍मान से सम्मानित – अभिनंदन  ?

डॉ. गायत्री तिवारी स्‍मृति समारोह – समाजतंत्र की कहानियॉ

जबलपुर । प्रतिष्ठित साहित्‍यकार 50 से अधिक कृतियों के रचयिता, महा‍कवि आचार्य भगवत दुबे की साहित्यिक साधना का स्‍तवन करते हुए उन्‍हें डॉ. ‘गायत्री शिखर सम्‍मान’ से अलंकृत किया गया। अवसर था ‘पाथेय साहित्‍य कला अकादमी’ के तत्‍वावधान में आयोजित कथाकार डॉ. गायत्री तिवारी स्‍मृति विचार संगोष्‍ठी एवं सम्‍मान समारोह का।



समारोह के मुख्‍य अतिथि  डॉ.कृष्‍णकांत चतुर्वेदी थे।अध्यक्षीय मंगलकामनाये डॉ. राजकुमार ‘सुमित्र’ ने व्यक्त की। विशिष्‍ट अतिथि  साधना उपाध्‍याय, अशोक मनोध्या, प्रतुल श्रीवास्‍तव थे।

वक्‍ताओं ने कहा कि समाजतंत्र से सम्बद्ध ऐसा साहित्‍य जो समाज के प्रत्‍येक वर्ग का प्रतिनिधित्‍व करता है, वही सार्थक साहित्‍य होता है। डॉ.गायत्री तिवारी ने अपनी कहानियां एवं कविताओं में इस पक्ष का विशेष ध्‍यान रखा। प्रारंभ में संयोजक राजेश पाठक ‘प्रवीण’ ने आयोजन की पृष्‍ठभूमि पर प्रकाश डाला।

इन संस्‍थाओं का हुआ सम्‍मान

समारोह में आचार्य भगवत दुबे का स्‍तवन करते हुए नगर में राष्‍ट्रीय, अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर क्रियाशील संस्‍था गुंजनकला सदन, वर्तिका, मंथनश्री, त्रिवेणी परिषद, अनेकांत, जागरण साहित्‍य समिति, हिन्‍दी लेखिका संघ, सृजन पथ, आभा साहित्‍य संघ, गूँज अंतस, सशक्‍त हस्‍ताक्षर, बुन्‍देली संस्‍कृति परिषद अंतस एवं अपनी डांस फेमिली को सम्‍मानित किया गया। यह सम्‍मान अतिथियों के साथ डॉ.भावना शुक्‍ल (नोयडा), प्रेमनारायण जी  (नोयडा), श्रीमती निर्मला तिवारी, यशोवर्धन पाठक, डॉ.मोहिनी तिवारी, आराध्‍या प्रियम, विजय जायसवाल, संतोष नेमा सहित अन्‍य ने प्रदान किया। संचालन राजेश पाठक प्रवीण एवं आभार डॉ. हर्ष तिवारी ने व्‍यक्‍त किया।समारोह में अरुण श्रीवास्तव, संतोष नेमा, राजेंद्र मिश्रा, आशुतोष तिवारी, मिथिलेश नायक, चंद्र प्रकाश वैश्य, सुभाष शलभ रत्न ओझा, सिद्धेश्वरी सराफ़, प्रभा विश्वकर्मा शील की सहभागिता की सहभागिता रही।

 साभार – श्री संतोष नेमा “संतोष” 

? ई-अभिव्यक्ति की ओर से इस अभूतपूर्व सम्मान के लिए आचार्य भागवत दुबे जी का अभिनंदन एवं हार्दिक बधाई ?

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ “डोळे —” ☆ सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे ☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ “डोळे —” ☆  सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे  ☆

कोणी कोणी म्हणती मला

रे आंधळाच तू कसा असा

      नाहीत डोळे तरीही तू रे

      आनंदाने जगशी कसा ….

 

कळेना मला हसू की रडू

भाबड्या अशा प्रश्नाला

        काय जहाले नसले डोळे

        विचारीत मी सतत मनाला ….

 

वात्सल्याचा फिरतो जेव्हा

पाठीवरती कधी तो हात

          पाठच माझी होते डोळे

          ओलावती जे आतल्या आत ….

 

मित्रत्वाचा जेव्हा मिळतो

हातामध्ये माझ्या हात

            हातच माझे होती डोळे

            आनंदाने ओसंडत ….

