हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – लघुकथा – प्रश्नपत्र ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ मार्गशीष साधना सम्पन्न हो गई है। 🌻

अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – लघुकथा – प्रश्नपत्र ??

बारिश मूसलाधार है। ….हो सकता है कि इलाके की बिजली गुल हो जाए। ….हो सकता है कि सुबह तक हर रास्ते पर पानी लबालब भर जाए। ….हो सकता है कि कल की परीक्षा रद्द हो जाए।…आशंका और संभावना समानांतर चलती रहीं।

अगली सुबह आकाश निरभ्र था और वातावरण सुहाना। प्रश्नपत्र देखने के बाद आशंकाओं पर काम करने वालों की निब सूख चली थी पर संभावनाओं को जीने वालों की कलम पूरी रफ़्तार से दौड़ रही थी।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈



हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – हताशा ☆ डॉ कुंवर प्रेमिल ☆

डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों  से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 350 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं ग्यारह  पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं।  आपने लघु कथा को लेकर कई  प्रयोग किये हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक लघुकथा ‘‘हताशा’’)

☆ लघुकथा – हताशा ☆ डॉ. कुंवर प्रेमिल 

‘अरे देखो तो, यह आदमी क्या कर रहा है?’

‘अरे पगला गया है ससुरा, भला ऐसा आचरण कोई करता है, पेड़ों के फूल नोंच-नोंच कर सड़क पर फेंक रहा है, यह पागलपन नहीं है तो क्या है यार!’

लोग देख रहे थे. एक बौखलाया  सा आदमी फूलों की डालियों से फूल नोंच-नोंचकर सड़क पर फेंक रहा है. साथ में अपने सिर के बाल भी नोंचता जा रहा है. लोगों ने फिर कानाफूसी की- यह पागलपन का दौर-दौरा है या कुछ और, कितनी मेहनत से इसने फूल उगाए थे और अब…’

अब वह आदमी अपनी बड़ी-बड़ी आंखें निकालकर चिल्लाने लगा- “आप लोग ही मेरी इस दुर्दशा के जिम्मेवार हैं. आपलोग यदि रोज़-रोज़ इन फूलों को तोड़कर नहीं ले जाते तो मैं कदापि इस अंजाम तक नहीं पहुंचता, मेरी बगिया ही उजाड़ दी आप लोगों ने, अरे फूलों के हत्यारे हो तुम. फूल दरख्तों पर ही अच्छे लगते हैं. तुम्हारी जेबों में ठुसे हुए नहीं…समझे कुछ’

लोग उसकी इस दलील पर भौंचक्के थे.

अब मैं कुल्हाड़ी लेकर इसकी समूची डालियां भी काटूंगा. न रहे बांस न रहे बांसुरी’ आप लोग फूलों के दुश्मन हो तो मेरे भी दुश्मन हो. अरे दुश्मनों इन पेड़ों ने क्या बिगाड़ा था तुम्हारा जो इनको पुष्पहीन करके हंस रहे हो. लोग उसकी हताशा को पहचान पाते, इसके पहले वह कुल्हाड़ी लेकर पेड़ों पर पिल पड़ा. ठक-ठक करती कुल्हाड़ी चल रही थी. उनकी जेबों में ठुंसे फूल कुम्हला रहे थे.

पूरा वातावरण श्री हीन हो गया था.

© डॉ कुँवर प्रेमिल

संपर्क – एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मध्यप्रदेश मोबाइल 9301822782

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




मराठी साहित्य ☆ स्व उषा ढगे – श्रद्धांजलि ☆ राधिका भांडारकर – अरुणा मुल्हेरकर ☆

🙏🏻 स्व उषा ढगे 🙏🏻

🙏🏻 श्रद्धांजलि 🙏🏻

रंग घेऊन गेलीस

काव्य हरवून गेले

उषेविण आभाळ आमचे

अश्रुंत नाहून गेले…

आमच्या अमर्याद दु:खात आपण सहभागी होऊन जो अनामिक, अनमोल आधार दिलात त्यासाठी आम्ही खूप ऋणी आहोत.

