हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 44 ☆ मुक्तक ।।हर दिन इक़ नया संग्राम है यह जिन्दगी।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।हर दिन इक़ नया  संग्राम है यह जिन्दगी।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 44 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।हर दिन इक़ नया  संग्राम है यह जिन्दगी।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

बस सुख और   आराम ,नहीं है जिंदगी।

ना होना दुख का निशान, नहीं है जिंदगी।।

संघर्षों से दाम वसूलती, वह  जिंदगी है।

गमों पर  लगे   विराम,  नहीं है जिंदगी।।

[2]

ऐशो आराम  तामझाम,  नहीं है  जिंदगी।

बस खुशियों का ही पैगाम,नहीं है जिंदगी।।

कभी खुशी कभी  गम,   का ही नाम यह।

कोशिशों से पाना मुकाम ,है यह   जिंदगी।।

[3]

हर सुख का मिला जाम, नहीं है जिंदगी।

बस  यूँ ही गुमनाम,    नहीं  है जिंदगी।।

संघर्ष अग्नि पर ,तपकर बनता है सोना।

अपने स्वार्थ से ही,काम नहीं है जिंदगी।।

[4]

सुख दुःख का छाया, घाम है यह जिंदगी।

हरदिन इक़ नया संग्राम,है यह   जिंदगी।।

अपने लिए नहीं दूजों के,लिये जीना यहाँ।

सरोकारों के  चारों  धाम, है यह जिंदगी।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈



हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – है और था ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ मार्गशीष साधना सम्पन्न हो गई है। 🌻

अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी  

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि –  है और था ??

वर्तमान इक रोज़

अतीत हो जाएगा,

अतीत रूप बदल कर

इक रोज़ लौट आएगा,

बहुरूपिया समय

नाना स्वांग रचता है,

‘है’ और ‘था’ बन कर

मनुष्य को ठगता है. !

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 4:05 बजे, 22.5.19

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈



हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 109 ☆ ग़ज़ल – “हैरान हो रहे हैं सब देखने वाले हैं…”☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “हैरान हो रहे हैं सब देखने वाले हैं…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #110 ☆  ग़ज़ल  – “हैरान हो रहे हैं सब देखने वाले हैं…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

सच आज की दुनियॉं के अन्दाज निराले हैं

हैरान हो रहे है सब देखने वाले हैं।

 

धोखा, दगा, रिश्वत  का यों बढ़ गया चलन है

देखों जहॉं भी दिखते बस घपले-घोटाले हैं।

 

पद ज्ञान प्रतिष्ठा ने तज दी सभी मर्यादा

धन कमाने के सबने नये ढंग निकाले हैं।

 

शोहरत औ’ दिखावों की यों होड़ लग गई है

नज़रों में सबकी, होटल, पब, सुरा के प्याले हैं।

 

महिलायें तंग ओछे कपड़े पहिन के खुश है

आँखें  झुका लेते वे जो देखने वाले हैं।

 

शालीनता सदा से श्रृंगार थी नारी की

उसके नयी फैशन ने दीवाले निकाले हैं।

 

व्यवहार में बेइमानी का रंग चढ़ा ऐसा

रहे मन के साफ थोड़े, मन के अधिक काले हैं।

 

अच्छे-भलों का सहसा चलना बड़ा मुश्किल है

हर राह भीड़ बेढ़ब, बढ़े पॉंव में छाले हैं।

 

जो हो रहा उससे तो न जाने क्या हो जाता

पर पुण्य पुराने हैं, जो सबको सम्हाले हैं।

 

आतंकवाद नाहक जग को सता रहा है

कहीं आग की लपटें, कहीं खून के नाले है।

 

हर दिन ये सारी दुनियॉं हिचकोले खा रही है

पर सब ’विदग्ध’ डरकर ईश्वर के हवाले हैं।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




ज्योतिष साहित्य ☆ वार्षिक राशिफल 2023 ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। पाठकों के विशेष अनुरोध पर आज प्रस्तुत है वार्षिक राशिफल 2023।)  

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ वार्षिक राशिफल 2023 ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

 

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (12 दिसंबर से 18 दिसंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (12 दिसंबर से 18 दिसंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

भाग्य और परिश्रम के बारे में बहुत सारे तक दिए जाते हैं एक तर्क यह भी है की

तुम्हारे भाग्य में सब कुछ है देखो ।

कभी सही मंजिल पहचान के तो देखो ।।

वक्त तो लगेगा ही ऊंचाइयों तक पहुंचने में ।

अपने हौसलों को तो आसमां तक उड़ा के तो देखो ।।

आपके अपने भाग्य में सब कुछ है । यह सब कुछ आपको कब मिलेगा यह जान पाना कठिन है । 12 दिसंबर से 18 दिसंबर 2022 अर्थात विक्रम संवत 2079 शक संवत 1944 के पौष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी से कृष्ण पक्ष की दसवीं तक के सप्ताह में आपको भाग्य के कारण क्या-क्या मिलेगा मैं पंडित अनिल पाण्डेय आपको बताने जा रहा हूं।

इस सप्ताह प्रारंभ में चंद्रमा कर्क राशि में रहेगा । इसके उपरांत सिंह और कन्या राशि से गोचर करता हुआ 18 दिसंबर को 6:30 सायं काल से तुला राशि में प्रवेश करेगा। सूर्य प्रारंभ में वृश्चिक राशि में रहेंगे तथा 16 दिसंबर को 7:07 रात से धनु राशि में प्रवेश करेंगे । इस पूरे सप्ताह मंगल वृष राशि में वक्री रहेंगे , बुध धनु राशि में रहेंगे , गुरु मीन राशि में रहेंगे , शनि मकर राशि में रहेंगे , शुक्र धनु राशि में रहेंगे तथा राहु मेष राशि में गोचर करेंगे।

आइए अब हम राशि वार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

मेष राशि के जातकों के लिए यह सप्ताह मिलाजुला परिणाम लेकर आएगा । सप्ताह के अंत में भाग्य अच्छा साथ देगा । सप्ताह के प्रारंभ में छोटी मोटी दुर्घटना हो सकती है । आपको संतान से कम सहयोग प्राप्त होगा । दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें । इस सप्ताह आपके लिए 12 और 13 दिसंबर उपयोगी और सार्थक हैं । 16-17 और 28 नंबर को आपको सावधान रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

 इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा । धन आने की उम्मीद की जा सकती है । दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें । आपको अपनी संतान से सहयोग नहीं प्राप्त होगा । छात्रों की पढ़ाई में बाधा आ सकती है । आपके सुख में कमी होगी । कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी । इस सप्ताह आपके लिए 14 और 15 दिसंबर उत्तम और लाभप्रद है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रात काल स्नान करने के उपरांत तांबे के पात्र में जल अक्षत और लाल पुष्प लेकर भगवान सूर्य को उनके मंत्रों से जल अर्पण करें ।  सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है ।

मिथुन राशि

मिथुन राशि के वे जातक जो अविवाहित हैं उनके विवाह की उत्तम प्रस्ताव आएंगे । अगर आप प्रयास करेंगे तो  विवाह तय हो सकता है । आपके कुछ लोग आपकी विवाह में बाधा भी बन सकते हैं  । कृपया ऐसे लोगों से सावधान रहें । भाग्य आपका साथ देगा । तंत्रिका तंत्र में पीड़ा हो सकती है । इस सप्ताह आपके लिए 16 17 और 18 दिसंबर कार्यों को सफल बनाने के लिए उत्तम है । आपको इन दिनों का भरपूर उपयोग करना चाहिए  । इस  सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कर्क राशि

अविवाहित जातकों के लिए यह उत्तम अवसर है ।उनके विवाह के प्रस्ताव आएंगे। आपका भाग्य पूरी तरह से आपकी मदद करेगा । परंतु आपके कुछ नजदीकी लोग आपके रिश्ते को बिगाड़ने  का प्रयास करेंगे । आपको अपने संतान से अच्छा सुख प्राप्त होगा । विद्या का अच्छा योग है । छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी । पिताजी को कष्ट हो सकता है । आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । 12 और 13 दिसंबर फलदायक और लाभदायक है । आपको 12 और 13 दिसंबर को अपने कार्यों को करने का पूरा प्रयास करना चाहिए। । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गाय को हरा चारा खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपको नरम और गरम दोनों तरह के फल प्राप्त होंगे । आपके शत्रु शांत रहेंगे परंतु समाप्त नहीं होंगे । आपको अपने संतान से सुख प्राप्त होगा । भाग्य इस सप्ताह आपकी मदद बिल्कुल नहीं करेगा । जनता में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी । सुख में वृद्धि होगी । माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है । इस सप्ताह आपके लिए 14 और 15 दिसंबर लाभदायक और फलदायक हैं । 12 और 13 दिसंबर को आप कई कार्यों में असफल हो सकते हैं । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह भगवान शिव का अभिषेक करें और प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपकी कुंडली के गोचर में घर धन आने का उत्तम योग है । यह धन आपको अपनी मेहनत के कारण मिलेगा । भाई बहनों से आपका स्नेह बढ़ेगा । क्रोध में वृद्धि होगी । माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । भाग्य से थोड़ी बहुत मदद मिलेगी । इस सप्ताह आपके लिए 16 17 और 18 दिसंबर सफलता दायक है। जिन कार्यों में आप बहुत दिन से सफल नहीं हो रहे हैं उनको 16 17 या अट्ठारह को करने का प्रयास करें । सफल होंगे । 14 और 15 दिसंबर को आपको सचेत रहकर कार्य करना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौमाता को दें । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

तुला राशि

तुला राशि के जातकों के लिए यह सप्ताह धन लेकर आ रहा है । क्रोध की मात्रा में थोड़ी वृद्धि होगी । भाग्य साथ देगा । भाई बहनों के साथ संबंध अच्छे होंगे । संतान का सहयोग प्राप्त हो सकता है । पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है । कार्यालय में आप की स्थिति में थोड़ा गिरावट होगी । इस सप्ताह आपके लिए 12 और 13 दिसंबर अत्यंत उत्तम है । आपके सभी लंबित कार्य अगर आप चाहें तो इन दोनों तारीखों में संपन्न हो जाएंगे । 16-17 और 18 दिसंबर को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए ।  इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

आपके आत्मसम्मान में वृद्धि होगी । आपके अंदर कार्य करने की क्षमता एवं कार्य करवाने की क्षमता दोनों में वृद्धि होगी । धन आने का योग है परंतु यह अल्प मात्रा में आएगा । बहनों से संबंध अच्छे रहेंगे ।  भाग्य कम साथ देगा । शादी ब्याह के संबंधों में छोटी मोटी परेशानी आ सकती है ।  जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा ।   शत्रु का विनाश होगा । इस सप्ताह आपके लिए 14 और 15 दिसंबर लाभप्रद है ।  आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह चीटियों को दाना दें ।  सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

आपके पास धन आने का ठीक ठाक योग है। आपको कचहरी के कार्यों में सफलता मिलेगी । आपके पुत्र को कुछ हानि हो सकती है । माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है । आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा । अगर आप अविवाहित हैं तो आपके  विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं । प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी । आपके लिए 16 ,17 और अट्ठारह दिसंबर शुभ फलदाई हैं । 12 और 13 दिसंबर को आपको सावधान रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप विष्णु सहस्त्रनाम का प्रतिदिन जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

मकर राशि के जातकों को इस सप्ताह के पुर्वाध में धन मिलने की उम्मीद है । उसके उपरांत धन प्राप्त नहीं होगा । भाई बहनों से संबंध उत्तम रहेंगे । आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा । जीवनसाथी के गर्दन या कमर में दर्द हो सकता है ।  आपके प्रेम संबंध में बाधा आ सकती है । संतान का सुख प्राप्त होगा । भाग्य सामान्य है ।  इस सप्ताह आपके लिए 12 और 13 दिसंबर उत्तम और लाभप्रद है । 14 और 15 दिसंबर को आपके कुछ कार्य खराब हो सकते हैं । कृपया सावधान रहें । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप राम रक्षा स्त्रोत का प्रतिदिन जाप करें ।  सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपको कचहरी के कार्यों में सफलता मिलने का अद्भुत योग है। । धन आने की भी अच्छी उम्मीद है। । बहनों से संबंध ठीक रहेगा । भाइयों से कुछ  तकरार हो सकती है । परंतु वे संबंधी बाद में ठीक हो जाएंगे ।  पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा ।  कार्यालय में आपको मान सम्मान प्राप्त होगा ।  भाग्य ठीक-ठाक है ।  माताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा । आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा । इस सप्ताह आपके लिए 14 और 15 दिसंबर सफलता दायक हैं ।  सप्ताह के बाकी दिन आपको सावधान रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शुक्रवार को किसी मंदिर में जाकर पुजारी जी को सफेद वस्त्रों  का दान दें ।सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मीन राशि

