हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 251 ☆ आलेख – रामचरित मानस में स्थापत्य एवं वास्तु शास्त्रीय वर्णन – भाग-2 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय आलेखों की शृंखला – रामचरित मानस में स्थापत्य एवं वास्तु शास्त्रीय वर्णन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 251 ☆

? आलेख – रामचरित मानस में स्थापत्य एवं वास्तु शास्त्रीय वर्णन – भाग-2 ?

लंका :-

अयोध्या, जनकपुर के बाद जो एक बड़ी नगरी मानस में वर्णित है, वह हे रावण की सोने की लंका। लंका में एक स्वतंत्र भव्य प्राचीन बाटिका है, “अशोक वटिका” जहाँ रावण ने अपहरण के बाद माँ सीता को रखा था। लंका का वर्णन एक किले के रूप में है –

गिरि पर चढ़ी लंका तह देखी ।

कहि न जाइ अति दुर्ग विशेषी ।।

कनक कोट बिचित्र मनि कृत सुंदराय तना घना ।

चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीशीं, चारूपुर बहु बिधि बना ।।

गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गने ।

बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहीं बनें ॥

बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापी सोहहिं ।

नर नाग सुर गंधर्व कन्या रूप मुनि मन मोहहिं ।।

सुन्दर काण्ड 5/3 लंका सोने की है। वहां सुन्दर-सुन्दर घर है। चौराहे, बाजार, सुन्दर मार्ग और गलियां है। नगर बहुत तरह से सजा हुआ है। नगर की रक्षा हेतु चारों ओर सैनिक तैनात है। नगर में एक प्रवेश द्वार है। लंका में विभीषण के महल का वर्णन करते हुये गोस्वामी जी ने लिखा है कि –

 रामायुध अंकित गृह शोभा वरनि न जाय । नव तुलसिका वृंद तहं देखि हरषि कपिराय ।।

रावण के सभागृह का वर्णन, लंकादहन एवं श्रीराम दूत अंगद के प्रस्ताव के संदर्भ में मिलता है। इसी तरह समुद्र पर तैरता हुआ सेतु बनाने का प्रसंग वर्णित है जिसमें समुद्र स्वयं सेतु निर्माण की प्रक्रिया श्रीराम को बताता है।

 भी “नाथ नील” नल कपि दो भाई। लरकाई ऋषि आसिष पाई ।

तिन्ह के परस किए गिरि भारे। तरहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे ।।

‘एडम्स ब्रिज’ के रूप में आज भी भौगोलिक नक्शे पर इसके अवशेष विद्यमान है। यांत्रिकीय उन्नति के उदाहरण स्वरूप पुष्पक विमान, आयुध उन्नति के अनेक उदाहरण युद्धों में प्रयुक्त उपकरणों के मिलते हैं। स्थापत्य जो आधारभूत अभियांत्रिकी है, के अनेक उदाहरण विभिन्न नगरों के वर्णन में मिलते है। ये उदाहरण गोस्वामी तुलसीदास के परिवेश एवं अनुभव जनित एवं भगवान राम के प्रति उनके प्रेम स्वरूप काव्य कल्पना से अतिरंजित भी हो सकते है, किन्तु यह सुस्पष्ट है कि मानस के अनुसार राम के युग में स्थापत्य कला सुविकसित थी। अंत में यह आध्यत्मिक उल्लेख आवश्ययक जान पड़ता है कि सारे सुविकसित वास्तु और स्थापत्य के बाद भी श्रीराम बसते है मन मंदिर में।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-५ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-५ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

(पिछला मॉलीन्नोन्ग, चेरापुंजी और भी कुछ)

प्रिय पाठकगण,

कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)

लिव्हींग रूट ब्रिज

इन सबमें “नव नवीन नयनोत्सव” का नयनाभिराम दृश्य दर्शाने वाला, परन्तु ट्रेकिंग करनेवाले धुरन्धर पर्यटकों को दातों तले चने चबाने के लिए मजबूर करने वाला पुल यानि “चेरापुंजी का डबल डेकर (दो मंजिला) लिव्हींग रूट ब्रिज!” मित्रों, आपके लिए अगर संभव हो तो यह जो (एक के नीचे एक ऋणानुबंध रखनेवाले) चमत्कार का शिखर और मेघालय की शान है, वह “डबल डेकर लिव्हींग रूट ब्रिज” नामक महदाश्चर्य जरूर देखें! परन्तु वहां पहुँचने के लिए जबरदस्त ट्रेकिंग करना पड़ता है| मैंने तो केवल उसका फोटो देखते ही उसे मन ही मन साष्टांग कुमनो कर डाला! ‘Jingkieng Nongriat’ इस नाम का, सबसे लम्बा (तीस मीटर) यह जिन्दा पुल २४०० फ़ीट की ऊंचाई पर है, चेरापुंजीसे ४५ किलोमीटर दूर Nongriat इस गांव में! ये पुल “विश्व विरासत स्थल” के रूप में घोषित किये गए हैं|

मित्रों, ऐसा कोई भी जिन्दा पुल नदीपर लटकता रहता है| नदी के निकट पहुँचने के लिए ऊंचाई पर स्थित पर्वतश्रृंखला से (उपलब्ध) राह से नीचे उतरिये, पुल देखिये, हो सके तो ईश्वर और पथदर्शक (गाईड) का नामस्मरण करते हुए पुल पार कीजिये, वन प्रकृति सम्पदा का आनंद जरूर लें, परन्तु गाईड या स्थानिकों के आदेश का पालन करते हुए ही पानी के निकट जाना, पानी में उतरना आदि कार्यक्रम सम्पन्न करें और फिर पर्वत पर चढ़ाई कीजिये! यह है अधिक थकाने वाला, क्योंकि, उत्साह की कमी और थकावट ज्यादा! साथ में पेय जल तथा जंगल की ही लाठी रहने दें| कैमरा और अपना संतुलन सम्हालिए और जितना बस में हो, उतने ही फोटो खींचिए! (सेल्फी का काम सावधानी से करें| वहाँ जगह जगह पर सेल्फी के लिए डेंजर झोन निर्देशित किये हैं, “लेकिन कौन कम्बख्त ध्यान देता है!!!”)

मॉलीन्नोन्ग से रास्ता है सिंगल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज देखने का! मेघालय की यह अनोखी संरचना पहली बार देखने के बाद और उस पुल पर चलते हुए मुझे सचमुच ही यह अहसास हुआ जैसे मैं अपने पैरों से किसी का दिल तार तार करते हुए जा रही हूँ! हमने सिंगल रूट ब्रिज देखा, वहाँ जाने के दो रास्ते हैं, मॉलीन्नोन्ग से जाने वाला कठिन, बहुत ही फिसलन भरा और टेढ़ामेढ़ा, ऐसा जहाँ सीढ़ियां तथा बॅरिकेड भी नहीं, रास्ते में छोटे बड़े चट्टान भरे हैं! मैनें वह बड़े मुश्किल से पार किया| दूसरे ही दिन एक और ब्रिज देखने की तैयारी से मालिनॉन्ग के बाहर निकले! Pynursa पार किया, यहाँ के होटल में खाने के लिए काफी सारी चीजें दिखीं| इस बड़े गांव में ATM तो है, लेकिन वह कभी बंद रहता है, कभी मशीन में पैसे नहीं होते| इसीलिये अपने साथ नकद राशि जरूर रखें! ‘Nohwet’ इस स्थान से नीचे बॅरिकेड सहित अच्छी तरह बनी हुई सीढ़ियों से उतर कर देखा तो अचरज से देखते ही रहे हम, कल का ही सिंगल रूट ब्रिज नज़र आया! यह डबल दर्शन लुभावना तो था ही, परन्तु यहाँ लेकर आने वाला यह आसान सा रास्ता (आपको मालूम हो इसलिए) भी मिल गया!