🙏 राधिका-अरुणा 🙏

🙏 राधिका भांडारकर – अरुणा मुल्हेरकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य # 60 – जंगल में दंगल… भाग – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय  व्यंग्य  “जंगल में दंगल …“।)   

☆ व्यंग्य # 60 – जंगल में दंगल – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

एक बार जंगल से भटक कर शेर जो नरभक्षी होने को ही नॉन वेज़ेटेरियन होना मानता था, समीपस्थ नगर के एम्यूज़मेंट पार्क में पहुंच गया. उसे बहुत आश्चर्य हुआ जब वहां ईवनिंग वॉक के नाम पर घर से भागे उन्मुक्त मानवों ने उसका संज्ञान ही नहीं लिया. कारण सब अपने अपने मोबाईल में व्यस्त थे. नज़रे झुकाये पर मुस्कुराते जीव देखकर शेर सोच में पड़ गया. ऐसा क्या है इनके हाथों में जो उसके वज़ूद से बेखबर हैं ये लोग. शेर की इच्छा तो थी कि एक बार दहाड़कर इन मगन मनुओं को हकीकत से रूबरू करवा दे पर अपने जंगल के डेंटल सर्जन की हिदायत से मन मसोस कर खामोश होना पड़ा. दरअसल शिकार के काम आने वाली दंतपंक्ति की हाल ही में शार्पनिंग करवाई थी तो ज्यादा मुंह खोलना मना था. चुपचाप जंगल लौटकर शेर ने अपने दूत कौए को शहर भेजा, यह पता लगाने के लिये कि इन मनुष्यों के हाथ में ऐसा कौन सा यंत्र है जिससे ये दीन दुनिया से बेखबर हो गये हैं. संदेशवाहक वही सच्ची खबर लाता है जिसमें खुद नज़रअंदाज हो जाने का गुण हो तो कौए ने पार्क में बैठकर चुपचाप पता कर ही लिया और फिर जंगल के राज़ा जान गये कि ये वाट्सएप ग्रुप ही इस फसाद की जड़ है.

जंगलदूत अपने साथ सिर्फ खबर ही नहीं वाट्सएप का वायरस भी लेकर आ गया जो शेर को भी संक्रमित कर बैठा. अब शेर को भी लगने लगा कि उसकी इमेज़ सुधारने के लिये हिंसकता की नहीं बल्कि आपसी संवाद की जरूरत है. तो जंगल के राज़ा ने अपने दूत के माध्यम से जंगल के सारे जानवरों का वाट्स एप ग्रुप बनाने का संदेश दिया. शक्तिशाली का संदेश भी आदेश से कम नहीं होता पर बिल्ली मौसी ने अपने रिश्ते का फायदा उठाते हुये पूछ ही लिया कि इसमें हमें क्या फायदा.

दूत तो दूत ही होता है तो कह दिया कि राजा ने अपने लंच टाइम के बाद बैठक बुलाई है तो सभी जानवर निडर होकर आयें. जिनकी नियति शिकार होने का उद्देश्य हो उन्हें चुनने की आजादी दिखावे के लिये पांच साल में सिर्फ एक बार ही मिलती है. तो सब राजा के गुफा रूपी दरबार में आए.

शेर ने जंगलवासियों की तरक्की और जमाने के साथ चलने के नाम पर जंगल के वाट्सएप ग्रुप बनाये जाने की घोषणा इस तरह की कि-

“हर शिकार को अपने शिकारी से सवाल करने का मौका दिया जा रहा है”.

सारे जानवरों को जंगल के नये कानून के अनुसार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी जा रही है. इस तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर निरीहता ने कुछ कहने की आज़ादी पायी और जंगल में भी वाट्सएप ग्रुप बन गया, बनना ही था, विरोध कौन और कोई क्यों करता, सब एक दूसरे के कंधे पर अपेक्षा का शाल डालकर चुप रहे और हुआ वही जो शेर की मरजी थी. अब ग्रुप के नाम पर बात आई तो लोमड़ सिंह ने  “सिंह गर्जना ” नाम सुझाया पर शेर राजा अपनी प्रजा की भावभंगिमा से समझ गये कि हर बार अपनी चलाने से बेहतर जनता को झुनझुना पकड़ाने की ट्रिक शासन की स्थिरता में मददगार होती है, तो उन्होंने जंगल के प्रति अपनी अटूट निष्ठा की घोषणा के साथ ग्रुप का नाम “जंगल की आवाज़” रखने का सुझाव दिया.जंगल के सारे शिकार और शिकारी रूपी जानवरों ने इस सुझाव को राजा की उदारता मानते हुये सहर्ष स्वीकार किया.