 

माथ्यावरती ठेवे कोणी

आशिर्वचाचा जेव्हा हात

             माथ्यावरती किलकिल डोळे

             कृतज्ञतेने भरून जात ….

 

स्पर्शाच्या डोळ्यांनी पहातो

खळबळ किती ती मनामनातली

              भेटे कधी तो शुद्ध स्नेह अन

              कुठे विखारी आग आतली ….

 

कानांच्या डोळ्यांनी दिसे ती

अंदाधुंदी जगतामधली

               वाटे हे तर बरेच झाले

               पापणी आहे मम मिटलेली ….

 

डोळे असुनी त्यावर झापड

किंवा कोणी बांधे पट्टी

                वा करिती ती डोळेझाक

                कोठे गेली सम्यक दृष्टी ? ….

 

डोळस कैसे त्यासी म्हणावे

आंधळेच हे असुनी डोळे

                चेहेऱ्यावरती नसले तरीही

                सहस्त्र मजला ‘डोळस’ डोळे ….

 

सगुण मूर्त जरी परमेशाची

पाहू न शकतो डोळे भरुनी

                निराकार तो निर्गुण ईश्वर

                प्रकटे नित मम हृदय-लोचनी …….

©  सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विजय साहित्य # 202 ☆ अलौकिक ठेवा ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 202 – विजय साहित्य ?

☆ अलौकिक ठेवा ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते  ☆

दत्त नाम जप

अवधुत छाया

निरंकारी माया

चिरंतन…१

 

दत्त उपासना

गुरू कृपा‌ योग

दुःख दैन्य भोग

दुर  करी…! २

 

 

दत्त दिगंबर

त्रिगुणांचा स्वामी

पाहू अंतर्यामी

तिन्ही देव…! ३

 

ब्रम्हा,विष्णू ,शिव

सगुण साकार

संकटी आधार

दत्तनामी…! ४

 

कामधेनू ,वेद

डमरू त्रिशूल

अहंकारी धूल

नष्ट करी…! ५

 

भूत प्रेत बाधा

नष्ट करी नाम

अंतरीचे धाम

दत्तात्रय…! ६

 

गुरू चरीत्राचा

अलौकिक ठेवा

घडे नित्य सेवा

पारायणी…! ७

 

कविराज चित्ती

अभंगाचा‌ संग

भक्तीभाव रंग

सेवाव्रती…! ८

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

हकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – विविधा ☆ स्त्री पुरुष समानता… ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल ☆

सुश्री वर्षा बालगोपाल 

? विविधा ?

☆ स्त्री पुरुष समानता? ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल 

युगानु युगे चाललेला वाद स्त्रीला दिलेली कमीपणाची वागणूक चाकोरीबद्ध राहण्याची शिक्षा तिच्या क्षमतेबद्दलची गृहीते तिच्यावरच लादलेली काही कार्ये यामुळे स्त्री आणि पुरुष असा भेदभाव युगानू युगे होत आलेला आहे.

पण आता शिक्षित झालेली स्त्री तिने सिद्ध केलेली तिची क्षमता सगळ्या क्षेत्रात केलेली उत्तुंग कामगिरी यामुळे स्त्री आणि पुरुष यांची समानता सिद्ध झालेली आहे आणि सगळीकडे 50% स्त्रियांना आरक्षण दिलेले आहे.

पण म्हणून स्त्री पुरुष समानता आली आहे असे म्हणता येईल का? मुळात समानता म्हणजे काय अभिप्रेत आहे? स्त्रियांनी बिनधास्त पणे पुरुषांच्या खांद्याला खांदा लावून काम करणे;पुरुष जी जी कामे करतात ती ती कार्यें स्त्रियांनी करून दाखवणे म्हणजे स्त्री पुरुष समानता झाली का?

अहो एका शरीराचे असलेले अवयव देखील आपण डावे उजवे भेद करून समान मानत नाही मग दोन भिन्न प्रकृतीच्या जीवांची बरोबरी असली पाहिजे हा आग्रह का?