हमने Mawkyrnot नामक गांव से रास्ता पकड़ते हुए एक और सिंगल रूट ब्रिज देखा| यह गांव पूर्व खासी पर्वतों के Pynursla सब डिव्हिजन यहाँ बसा हुआ है| नदी किनारे पहुँचने को अच्छी बनी हुई बैरिकेड समेत सीढ़ियां हैं| करीबन १००० से भी अधिक सीढ़ियां उतरकर हम नीचे पहुंचे| पुल के नाम पर (नदी के ऊपर हवा में तैरता हुआ) ४-५ बांसों का बना हुआ झूलता पुल देख मैं इसी किनारे पर रुक गई! मेरे परिवार के सदस्य (बेटी, दामाद और पोती) स्थानीय गाईडकी सहायता से उस-पार पहुंचे और वहां का प्रकृति दर्शन करने के बाद वहां से (करीब २० मीटर अन्तर पर बने) दूसरे वैसे ही पुल से इस-पार वापस आ गए| उनके आने तक मैंने इधर ईश्वर का नाम लेते हुए जैसे-तैसे उनके और पुल के फोटो खींचे| इस स्थानीय गाइड ने सीढ़ियां चढ़ने और उतरने में मेरी बहुत मदद तो की ही, परन्तु मेरा मनोबल कई गुना बढ़ाया| इस अत्यंत नम्र और शालीन लड़के का नाम है Walbis, उम्र केवल २१ साल! दोपहर के भोजन के पश्चात् मेरे घर वालों को इससे भी अधिक कठिनतम शिलियांग जशार (Shilliang Jashar) इस गांव के बांस के ब्रिज पर जाना था, परन्तु मैंने गाइड की सलाह और मेरी सीमित क्षमता को ध्यान में रख कर उस पुल की राह को अनदेखा किया|

डॉकी/उम्न्गोट (Dawki/Umngot) नदीपर नयनरम्य नौकानयन

हम सैली के सुन्दर “साफी होम कॉटेज (Safi home cottage) को अलविदा करते हुए अगले सफर पर निकल पड़े| हम मॉलीन्नोन्ग से लगभग ३० किलोमीटर दूर डॉकी (Dawki) के तरफ निकले| मित्रों, मुंबई से गुवाहाटी की यात्रा हवाई जहाज से तय करने के बाद मेघालय का पूरा सफर हमने कार से ही किया| यह ध्यान रखें कि, यहाँ रेल यात्रा नहीं है| यह गांव मेघालय के पश्चिम जयन्तिया हिल्स जिले में है| डॉकी(उम्न्गोट) नदी पर एक कर्षण सेतु (traction bridge) बना है| १९३२ में अंग्रेजों ने इस पुल का निर्माण किया| इस नदी का जल इतना स्वच्छ है कि, कभी कभी अपनी नाव हवा में तैरने का आभास हो सकता है| यहाँ का नयनाभिराम दृश्य तथा नौका विहार यहीं प्रमुख आकर्षण है! यह गांव भारत और बांग्ला देश की सीमा पर है! नदी भी दोनों देशों में इसी तरह विभाजित हुई है। एक ही नदी पर विहार करती हैं बांग्लादेश की मोटर बोट और भारत देश की नाविकों द्वारा ‘चप्पा चप्पा’ चलाई गई सरल बोट! यह है दोनों देशों को जोड़ने वाला एक रास्ता! जाते हुए दोनों देशों की चेक पोस्ट दिखती हैं| डॉकी यह भारत की चेकपोस्ट तो तमाबील है बांग्ला देश की चेकपोस्ट!

मित्रों, इस नौकाविहार का स्वर्गसुख कुछ अलग ही है, ह्रदय और नेत्रों में सकल संपूर्ण संचय कर लें ऐसा! नाविक द्वारा चलायी हुई विलंबित ताल जैसी डोलते डोलते धीरे धीरे आगे सरकती हुई नौका, यहाँ वहाँ नौका से टकराकर निर्मल से भी निर्मल और संगीतमय बने जल-तरंग, दोनों किनारों पर नदी को मानों कस कर जकड़ने वाले वृक्षवल्लरियों की हरितिमा के बाहुपाश! निर्मल नीर के कारण उनकी छाया हरियाली सी, तो उससे सटकर नीलमणी सी या मेघाच्छादित गहरे रंग की छाया, बीच बीच में नदी के तल के अलग अलग पाषाण भी अपनी छटा बिखेर रहे थे! सारांश में कहूं तो सिनेमास्कोपिक पॅनोरमा! कहीं भी कॅमेरा लगाइये और प्रकृति के रंगों की क्रीडा छायांकित कर लीजिये! बीच में इस सिनेमास्कोप सिनेमा का चाहे तो इंटर्वल समझ लीजिये, छोटा सा रेतीला किनारा, वहां भी मॅगी, चिप्स तथा तत्सम पदार्थों की सर्विस देने के लिए एक मेघालय सुंदरी हाज़िर थी| कोल्ड ड्रिंक को अति कोल्ड बनाने के लिए नदी के किनारे छोटेसे फ्रिज जैसा जुगाड करने वाला उसका पति खास ही था ! नदी किनारे पर छोटे बड़े पर्यटक सुन्दर पत्थर (और क्या कहूं) या चट्टान इकठ्ठा करने में जुट गए| वापसी की यात्रा बिलकुल भी सुहा नहीं रही थी, परन्तु नाविक को “ना-ना” कहते हुए भी आखिरकार उसने नांव किनारे लगा ही दी|

टाइम प्लीज!!!      