चूंकि राजा इस मलाईविहीन पद से विरक्त थे तो राजा की इच्छा का सम्मान करते हुये लोमड़ सिंह अपने आप ग्रुप के एडमिन बन गये.

कहानी जारी रहेगी

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 160 ☆ एक स्फुट ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 160 ?

☆ एक स्फुट ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

आज खूप दिवसांनी….

मीरा ठकार आठवल्या …

कुठल्याशा मैत्रिणीच्या संदर्भात—

त्या म्हणाल्या होत्या,

ती म्हणजे फक्त,  “मेरी सुनो” !!!

आणि आजच आठवला ,

आम्हाला वडोदरा नगरीत,

सन्माननीय कवयित्री म्हणून,

दावत देणारा…..

कुणीसा जामदार,

स्वतःबद्दल बरचंसं बोलून झाल्यावर,

म्हणाला होता,

मी जास्त बोलतोय का ?

सहकवयित्री म्हणाली होती,

नो प्रॉब्लेम, “वुई आर  गुड लिसनर्स” !

आणि मग आम्ही ऐकतच राहिलो,

त्याची मातब्बरी !!

 

असेच असतात…

अनेकजण…इथून..तिथून…

इकडे तिकडे…अत्र तत्र….सर्वत्र!!

 

“मेरी सुनो” “मेरी सुनो”म्हणत,

अखंड स्वतःचीच,

टिमकी वाजवणारे!!!

 

माझी श्रवणशक्ती हळूहळू

कमी होत चालली आहे,

हा सततचा अनुभव

येत असतानाच,

उजाडतो , एक नवा ताजा दिवस

या ही वळणावर,

तू भेटतोस…..

‘”सारखी करू नये खंत, वय वाढल्याची”

म्हणतोस!

आणि मी अवाक!

किती वेगळा आहेस,तू सर्वांपेक्षा !

कधीच बोलत नाहीस,

स्वतःविषयी….अहंभावाच्या खूप पल्याड तुझी वस्ती !

 

ब-याचदा विचार येतो मनात,

 

“खुदा भी आसमाँसे जब जमींपर देखता होगा, इस लडकेको किसने

बनाया सोचता होगा।”

 

मी शोधत असलेला,

“बोधिवृक्ष” 

तूच असावास बहुधा….

© प्रभा सोनवणे

५ डिसेंबर २०२२

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ झेप क्षितीजापलिकडे ☆ सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर ☆

सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ झेप क्षितीजापलिकडे ☆ सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर ☆

संसाराच्या खेळामधले

राजा आणिक राणी

निराशेच्या अंधारातील

अशीच एक विराणी

 

घर  ते होते  हसरे सुंदर

स्वप्नांनी सजविलेले

तुटीचे अंदाजपत्रक

सदा भवती वसलेले

 

तरीही होती साथसंगत

अविरत  अशा कष्टांची

भाजी भाकरीस होती

अवीट चव पक्वान्नांची

 

अचानक आक्रीत घडले

दुष्काळाचे संकट आले

शेतातील पीक करपूनी

जगणेची मुश्किल जाहले

 

नव्हती काही जाणीव

चिमण्या त्या चोचींना

राजा राणी उदासले

बिलगूनीया पिल्लांना

 

 कभिन्न अंधाऱ्या रात्री

 दीप आशेचा तेवला

 उर्मीने मनात आता

प्रकाश कवडसा पडला

 

होती जिद्दीची तर राणी

राजाचा आधार झाली

बळ एकवटूनी तीच आता

दुःखावरी सवार झाली

 

झेप क्षितीजा पलिकडे

घेण्या,

बळ हो आत्मविश्वासाचे

राजाराणीच्या संसारी

फुलले झाड सौख्याचे

© वृंदा (चित्रा) करमरकर

सांगली

मो. 9405555728

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – विविधा ☆ दत्त दर्शना जायाचं,जायाचं… ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

सौ कल्याणी केळकर बापट

? विविधा ?