मीन राशि के जातकों के लिए यह सप्ताह अच्छा है । उनका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी । समाज में इज्जत मिलेगी । भाग्य साथ देगा । पुत्र पुत्रियों की उन्नति होगी। । परीक्षा में सफलता प्राप्त होगी ।  धन आने का योग है । कार्यालय में आपको प्रतिष्ठा प्राप्त होगी ।  इस सप्ताह आपके लिए 16 ,17 और अट्ठारह दिसंबर उत्तम और कार्य सिद्धि दायक है । 14 और 15 दिसंबर को आपको अपने कार्यों में सावधानी बरतना चाहिए ।  इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गौ माता को हरा चारा दें ।  सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट का उपयोग करें और हमें इसके प्रभाव के बारे में बताएं ।

मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें।

 

जय मां शारदा।

मेष राशि

 

वृष राशि

 

मिथुन राशि

 

कर्क राशि

 

सिंह राशि

 

कन्या राशि

 

तुला राशि

 

वृश्चिक राशि

 

धनु राशि

 

मकर राशि

 

कुंभ राशि

 

मीन राशि

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ “द्वैत…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ “द्वैत…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

खेळून खेळून लपंडाव कंटाळलो आहे

घेऊन सारखं सारखं राज्य वैतागलो आहे

भिंतीमागे कधी साद देतोस अनाहत नादात

नेहमी भासवतोस भास शब्दांच्या गवतात

धरायला जातो तुला जेव्हा झाडामागे

दिसतात तेव्हा विंचू लपलेले दगडामागे

ती माया मला नेहमी लांबून खिजवते

धावतो मग चिडून तुझ्या त्या मैत्रिणीच्या मागे

 

तुला फसवून बाहेर आणायला काय नाही केलं

गोड गोड स्तुती करणारी तुझी गाणी म्हटली

मंत्रमुग्ध करणारी सुगंधी काडी जाळली

पण तू आहेस आपल्या सगळ्यात हुशार

घेत नाहीस सहजी कोणाचाही कैवार

खरं सांगू, मला तुझा फायदा नको आहे

फक्त हात तुझ्या दोस्तीचा हवा आहे

 

पुरे झाला रे आता हा लपंडावाचा त्रागा

फिरवल्यासना मला सगळ्या जागा

किती काळ झाला आपण खेळतोय

याचा काहीच हिशोब नाहीये

किती वेळ अजून खेळणारे

याचा काहीच अंदाज नाहीये

जाऊ रे आता परत आपल्या घरी

संपव क्षणात तुझ्या माझ्यातली दरी…

© श्री आशिष मुळे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 130 – हवा अंत ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 130 – हवा अंत ☆

मनी वाचतो मी तुझा ग्रंथ आता।

जिवाला जिवाची नको खंत आता।

 

असावी कृपा रे तुझी माय बापा।

नको ही निराशा दयावंत आता।

 

पताका पहा ही करी घेतली रे।

अहंभाव नाशी उरी संत आता ।

 

सवे पालखीच्या निघालो दयाळा।

घडो चाकरी ही नवा पंथ आता।

 

तुला वाहिला मी अहंभाव सारा।

पदी ठाव देई कृपावंत आता।

 

चिरंजीव भक्ती तुला मागतो मी ।

नको मोह खोटा हवा अंत आता

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – विविधा ☆ कापणे….एक इव्हेंट… भाग 1 ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

? विविधा ?

 ☆ कापणे….एक इव्हेंट… भाग 1 ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

कापणे – एक इव्हेंट ! 😂😢😟

माझ्या समवयस्क पिढीतील लोकांना लहानपणी हातात पडलेल्या पहिल्या “शिस पेन्सिलीच” त्या काळी, त्या वयात काय अप्रूप होतं ते नक्कीच आठवत असेल ! मला आज सत्तरीत आठवतंय त्याप्रमाणे तेंव्हा मराठी चौथीपर्यंत काळीशार दगडी पाटी आणि चुन्याची पांढरी षटकोनी किंवा चौकोनी पेन्सिल, यावरच ‘लिहित्या हाताच्या’ बोटांना आम्हां मुलांना समाधान मानावं लागत असे ! या वाक्यातील ‘लिहित्या हाताच्या’ या माझ्या शब्दप्रयोगावर आपली वाचनाची गाडी अडखळली असेल, तर त्याबद्दल आपलं समाधान होईल असा खुलासा आधी करतो,  म्हणजे मग तुम्ही पुढचा लेख वाचायला आणि मी पुढे लिहायला मोकळा !

आपण म्हणालं आता हे काय तुमच नवीनच ? “लिहिता हात” म्हणजे काय ?  तर त्याच कसं आहे मंडळी, जसं काही काही लोकं बोलतांना “खाता हात” आणि “धुता हात” असे शब्दप्रयोग करतात, तसा मी “लिहिता हात” असा शब्दप्रयोग केला तर कुठे बिघडलं ? कारण आपल्यापैकी बरेच जण डावरे (का डावखुरे?) असण्याची शक्यता गृहीत धरूनच मी या नवीन हाताचा “शोध” सॉरी, नवीन शब्दप्रयोगाचा शोध लावलाय ! दुसरं असं की समस्त डावऱ्यां मंडळींकडून, मी माझ्या सारख्या उजव्यांना उजवं माप देतोय, असा बिनबुडाचा आरोप कशाला  ऐकून घेवू ? काय बरोबर ना मंडळी ?

