हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – सुनो धनिया ☆ सुश्री निर्देश निधि

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

सुश्री निर्देश निधि

आज प्रस्तुत है हिंदी साहित्य की सशक्त युवा हस्ताक्षर सुश्री निर्देश निधि  जी की अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक विशेष कविता “ सुनो धनिया ”

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – सुनो धनिया ☆

 

सुनो धनियाँ

कल तुम्हें देखा था मैंने,

सरसों के हरे – पीले खेत के पार

साँझ की नारंगी धूप में नहाई हुई

कमर में कसी चटख गुलाबी साड़ी

क्या तुम्हें पता था

फबेगी उसपर खूब, घास की धानी गठरी

वृहत्तर हरे कैनवासों के बीचों बीच सतर पगडंडी पर।

पूरी लय और ताल के साथ

बेरहम बोझ से लचक कर जब चलती हो तुम

सौंदर्य प्रतियोगिताओं के रैम्प पर

कैटवॉक करती हर अल्पवसना

लगने लगती है बेमाने

तुम्हारे साथ गाते हैं मैली चूड़ियों के सुर

तुम्हारी तेज़ साँसों से उड़ते हैं पवन के परिंदे

तुम्हारी गिलट की पायलों की रुनझुन

भरती है चाल में रागिनी

बेला की महकती डार जैसे

छिपी हो तुम्हारे अधखुले बालों में

उतरती धूप की अलसाई अंगड़ाई में

तुम्हारा निश्चल यौवन उगाता है धरती पर

ईश्वर के होने का विश्वास

क्या हुआ जो नहीं हैं नरम, तुम्हारे साँवले मेहनती हाथ

क्या हुआ जो नहीं हैं, तुम्हारे पाँवों की एड़ियाँ गुलाबी

मानव भेड़ियों से भरे बहरूपिये समाज से

अकेली जूझती हो तुम

पशु भेड़ियों भरे जंगलों से निडर गुजरती हो

हर मुसीबत को हँसिये से चीरती सी तुम

कौन कहता है कि तुम में नहीं है,

सशक्त आधुनिक नारी का वास।

बताओ तो धनियाँ ।

 

संपर्क – निर्देश निधि , द्वारा – डॉ प्रमोद निधि , विद्या भवन , कचहरी रोड , बुलंदशहर , (उप्र) पिन – 203001

ईमेल – [email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष ☆ महिला दिवस पर दस दोहे ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के विशेष अवसर पर  कविता  “महिला दिवस पर दस दोहे। )

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष  –  महिला दिवस पर दस दोहे

  

भिन्सारे उठ कर करे, घर के सारे काम।

व्यस्त  रहे पूरे दिवस, देर  रात  विश्राम।।

 

शैशव को मृदु  स्नेह दे, दे किशोर  को  ज्ञान।

अनुशाषित युव पुत्र को, मातृ शक्ति वरदान।।

 

पत्नी, पुत्री, माँ, बहन, भिन्न – भिन्न हैं रूप।

करे पूर्ण दायित्व सब, सुख दायिनी स्वरूप।

 

मर्यादा दहलीज की, दो-दो घर की शान।

है अनन्त महिमामयी, धैर्य धर्म की खान।।

 

सहनशील धरती सदृश,मन में सेवा भाव।

संघर्षों  से  जूझती,  धूप  मिले  या  छाँव।।

 

मात-पिता की लाड़ली, बच्चों का है प्यार

सम्बल है पति का बनी, सुखी करे संसार।

 

होता है श्री हीन नर, बिन नारी के संग।

लक्ष्मी बन  घर में भरे, मंदिर जैसे  रंग।।

 

इम्तिहान हर डगर पर, मातृशक्ति के नाम

विनत भाव सेवा करे, हो कर के निष्काम।

 

संकोची  घर  में  रहे, बाहर  है  तलवार।

जब जैसी बहती हवा, वैसी उसकी धार।।

 

समझें नारी को नहीं, कोई भी कमजोर

नारी  के  ही  हाथ  में, पूरे जग  की डोर।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #38 ☆ औरत ☆ श्री संजय भारद्वाज

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष 

श्री संजय भारद्वाज 

 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष ☆

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 38 ☆

☆ *औरत* ☆

 

मैंने देखी-

बालकनी की रेलिंग पर लटकी

खूबसूरती के नए एंगल बनाती औरत,

मैंने देखी-

धोबीघाट पर पानी की लय के साथ

यौवन निचोड़ती औरत,

मैंने देखी-

कच्ची रस्सी पर संतुलन साधती

साँचेदार खट्टी-मीठी औरत,

मैंने देखी-

चूल्हे की आँच में

माथे पर चमकते मोती संवारती औरत,

मैंने देखी फलों की टोकरी उठाए

सौंदर्य के प्रतिमान लुटाती औरत,

अलग-अलग किस्से,

अलग-अलग चर्चे,

औरत के लिए राग एकता के साथ

सबने सचमुच देखी थी ऐसी औरत,

बस नहीं दिखी थी उनको-

रेलिंग पर लटककर छत बुहारती औरत,

धोबीघाट पर मोगरी के बल पर

कपड़े फटकारती औरत,

रस्सी पर खड़े हो अपने बच्चों की भूख को ललकारती औरत,

गूँदती-बेलती-पकाती

पसीने से झिजती

पर रोटी खिलाती औरत,

सिर पर उठाकर बोझ

गृहस्थी का जिम्मा बँटाती औरत,

शायद हाथी और अंधों की

कहानी की तर्ज़ पर

सबने देखी अपनी सुविधा से

थोड़ी-थोड़ी औरत,

अफ़सोस किसीने नहीं देखी

एक बार में

पूरी की पूरी औरत..!