☆ दत्त दर्शना जायाचं,जायाचं… ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

हवीहवीशी वाटणारी थंडी आणि उत्साहवर्धक वातावरण ही डिसेंबर ची खास वैशिष्ट्य. डिसेंबर मध्ये रानमेव्याची सुद्धा लयलूट असते . त्यामुळे भाजीपाला आणि  फळफळावळ ह्यांची पण चंगळ असल्याने हा काळ खूप संपन्न वाटतो. बोरं,गाजरं,हरबरा, ऊस,वाटाणा, वाल,अंबाडीची बोंड,भरताची वांगी ह्यांनी जेवणाचे चार घास जरा जास्तच जातात आणि मग ह्या अशा सकस घरी केलेल्या पदार्थांवर ताव मारल्याने जरा थोडसं वजन हे वाढतंच आणि त्या वाढत्या वजनाचा   दोष मात्र आपल्या माथी येतो.बरं एकदा हिवाळ्यात वाढलेलं वजन उन्हाळ्यात कमी होईल अस म्हणता का, तर अजिबात तसूभरही वजन कमी होण्याचं मुळी नावच घेत नाही.

डिसेंबर महिना अजून एका गोष्टीसाठी आवडतो.  दत्तजयंती ! उत्साहात साजरा होणारा एक उत्सव. जसजसं आयुष्य पुढेपुढे जातं तसतसे नवनवीन अनुभव गाठीशी लागत असतात. काही भले तर काही बुरे. भले अनुभव लक्षात ठेवावे आणि बुरे अनुभव तेथेच विसरून सोडून द्यावे. दरवर्षी संपूर्ण सप्ताह दत्तमंदिरात जाणे व्हायचे नाही फक्त दत्तजयंती ला मात्र न चुकता मंदिरात जायचे. ह्यावर्षी मात्र हा संपूर्ण सप्ताह दत्तमंदिरात जावसं आपणहून वाटलं. त्यामुळे रात्री बँकेतून आल्यावर दत्तगुरुंच्या दर्शनासाठी दररोज झिरी येथील दत्तमंदिरात जायचे. दिवसभराचा सगळा शीण,मरगळ ह्या दर्शनाने कुठल्याकुठे गायब व्हायची.त्या मंदिराच्या शांत,पवित्र वातावरणाच्या परिसरात रात्री भक्तीसंगीताचे सुमधुर सूर कानात साठवत दोन घटका तेथे टेकल्यानंतर एका अतीव शांत, समाधानी वृत्तीची अनुभूती मिळायची. 

ह्यावेळी दररोज झिरी येथील दत्तमंदिरात काही काळ घालवतांना एक गोष्ट प्रकर्षाने जाणवली. दत्ततत्वाने भारलेल्या परिसरात आपण वास्तव्य करतांना आपोआप एक प्रकारचा  अलिप्तपणा,निर्मोही वृत्ती मनात ठसायला लागते. मोह,लालसा काही क्षण का होईना मनातून हद्दपार झाल्यागत वाटतं.जणू कमळाच्या पानावरील दवबिंदू आपल्यात वास करीत असल्याचा अनुभव येतो. जसं कमळा च्या पानावरील थेंबाच अस्तित्व तर असतं पण तो थेंब मात्र कुठल्याही गोष्टी ला न चिकटता अलिप्त होऊन जगतो.

ह्या  महिन्यात बहुतेकांचे आराध्य दैवत, श्रद्धास्थान असलेल्या श्री.दत्तगुरुंची जयंती.मार्गशीर्ष पोर्णिमेच्या दिवशी मृग नक्षत्रावर श्री दत्तगुरुंचा जन्म झाला. आपले प्रमुख चार अवतारी दैवत असलेल्या दैवतांपैकी श्री दत्तगुरुंचा जन्म संध्याकाळी सहाचा तर शक्तीचे दैवत मारुतीरायांचा जन्म पहाटे सहाचा, श्रीरामचंद्रांचा जन्म दुपारी बारा तर कृष्ण जन्म रात्री बाराला साजरा केल्या जातो.

