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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 26 – जर….. ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे   (आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी एक कविता  “जर.....”.    सुश्री प्रभा जी  ने सत्तर वर्ष की  वय में  जिस  परीकथा को लिखने की कल्पना की थी, उन्हें पता भी नहीं चला और उन्होंने इस कविता के माध्यम से लिख ही दिया। इसका आभास उन्हें तब होगा जब वे इस कविता को पुनः पढेंगी। वास्तव में कवि अपनी परिकल्पना में इतना खो जाता है  कि उसे पता ही नहीं चलता है कि वह एक कालजयी रचना कर रहा है। अतिसुन्दर परी कथा की  रचना एक मधुर स्मृति  की तरह संजो कर रखने लायक।  मैं यह लिखना नहीं भूलता कि  सुश्री प्रभा जी की कवितायें इतनी हृदयस्पर्शी होती हैं कि- कलम उनकी सम्माननीय रचनाओं पर या तो लिखे बिना बढ़ नहीं पाती अथवा निःशब्द हो जाती हैं। सुश्री प्रभा जी की कलम को पुनः नमन। मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते...
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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #26 – मेघ भक्तीचा ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे (वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक  भावप्रवण कविता  “मेघ भक्तीचा”।) ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 26 ☆ ☆ मेघ भक्तीचा ☆   कृष्ण डोह हा सावळा राधा उतरली आत ठाव घेताना डोहाचा सारी सरली ही रात   वीणा चिपळ्या सोबती मेघ भक्तीचा बरसे गाभाऱ्यात तेवणारी मीरा तेजोमय  वात   राधा सत्ययुगातली कलियुगातली मीरा तरी सवतीचा खेळ चाले अजून दोघीत   नागवेलीचं हे पान वाटे नागिणीचा फणा फास झाडाच्या भोवती तिनं टाकलेली कात   वन सारं बासरीचं तिच्या सोबती नाचतं धून राधेच्या प्राणाची नित्य वाजे बासरीत   © अशोक श्रीपाद भांबुरे धनकवडी, पुणे ४११ ०४३. मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८...
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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #- 25 – मासिक पाळी ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे    (श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  शिक्षिका के कलम से  तरुण युवतियों के लिए एक शिक्षाप्रद भावप्रवण कविता  – “मासिक पाळी”। )   ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 25 ☆     ☆ मासिक पाळी ☆   तारूण्याच्या उंबऱ्यावर स्त्रीत्वाची ही निशाणी। म्हणे कोणी ओटी आली लेक झाली हो शहाणी।   जुने नवे घाल मेळ भावनांचा नको खेळ। योग्यतेच ठेवी ध्यानी , होई व्यर्थ जाता वेळ।   नको जाऊ गोंधळून सुचिर्भुत रहा दक्ष जरी धोक्याचे हे वय ध्येयावरी ठेवी लक्ष।   लागू नये नजर दुष्ट तुला जपते जीवापाड। जरी जाचक भासली माझी बंधने ही  द्वाड।   हवे मर्यादांचे भान घेता उंच तू भरारी। श्रेष्ठ संस्कृती सभ्यता सदा जपावी अंतरी।   जप तारूण्याचा ठेवा जाण जीवनाचे मोल। प्रकृतीने दिले तुज असे स्त्रीत्व अनमोल।   ©  रंजना मधुकर लसणे आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली 9960128105...
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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सुजित साहित्य # 24 – बरं आहे मना तुझं… ☆ – श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम   (श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है!  आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर कविता बरं आहे मना तुझं... ) ☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #24☆    ☆  बरं आहे मना तुझं... ☆    बरं  आहे मना तुझं सदा राही रूबाबात ताबा घेऊनीया माझा राही तिच्या घरट्यात. . . . !   बरं आहे मना तुझं जमे हासू आणि आसू कधी  इथे, कधी तिथे आठवांचे रंग फासू . . . !   बरं आहे मना तुझं खर्च नाही तुला काही अन्न पाण्या वाचूनीया तुझे अडते ना काही .. . !   बरं आहे मना तुझं माझी खातोस भाकरी माझ्या घरात राहून तिची करशी चाकरी. . . !   बरं आहे मना तुझं असं तिच्यात गुंतण ठेच लागताच मला तिच्या डोळ्यात झरणं.. . !   © सुजित...
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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 25 – घर बदलताना ….☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे   (आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी एक कविता  “घर बदलताना ....”.    सुश्री प्रभा जी की कविता की एक एक पंक्तियाँ हमें एक चलचित्र का अहसास देती हैं।  यह सच है अक्सर युवती ही पदार्पण करती है अपने नए घर में ।  फिर एक एक क्षण बन जाता है इतिहास जो  स्मृति स्वरुप आजीवन साथ रहता है अश्रुपूरित उस घर को बदलते तक।  या तो  घर बदलता है  जिसमें हम रहते हैं या फिर शरीर जिसमें हमारी आत्मा रहती है।  अतिसुन्दर रचना एक मधुर स्मृति  की तरह संजो कर रखने लायक।  मैं यह लिखना नहीं भूलता कि  सुश्री प्रभा जी की कवितायें इतनी हृदयस्पर्शी होती हैं कि- कलम उनकी सम्माननीय रचनाओं पर या तो लिखे बिना बढ़ नहीं पाती अथवा निःशब्द हो जाती हैं। सुश्री प्रभा जी की कलम को पुनः नमन। मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप ...