 

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 25 – कुछ इस तरह ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना ‘कुछ इस तरह । आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़  सकते हैं । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 25 – विशाखा की नज़र से

☆ कुछ इस तरह ☆

 

तुम्हारे होने की तपिश

बन के सूरज की किरण

मेरे कांधों को सहलाती है

 

ऐसे जैसे दिसंबर के सर्द दिनों में

मैंने ओढ़ लिया हो तेरे नाम का

संदली दुशाला

 

जैसे धूप पार करती  है

आसमान में बना अदृश्य पुल

बढ़ चलती है पूरब से पश्चिम की ओर

 

मैं भी बदलती हूँ अपना बाना

सिंदूरी से सुनहरा

फिर से वही सिंदूरी

 

इस तरह तय करते हैं मेरे दिन

भोर से साँझ का सफर

और बदलती जाती हैं तारीख़ें

 

बदलते हैं माह जनवरी से दिसंबर !

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – हाँ, मैं स्त्री हूँ! ☆ श्रीमती तृप्ति रक्षा 

 

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष 

श्रीमती तृप्ति रक्षा  

( ई – अभिव्यक्ति  में   श्रीमती तृप्ति रक्षा जी  का हार्दिक स्वागत है । आप शिक्षिका हैं एवं आपके वेब पोर्टल पर कवितायेँ प्रकाशित होती रहती हैं। संगीत, पुस्तकें पढ़ना एवं सामाजिक कार्यों में विशेष अभिरुचि है।  विचार- स्त्री हूँ स्त्री के साथ खड़ी हूँ।  आज  प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर  आपकी विशेष कविता  “हाँ, मैं  स्त्री हूँ!” )

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष  – हाँ, मैं स्त्री हूँ! 

हाँ ,मैं  स्त्री हूँ !

तभी तो भूल जाती हूँ ,

बार -बार शब्दों के उन तीक्ष्ण बाणों को,

और क्षण भर मौन रहकर समेट लेती हूं,

खुद को रसोईघर  के कोने में ।

 

हाँ ,हूँ मैं स्त्री !

तभी तो साथ देती हूं हर बार,

तुम्हारे घर से निकाल देने की बात पर भी,

आमंत्रण देती  हूं साथ निभाने का  हर सुख-दुख में,

क्योंकि मेरा अस्तित्व है ज़िन्दा,

तुम्हारे साथ होने में ।

 

हूँ मैं स्त्री!

इतनी संवेदना तो है,कि भूल जाती हूं ,

कैसे छलते रहे हर-बार तुम मुझे और मैं मुस्कुरा कर माफ कर देती हूं,

डर है मुझे तुम्हारा प्यार खोने में।

 

हाँ, मैं वही स्त्री हूँ!

जो हर पल इक आस‌ में जीती है,

सुनहरे सपने सजाती है

जिसे पूरा होने के पहले हीं ,

तुम तोड़ देते हो और बुनते हो इक मकड़जाल

अपने झूठे रसूख को बचाने में ।

 

हाँ ,मैं  स्त्री हूँ !

जिसे परवाह नहीं अपने हाथों के छालों की,

वो तो बस तुम्हारे मुस्कान की प्रतीक्षा में है ,

पर कहां समझ पाते हो कि ये छोटी सी फरमाइश भी पूरी होती है,

तुम्हारे साथ -साथ

हँसने और रोने में।

 

हाँ मैं स्त्री हूँ

जो ढेर सारा जहर पीकर भी,

सोलह श्रृंगार कर इंतजार करती है

पर हाय! ये आखिरी ख्वाहिश भी तुम भूल जाते हो,

जिसे मैं ज़िन्दा रखती हूँ,

गले में मंगलसूत्र के होने में।

क्योंकि मैं एक स्त्री हूँ ।

तुम हो, तो मैं ज़िन्दा हूँ ।।

 

© तृप्ति रक्षा

सिवान बिहार

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष –

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – स्त्री तुम हो ☆ श्री दिवयांशु शेखर