हां, तर काय सांगत होतो मंडळी, हातात आलेल्या पहिल्या शिस पेन्सिलीच अप्रूप ! तर अशी ही शिस पेन्सिल आपल्या स्वतःच्या मालकीची म्हणून पाचवीत हाती येई पर्यंत, जर आपण कुतूहलापोटी आपल्या ताई किंवा दादाच्या शिस पेन्सिलीला नुसता हात जरी लावला असेल, तरी आपण तिचा किंवा त्याचा ओरडा त्याकाळी नक्कीच खाल्ला असेल. शिवाय एखाद्याचा दादा किंवा ताई जास्तच रागीष्ट असेल तर ? त्या ओरडयाबरोबर त्याची किंवा तिच्या हातची चापटपोळी खायचा प्रसंग पण आपल्यावर नक्कीच ओढवला असेल, बघा आठवून ! आपण म्हणालं, हे सगळं जरी काही प्रमाणात खरं असलं, तरी या सगळ्याचा आणि आजच्या लेखाच्या शीर्षकाचा संबंध काय ? सांगतो, सांगतो मंडळी, जरा सबुरीन घ्या !

तर पाचवीत पहिल्यांदाच हाती आलेल्या नव्या कोऱ्या “शिस पेन्सिलीला” टोक काढायला, त्याकाळी आजची “शार्प” लहान मुलांची पिढी जे “शार्पनर” वापरते, त्याचा शोध बहुतेक लागायचा होता म्हणा किंवा माझ्या सारख्या मध्यमवर्गातल्या मुलांना त्याकाळी ते विकत घेणं परवडत नव्हतं म्हणा, पण तेव्हा आम्ही मुलं शिस पेन्सिलीला टोक काढण्यासाठी एखाद जुनं अर्ध “भारत ब्लेड” वापरत असू. पण मंडळी, त्या शिस पेन्सिलीला अर्ध्या ब्लेडने टोक काढता काढता, पेन्सिलीतून तीच टोक बाहेर येण्या आधीच हाताच्या एखाद्या बोटातून हमखास लाल भडक रक्त बाहेर येई !  मग काय, अशावेळी माझी जी काय रडारड सुरु व्हायची त्याला तोड नसायची ! कारण त्या वयात असं एखाद “कठीण” काम, स्वतःच स्वतः अभिमानाने करतांना, आपल्याच हातून आपल्याच चुकीमुळे बोटातून रक्त आलेला, बहुदा तो आयुष्यातला पहिलाच प्रसंग असायचा.  मग हे सगळं आईला कळताच तिची बोलणी खात खात, कधी त्या सोबत तिच्या हातचे धपाटे तोंडीलावण्यासारखे खाता खाता, तिने आठवणीने बरोबर आणलेला मातकट रंगाचा “रामबाण कापूस” ती मला बोटावर झालेल्या माझ्या जखमेवर लावी. तो लावता लावता तोंडाने, “साधी एका शिस पेन्सिलला टोक काढता येत नाही आणि म्हणे मला पेन्सिलचा अख्खा नवीन बॉक्स हवाय ! टोक काढतांना गाढवासारखं (?) स्वतःच बोट कापून घेतलंस, तरी त्या नावाखाली आज तुझी अभ्यासातून मुळीच सुटका नाही, कळलं?”

मंडळी, तेंव्हा जरी साने गुरुजींची “श्यामची आई” त्याकाळच्या आयांच्या कितीही आवडीची असली, तरी सगळ्याच मुलांच्या आया काही “श्यामच्या आईसारख्या” आपापल्या मुलांशी वागत नव्हत्या नां ! त्यामुळे माझ्या आईच्या तोंडातल्या वरच्या डायलॉगचा शेवट, माझ्या शरीराचा कुठला अवयव त्यातल्या त्यात तिच्या उजव्या हाताच्या जवळच्या टप्प्यात असेल, त्यावर त्याच हाताची एक सणसणीत बसूनच होत असे !

मंडळी, त्या औषधी “रामबाण कापसाची” एक खासियत होती. तो नुसता जखमेवर दाबून धरताच एका क्षणात जखमेतून येणार रक्त, रेड सिग्नल मिळाल्यावर पूर्वी जशा गाड्या थांबत तसं थांबत असे !  हल्ली रेड सिग्नल आणि त्याच्या जोडीला पोलिसाचा आडवा हात व त्याच्या जोडीला त्याच्या तोंडातली शिट्टी, याला सुद्धा कोणी जुमानत नाही हा भाग निराळा. दुसरं असं की आजच्या सारखा तो काही “वॉटरप्रूफ बँडेडचा” जमाना नव्हता. त्यामुळे औषधी “रामबाण कापसाच्या” फर्स्टएडवरच अशा जखमांची तेंव्हा बोळवण केली जायची. अशी “रामबाण कापसाची” त्या काळातली फर्स्टएड मलमपट्टी आपण सुद्धा कधीतरी अनुभवली असेल ! आजकाल कशातच “राम”  उरला नाही, मग हा “रामबाण कापूस” तरी कसा उरेल, खरं की नाही ? असो ! कालाय तस्मै नमः !

“भावजा, रविवारी सकाळी ७ !” “भावजा, बुधवारी सकाळी ९ !” “भावजा,….  सकाळी………. !” असे निरनिराळे आदेश वजा सूचना, आमचा “भावजा” खाली रस्त्यावरून जातांना दिसला की त्याला ऐकू जाईल इतक्या मोठ्या आवाजात, चाळी चाळीच्या कॉमन गॅलेरीतून ऐकायला येत.

मंडळी “भावजा” हे आमच्या आठ चाळीच्या मिळून वसलेल्या समूहातल्या, अंदाजे पाचशेपैकी चारशे खोल्यातील लहान लहान मुलं आणि त्या प्रत्येक खोलीतली वडील मंडळी, साधारण साठ वर्षांपूर्वी ज्याच्या समोर दर दोन ते तीन महिन्यांनी स्वतःच डोकं भादरून घ्यायला “नतमस्तक” होत त्या “नाभिकाचे” नांव !

तुम्ही म्हणालं, “भावजा” हे काय नांव आहे ? पण मंडळी मी तुम्हांला शपथेवर सांगतो, माझ्या जन्मापासूनच्या चाळीतल्या पन्नास वर्षाच्या वास्तव्यात मला कळायला लागल्या पासून तरी, त्याला आठही चाळीतले समस्त चाळकरी आणि पोरं टोरसुद्धा त्याच नावाने हाकमारीत असत. त्यामुळे त्याच्या खऱ्या नावाचा पत्ता, मी माझा चाळीतला पत्ता बदलेपर्यंत तरी मला लागला नाही. शिवाय त्याच खरं नांव जाणून घ्यावं असं त्याकाळी मलाच काय, इतर चाळकऱ्यांना सुद्धा कधी वाटलं नाही, हे ही तितकंच खरं ! तरी सुद्धा आज त्याच “भावजा” हे नांव आठवताच, त्याची वामन मूर्ती अजूनही इतक्या वर्षांनी माझ्या डोळ्यासमोर उभी राहते !