नाण्याच्या दोन भिन्न बाजू कधी समान होतील का? एक प्रवाह असलेले नदीचे दोन काठ कधी एकत्र येतील का? लोहचुंबकाचे दोन ध्रुव आहेत तेच एकत्र येतात का नाही? समान ध्रुव एकत्र येऊच शकत नाहीत. मग अशा वेळी समाजातील दोन घटक स्त्री पुरुष यामधे समानता आणण्याचा अट्टाहास का? कितीही प्रयत्न केले तरी तशी समानता येईल का?

सृजनासाठी समाजातील या दोन घटकांची बरोबरीची भागीदारी असली तरी स्त्री ही जास्त सामर्थ्यशाली जास्त सहनशील असल्यामुळे कितीतरी हाडे एकत्र फ्रॅक्चर झाल्यावर जेवढ्या वेदना होतील तेवढ्या प्रसव वेदना हसत झेलण्याची ताकद स्त्रीमध्येच बहाल केलेली असल्याने अपत्यांना जन्माला घालण्याचे काम स्त्रियांकडे दिलेले आहे ते त्यांचेच राहणार.

स्त्रिया जशी पुरुषांची कामे करतात तशी पुरुषही स्त्रियांची कामे करू लागले आहेत म्हणून हॉटेलमध्ये जेवण करायला आचारी पुरुष असतात. आई वडील दोघेही कमावते असल्याने मुलांकडे लक्ष पुरुषही देतात. मुलगी माहेरचे सर्व बंध सोडून सासरी येते तसें जबाबदारी मुळे मुलेही आई वडील व घरचे बंध सोडून दूर दूर कामानिमित्ते जातात हे एक प्रकारे सासरी जाण्यासारखेच आहे.

याचाच अर्थ काही कामे स्त्रिया करू लागल्या आहेत तर काही पुरुष. नेहमीच्या रूढी परंपरा सोडून वावरण्यात रहाण्यात स्त्री पुरुष समानता आलेली आहे.

पण अनादी काळापासून स्त्रीला लाभलेला मातृत्वाचा अधिकार कोणीच हिसकावून घेऊ शकत नसल्यामुळे स्त्री पुरुष समानता असे म्हणणे चुकीचेच ठरणार आहे. या बाबत स्त्री ही अग्रगण्याच राहणार.

जसे एक नमस्कार करायला दोन हात लागतात ;एक चाल चालायला दोन पाय लागतात तसेच समाज रचनेसाठी स्त्री पुरुष दोन्ही घटक आवश्यक असतात त्यात कमी जास्त महत्वाचा असे भेद होऊच शकत नाहीत. त्यामुळे स्त्री ही जास्त श्रेष्ठ असली तरी ती स्वतः तसे समजतं नाही हा श्रेष्ठ गुण तिच्याकडून घेऊन दोन्ही घटकांनी एकत्र काम केले तर नक्कीच विधायक कार्यें पार पडतील यात शंकाच नाही.  

© सुश्री वर्षा बालगोपाल

मो 9923400506

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ पश्चात्ताप… – भाग – २ ☆ श्री दीपक तांबोळी ☆

श्री दीपक तांबोळी

? जीवनरंग ?

☆ पश्चात्ताप… – भाग – २ ☆ श्री दीपक तांबोळी

(मागील भागात आपण  पहिले – पण एवढं सगळं करायला तुला वेळ तरी कसा मिळायचा?” नरेशने विचारलं – आता इथून पुढे)

“आम्हांला वेळ मिळत नाही असं म्हणणारे तासंतास टिव्ही बघत बसलेले असतात नाहीतर मोबाईलवर व्हाँट्सअप,फेसबुकमध्ये बुडून गेलेले असतात.मी त्याऐवजी वेळेचं मँनेजमेंट केलं.अर्थात खुप स्ट्रिक्टली नाही कारण मग आपण जे करतो त्यातला आनंद हरवून जातो.आणि मी जे करत होतो ते आनंदासाठी.मला काही त्यात करीयर करायचं नव्हतं”

नरेशला आपलं आयुष्य आठवलं.नोकरी एके नोकरी आणि नोकरी दुणे घर याशिवाय त्याला दुसरं काही माहित नव्हतं.अफाट पैसा कमवायचा मग तो कोणत्याही मार्गाने असो आणि तीन पिढ्या बसून खातील अशी प्राँपर्टी जमवायची हे त्याच्या आयुष्याचं एकमेव ध्येय होतं.हे ध्येय साधतांना आपण कधीही न मिळणारे आनंदाचे क्षण गमावतोय हे कधी त्याच्या लक्षात आलं नाही.निवृत्त झाल्यावर आपल्याला भरपूर वेळ असेल.तेव्हा जे करायचं राहून गेलंय ते करता येईल असं त्याचं मत होतं.