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष 

श्री दिव्यांशु शेखर 

(युवा साहित्यकार श्री दिव्यांशु शेखर जी ने बिहार के सुपौल में अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण की।  आप  मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। जब आप ग्यारहवीं कक्षा में थे, तब से  ही आपने साहित्य सृजन प्रारम्भ कर दिया था। आपका प्रथम काव्य संग्रह “जिंदगी – एक चलचित्र” मई 2017 में प्रकाशित हुआ एवं प्रथम अङ्ग्रेज़ी उपन्यास  “Too Close – Too Far” दिसंबर 2018 में प्रकाशित हुआ। ये पुस्तकें सभी प्रमुख ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं। आज प्रस्तुत है  अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर  श्री दिव्यांशु शेखर जी की विशेष कविता “स्त्री तुम हो”  )

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – स्त्री तुम हो 

 

स्वयं आदिशक्ति से लेकर सबके भक्ति तक,

पूज्य धात्री से लेकर प्यारी पुत्री तक,

सहभागी भगिनी से लेकर सहयोगी अर्धांगिनी तक,

दादी के पिहानी से लेकर नानी के कहानी तक,

नायक के मीत से लेकर गायक के गीत तक,

निर्देशक के मंचन से लेकर चित्रक के चित्रण तक,

संसार की संरचना से लेकर मेरी हर रचना तक।

 

©  दिव्यांशु  शेखर

कोलकाता

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – सृष्टि के विधान में नहीं नारी से सुन्दर रचना ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष 

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साहित्य की अन्य विधाओं में भी उनका विशेष दखल है। आज प्रस्तुत है  अंतर्राष्ट्रीय महिला  दिवस पर  श्रीमती सिद्धेश्वरी जी  की यह  विशेष कविता “सृष्टि के विधान में नहीं नारी से सुन्दर रचना”।   

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष  –  सृष्टि के विधान में नहीं नारी से सुन्दर रचना 

 

सुंदर सौम्य और शील वेदों का है ये कहना।

सृष्टि के विधान में नहीं नारी से सुन्दर रचना

 

बेटी बहन और मां के रूप में

ममता और  त्याग का सहना

 

पाकर सौभाग्य शृंगार जगत में

हँसते हँसते दुख-सुख सहना

 

सृष्टि के विधान में नहीं नारी से सुंदर रचना

 

पिता के घर बेटी के रूप में

प्रकृति का अनमोल खजाना

 

जब जाए पति के घर में

पहन कर्तव्यों का गहना

 

सृष्टि के विधान में नहीं नारी से दूसरी रचना

 

पता चला कन्या भ्रूण है कोख में

पेट में ही चाहा उसको मरवाना

 

यह है कैसी विडंबना जग में

कैसे होगा उस कन्या का जीना

 

सृष्टि के विधान में नहीं नारी से दूसरी रचना

 

स्नेह दया करुणा जीवन में

ममता ही है उसका  गहना

 

त्याग की मूरत बनी है जग में

नए वंश को है उसे जनम देना

 

सृष्टि के विधान में नहीं नारी से दूसरी रचना

 

लगा सिंदूरी रंग मांथे में

कर अपने हाथों पे भरोसा

 

शक्ति रूप में पूजी जाती

सारे जगत में नारी हमेशा

 

सुंदर सौम्य और शील वेदों का है ये कहना

सृष्टी के विधान में नहीं नारी से सुन्दर रचना

 

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #12 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #12 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

 

मन के कर्म सुधार ले, मन ही प्रमुख प्रधान । 

कायिक वाचिक कर्म तो, मन की ही संतान ।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.  We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.

Email: [email protected]

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आमरण ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – आमरण ☆

 

दो समूहों के बीच

वाद-विवाद,

मार-पीट,

दंगा-फसाद,

बीच बचाव करनेवाला

निर्दोष मारा गया

दोनों तरफ के

सामूहिक हमले में..,

सोचता हूँ

यों कब तक

रोज मरता रहूँगा मैं..?

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

31.7.2016, संध्या 8.05 बजे।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ अंत्येष्टि /Funerals – श्री संजय भारद्वाज ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी  द्वारा श्री संजय भारद्वाज जी की कविता “ अंत्येष्टि ”  का अंग्रेजी भावानुवाद  “Funerals?” ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का अवसर एक संयोग है। 

भावनुवादों में ऐसे  प्रयोगों के लिए हम हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी के ह्रदय से आभारी हैं। 

आइए…हम लोग भी इस कविता के मूल हिंदी  रचना के साथ-साथ अंग्रेजी में भी आत्मसात करें और अपनी प्रतिक्रियाओं से कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी  को परिचित कराएँ।

]☆ श्री संजय भरद्वाज जी  की मूल रचना – अंत्येष्टि ☆

 

उसने जलाया

इसने दफनाया,

उसने कुएँ में लटकाया

इसने नदी में बहाया,

आत्मा की शांति के

शीर्षक तले

अपनी-अपनी

संतुष्टि की कवायदें…!

 

  • संजय भारद्वाज

(कवितासंग्रह *मैं नहीं लिखता कविता* से)

 

☆  English Version  of  Poem of  Shri Sanjay Bhardwaj ☆ 

☆  “Funerals – by Captain Pravin  Raghuwanshi 

He cremated it,

They buried it,

Few hung it in the well

Others flowed it in the river,

Under the garb of

Peace of soul

Everyone carried out drills

for their own satisfaction…!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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