प्रिय पाठकों, यूँ समझिये एक घडी आपकी कलाई पर बंधी है और एक आसानी से दिखने वाली घडी आप के स्मार्ट फोन पर मौजूद है, होगी तो जरूर! आप जो आसान होगा वहीं देखेंगे ना! परन्तु अगर आप बांग्ला देश की सीमा के आसपास घूम रहे हों, तो मजेदार किस्सा देखने को मिलेगा| हमें स्थानीय लोगों ने बतलाया इसलिए अच्छा हुआ, वर्ना बहस तो होनी ही थी| बांग्ला देश की (केवल) घडी हमारे देश से ३० मिनट आगे है और अपुन के स्मार्ट फ़ोन को (अनचाहे वक्त पर ही) ज्यादा स्मार्टनेस दिखाने की आदत तो है ही! उसने अगर उस देश का नेटवर्क पकड़ा तो स्मार्ट फ़ोन की घडी आगे और कलाई वाली घडी यहाँ का समय बताएगी! इसलिए ऐसे स्थानों पर (बांग्ला देश की सीमा के आसपास) भारत के सुजान तथा देशभक्त नागरिक के नाते आप कलाई वाली घडी की मर्जी सम्हालें और स्मार्ट फ़ोन को थोड़ा कण्ट्रोल में रखें! हमने काफी जगहों पर यह अनुभव लिया! थोडासा और किस्सा अभी भी बाकी है जी! बांग्ला देश की सीमा और हमारे बीच के अंतर के अनुसार स्मार्ट घडी तय करती है कि वह कितनी आगे जाएगी|

अगले भाग में हम साथ साथ सफर करेंगे मेघजल से सरोबार चेरापूंजी ! आइये, तब तक हम और आप सर्दियों की रजाई को ओढ़ आनन्द विभोर होते रहें!

फिर एक बार खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!

टिप्पणी

  • लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें और वीडियो (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!
  • गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ, उन्हें सुनकर और देखकर आपका आनंद द्विगुणित होगा ऐसी आशा करती हूँ!

https://photos.app.goo.gl/ECQMhQH2MeDsvZjD9

डॉकी नदी पर नौकानयन

https://photos.app.goo.gl/FkaX8dvATm2vCDkF9

डॉकी नदीकिनारे पर बनाया हुआ टेम्पररी फ्रिज, एक लोकल जुगाड!

क्रमशः -6

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

८ जून २०२२     

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – 3 – जूठन ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी लघुकथा – जूठन।) 

☆ लघुकथा –  जूठन ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जूठन समेटकर  एहतियात से पन्नी में भर रही थी। मैंने उसे बड़े गुस्से की नजरों से देखा

” मैं गुस्से में बोली यह क्या जाहिल पन है?”

तुम्हें शर्म नहीं आती है ऐसा करते हुए।

उस काम वाली बाई के ऊपर मेरी बातों का कोई असर नहीं हो रहा था। वह मेरी बातों को अनसुना सा कर रही थी।

बड़े ही इत्मीनान से वह सारी जूठन पन्नी में गांठ लगाते हुए बोली मेम साहब घर में मेरी मां बीमार है बहन और 5 साल की छोटी बेटी भी है।

उन्हें आज भरपेट खाना खिलाऊंगी आज खाने में बहुत सारे पकवान है मैं तो भगवान से यही प्रार्थना करती हूं कि आप और आपके बच्चे रोज इसी तरह खाना बनाने को काहे लेकिन वह खाना खाते कहां है प्लेट में थोड़ा सा लेते हैं यह पतीले का खाना जूठन कहां हुआ। छोड़ें में साहब आप लोग खाने की कीमत कहां समझोगे?

हम जैसे भूखे मरते लोगों का पेट तो भरेगा, और यह अच्छा खाना मिलेगा।  हमारी किस्मत में ऐसा परोसा  भोजन नहीं है। आप के कारण हमें यह सब अच्छी चीजें भी खाने को मिल जाती हैं।

मैं अवाक रह गई उसकी बातें सुनकर मैं स्वयं को बहुत बौना महसूस कर रही थी। उसकी आंखों में खुशी झलक रही थी।

जल्दी पहुंचने का उतावलापन उसकी आंखों में दिख रहा था। और तुरंत सारा सामान एक झोले में भरकर वह घर की ओर जाने लग गई मैं भी उसे दरवाजे में खड़ी हो कर देखती रह गई जब तक वह मेरी आंखों से ओझल नहीं हो गई।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 211 ☆ आनंदी आनंद गडे ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 211 ?

आनंदी आनंद गडे ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

या वर्षाअखेर ठरवलं आम्ही भावंडांनी

थर्टी फर्स्टला भेटायचं,

 

गेली काही वर्षे,

एका वेगळ्याच मैत्रीणींच्या

ग्रुप मधे,

करायचे साजरा हा आनंदोत्सव!

 

तेवीस साल सरता सरता,

 नात्यातले,

“अनिल- सुनील”

अचानक निघून गेले,

आणि मन धसकलं,

आपल्याहून लहान असलेले निघून गेले !

 

पुढील वर्षा अखेर आपण

असू ,नसू!

 

ए जिंदगी के मेले,

दुनिया में कम न होंगे….

अफसोस हम न होंगे

 

हे तर अंतिम सत्य…..

सत्तरी जवळ आली आणि,

तब्येतीच्या तक्रारी सुरू……

लागोपाठ दोघांनाही

 थंडीतली दुखणी,

नवरा गावाला आणि

मी दिवसभर दुखण्यानं आडवी !

गावावरून आल्यावर

 “आता माझी पाळी” म्हणत,

नवराही आडवा– अर्थात कुरबुरी किरकोळच!

 

पण बाईचं दुखणं गौण

आणि बाप्याचं मोठंच

असतं नेहमी !

 

दुखणं झटकून बाहेर पडले

 सकाळी,

मैत्रीणींच्या घोळक्यात,

संध्याकाळी ,

तळ्यात मळ्यात करता करता ,

माहेरच्या गोतावळ्यात!

आपल्या आयुष्याच्या

प्रत्येक क्षणावर , लिहिलेलं

असतं जणू….

आज जगायचं….रडे..रडे…..कि

आनंदी आनंद गडे!

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ नवीन हे वर्ष  सुखाचे जावो… ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

सुश्री प्रणिता प्रशांत खंडकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ नवीन हे वर्ष सुखाचे जावो!… ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

वर्ष नवे घेऊन येवो,मनीमानसी हर्ष, 

दुःख, काळजी, चिंता, सारी राहावी अस्पर्श!

 जरी हरवले अमूल्य काही, विसरू या ते सर्व,

 हाती गवसले जे जे काही, मानू त्याचा हर्ष!

रूसवे-फुगवे, हेवेदावे, चला फुंकुनी टाकू,

उरले-सुरले जीवन कितीसे? आनंदाने जगू!

पैसा-अडका भोग-साधने, स्पर्धा- ईर्षा विसरू,

माणुसकीचे, आनंदाचे, बीज मनी या पेरू!

स्वागत करूया नववर्षाचे, संकल्प करू उत्कर्षाचे,

एकजुटीने, सहकार्याने, आव्हान पेलू लक्ष्य पूर्तीचे!

असो वर्ष इंग्रजी /मराठी, किंतु मनी ना आणू,

चला मंडळी आयुष्याचे, गीत सुरीले गाऊ!

© सुश्री प्रणिता खंडकर

संपर्क – सध्या वास्तव्य… डोंबिवली, जि. ठाणे.

ईमेल [email protected] केवळ वाॅटसप संपर्क.. 98334 79845.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ जुने आणि नवे… ☆ सौ.वनिता संभाजी जांगळे ☆

सौ.वनिता संभाजी जांगळे

?  कवितेचा उत्सव ?