दत्तजयंती ला “दत्ततत्व”हे पृथ्वीतलावर नेहमीच्या तुलनेत एक हजार पटीने अधिक कार्यरत असते.म्हणून ह्या दिवशी दत्तगुरुंची मनोभावे उपासना केल्यास दत्ततत्वाचा अधिकाधिक लाभ मिळतो अशी आख्यायिका आहे.दत्तात्रयांच्या हातातील जपमाळ ब्रम्हदेवाचे शंखचक्र श्री विष्णूंचे,तर त्रिशूळ डमरू हे भगवान शंकराचे प्रतीक समजल्या जातं.दत्तजन्माच्या सात दिवस आधीपासूनच गुरुचरीत्राचे पारायण करायला सुरवात केली जाते.

श्री दत्तगुरुंच्या प्रमुख अवतारांपैकी पहिला अवतार श्रीपाद श्रीवल्लभ,दुसरा अवतार नृसिंह सरस्वती तर तिसरा अवतार श्री स्वामी समर्थांचा मानला जातो.

आपल्या भागातील जागृत देवस्थांनां विषयी आपल्या मनात काकणभर श्रद्धा जरा जास्तच असते त्यामुळे मला अमरावती जवळील कारंजा आणि झिरी ही दोन्ही ठिकाणं जरा जास्तच जवळची आपली वाटतात.

बडने-या जवळच दोन किमी. वर “झिरी”नावाचे दत्तगुरुंचे जागृत देवस्थान आहे. काही ठिकाणं,काही स्थानचं अशी असतात की प्रत्यक्ष परमेश्वर तेथे वास करीत असतील असं आपल्याला मनोमन जाणवतं.झिरी येथील पवित्रता परमेश्वराच्या अस्तित्वाची ग्वाही देत निसर्गाच्या सान्निध्यात वसलेलं झिरीचे दत्तमंदिर हे मानसिक स्वस्थता, शांतता,तृप्ती, व समाधान देणा-या स्थानांपैकीच एक.ह्या मंदिरातील शांत,हसरी,तेजस्वी मुर्ती आपल्याला सकारात्मक ऊर्जा, संकटातही तारुन नेणारे पाठबळ आणि कितीही संपन्नता असली तरी जमिनीवर दोन पाय घट्ट रोवण्यासाठी आवश्यक असलेली थोडी विरक्ती शिकविते.ह्या मंदिराजवळच एक भव्य असे श्रीराममंदिरही आहे.दोन्ही मंदिरांचा परिसर हा जवळपास सव्वाशे ते दिडशे वयाच्या वटवृक्षांनी घेरलेला आहे. हे धीरगंभीर वटवृक्ष आणि त्याच्या पारंब्या आपल्याला चांगल्या सकारात्मक गोष्टी ह्या चिरंतर वा शाश्वत असतात हे शिकवून जातात.

मन ओढ घेऊन दर्शनासाठी जावे असे उद्मेगून वाटणारे दुसरे ठिकाण म्हणजे अमरावती जवळ चाळीस किमीवर असलेले श्री नृसिंह सरस्वतींचे कारजांलाड येथील जागृत देवस्थान. ह्या मंदिरातील प्रसन्न, मानसिक स्थैर्य सकारात्मक ऊर्जा देणारे. ते स्वामींचा प्रत्यक्ष वास असल्याची जाणीव देणारे ते सभागृह.ह्या मंदिरात उपनयन संस्कार करण्यासाठी शुभवेळ

शुभदिवस, शुभघडी हे काहीही बघण्याची गरजच नसते असा समज,अशी श्रद्धा आहे.स्वामींच्या नजरेच्या समोर झालेले उपनयन संस्कार आयुष्यात खूपकाही देऊन जातात असा ब-याच भक्तांचा अनुभव आणि श्रद्धा आहे.

दत्तजयंती च्या निमीत्ताने झिरीला दर्शनासाठी गेल्यावर मंदिराच्या पवित्र वातावरणात आपल्याला आलेले अनुभव आठवतात, आस्तिकता जागृत होते आणि आपोआपच त्याची महती आपल्याला अजून पटायला लागते.आणि ह्या सगळ्याचा परिणाम आपली कार्यक्षमता, सकारात्मकता, उत्साह वाढून आपल्यात चुकून शिरलेल्या नकारात्मकतेला पिटाळून लावण्यात होतो.

©  सौ.कल्याणी केळकर बापट

9604947256

बडनेरा, अमरावती

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ रिसायकल- बिनमध्ये मल्लिका… भाग ४ (भावानुवाद) – भगवान वैद्य `प्रखर’ ☆ सौ. उज्ज्वला केळकर ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

? जीवनरंग ?