पांढरं स्वच्छ धोतर, त्यावर निळा ढगळ म्हणावा असा, समोर दोन मोठे खिसे असलेला आणि त्या दोन खिशांना बाहेरून बटनाने बंद करायला असलेले दोन फ्लॅप असलेला शर्ट, डोक्यावर काळी गोल टोपी, पायात कोल्हापुरी चपला आणि उजव्या हातात पत्र्याची, त्याला लागणाऱ्या सगळ्या आयुधांची पेटी ! अशा अवतारातली त्याची ठेंगणी ठुसकी वामन मूर्ती, आठही चाळीचे जिने चढता उतरतांना मी तेंव्हा अनेक वेळा बघितली आहे.

असा हा “भावजा” आपल्या डाव्या शर्टाच्या खिशात चांदीची साखळी असलेलं एक छोटेखानी गोल घड्याळ बाळगत असे. अर्थात त्या घडाळ्याचा उपयोग तो त्या वेळेस तरी, आजच्या भाषेत सांगायचं तर “शायनींग” मारण्यासाठीच करत असावा. कारण त्याला तुम्ही जरी एखाद्या दिवशी सकाळी सात वाजता बोलावलं असेल आणि त्यानं तसं तुमच्या नावासकट खिश्यातल्या छोट्या डायरीत लिहिलं असेल, तरी स्वारी त्या ठरलेल्या दिवशी दहाच्या आत उगवेल तर शपथ !

याला कारण पण तसंच होत. तेंव्हा आजच्या सारखी गल्ली बोळात उगवलेली, वेगवेगळ्या हेअर स्टाईल करणारी महागडी एसी “सलोन” तर सोडाच, पण साधी “शंकर केश कर्तनालय” सारखी “सलून” सुद्धा शहरातल्या ठराविक उच्चभ्रू वस्तीत हाताच्या बोटावर मोजण्या इतकी सुद्धा नव्हती ! आणि त्यावेळेस ती असली काय किंवा नसली काय, तेंव्हा त्याची पायरी चढून स्वतःच डोकं भादरण चाळीतल्या कोणालाच त्या वेळेस तरी परवडण्यासारखं नव्हतं ! किंबहुना त्या सलूनमधे जाऊन एका वेळच्या डोकं भादरायच्या खर्चात, “भावजा” पुढे अख्खी दोन वर्ष नतमस्तक होता आलं असतं, असा साधा सरळसोट मध्यमवर्गीय हिशेब त्यात होता, हे ही तितकंच खरं ! त्यामुळे “भावजाच्या” सकाळच्या सातच्या अपॉइंटमेंटसाठी चाळकऱ्यांना दहा दहा वाजेपर्यंत वाट पहात बसण्याशिवाय पर्याय नसायचा. कधी कधी त्याला जास्तच उशीर झाला, तर घरातली वडील मंडळी आम्हां पोरांना त्याची स्वारी कुठल्या चाळीत आपल्या हातातलं कसब दाखवत बसली आहे, याचा शोध घेण्यासाठी पाठवत असे.  आता मी जरी “भावजाच्या” केस कापण्याला त्याच्या हातातलं कसब म्हटलं, तरी तेंव्हा बहुतेक “क्रू कटचा” शोध त्याच्याच “मशीन” मधूनच जन्माला आला असावा, असं म्हटलं तर वावगं ठरणार नाही.  पुढे आमच्या या “भावजाचा” तो “क्रू कट” त्यावेळच्या पोलीस शिपायांच्या माथी जाण्यामागे आमच्या “भावजाचाच” तर हात नाही ना ? इतपत शंका घेण्यास काही चाळकऱ्यांची मजल तेंव्हा गेली होती.

केस कापायला आपल्यापुढे कोण बसलंय, त्याच वय काय, त्याला कसे केस कापून हवेत अशा क्षुल्लक गोष्टींची चर्चा न करता, समोरच्या व्यक्तीच डोकं आपल्यापुढे त्याची मान दुखेपर्यंत जास्तीत जास्त वाकवून, दिसला केस काप करत, तो डोक्यावरील केसांची “कतले आम” त्याच्या पद्धतीने करत सुटे !  या त्याच्या केस कापण्याच्या स्वतःच्या स्टाईलमुळे एखाद्या सोमवारी, आठ चाळीतल्या समस्त आयांचा आपापली मुलं मागच्या बाजूने ओळखण्यात फारच गोंधळ उडे मंडळी. कारण केस कापल्यावर सगळी मुलं मागून थोडे दिवस तरी सारखीच दिसायची ! मग काही कारणाने एखाद्या मुलाला दुसऱ्याच आईचा फटका खायचा प्रसंग सुद्धा ओढवायचा !

त्या जमान्यात हिंदी सिनेमे पाहण्यापेक्षा लोकं मराठी संगीत नाटकं पहाणं जास्त पसंत करीत असतं. त्यामुळे हिंदी सिनेमांतल्या एखाद्या “कुमारा” सारखी आपण पण हेअरस्टाईल करावी असं कोणाला वाटत नसे.  शिवाय तशी फॅशन पण तेंव्हाच्या तरुण मंडळीत फोफावली नव्हती आणि मराठी संगीत नाटकातल्या एखाद्या कळलाव्या नारदा सारखी हेअरस्टाईल (?) करायचा तर प्रश्नच नव्हता. कारण डोक्यावरच जंगल कंगव्याने केस फिरवण्या इतकं वाढलं रे वाढलं, की लगेच “भावजाला” फर्मान जाई !

क्रमशः…

© प्रमोद वामन वर्तक

स्थळ – बेडॉक रिझरवायर, सिंगापूर.