जुने आणि नवे… ☆ सौ. वनिता संभाजी जांगळे ☆

जाणारे जुने असते

येणारे नाविन्यानी नटते

तारीख, वार ,महिने

आपल्या क्रमानेच येत असतात

येणाऱ्या दिवसाला मात्र

लेबल काळाचं लावून जातात

पलटलेल्या पानासोबत

काळ पुढे सरकत राहतो

बघता बघता नाही कळत

वर्षाचा शेवट कधी येतो

नव्या वर्षांच्या स्वागताला

एका रात्रीचा जल्लोष होतो

कधी श्वास मुठीत घेऊन

तर कधी कष्टात झिजून

कधी दु:खात, कधी सुखात

वर्षातला प्रत्येक दिवस

दिवसातला क्षण क्षण जगला जातो

आणि किती सहजतेने  त्याला

आपण टाटा ,बाय-बाय करतो

जुनं  कॅलेंडर उतरून ठेवून

भिंतीवरती नवे टांगतो

खरोखर इतके का सोपे असते

जुन्याला सहज घालवणे

नव्याला सहजतेने  स्विकारणे

काळजातला अंधार मिटवून

आणि सुंदर पहाटेला जागवणे

तितकेच सोपे झाले नसते का

आयुष्यात येणाऱ्या प्रत्येक

घटका, दिवस, वार,महिने यांना

तितक्याच सुंदरतेने नटविणे

© सौ.वनिता संभाजी जांगळे

जांभुळवाडी-पेठ, ता. – वाळवा, जिल्हा – सांगली

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – विविधा ☆ निघाले आज स्मृतींच्या घरी… ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल ☆

सुश्री वर्षा बालगोपाल 

? विविधा ?

निघाले आज स्मृतींच्या घरी? ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल 

खूप दिवसांनी रेडिओ लावला आणि रेडिओवर गाणे लागले होते निघाले आज तिकडच्या घरी…

लगेच डोळ्यासमोर निरोप घेणारी मुलगी तिला निरोप देणारे आई-वडील लग्न सोहळा एकाला निरोप देणे दुसऱ्याचे स्वागत करणे हे सगळे सगळे डोळ्यापुढे उभे राहिले…

दुसरे स्टेशन लावले तर ते इथे कोणाच्यातरी वाढदिवसाच्या कार्यक्रम चालू होता प्रत्येक जण गाण्यातून शुभेच्छा देत होता बार बार दिन ये आये बार बार दिल ये गाये तुम जियो हजारो साल ये मेरी है आरजू… पुन्हा विचार आला एक वर्ष संपून दुसऱ्या वर्षात पदार्पण केले म्हणून वाढदिवसाचे हे क्षण आनंदी उत्साही करून हा उत्सव साजरा करणे म्हणजे वाढदिवस…

पुन्हा स्टेशन बदलले आणि तेथे गाणे लागले होते आनेवाला पल जानेवाला है |हो सके तो इसमें जिंदगी बितादो पल ये भी जानेवाला है ||खरच सगळेच जाणारे असते ना?

तसेच आज ३१ डिसेंबर… २०२३ संपून २०२४ घेऊन येणारे काही भारीत क्षण. सरत्याला निरोप येणाऱ्याचे स्वागत. सासरी चाललेल्या मुलीला निरोप द्यायच्या वेळे सारखेच. किंवा वाढदिवसाच्या दिवशी पूर्ण झालेल्या वर्षांना धन्यवाद देऊन नवे वर्ष सुख शांती समृद्धीचे जावो म्हणून केलेले अभिष्टचिंतन हे आदर्श क्षण जसे आपण जगतो ना अगदी तसेच नव्या वर्षातील शेवटच्या दिवशी शेवटच्या क्षणी जल्लोष हर्ष उल्हास यांनी सरत्या वर्षाला दिलेला निरोप आणि नव्याचे केलेले स्वागत यांचा एकत्र मिलाप.

किती भान हरपून मनात कुठलाच विचार न ठेवता सगळ्यांच्याच भावना साजरा करण्याच्या आंनदी असल्याने साजरा करण्याची पद्धत वेगवेगळी असली तरी आनंदाने भारलेले हे क्षण असतात.

मग मनात विचार आला फक्त ३१ डिसेंबरचे नव्हे तर रोजचा येणारा दिवस दिवसातील प्रत्येक सेकंद हा जाणारच असतो. हा क्षण आपल्याला आनेवाला पल जानेवाला है याचा संकेत देत असतो आणि ती वेळ निघाले आज स्मृतीच्या घरी असे सांगत असते. येणारा प्रत्येक क्षण आठवण होऊन मनात साठवायचा असेल तर फक्त ३१ डिसेंबरच नाही तर प्रत्येक क्षण साजरा करता यायला हवा.

वर्षातले सगळेच महिने, आठवडे दिवस, तास, मिनिटे, क्षण हे जाणारेच असतात तो प्रत्येक क्षण जाणार म्हणून दुःख आणि नवा येणार म्हणून आनंद अशा संमिश्र भावना असायला हव्यात फक्त ३१डिसेंबरलाच नको.

जेव्हा तुमच्या प्रत्येक क्षणात सकारात्मकता भरलेली असेल तेव्हा आता असणारा क्षण हा जाणारच असल्याने तोच क्षण जगून घ्यायची वृत्ती ठेवली तर जाणारे वर्षच फक्त निघाले आज स्मृतीच्या घरी असे न होता प्रत्येक क्षण तसा होईल.

मग जीवनातील प्रत्येक क्षण उत्सव होऊन राहील. तेव्हा नव्या वर्षाच्या प्रत्येक क्षणाचा उत्सव व्हावा या नव्या वर्षाच्या शुभेच्छा आणि सगळ्यांची वृत्ती अशी सदा हर्ष उल्हासाने भरलेली रहावी ही प्रार्थना 🙏

© सुश्री वर्षा बालगोपाल

मो 9923400506

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मनोवेधक मेघालय…भाग -३ ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

? मी प्रवासिनी ?

☆ मनोवेधक  मेघालय…भाग -३ ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

(मनमोहिनी मॉलीन्नोन्ग व मेघालयाच्या कुशीतले लिव्हिंग रूट ब्रिज)

प्रिय वाचकांनो,

कुमनो! (मेघालयच्या खासी या खास भाषेत नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कसे आहात आपण?)

मॉलीन्नोन्गच्या निमित्याने आपणा सर्वांना ही सफर आनंददायी वाटत आहे, याचा मला कोण आनंद होत आहे!