” मीही आता ठरवलंय.उरलेलं आयुष्य मजेत घालवायचं” नरेश म्हणाला ” आताशी तर आपण साठी गाठलीये.अजून दहा वर्ष तरी काही होत नाही आपल्याला”

” तसं झालं तर सोन्याहून पिवळं.पण आयुष्य हे क्षणभंगूर आहे असं ग्रुहीत धरुनच मी माझं जीवन जगलो”

सुनीलच्या या म्हणण्यावर नरेश जोरात हसून म्हणाला

” डोंट वरी यार.तुही काही लवकर मरत नाहीस.आता हे जग मला दाखवण्याची जबाबदारी तुझी.बरं ते जाऊ दे.तुझी मुलं काय करताहेत?लग्नं झाली असतील ना त्यांची?”

“हो तर! मुलगी डेंटिस्ट आहे आणि मुलगा चार्टर्ड अकाउंटंट. मुलगा माझ्याच सोबत रहातो आणि मुलगीही याच शहरात असल्याने नातवंडासोबत माझे दिवस झकास चालले आहेत”

नरेशचा चेहरा पडला.वर्षभरापासून बंगलोरला रहाणारी मुलं घरी न आल्याने नातवंडाशी त्याची भेट आजकाल व्हिडीओ काँलवरच व्हायची.

“घरबीर बांधलंस की नाही?”त्याने उत्सुकतेने सुनीलला विचारलं

” हो तर!तुझ्यासारखा बंगला नाहीये माझा पण एक टूबीएचकेचं घर आहे.मुलगा चांगला कमावतोय.तो बांधेल मोठा बंगला पुढे. शेवटी त्यालाही काहीतरी स्वकष्टाची प्राँपर्टी केल्याचं समाधान मिळायला हवं ना!तुझी कार मात्र झकास आहे हं”

“तू केव्हा पाहिलीस?”नरेश आनंदाने फुलून म्हणाला

“मगाशी तू आलास तेव्हा मी बाहेरच होतो”

“अच्छा!लग्न लागल्यावर चल.तुम्हांला गाडीतून घरी सोडतो”

“अरे मी आणलीये ना माझी गाडी.तुझ्या गाडीइतकी आलिशान नाहिये पण ठिक आहे.माझं काम भागतंय तिने”

नरेशचा चेहरा पडला.”अरेच्चा!आपण  कमावलेल्या सगळ्या गोष्टी सुनीलकडेसुध्दा आहेत.मग आपण एवढा गर्व का करतोय?”त्याच्या मनात विचार आला.सुनीलला कमी लेखून आपण मोठी चुक करतोय हेही त्याच्या लक्षात आलं. तेवढ्यात नवरदेवाची मिरवणूक आली.अर्ध्या तासात लग्न लागलं.सुनीलला पाहून बरेच लोक त्याला आनंदाने भेटत होते.तरुण मुलंमुली त्याच्या पाया पडत होते.सुनीलला पाहून नवरीला खुप आनंद झाला.त्याच्या पाया पडून ती नवऱ्याला म्हणाली ” हे आमचे भागवत सर.यांनी आम्हांला भरभरून जगायला शिकवलं.शिकणं आणि जगणंसुध्दा किती आनंददायी असतं हे त्यांच्यामुळेच आम्हांला कळलं” तिच्या नवऱ्याने सुनीलला वाकून नमस्कार केला.

सुनीलला मिळणारा आदर पाहून नरेश मनातून खट्टू झाला.त्याला आठवलं.निवृत्तीनंतर तो आँफिसला दोनतीन वेळा गेला तेव्हा तिथल्या स्टाफने त्याची दखलसुध्दा घेतली नव्हती.ही ब्याद कशाला इथे आली असेच भाव त्यांच्या चेहऱ्यावर होते.

जेवण झाल्यानंतर दोन्ही मित्र एकमेकांना घरी यायचं निमंत्रण देऊन निघाले.