मो – 9892561086, (सिंगापूर)+6594708959

ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ डॉ. भाऊ बोत्रेची गोष्ट — (एक सत्यकथा) — डाॅ.शंकर बो-हाडे ☆ प्रस्तुती – श्री मेघ:श्याम सोनावणे ☆

श्री मेघ:श्याम सोनावणे

? जीवनरंग ?

☆ डॉ. भाऊ बोत्रेची गोष्ट — (एक सत्यकथा)  — डाॅ.शंकर बो-हाडे ☆ प्रस्तुती – श्री मेघ:श्याम सोनावणे ☆

काल परवाची गोष्ट.  शिपाई तास संपता संपता वर्गात आला. म्हणाला, “ सर त्या मुलाला पाय-या चढता येत नाही. तरी त्याला पहिल्या तासाला वर्गात बसायचं आहे.  तुम्हीच त्याला समजावून सांगा.”  मी त्याला भेटलो. तो म्हणाला, “ मला पहिल्या तासाला बसायचं आहे.” 

“अरे पण तुला दुस-या मजल्यावर यायला वेळ लागेल.  तुला त्यासाठी लवकर यावे लागेल.” – मी

“ सर , मी घरातून तासभर लवकर निघेल. तासाला वेळेवर येईन .” – तो 

मी त्याच्या जिद्दीला सलाम केला.  मला आमच्या सैय्यद प्रिप्रीच्या शाळेतील संतोष आठवला. तो न चुकता शाळेत यायचा. त्यासाठी एका लाकडाच्या फळीला त्याने चाकं बसवून त्याची गाडी केलेली होती. एका हाताने तो ती पुढे ढकलत होता. ऊन ,वारा, पाऊस, गारा–  त्याच्या शाळेत खंड पडत नसे. पाय पोलिओने गेलेल्या संतोषने मनात घर केले होते.  पुढे नाशिकमधील समाजसेवेच्या वेडाने झपाटलेल्या रमेश जाधव यांनी गणेश उत्सवाच्या काळात दानपेटी ठेऊन दान जमा केले. त्यातून संतोषसाठी सायकल घेतली.  संतोष तीनचाकी सायकलवर शाळेत येऊ लागला. संतोष फार गोड मुलगा होता.

मी पुणे विद्यापीठात होस्टेलला राहत होतो. संशोधन चालू होते.  तिथे भाऊ बोत्रे नावाचा मित्र भेटला. भाऊकडे तीनचाकी सायकल होती आणि स्कूटरही. गणेशोत्सवात त्याच्या स्कुटरवर त्याने मला पुण्यातले गणपती दाखवले. त्याला पुण्याचे गल्लीबोळ माहित होते.  

भाऊची गोष्ट मजेशीर  होती. मित्र त्याला पाठकुळीवर बसवून शाळेत घेऊन जात. भाऊला शाळा आवडायची. घरात बसून तो अभ्यासही करायचा. घरच्या मंडळींची  मोठा झाल्यावर त्याने दिव्यांगासारखा एखादा टेलीफोन बुथ चालवावा एवढीच अपेक्षा होती. घडले ते उलटे. तो एस.एस.सी. झाला. चांगले गुण मिळाले. असा मुलगा कला, वाणिज्य शाखेत शिकेल अशी आपली सामान्य अपेक्षा. तो वाडीया काॅलेजला गेला. म्हणाला, ‘ मला विज्ञान शाखेत प्रवेश हवा आहे. ‘  प्राध्यापकांनी त्याला समजावले.  विज्ञानशाखेत प्रयोगशाळेत उभे राहून प्रात्यक्षिके करावी लागतात. ते तुला जमणार नाही , वगैरे .’  भाऊ म्हणाला, ‘ सर , मी स्टुलावर बसून प्रात्यक्षिके करीन.’  प्राध्यापकांचा नाईलाज झाला. भाऊ काॅलेजमध्ये नियमित येत होता. अभ्यास करीत होता. तो बारावीची परीक्षा पास झाला. असा मुलगा बी. एस्सी झाला नसता तर नवल. भाऊ बोत्रे बी.एस्सी झाला आणि एम.एस्सीच्या तयारीला लागला. त्याला विद्यापीठात प्रवेश घ्यायचा होता. वडील रिक्षा चालवायचे. कसे जमणार ? पुण्यात काही माणसं शिक्षणासाठी मदत करीत असतात, हे भाऊला माहीत होते. त्याचे हात आता पाय झाले होते. भाऊ हाताचा वापर करुन चालत असे. एकदा एका कार्यालयात गेल्यावर जनावर आले असल्यासारखं आधिका-याला जाणवलं. आधिकाऱ्याची घाबरगुंडी उडाली होती. रस्त्याने हाताने चालताना त्याला जनावराची भीती असते. कुत्रे त्याच्यावर हल्ला करण्याची भीती असते.  भाऊ संबंधित दानशूराकडे गेल्यावर ते म्हणाले, ‘ किती मदत हवी ? ‘ भाऊने त्यांच्या टेबलवर विद्यापीठाचे प्रवेशाचे चलन ठेवले. त्यावरची रक्कम विद्यापीठाच्या खात्यावर भरण्याची विनंती केली. भाऊचा एम.एस्सी. इलेक्ट्रॉनिक्सला प्रवेश झाला. आता भाऊला शिष्यवृत्ती मिळू लागली. विद्यापीठाचे वसतिगृह मिळाले. भाऊची स्वयंपूर्णतेकडे वाटचाल झाली. भाऊ कपडे धुणं, इस्त्री करणं आणि विभागात जाऊन लेक्चर, प्रॅक्टीकल करू लागला. दोन वर्षाचा अभ्यासक्रम त्याने यशस्वीपणे पूर्ण केला. 