तर मॉलीन्नोन्गबद्दल थोडके राहून गेले सांगायाचे, ते म्हणजे इथले जेवण अन नाश्ता. माझा सल्ला आहे की इथं निसर्गाचेच अधिक सेवन करावे. इथे बरीच घरे (६०-७०%) होम स्टे करता उपलब्ध आहेत, अग्रिम आरक्षण केले तर उत्तम! मात्र थोडकी घरे (मी पाहिली ती ४-५) जेवण व नाश्ता पुरवतात! जास्त अपेक्षा ठेऊ नयेत, म्हणजे अपेक्षाभंग होणार नाही! ब्रेड बटर, ब्रेड आम्लेट, मॅगी अन चहा-कॉफी, इथे नाश्त्याची यादी संपते! तर जेवणात थाळी, २ भाज्या (त्यातली एक पर्मनन्ट बटाट्याची), डाळ अन भात, पोळ्या एका ठिकाणी होत्या, दुसरीकडे ऑर्डर देऊन मिळतात. जेवणात नॉनवेज थाळीत अंडी, चिकन आणि मटन असतं. हे घरगुती सर्विंग टाइम बॉउंड बरं का. जेवणाचे अन नाश्त्याचे दर एकदम स्वस्त! कारभार कारभारणीच्या हातात! इथे भाज्या जवळच्या मोठ्या गावातून (pynursa) आणतात,  आठवड्यातून दोनदा भरणाऱ्या बाजारातून! सामानाची ने-आण करण्यासठी बेसिक गाडी मारुती ८००!. मुलांची मोठ्या गावात शिक्षणाकरता ने-आण करण्यासाठी पण हीच, पावसाळी वातावरण नेहमीचेच अन दुचाकी मुळे अपघात होऊ शकतात, म्हणून गावकरी वापरत नाहीत, असं कळलं. इथे ATM  नाही, नेटवर्क नसल्यामुळे जी पे, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड वगैरे उपयोगाचे नाहीत. म्हणून आपल्याजवळ रोख रक्कम हवीच!              

स्काय पॉईंट (Nohwet Viewpoint)

या भागात फिरतांना बांगला देशाची सीमा वारंवार दर्शन देते. मात्र बांगलादेशाचे दर्शन घडवणारा एक स्काय पॉईंट अतिशय सुंदर आहे. मॉलीन्नोन्गपासून केवळ दोनच किलोमीटर असलेला हा पॉईंट न चुकता बघावा. बांबूने बनलेल्या पुलावरचा प्रवास मस्त झुलत झुलत करावा, एका ट्री हाऊस वरील ह्या पॉईंटवर जावे अन समोरचा नजारा बघून थक्क व्हावे. हा पॉईंट ८५ फूट उंच आहे, संपूर्ण बांबूने बनवलेला अन झाडांना बांबू तसेच जूटच्या दोरांनी मजबूत बांधलेला हा इको फ्रेंडली पॉईंट, समोरील नयनरम्य नजाऱ्यांचे फोटो काढणे आलेच! मात्र सेल्फी पासून सावधान, मित्रांनो! येथून सुंदर मावलींनॉन्ग दिसतेच शिवाय बांगलादेशची सपाट जमीन व जलसंपदा यांचेही प्रेक्षणीय दृश्य दिसते!                   

सिंगल डेकर अन डबल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज मेघालय पर्यटनाचा अविभाज्य भाग आहेत जिवंत पूल! अन ते पाहिल्यावर कवतिकाचे आणि प्रशंसेचे पूल बांधायला पर्यटक मोकळे!  म्हणजे जुन्या झाडांची मुळे एकमेकात “गुंतता हृदय हे” सारखी हवेत, अर्थात अधांतरी (आणि एखाद-दुसरी चुकलेल्या पोरांसारखी जमिनीत) अशी गुंतत गुंतत जातात, अन हे सगळं घडतं नदीपात्राच्या साक्षीनं, “जलगंगेच्या काठावरती वचन दिले तू मला” असं गुणगुणत! जसजशी वर्षे जातात, जलाचा अन प्रेमाचा शिडकावा मिळतो, तसतशी ही मुळे जन्मोजमीच्या ऋणानुबंधासारखी एकमेकांना घट्ट कव घालतात अन दिवसागणिक घालताच राहतात, मित्रांनो, म्हणूनच तर हे “लिव्हिंग रूट ब्रिज”, अर्थात जिवंत ब्रिज आहेत, काँकिटचे हृदयशून्य ब्रिज नव्हे, अन यामुळेच आपल्याला दिसतो तो प्रेमाच्या घट्ट पाशासारखा मजबूत जीता जागता मूळ पूल!

आता या मुळांच्या पुलाची मूळ कथा सांगते! साधारण १८० वर्षांपूर्वी मेघालयच्या खासी जमातीतील जेष्ठ व श्रेष्ठ लोकांनी नदी पात्राच्या अर्ध्या अंतरापर्यंत अधांतरी आलेली रबराच्या (Ficus elastica tree) झाडांची मुळे, अरेका नट पाम (Areca nut palm) जातीच्या पोकळ छड्यांमध्ये घातली, नंतर त्यांची निगा राखून काळजी घेतली. मग ती मुळे, (अर्थातच अधांतरी) वाढत वाढत विरुद्ध किनाऱ्यापर्यंत पोचलीत. तीही एकेकटी नाहीत तर एकमेकांच्या गळ्यात अन हातात हात गुंफून. या रीतीने माणसांचे वजन वाहून नेणारा आगळावेगळा असा या जिवंत पूल माणसाच्या कल्पनाशक्तीतून तयार झाला! आम्ही पाहिलेल्या सिंगल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिजला मजबूत बनवण्यासाठी भारतीय लष्कराने बांबूचे टेकू तयार केलेत. हे आश्चर्यकारक पूल पाहण्याकरता पर्यटकांची संख्या वाढतेच आहे! म्हणूनच असे आधार आवश्यक आहेत, असे कळले. नदीवर असा एक अधांतरी पूल असेल तर तो असेल सिंगल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज, मात्र एकावर एक (अर्थात अधांतरी) असे दोन पूल असतील तर तो असेल डबल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज!!! मी केवळ डबल-डेकर बस पाहिल्या होत्या, पण हे प्रकरण म्हणजे खासी लोकांची खासमखास मूळची डबल गुंतवणूक! खासी समाजाच्या त्या सनातन बायो इंजिनीयर्सला माझा साष्टांग कुमनो! असे कांही पूल १०० फूट लांब आहेत. ते सक्षमरित्या साकार व्हायला १५ ते २५ वर्षे लागू शकतात, एकदाची अशी तयारी झाली, की मग पुढची ५०० वर्षे बघायला नको! यातील कांही मुळे पाण्याच्या सतत संपर्कामुळे सडतात, मात्र काळजी नसावी, कारण इतर मुळे वाढत जातात अन त्यांची जागा घेऊन पुलाला आवश्यक अशी स्थिरता प्रदान करतात. हीच वंशावळ खासियत आहे जिवंत रूट ब्रिजची! अर्थात हा स्थानिक बायो इंजिनिअरींगचा उत्तम नमुनाच म्हणायला हवा. काही विशेषज्ञांच्या मते या परिसरात(बहुदा चेरापुंजी आणि शिलाँग) असे शेकडो ब्रिज आहेत, मात्र त्यांच्यापर्यंत पोचणे हे खासी लोकांचच काम! फार थोडे पूल पर्यटकांसाठी उपलब्ध आहेत, कारण तिथं पोचायला जंगलातील वाट आपली सत्वपरीक्षा पाहणारी, कधी निसरड्या पायऱ्या तर कधी दगड धोंडे तर कधी ओल्या मातीची घसरण!