नरेशने ठरवलं आता सुनीलसारखं जगायचं.आहे ते उरलेलं आयुष्य आनंदात घालवायचं.आता त्याला त्याचा एकटेपणा खटकू लागला.म्हणून मग त्याने दुसऱ्याच दिवशी ज्येष्ठ नागरीक संघाची सदस्यता घेतली.आतापर्यंत कट्ट्यावर बसणारे हे म्हातारे त्याला आवडत नव्हते.हळुहळू त्याची त्यांच्याशी मैत्री झाली. माँर्निंग वाँक त्यांच्यासोबत होऊ लागला.एक दिवस तो त्याच्या बायकोला घेऊन गाण्याच्या कार्यक्रमाला गेला.या वयातही संगीत आपल्याला आवडतं,आपल्या मनाला भारुन टाकतं हा नवीन शोध त्याला लागला.अभ्यासाच्या पुस्तकांखेरीज इतर पुस्तकांना कधी त्याने हात लावला नव्हता.वपु.काळे,चेतन भगत,पाऊलो कोएल्होची पुस्तकं आता टेबलवर उपस्थिती देऊ लागली.स्वयंपाक हे बायकांचं क्षेत्र आहे असं तो आजपर्यंत मानत होता.पण आता नवीन रेसिपीज तो बायकोला सुचवू लागला आणि ती बनवण्यासाठी तिला मदतही करु लागला.एक दिवस ज्येष्ठ नागरीक संघाच्या सदस्यांना त्याने एका चांगल्या हाँटेलात पार्टी दिली.सुनीललाही त्याने स्पेशल गेस्ट म्हणून बोलावलं.आपल्या या मित्रामुळेच आपण आनंददायी जीवन जगायला सुरुवात केली आहे याचा त्याने सर्वांसमक्ष उल्लेख केला.सुनीलनेही मग आपण कसं जीवन जगलो आणि उरलेलं आयुष्य कसं भरभरुन जगलं पाहिजे याबद्दल एक खुमासदार भाषण ठोकलं.

सिंगापूर, मलेशियाच्या टूरला आता चारपाचच दिवस उरले होते.ही टूर झाली की हिस्टोरिकल युरोपची टूर करायची हे नरेशने ठरवून टाकलं.आपलं हे सुंदर आयुष्य फार कमी उरलंय याचा खेद त्याला आजकाल वाटू लागला होता.

टुरला दोन दिवस बाकी होते.तो सकाळी आपल्या मित्रांसोबत माँर्निग वाँक करत होता.जाँगिंग ट्रँकचे तीन राऊंड त्याने पुर्ण केले.चवथ्या राऊंडला त्याने सुरुवात केली आणि त्याच्या छातीत कळ आली.कळ इतकी जोरदार होती की तो खालीच कोसळला.पडता पडता त्याचा उजवा गुडघा जोरात आपटला.त्याच्याबरोबरचे सगळे धावून आले.सगळ्यांनी मिळून त्याला बेंचवर झोपवलं.घामाच्या धारांनी तो न्हाऊन निघाला होता.अँब्युलन्स बोलवण्यात आली.त्याला हाँस्पिटलमध्ये अँडमिट करण्यात आलं.ट्रिटमेंट सुरु झाली. दोन तासांनी तो शुध्दीवर आला. समोरच त्याची बायको आणि डाँक्टर उभे होते.

“कसं वाटतंय?”त्याच्या बायकोने मीराने विचारलं.त्याच्या अंगात अजिबात त्राण नव्हतं.उजवा गुडघा भयंकर दुखत होता.

“मला काय झालं होतं?”खोल गेलेल्या आवाजात त्याने डाँक्टरला विचारलं.    “तुम्हांला मासीव्ह हार्ट अटँक आला होता.त्यात तुम्ही नेमके गुडघ्यावर आपटल्यामुळे तुमचा गुडघा तुटलाय.त्याचं आँपरेशन करावं लागणार आहे.”