भाऊ बोत्रेची गोष्ट इथेच संपत नाही.  आता भाऊला Ph.D. करायचे वेध लागले. त्याने त्यासाठी मार्गदर्शकाची निवड केली.  संशोधनाच्या वाटा धुंडाळल्या. भाऊ दिवसभर प्रयोगशाळेत विविध प्रात्यक्षिके करुन पाहू लागला.  विज्ञानात प्रयोगाला, त्यातून येणाऱ्या निष्कर्षाला महत्व असते. त्यासाठी तो तज्ञांना भेटू लागला. एकदा त्याच्या प्रयोगशाळेत शास्त्रज्ञ डॉ. रघुनाथ माशेलकर येऊन काम पाहून गेले होते. एखादा पदार्थ किती जुना आहे, त्याची गुणवत्ता कशी आहे, या विषयावर भाऊचे काम चालू होते. संशोधकाला संशोधन चालू असताना आपले शोधनिबंध सादर व प्रकाशित करावे लागतात. भाऊने असाच एक शोधनिबंध अमेरिकेतल्या बोस्टन विद्यापीठाला पाठवला आणि चमत्कार झाला.  बोस्टन विद्यापीठाने तो स्वीकारला आणि सादर करण्यासाठी थेट बोस्टनला बोलावले. परदेश प्रवासाची तयारी सुरू झाली. भाऊने पासपोर्ट काढला. व्हिसा मिळवला. त्यासाठी नो एजंट. भाऊ प्रत्येक ठिकाणी स्वतः गेला. अगदी विमान प्रवासाची तिकीटे स्वतः काढली. मार्गदर्शक म्हणाल्या, ‘ चाललाच आहेस तर तुझ्या विषयाच्या अनुषंगाने काही नवीन स्वरूपाचे संशोधन चालू आहे का ? याचा शोध घे . ‘  सगळी नाटकं करता येतात पण पैश्याचे? भाऊ बोत्रे तीन दिवस तिथे राहणार होता.  त्यासाठी त्याला ट्रॅव्हल ग्रॅंट मिळाली होती. भाऊने घरी त्याच्या परदेश प्रवासाची आजिबात कल्पना दिली नव्हती. दिली असती तर ह्या लंगड्या पांगळयाची काळजी वाटून आई वडीलांनी खोडा घातला असता ना ! भाऊने कुलगुरू नरेंद्र जाधवांना भेटायचा प्रयत्न केला.  पण कुलगुरू मिटींगमध्ये असल्याने त्याच्या चार चकरा फुकट गेल्या. टेक ऑफचा दिवस जवळ आला. आवराआवर सुरू झाली. मी भाऊला नाशिकला बोलावले. शुभेच्छांचा घरगुती समारंभ होता. पत्रकार विश्वास देवकर आले. ” हातावर चालणारा भाऊ निघाला बोस्टनला ” , अशी मुखपृष्ठ कथा सकाळ पेपरमध्ये प्रसिद्ध झाली आणि भाऊला काॅल,  मेल सुरू झाले. अमेरिकेतली मराठी माणसं म्हणाली, ‘ हाॅटेलात राहू नको . इथली हाॅटेल्स तुला परवडणार नाहीत . आमच्याकडे रहायला ये.’  कुलगुरू नरेंद्र जाधवांनी डाॅ. विद्यासागर यांचेवर त्याला काय हवे ते पहायची जबाबदारी सोपविली. कुलगुरू ऑफिसातून भाऊचा शोध सुरू झाला. आईवडिलांना पेपरमधून पोराची किर्ती ऐकायला मिळाली. बाबा कल्याणी यांनी भाऊच्या हातात खर्चासाठी पैसे दिले. भाऊला विमानतळावर पोहचवायला काही नातेवाईक हजर होते.  मी टेक ऑफच्या दिवशी विमानतळावर त्याला निरोप देण्यासाठी गेलो होतो. 

भाऊची गोष्ट इथे अधिक मजेदार वळण घेते.  भाऊ बोस्टन विद्यापीठात संशोधन मांडतोच,  पण अमेरिकेतल्या विविध विद्यापीठात जातो . संशोधकांना भेटतो. यासाठी अमेरिकतली मराठी माणसं त्याच्या पाठीशी उभी रहातात.  तीन दिवसासाठी गेलेला भाऊ एकवीस दिवस अमेरिकेत फिरतो आणि भारतात परततो. असा माणूस Ph.D पदवी मिळवतो हे आता फार नवलाचे राहत नाही. 

शिक्षण कधी थांबते का ? थांबला तो संपला . भाऊला एकदा पुणे विद्यापिठाने संशोधनाचे सादरीकरण करण्यासाठी जपानला पाठवले होते.  त्याचदरम्यान त्याची दिल्लीत आय.आय. टी. साठी मुलाखत होती. मुलाखतीची तयारी चालू होती. तरी भाऊ जपानच्या टीममध्ये दाखल झाला.  तिथून मुंबई गाठली. दिल्लीचे तिकीट काढलेले होते. तसाच दिल्लीत पोहोचला. फ्रेश होऊन मुलाखतीसाठी हजर झाला. तज्ञांना जेव्हा भाऊची पुणे – जपान – मुंबई – दिल्ली प्रवासाची हकीगत कळली तेव्हा त्यांना आश्चर्याचा धक्का बसला आणि  ते भाऊला म्हणाले, ‘ बोल कधीपासून नोकरीत रुजू होतो. हे घे तुझे नियुक्ती आणि निवडीचे पत्र. ‘ 

भाऊ म्हणाला,  ‘ मला वेळ द्या.  घरी जातो. आईवडिलांना भेटतो. चार दिवस आराम करतो आणि नोकरीला सुरुवात करतो .’ 

हाताचा वापर पाय म्हणून करणारा  डॉ.भाऊ बोत्रे आज राजस्थानच्या बिट्स पिलानी मध्ये वरिष्ठ शास्त्रज्ञ म्हणून सक्रिय आहे. त्याला तेथून भारतभर फिरावे लागते. जगभरच्या संशोधनावर लक्ष ठेवावे लागते आणि दिव्यांगांसाठी काहीबाही करावे लागते.  म्हणून भाऊची ही कथा सफळ संपूर्ण नाही. तो आणखी काही करण्याची तयारी करतो आहे. त्याचा संसारही फुलला आहे. त्यावरची कळी खुलू लागली आहे आणि भाऊ प्रयोगशाळेत व्यस्त आहे. 

लेखक : डॉ.शंकर बो-हाडे 

९२२६५७३७९१

[email protected]

प्रस्तुती : मेघ:श्याम सोनावणे.  

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ || मालक ||…भाग 1 – शब्दांकन – श्री उपेंद्र चिंचारे ☆ प्रस्तुती – सौ. गौरी गाडेकर ☆

सौ. गौरी गाडेकर

? मनमंजुषेतून ?