या सर्वात “नव नवल नयनोत्सव” घडवणारा, पण ट्रेकिंग करणाऱ्या भल्या भल्या पर्यटकांना जेरीस आणणारा पूल म्हणजे “चेरापुंजीचा डबल डेकर (दोन मजली) लिव्हींग रूट ब्रिज!” मंडळी आपण शक्य असल्यास हे (एकाखाली एक ऋणानुबंध असलेले) चमत्काराचे शिखर अन मेघालयची शान असलेले “डबल डेकर लिव्हींग रूट ब्रिज” नामक महदाश्चर्य जरूर बघावे!  मात्र तिथे पोचायला जबरदस्त ट्रेकिंग करावे लागते. मी मात्र त्याचे फोटो बघूनच त्याला मनोमन साष्टांग कुमनो घातला! ‘Jingkieng Nongriat’ हे नाव असलेला, सर्वात लांब (तीस मीटर) असा हा जिवंत पूल २४०० फूट उंचीवर आहे, चेरापुंजीहून ४५ किलोमीटर दूर Nongriat या गावात! हे पूल “जागतिक वारसा स्थळ” म्हणून घोषित केलेले आहेत. 

मित्रांनो असा कुठलाही जिवंत पूल नदीवर लटकत असतो, नदीजवळ पोचायला वरच्या पर्वतराजीतून (उपलब्ध) वाटेने खाली उतरा, पूल बघा, जमत असेल तर देवाचे अन गाईडचे नाव घेत घेत तो पूल पार करा, वनसृष्टीचा आनंद घ्या.  गाईडच्या किंवा स्थानिकांच्या आदेशाप्रमाणेच पाण्याजवळ जाणे, उतरणे वगैरे कार्यक्रम उरका अन पर्वताची चढण चढा! हे जास्त दमवणारे, कारण उत्साह कमी अन थकवा जास्त! सोबत पेयजल अन जंगलातलीच काठी असू द्यावी.  कॅमेरा अन आपला तोल सांभाळत, जमेल तसे फोटो काढा! (सेल्फीचे काम जपून करावे, तिथे जागोजागी सेल्फी करता डेंजर झोन निर्देशित केले आहेत, “पण लक्षात कोण घेतो!!!”)    

मॉलीन्नोन्गपासून रस्ता आहे सिंगल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज बघायचा! मेघालयातील हे अप्रूप पहिल्यांदा बघितल्यावर त्या पुलावर चालतांना आपण कुणाच्या हृदयावर घाला घालीत आहोत असा मला खराखुरा भास झाला! आम्ही सिंगल रूट ब्रिज बघितला, तिथे जायला दोन रस्ते आहेत, मॉलीन्नोन्गपासून जाणारा कठीण, बराच निसरडा, वेडावाकडा, पायऱ्या अन कठडे नसलेला, रस्त्यात लहान मोठे दगड. मी मुश्किलीने तो पार केला.  दुसऱ्याच दिवशी एक अजून ब्रिज बघायच्या तयारीने मालिनॉन्ग मधून बाहेर पडलो, Pynursa पार केलं, इथल्या हॉटेल मध्ये बरेच पदार्थ होते. या मोठ्या गावात ATM तर आहे, पण कधी बंद असते, कधी मशीन मध्ये पैसे नसतात, म्हणून आपल्याजवळ कॅश हवीच! Nohwet या ठिकाणून खाली चांगल्या कठड्यांसहित असलेल्या पायऱ्या उतरून पोचलो तर काय, कालचाच सिंगल रूट ब्रिज दिसला की! हे डबल दर्शन सुखावणारे होते, पण इथे येणारा हा (आपल्या माहितीसाठी) सोपा मार्ग गावला.

आम्ही Mawkyrnot या गावातून वाट काढत अजून एक सिंगल रूट ब्रिज बघितला. हे गाव पूर्व खासी पर्वतातील Pynursla सब डिव्हिजन येथे वसलेले आहे. नदीकाठी पोचायला चांगल्या बांधलेल्या अन कठडे असलेल्या १००० च्या वर पायऱ्या उतरून आम्ही खाली पोचलो. पुलाच्या नावाखाली (पण नदीच्या वर तरंगत असलेला) ४-५ बांबूचा बनलेला झुलता पूल पाहून, मी याच किनारी थांबले! माझ्या घरची मंडळी (मुलगी, जावई अन नात) स्थानिक गाईडची मदत घेऊन उस-पार पोचलेत अन तिथले निसर्ग दर्शन घेऊन तिथून (बहुदा २० मीटर अंतरावरच्या) दुसऱ्याच तत्सम पुलावरून इस-पार परत आलेत. तवरीक मी इकडे देवाचे नाव घेत, जमेल तसे त्यांचे अन पुलाचे फोटो काढले. या स्थानिक गाईडने मला पायऱ्या उतरणे अन चढणे यात खूप मदत तर केलीच पण माझे मनोबल कित्येक पटीने वाढवले. या अतिशय नम्र अन होतकरू मुलाचे नाव Walbis, अन वय अवघे २१! दुपारी जेवणानंतर माझ्या घरच्या मंडळींना या पेक्षाही जास्त काठिण्यपातळी असलेल्या शिलियांग जशार (Shilliang Jashar) या गावातील बांबू ब्रिजवर जायचे होते, मी मात्र गाईडच्या सल्ल्यानुसार व माझ्या आवाक्यानुसार त्या पुलाच्या वाटेकडे वळलेच नाही.   

प्रिय वाचकहो, पुढील प्रवासात आपण डॉकी आणि चेरापुंजी येथे अद्भुत प्रवास करणार आहोत. तयारीत ऱ्हावा

तर आतापुरते खुबलेई! (khublei) म्हणजेच खास खासी भाषेत धन्यवाद!)

टीप – लेखातील माहिती लेखिकेचे अनुभव आणि इंटरनेटवर उपलब्ध माहिती यांच्यावर आधारित आहे. इथले फोटो आणि वीडियो (काही अपवाद वगळून) व्यक्तिगत आहेत!

©  डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ ।। योगायोग ।। – भाग-1 ☆ डॉ. ज्योती गोडबोले ☆

डॉ. ज्योती गोडबोले 

? जीवनरंग ❤️

☆ ।। योगायोग ।। – भाग-1 ☆ डॉ. ज्योती गोडबोले 

संध्याकाळ झाली होती.नीता अंगणात पायरीवर बसली होती. हा दगडी भक्कम बंगला तिच्या आहे सासऱ्यांचा!कित्ती भक्कम  आणि सुंदर बांधलेला होता तो. नीता अंगणात आली आणि शेजारी फुललेल्या जाईची फुलं तिनं ओंजळ भरून घेतली आणि आत वळणार तोच  पलीकडे रहाणाऱ्या आजींनी हाक मारली.” नीता, ये की चहा प्यायला ! ये !छान केलाय गवती चहा घालून !” नीता कम्पाउंड ओलांडून पलीकडे गेली आणि आजींच्याजवळ झोपाळ्यावर बसली.आजींनी गरम चहा तिच्या हातात ठेवला आणि म्हणाल्या, “ घे ग ही आल्याची वडी !आत्ताच केल्यात– बघ बरी झालीय का? “

“ आजी,एकदम मस्त झालीय. किती हौस हो तुम्हाला या वयात सुद्धा !” नीता म्हणाली.” 