” मग करुन टाका.आम्हांला दोन दिवसांनी सिंगापूरला जायचंय”

डाँक्टर हसले. म्हणाले,

“साँरी मिस्टर नरेश.यु हँव टू फरगेट अबाउट युवर टूर.तुमची शुगर आणि बी.पी.जोपर्यंत नाँर्मल होत नाहीत तोपर्यंत आँपरेशन शक्य नाही.आँपरेशन नंतरही तुम्हांला लवकर चालता येईल असं वाटत नाही.दुसरी गोष्ट उद्या तुमची एंजिओग्राफी करणार आहोत.हार्टमधल्या ब्लाँकेजेसवर तुमची बायपास करायची की एंजिओप्लास्टी ते ठरेल.माझ्या अनुभवानुसार तुमची बायपासच करावी लागेल असं वाटतं.आणि बायपास झाल्यावर कमीतकमी तीन महिने तरी तुम्ही कुठे जाऊ शकणार नाही”

नरेशने हताशपणे बायकोकडे पाहिलं.

जाऊ द्या .तुम्ही अगोदर बरे व्हा.मग बघू कुठे जायचं ते” ती त्याला समजावत म्हणाली ” जीव वाचला ते काय कमी आहे? सिंगापूर काय नंतर केव्हाही करता येईल!”

नरेश काही बोलला नाही.पण त्याला समजून चुकलं होतं.त्याच्या जीवाचं काही खरं उरलं नव्हतं.नशीबात असलं तर टूर होतीलही पण ते कायम तब्ब्येतीच्या काळजीने भरलेले असतील.त्यात आनंद,उत्साह यांचा अभाव असेल.जीवनात आता कुठेशी रंगत येऊ लागली होती आणि त्यात हे असं घडलं.आयुष्य हे क्षणभंगुर आहे असं सुनील म्हणाला होता.खरंच होतं ते!आता टूरच काय आयुष्यात राहून गेलेल्या कितीतरी गोष्टी करता येणार नव्हत्या.’अनेक गोष्टी योग्य वयातच केलेल्या चांगल्या असतात ‘ असं सुनील जे म्हणत होता ते चुकीचं नव्हतं हे त्याला आता ठाम पटलं होतं.क्षणभर त्याला सुनीलचा हेवा वाटला.आणि त्याच्यासारखं आयुष्य आपण का जगलो नाही या पश्चातापाने त्याचं मन भरुन गेलं.

 – समाप्त –

© श्री दीपक तांबोळी

जळगांव

मो – 9503011250

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ कथा संघर्षाची (काळोखातली प्रकाशवाट) – भाग – २ लेखक : श्री काशीनाथ महाजन ☆ प्रस्तुती – डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

? विविधा ?

कथा संघर्षाची (काळोखातली प्रकाशवाट) – भाग – २ – लेखक : श्री काशीनाथ महाजन ☆ प्रस्तुती – डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

१९८६ साली माझी बदली पुणे येथे झाली. पुणे येथे असतांनाच लोणावळा येथील ‘कैवल्यधाम’ या आंतरराष्ट्रीय , इंग्रजी माध्यमाच्या योग शिक्षक प्रशिक्षण केंद्रात मला प्रशिक्षण घेण्याचा योग आला. अनेक देशांतील डोळस प्रशिक्षणार्थी असतांनाही मी तेथे उत्तम प्राविण्य संपादन केले. पुणे येथे असतांनाच समाजशास्त्र विषयात प्रथम श्रेणीत एम्. ए. उत्तीर्ण झालो. पुणे महानगर पालिकेने आदर्श शिक्षकाचा पुरस्कार मला प्रदान केला. 

१९९९ साली नाशिक येथील शासकीय अंध शाळेत माझी बदली झाली. येथील मुलांना संगीत शिकवले जात होते. माझ्या गीतांना संगीताची साथ मिळू लागली. त्यामुळे माझी नवनवीन देशभक्तीपर व सामाजिक गीते नावारूपाला आली. सौ. शारदा गायकवाड या स्वाध्यायी समाजसेविकेच्या पुढाकारामुळे ‘ज्योतीकलश’ हा माझा पहिला काव्यसंग्रह २००२ साली व ‘ चैतन्यचक्षू’ हा दुसरा काव्यसंग्रह २००४साली प्रकाशित झाला. नाशिक जिल्हा परिषदेने ‘आदर्श शिक्षक पुरस्कार’ देऊन माझा गौरव केला. समाजकल्याण खात्याच्या नाशिक विभागीय कार्यालयाने ‘उत्कृष्ट शिक्षक पुरस्कार’ मला दिला. राष्ट्रीय अंधजन मंडळाच्या महाराष्ट्र राज्य शाखेने ‘राज्यस्तरीय आदर्श शिक्षक’ पुरस्कार मला प्रदान केला. याच काळात स्वाध्याय प्रणित तत्वज्ञान विद्यापीठाच्या चार परीक्षा मी उत्तीर्ण झालो. त्यातील ‘ विचक्षण’ परीक्षेत मला जागतिक मेरीट प्राप्त झाले. 