☆ || मालक ||…भाग 1 – शब्दांकन – श्री उपेंद्र चिंचारे ☆ प्रस्तुती – सौ. गौरी गाडेकर  ☆

(११ नोव्हेंबर : वंदनीय माई मंगेशकर ह्यांच्या लेखाचे शब्दांकन करण्याची सुवर्णसंधी मला लाभली होती. “स्वरमंगेश” ह्या गौरवग्रंथामध्ये “मालक” ह्या शीर्षकाने, सोमवार दिनांक २४ एप्रिल १९९५ रोजी प्रसिद्ध झालेला हा लेख ! मा. लतादीदी, मीनाताई, आशाताई, उषाताई, पं हृदयनाथजी ह्या पंचामृताने माझं कौतुक केलं !) ……   

” माझ्या घरांत मी तुला काही काम पडू देणार नाही “, असं मालकांनी मला लग्नाच्यावेळीच सांगितलं होतं ! अगदी तांब्यासुद्धा उचलू दिला नाही कधी. एकदा मालक आंघोळीला निघाले म्हणून मी धोतराच्या निऱ्या करून ठेवल्या, तर किती रागावले माझ्यावर, ” तू काय हमालाची बायको आहेस का ?”

– आज माझ्या वयाच्या शहाऐंशीव्या वर्षी मी मालकांच्या आठवणी आठवू पहाते, तर अगदी काल परवा घडल्या असाव्यात, अशा साऱ्या  स्मृती माझ्या डोळ्यांसमोर येऊ लागतात !

माझ्या माहेरी जेवणानंतर, मला पान खायची सवय होती ! लग्नानंतर दोन दिवसांनी मालकांना काय वाटले, कोणास ठाऊक ? ” यापुढे पान बंद “, असं मालक म्हणाले. पानाचे सगळे साहित्य मालकांनी फेकून दिले. नंतर काय झाले, मालक गड्याला म्हणाले, ” जेवण झालं की एक विडा करून हिच्या उशापाशी ठेवत जा. ” !

एक दिवस मालक, खालूनच “माई, माई”, अश्या मोठ्याने हाका मारीत आले. “अहो काय झालं?” मी विचारलं.  पाहते तर काय, एका खिशात पानाचं सगळ साहित्य, नि दुस-या खिशात पिकलेली पानं. म्हणाले, ” तुला लागतात ना, म्हणून पिकलेली पानं घेऊन आलोय “! मालकांचा असा भोळा अन् प्रेमळ स्वभाव !

माझी सासू फार कडक होती. मी खानदेशातली म्हणून सासू मला ” घाटी ” म्हणायची, पण मालक इतके शांत की, आईला कधीही काहीही बोलायचे नाहीत. मी थोडी रागावले की, मालक म्हणायचे, “अगं माई, कां रागावलीस ? प्रेमाच्या राज्यांत तलवारीचं आणि भाल्याचं काय काम ?” इतका शांत स्वभाव होता ह्यांचा ! हं दिवसभर शब्दांच्या कोट्या करायचे आणि दुसऱ्याला हसवायचे !

मालाकांचं जेवण अगदी कमी असायचं, पण षोक मात्र खूप जेवण करून ठेवायचा. ह्यांना ओल्या हरभऱ्याची भाजी फार आवडायची. मटण, मासे, कोंबडी सगळं एकदमच करून ठेवायचं. दर पंगतीला ह्यांना कुणीतरी लागायचं. कधीही एकटे जेवले नाहीत. कुणीच नसलं, तर गॅलरीत उभे राहायचे आणि लोकांना हाका मारायचे, ” काय रे बाबा, कुठे चाललास ? जेवलास का नाही ? नाही तर ये आणि जेवून जा.”

काही वेळा मालक अगदी बेफिकीर असायचे. एकदा गोव्याला रस्त्यानं आम्ही दोघे चाललो होतो. ते पुढे आणि मी मागे. ह्यांनी शर्टामध्ये गळ्याशी नोटा खोचून ठेवल्या होत्या. जोराचा वारा आला आणि शर्टामधल्या काही नोटा उडून खाली पडल्या. मी त्या नोटा उचलायला खाली वाकले, तर माझ्यावर ओरडलेच, ” खाली पडलेल्या नोटा भिकाऱ्यासारख्या उचलू नकोस, गेले पैसे तर गेले, त्याच्या मागे कधी जाऊ नये.”

प्रसंगी मालक अगदी लहान मुलासारखे हळवेही व्ह्यायचे. एकदा पुण्याला भाजीमंडईमध्ये, मी भाजी आणायला गेले होते, मुलं माझ्याबरोबर होती. घरी यायला आम्हाला जरा उशीर झाला तर इकडे जीव कासावीस होऊन, बायको-मुलं हरवली, अशी मालकांनी पोलिसात तक्रारही केली !

मालकांचा माझ्यावर प्रचंड विश्वास होता. मीही त्या विश्वासाला कधीही तडा जाऊ दिला नाही. बैठकीचं गाणं ठरवायला कुणी आलं, तर म्हणायचे, ” माईला विचारा, तिने सांगितलं तर एका रुमालावरही गाईन.”

मालक अगदी सनातनी होते. मुलींच्या लहानपणी, त्यांची सक्त ताकीद होती की, मुलींनी स्टेजवर यायचं नाही. मुलींनी पावडर लावायची नाही.

मालक उदार वृत्तीचे होते. एकदा मुंबईला रेडिओवर गायला गेले होते, तर हातातल्या अंगठ्या कुणाला तरी देऊन, रिकाम्या बोटांनी घरी आले. मैत्री कशी करावी, हे तर मी मालकांच्या स्वभावातूनच पाहिलं. आयुष्यात फार मोठा दानधर्म मालकांनी केलेला मी स्वतः जवळून पाहिला आहे. पण शेवटी मालकांच्या अंगावर काय आलं, तर भगवं धोतर !

मला चार मुली झाल्या, पण लोकांसारखे मालकांनी कधी, “मुलीच का झाल्या ?” असं नाही म्हटलं. त्यांना मुलींचीच भारी हौस होती. मुलींना रागे भरलेले त्यांना आवडायचे नाही. मुलींना ते जराही दृष्टीआड होऊ द्यायचे नाहीत.

– (क्रमशः भाग पहिला ) 

— माई मंगेशकर 

शब्दांकन : श्री उपेंद्र चिंचोरे

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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