“ अग, आवडतं हो मला करायला. सुनेला ,नातसुनेला कुठला आलाय वेळ? पण मला आवडेल ते करते 

मी ! आहेत भरपूर नोकरचाकर हाताशी. काही काम नसतं  मला ! बरं, कधी आलीस अमेरिकेतून? बरे आहेत ना सगळे?  संजय फार लवकर गेला ग ! एकटी पडलीस बाळा, पन्नाशी जेमतेम उलटली नाही तोवरच ! “ आजींनी मायेने हात फिरवला नीताच्या पाठीवरून ! डोळे भरून आले  नीताचे. 

“आजी राहिले की मी सहा महिने ! आणखी किती रहाणार लेकीकडे. ते सगळे तिकडे सुखात आहेत,

नात मोठी होईल आता आणि शेवटी आपलं घर ते आपलं घर. मला कायम राहायला नाही हो आवडणार तिकडे. आपलं घर आणि आपला परिवार खरा शेवटी. आणि आहेत की तुमच्यासारखे सख्खे शेजारी. आणि मी काम करते ते ब्लाइंड स्कूल, तिथली गोड छोटी मुलं माझी वाट बघत असतील ना ! “ नीता हसत म्हणाली. जाईची ओंजळ तिने झोपाळ्यावर रिकामी केली आणि म्हणाली, “ येते हं.. आजी.थँक्स चहाबद्दल.”  

सहा महिने राहिल्यावर नीता मागच्याच महिन्यात भारतात परतली. दोन वर्षांपूर्वी अचानकच काहीही हासभास नसताना संजय हार्टअटॅकने गेला. नीताची एकुलती एक मुलगी  मेघना लग्न होऊन अमेरिकेला गेली होती आणि तिला तिकडे छान नोकरीही होती. बाबांचे अचानक निधन झाल्यावर मेघना लगेचच भारतात आली आणि एक महिना राहिली. “आई,तू माझ्या बरोबर येतेस का? चल.बरं वाटेल ग तुला.” 

पण नीता नको म्हणाली. “ नको ग मेघना,खूप कामं उरकावी लागतील मला. संजयच्या पेन्शनचं बघावं लागेल, बँकेचे व्यवहार बघावे लागतील. मग नंतर येईन मी नक्की. अग माझी काळजी नको करू तू !

माझी अजून चार वर्षे नोकरी आहे कॉलेज मध्ये. मग मलाही मिळेल पेन्शन. मी घरी बसून तरी काय करू? कॉलेजमध्येही जायला सुरुवात करीन.” नीताने मेघनाची समजूत घातली आणि मेघना एकटीच गेली अमेरिकेला. नीताने आपले रुटीन सुरू केले.  

नीताचे आईवडील नीताच्या लग्नानंतर लवकरच गेले आणि  नीताचे भाऊ  भावजय कोल्हापूरला रहात होते. नीता पुण्यात एकटीच होती. कॉलेजमध्ये तिचा वेळ सुरेख जायचा. तिच्या सहकारी मैत्रिणी मित्र आणि स्टुडंट्सनी नीताला कधी एकटं पडू दिलं नाही. संजय असतानाही अनेक वेळा ती या ग्रुपबरोबर चार दिवसाच्या ट्रीपला सुद्धा जायची.  सहज लक्षात आलं नीताच्या … आपला नेहमीचा ग्रुप चार दिवस दिसला नाही. मग तिने हाताखालच्या  रश्मीला विचारलं “ अग मानसी सुहास कुठे दिसल्या नाहीत ग?”   रश्मी म्हणाली “ मॅम, त्यांचा ग्रुप चार दिवस कोणाच्यातरी फार्म हाऊसवर नाही का गेला? तुम्हाला माहीत नाही का? “ नीता गप्प बसली. पुढच्या आठवड्यात सुहास तिच्याजवळ आली आणि म्हणाली “ रागावलीस का? पण तुला कसं विचारावं असं वाटलं आम्हाला ! आम्ही सगळे कपल्स ग आणि तू एकटी ! तुला  ऑकवर्ड झालं असतं ग, म्हणून नाही बोलावलं. “ नीता काहीच बोलली नाही पण तिनं खूणगाठ बांधली मनाशी की संजय गेल्याने आपल्या आयुष्याचे संदर्भ बदलले. तिला म्हणावेसे वाटले, ‘ संजय असतानाही मी एकटीच तर येत होते कितीतरी वेळा, तेव्हा हा प्रश्न कसा आला नाही तुमच्या मनात ‘. नीताने हळूहळू या ग्रुपशी संबंधच कमी करून टाकले. आपल्यामुळे त्यांना अडचण नको. मनातून अतिशय वाईट वाटलं तिला, पण हे करायचंच असा निर्णय घेतला तिनं. एका माणसाच्या जाण्यानं आपल्या आयुष्यात इतके प्रॉब्लेम्स उभे रहातील याची कल्पनाच नव्हती नीताला. तिने आपलं मन काढून घेतलं या लोकांतून !अतिशय मानसिक त्रास झाला तिला पण मुळात अतिशय खम्बीर असलेली नीता हाही आघात झेलू शकलीच. 

त्या दिवशी दबक्या पावलांनी सुहास नीता जवळ आली आणि म्हणाली, “ नीता अशी नको आमच्याशी तुटक वागू !आपली किती वर्षाची  मैत्री एकदम तोडून नको टाकू. आम्हाला खूप वाईट वाटतं ग. परवा माझ्या मुलीचं, तुझ्या लाडक्या अश्विनीचं मी डोहाळजेवण करतेय. तू नक्की नक्की ये बरं का..मला फार वाईट वाटेल तू नाही आलीस तर. “ .यावर शांतपणे नीता म्हणाली, “ खूप खूप अभिनंदन सुहास.आणि थँक्स मला तू बोलावलंस म्हणूनही. पण तुझ्या घरी आजेसासूबाई, सासूबाई आहेत. त्यांना माझ्यासारखी विधवा आलेली चालणार नाही. मी ओटी भरलेली तर मुळीच नाही चालणार..  नकोच ते. मी येणार नाही. अग मी हे तुझ्यावर रागवून नाही म्हणत पण आता अनुभव घेऊन शहाणी नको का व्हायला? अश्विनीला माझे आशीर्वाद सांग.” गोऱ्यामोऱ्या झालेल्या सुहासकडे न बघता नीता तिथून उठून गेली. हा बदल नीताने स्वीकारला पण तिला ते सोपे नाही गेले. आता नोकरीची तीन वर्षे राहिली होती. नीताने विचार केला ही नोकरी संपली की आपण काहीतरी सोशल वर्क करूया. नीताने आता कॉलेज सुटल्यावर ब्रेल लिपी शिकण्याचा क्लास लावला. फार आवडला तिला तो. हळूहळू नीता ब्रेलमधली पुस्तकं सहज वाचायला शिकली. तिचा जुना मैत्रिणीचा ग्रुप कधी सुटला तिला समजलं पण नाही आणि वाईट तर मुळीच वाटलं नाही. 