माझ्या जीवनात अभूतपूर्व असा योग चालून आला. आजवर कुठल्याही शासकीय अंध शाळेतील अंध शिक्षकाला अधिक्षकाचे पद प्राप्त झालेले नव्हते. परंतु मला ते मिळाले. शासकीय अंध शाळा कुडाळ, जिल्हा सिंधुदुर्ग येथे अधिक्षक पदावर मी रूजू झालो. त्या काळात कोकणातील कोकण मराठी साहित्य परिषदेशी मी जोडला गेलो. या परिषदेतील वृंदा कांबळी यांनी माझ्या निवडक १८ कवितांच्या आधारे ‘सहा टिंबातून’ हा विशेष कार्यक्रम आयोजित केला. त्याबाबतची संकल्पना अशी की जिल्ह्यातील निवडक प्राध्यापक, गायक, आकाशवाणी निवेदक अशा सहा व्यक्तींना प्रत्येकी तीन कविता गायन किंवा वाचन करण्यास दिल्या. त्यासाठी योग्य असा निवेदन पट तयार केला. अनेक तालुक्यातून हा कार्यक्रम सादर झाला. रसिकांचा उत्तम प्रतिसाद मिळाला. 

अधिक्षक पदाची कारकिर्द यशस्वी रित्या पार पाडून २०१४ साली मी सेवानिवृत्त झालो. 

सेवानिवृत्तीनंतर काय करायचे असा प्रश्न अनेकांना पडतो परंतु मला तो पडला नाही. नाशिक ही कवी लेखक नाटककार यांची साहित्य पंढरी आहे. या साहित्यिक मेळ्यात मी स्वतःला झोकून दिले. खऱ्या अर्थाने  माझ्या कवितांना जनाधार प्राप्त झाला.माझे अंधत्व गौण मानून माझ्या प्रतिभेचा आदर केला गेला. अनेक कविमंडळे नाशिकमध्ये आहेत. दर आठवड्याला कुठे ना कुठे कविसंमेलन होतेच. त्यात सहभाग घेऊ लागलो. २०१६ साली ‘दृष्टीपल्याड’ हा माझा तिसरा काव्यसंग्रह प्रकाशित झाला. विशेष म्हणजे मी ज्या शासकीय विद्यानिकेतनात शिक्षण घेतले होते त्यातील माजी विद्यार्थ्यांच्या पुढाकाराने हा काव्यसंग्रह प्रकाशित झाला. 

अनेकांच्या आग्रहाखातर ‘काळोखातली प्रकाशवाट’ हे माझे आत्मचरित्र २०१७ साली भव्य समारंभात प्रकाशित झाले. हा भव्य समारंभ म्हणजे शासकीय विद्यानिकेतनाचा सुवर्ण महोत्सवी वर्धापनदिन होता. संपुर्ण महाराष्ट्रातील नामवंत व्यक्ती या कार्यक्रमास हजर होते. 

इस्कॉन या आंतरराष्ट्रीय संस्थेने भगवत गीतेवर आधारित ‘गीताप्रज्ञा’ ही स्पर्धा परीक्षा आयोजित केली होती.या परिक्षेत ९४% गुण प्राप्त करून प्रथम क्रमांक प्राप्त झाल्यामुळे डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी यांच्या शुभहस्ते मला रू १५००० चा पुरस्कार एका भव्य समारंभात प्राप्त झाला.

सेवा निवृत्तीनंतरचा काळ अधिक सुखाचा व अधिक कार्यमग्न होण्यासाठी बोलका कॉम्प्युटर व बोलका मोबाईल हाताळण्याची कला मी अवगत केली. अनेक साहित्यिक व्हाट्सऍप गृपवर माझ्या कविता प्रसारित होऊ लागल्या. १० व ११ जून २०१७ रोजी जळगाव येथे राज्यस्तरीय अंध अपंग साहित्य संमेलनाचे अध्यक्षपद भूषविण्याचा मान मला मिळाला तसेच २०१७ साली लिमका बुक रेकॉर्ड्स साठी सलग २४ तास कविसंमेलन पुणे येथे   माझ्या अध्यक्षतेखाली संपन्न झाले. 