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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #25 – उध्वस्त जगणे ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे (वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक  भावप्रवण कविता  “उध्वस्त जगणे ”।) ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 25 ☆   ☆ उध्वस्त जगणे ☆   कुर्बान जिस्म जाँ ये मेरी यहाँ वतन पर   जे लिहावे वाटले ते, मी लिहू शकलो कुठे ? आशयाच्या दर्पणातुन, मी खरा दिसलो कुठे   कायद्याच्या चौकटीचे, दार मी ठोठावले आंधळ्या न्यायापुढे या, सांग मी टिकलो कुठे ?   मी सुनामी वादळांना, भीक नाही घातली जाहले उध्वस्त जगणे, मी तरी खचलो कुठे   गजल का नाराज आहे, शेवटी कळले मला जीवनाच्या अनुभवाला, मी खरा भिडलो कुठे   एवढ्यासाठीच माझी, जिंदगी रागावली मी व्यथेसाठी जगाच्या, या इथे झटलो कुठे   टाकले वाळीत का हे, सत्य माझे लोक हो सांग ना दुनिये मला तू, मी इथे चुकलो कुठे   सरण माझे पेटताना, शेवटी कळले मला जगुनही मेलो खरा मी, मरुनही जगलो कुठे   © अशोक श्रीपाद भांबुरे धनकवडी, पुणे...
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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #- 24 – स्त्री अभिव्यक्ती ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे    (श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  शिक्षिका के कलम से एक भावप्रवण कविता / गीत  – “स्त्री अभिव्यक्ती”। )   ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 24 ☆     ☆ स्त्री अभिव्यक्ती ☆   अभिव्याक्तीच्या  नावावरती, उगाच वायफळ बोंबा  हो। चढणारीचा पाय ओढता, उगा कशाला थांबा हो। जी sssजी र जी माझ्या राजा तू रं माझ्या  सर्जा तू रं  ssss.।।धृ।।   गर्भामधी कळी वाढते, प्राण जणू तो आईची। वंशाला हवाच दीपक , एक चालेना बाईची। काळजास सूरी लावूनी, स्री मुक्तीचा टेंभा हो।। जी जी रं जी...,।।१।।   आरक्षण दावून गाजर, निवडून येता बाई हो। सहीचाच तो हक्क तिला,अन् स्वार्थ साधती बापे हो। संविधानाची पायमल्ली की, स्री हाक्काची शोभा हो। जी जी रं जी....।।३।।   स्री अभिव्यक्ती बाण विषारी,घायाळ झाले बापे ग। सांग साजणी कशी...
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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सुजित साहित्य # 23 – पान हिरवे… ☆ – श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम   (श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है!  आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर कविता पान हिरवे...  ) ☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #23☆    ☆  पान हिरवे... ☆    पान हिरवे झाडाचे वा-यासंगे गाते गाणे शिवाराच्या त्या मातीला भेटायाचे पान म्हणे. . . . !   जाते बोलून मनीचे झाड  बिचारे  ऐकते ऊन वा-याचे तडाखे बळ झुंजायाचे देते. .. . !   स्वप्न पाहण्यात दंग पान हिरवे झाडाचे वयानूरुप सरले गूढ गुपित पानाचे. . . . . !   हळदीच्या रंगामध्ये पान हिरवे नाहते सोन पिवळ्या रंगात रूप त्याचे पालटते. . . . !   झाडालाही हुरहुर पान पिवळे होताना रंग हिरवा देठात मातीमध्ये पडताना. . . . !   © सुजित कदम, पुणे 7276282626 ...
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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 24 – उत्तरायण ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे   (आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी एक कविता  “उत्तरायण”.  जीवन के उत्तरार्ध  में रुक कर भी भला कोई कैसे अपने जीवन पर उपन्यास लिख सकता है।  सुश्री प्रभा जी की कविता जीवन के उत्तरायण में  सहज ही पाप-पुण्य, काल के सर्प  के दंश और भी जीवन के कई भयावह पन्नों से रूबरू कराती है।  सुश्री प्रभा जी की कवितायें इतनी हृदयस्पर्शी होती हैं कि- कलम उनकी सम्माननीय रचनाओं पर या तो लिखे बिना बढ़ नहीं पाती अथवा निःशब्द हो जाती हैं। सुश्री प्रभा जी की कलम को पुनः नमन। मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।) ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 24 ☆ ☆ उत्तरायण ☆    माहीत नाही यापुढचं आयुष्य कसं असेल? वय उतरणीला लागल्यावर आठवतात तारुण्यातले अवघड घाट वळण-वळसे... स्वप्नवत्‌ फुलपंखी अभिमंत्रित वाटा...   ठरवून थोडीच लिहिता येते आयुष्याची कादंबरी? काय चूक आणि काय...
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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #- 23 – कॉपी ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे    (श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  शिक्षिका के कलम से एक भावप्रवण कविता  – “कॉपी”। )   ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 23☆     ☆ कॉपी ☆   कॉपी मुक्त शिक्षणाची आज मांडली से थट्टा । पेपर फुटीला ऊधान लावी गुणवत्तेला बट्टा।   गरिबाचं पोरं  वेडं दिनरात अभ्यासानं। ऐनवेळी रोवी झेंडा गठ्ठेवाला धनवान ।   सार्‍या शिक्षणाचा सार गुण   सांगती शंभर। चाकरीत  बिरबल सत्ताधारी अकबर।   कॉपी पुरता अभ्यास चार दिवसाचे सत्र। ठरविते गुणवत्ता गुणहीन  गुणपत्र।   उन्नतीस खीळ घाली कॉपी नामक वळंबा। नाणे पारखावे जसे राजे शिवाजी नि संभा।   ©  रंजना मधुकर लसणे आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली 9960128105...
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