नीताला  ब्रेल शिकवणारी मुलगी अगदी तरुण होती. तिने एम एस डब्ल्यू  केल्यावर ब्लाइंड स्कूलमधेच नोकरी करायची ठरवली होती आणि आपण होऊन ब्रेल शिकणाऱ्या नीताचे तिला फार कौतुक वाटले. आता रोज नीता ब्लाइंड स्कूलमध्ये जाऊन छोट्या मुलांना गोष्टीची पुस्तकं वाचून दाखवू लागली. किती आनंदाच्या वाटा खुल्या झाल्या नीताला ! नीता रमून गेली तिकडे. ही  ब्रेल शिकवणारी तरुण मुलगी नीना तर तिची मैत्रिणच झाली .नीताची नोकरी संपली आणि  नीता रिटायर झाली. होणाऱ्या निरोप  समारंभाला तिने निक्षून नकार दिला आणि घरी परत आली. आता ती करेल तेवढ्या वाटा तिला बोलावत होत्या. 

क्रमशः भाग पहिला 

© डॉ. ज्योती गोडबोले

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ आपल्याला असं जगता येईल? – लेखक : अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री अमोल अनंत केळकर ☆

श्री अमोल अनंत केळकर

??

☆ आपल्याला असं जगता येईल? – लेखक : अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री अमोल अनंत केळकर ☆

ऑफीस सुटल्यावर घरी   निघालो , खूप भूक लागली होती. पण आई व बायको दोघींही घरी नव्हत्या म्हणून रस्त्यात पाणी पुरीची गाडी दिसली म्हणून पाणीपुरी खाण्यासाठी थांबलो. पाणीपुरीवाल्याकडे गर्दी होती. गपचूप आपला नंबर येईपर्यंत वाट बघण्यापालिकडे काही हातात नव्हते. 

पाणीपुरीवालाच्या बाजूला एक आजोबा त्यांचा नंबर यायची वाट बघत उभे होते. पायात पांढरा शुभ्र पायजमा, वर हाफ शर्ट, चेहऱ्यावर निर्विकार भाव, आणि हसरा चेहरा, वय वर्ष साधारण ६५-७०.

आजोबा मस्त पाणीपुरी च्या पिशवीत हात घालून एक एक कोरडी पुरी तोडांत कोंबत होते.  माझा नंबर आला. पाणीपुरीवाल्यासमोर द्रोण हातात घेऊन उभा राहिलो. व एकामागोमाग एक पाच पाणीपुऱ्या खाल्ल्या. पोटातली आग जरा शांत झाली होती. आजोबांचा मात्र पुऱ्या खाण्याचा कार्यक्रम चालूच होता. पाणीपुरीवाला चांगलाच वैतागला होता.

“बाबूजी प्लेट देता हुँ। बराबरसे खाओ ना” आजोबांनी नुसतेच गालातल्या गालात हसून पुऱ्या खाणे चालूच ठेवले. 

एक प्लेट पाणीपुरी खाऊन माझे तोंड खवळले होते. म्हणून आजून एक पाणीपुरीची प्लेट सुरु केली.

आजोबा मात्र तल्लीन होऊन पिशवीमधल्या पुऱ्या मटकावत होते.

“ओ आजोबा नीट घेऊन खा की?” मी बोललो. आजोबा हू नाही की चू नाही. वाटले काहीतरी गडबड आहे. माझी दुसरी प्लेट संपत आली. आजोबा तिथेच उभे. 

तेवढ्यात  मागून एक माणूस स्कुटीवर  आला. 

“काळजी करू नकोस, बाबा सापडले!!” कोणाशी तरी मोबाईलवर बोलत होता. गळ्यात ऑफिस बॅग, पायात साधी चप्पल, चाळीशीतला असावा तो, आणि  त्याच्या चेहऱ्यावर त्याचे बाबा सापडल्याचा आनंद दिसत होता.!

त्याने गाडी बाजूला घेवून स्टँडला लावली. 

“काय बाबा आज पाणीपूरी का?         खायची का अजून???”

त्याने आजोबांना विचारले. आजोबांचे त्यावर काहीच उत्तर नाही. त्याने आजोबांना गाडीवर बसवले. व पाणीपुरीवाल्याला नम्रपणे विचारले की, आजोबांनी किती पुऱ्या खाल्ल्या आणि त्याचे पैसे देऊन टाकले. हे सगळे बघून मला नवलच वाटले. 

“हे आजोबा कोण आहेत तुमचे?” मी विचारले.

“वडील आहेत माझे.” त्याचे उत्तर.

“त्यांना काही त्रास आहे का?” माझा पुढचा प्रश्न.

“हो त्यांना अल्झायमर आहे.”

अत्यंत शांतपणे त्याने सांगितले. त्याच्या बोलण्यात कुठेही दुःख, ताण, त्रास नव्हता. अगदी सहजतेने तो बोलत होता. 

” मग हे आजोबा असे कुठेही जातात का?” 

” हो, आत्ताच बघा ना, पाच किलोमीटर  चालत आलेत.”

मी शॉकच झालो. 

“मग तुम्ही यांना शोधता कसे?”मी विचारले.

“आम्ही यांच्या खिशामध्ये कायम एक मोबाईल ठेवतो आणि त्यात एक GPS ट्रॅकर लावला आहे. त्याच्या साहाय्याने शोधतो ह्यांना  मी.”

“असे वारंवार होत असेल” मी आश्चर्याने विचारले. 

तो स्मितहास्य करून म्हणाला “महिन्याला एक दोन वेळेस”

“काळजी घ्याआजोबांची ! बाप रे काय हा वैताग” मी बोललो. त्यावर तो गृहस्थ म्हणाला, “बाबाही मी लहानपणी खेळायला गेलो की मला शोधून आणायचे ,याञेत हरवलो तर शोध शोध शोधायचे. त्यात काय येवढं.”

त्याने त्याच्या वडिलांना व्यवस्थित गाडीवर बसविले आणि निघून गेला.              

खूप काही शिकण्यासारख होतं त्या माणसाकडून. इतका दुर्दम्य आजार वडिलांना असून सुद्धा किती शांत होता तो. बिलकुल चिडचिड नाही की  कुठल्याच प्रकारचा मनस्ताप नाही.

उतारवयात आपल्या वडिलांना लहान बाळाप्रमाणे सांभाळणाऱ्या त्या माणसाला मनोमन सलाम ठोकून मी पुढे निघालो…                 

खरंच आपल्यालाही जगता येईल का हो असं.!!

लेखक : अज्ञात 

प्रस्तुती : श्री अमोल केळकर

बेलापूर, नवी मुंबई, मो ९८१९८३०७७९

poetrymazi.blogspot.in, kelkaramol.blogspot.com

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