राज्यभरात अनेकदा अंध अपंगांच्या कविसंमेलनाचे अध्यक्षपद मी भूषविले.तसेच डोळस कवींच्या अनेक संमेलनात माझ्या कवितांना तसेच काव्यसंग्रहांना राज्यस्तरीय पुरस्कार प्राप्त झाले आहेत.ऑनलाइन काव्यस्पर्धेत वारंवार पुरस्कार प्राप्त होत आहेत.गझल या काव्यप्रकारातही माझी यशस्वी वाटचाल चालू आहे.

माझ्या मराठी व अहिराणी कविता वृत्तबद्ध व छंदोबद्ध असल्याने संपूर्ण महाराष्ट्रातून अनेकजण त्या कवितांचे गायन करून ऑडिओ पाठवतात. काही यूट्यूब चानलवर त्या गायनाचे व्हिडिओ प्रसारित करण्यात येतात.  

डिसेंबर २०२१ मध्ये नाशिक येथे संपन्न झालेल्या अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलनात दूरदृष्टी या माझ्या चौथ्या काव्यसंग्रहाचे व काळोखातली प्रकाशवाट या आत्मचरित्राच्या विस्तारीत आवृत्तीचे प्रकाशन

झाले.  जानेवारी २०२३ मध्ये प्रतिभेचे नंदनवन हा माझा पाचवा काव्यसंग्रह नाशिक येथे कुसुमाग्रज स्मारकातील स्वगत सभागृहात प्रकाशित झाला. 

अशाप्रकारे माझा यशस्वी जीवनप्रवास चालूच आहे.अंधत्वाबद्दल मी कधीही देवाला दोष दिला नाही कारण सर्वसामान्य माणसाप्रमाणेच मी आयुष्य जगलो. माझा मुलगा उत्तम प्राथमिक शिक्षक असून मुलीचे एलएलबी झाले असून तिचे पती भारतीय लष्करात ‘मेजर’ पदावर आहेत. चार नातवंडांसह  आमचे परिवार सुखी आहेत. कथा संपावायच्या आधी मला प्रामाणिकपणे कबूल करावेच लागेल की माझ्या जीवन प्रवासात माझी पत्नी सौ. रेखा हीने अत्यंत महत्त्वाची भूमिका पार पाडली आहे. शेवटी जाता जाता एक स्वरचित कविता सादर करत आहे.

☆ चैतन्य-चक्षु ☆

(वृत्त आनंदकंद)

चैतन्य-चक्षु अपुले, जागे सदैव ठेवू  

अंधत्व भेदुनी हे, जगणे सतेज ठेवू  

शिखरास उंच पाहू, पंखात जिद्द ठेवू  

ध्येयास गाठण्याला, उत्तुंग झेप घेऊ  

नैराश्य टाळण्याला, गाणे मधूर गाऊ  

अंधत्व भेदुनी हे, जगणे सतेज ठेवू  

सृष्टी दिसे न काही, मज मान्य न्यूनता ही  

दैवास दोश द्यावा, ऐसे न यात काही  

जन्मास पाहण्याची, दृष्टी सकार ठेवू  

अंधत्व भेदुनी हे, जगणे सतेज ठेवू  

नेत्रांध हो कुणी हा, प्रारब्ध जीवनाचा  

स्वार्थांध वासनाधिन, हा दोष मानवाचा  

टाळून या विकारा, गुणवान सर्व होऊ  

अंधत्व भेदुनी हे, जगणे सतेज ठेवू  

काही असे करू की, दिपवू अखील विश्व  

म्हणतील अंध असुनी, झाला प्रकाश-पर्व  

अंधार आवसेचा, दीपावलीत भुषवू  

अंधत्व भेदुनी हे, जगणे सतेज ठेवू  

— समाप्त — 

लेखक : काशीनाथ महाजन

नाशिक 

फोन ९८६०३४३०१९

प्रस्तुती : डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