☆ रिसायकल- बिनमध्ये मल्लिका… भाग ४ (भावानुवाद) – भगवान वैद्य `प्रखर’ ☆ सौ. उज्ज्वला केळकर

(मागील भागात आपण पहिले – . ग्रीन-व्हॅली हॉटेलमधली ती रात्र सरता सरेना. रात्रभर मी माझ्या स्वनांचे तुकडे गोळा करत राहिलो. आता इथून पुढे )

आई काय घडलं, हे जाणून घेण्यासाठी अतिशय उत्सुक होती. संधी मिळताच तिने विचारलं, ‘मल्लिका भेटली होती?’

‘कशी आहे?’

‘ठीक आहे.’

‘तिची मुलगी कशी आहे?’

‘चांगली असेल. मी विचारलं नाही. वेळच झाला नाही.’

‘मी जेवढं विचारीन तेवढंच सांगणार का?’ तिचा धीर आता सुटला होता.

‘तुला काय जाणून घ्यायचय, हे मला माहीत आहे. पण आपण मल्लिकाला विसरून जाणंच चांगलं.’

‘का? असा काय म्हणाली ती?’

‘ती काहीच म्हणाली नाही, ना मी तिला काही विचारलं. पण तिला पाहून मी या निर्यावर पोचलो, की…. म्हणजे मला असं म्हणायचय, की ही ती मल्लिका नाही, जिच्यावर मी मनापासून जीव जडवला होता आणि जिच्याबाद्दल मी तुझ्याशी बोललो होतो.‘

‘नीट एकदा व्यवस्थित सांग बरं, काय झालय मल्लिकाला?’

‘मल्लिकाच्या अंगावर कोड उठलय. तिच्या शरीरावर जिथे तिथे पांढरे डाग उठलेत. आई, तिचे इतके फोन आणि एसएमएस, येत राहिले, पण तिने कधी संगितले नाही की आपल्याला हा आजार आहे. तिने मार्केटिंग साईड सोडून अॅीडमिनिस्ट्रेशन साईडला बदली करून घेतली, त्याचं कारणंही हेच असणार. बाहेर उन्हात जाण्याने तिला त्रास होत असणार. आता तिच्यात ती गोष्ट राहिली नाही, जिच्यामुळे मी… कशी तरीच दिसतेय आता ती. ‘

हे ऐकून आई थोडा वेळ गप्प राहिली. मग अतिशय शालीन आणि संयमित स्वरात बोलू लागली, ‘याशिवाय आणखी काही कारण आहे, की ज्यामुळे तू आपलं मत बदलण्याचा विचार करतोयस?’

‘नाही. यापेक्षा वेगळं असं काही कारण नाही, पण जे आहे, ते पुरेसं नाही का? मी तिची फाईल डी-लिट केलीय.’

‘मला एक सांग, हा आजार फक्त बायकांनाच होतो का?’ आईने जसं काही विरोधी पक्षाचं वकीलपत्र घेतलं होतं.

‘नाही. तसं काही नाही. कुणालाही हा आजार होऊ शकतो.’

‘मग क्षणभर असं धरून चल, की मल्लिकाबरोबर तुलाही हा आजार झालाय. तेव्हाही आत्ता तुझा पवित्रा जसा आहे, तसाच असेल का? तुझे विचार तेव्हाही असेच असतील का? आणखीही एक….’

‘काय?’

‘समजा, तुमचं लग्नं झाल्यावर तिला हा आजार झाला असता तर…’

आईचे हे प्रश्न माझ्यासाठी अनपेक्षित होते. मी शहारलो.

थोड्याशा विचारानंतर  माझ्या एकदम लक्षात आलं, कॉंम्पुटर शिकताना विथी मला एकदा मजेत म्हणाली होती, ‘तुम्हाला माहीत आहे डॅडी, की डी-लीट केलेली फाईल कॉंम्पुटरच्या रिसायकल- बिनमधून बाहेर काढून पुन्हा ओपन करता येते?’

माझी बेचैनी वाढत गेली. मी सेल-फोन उचलला आणि त्यात मल्लिकाचा नंबर शोधू लागलो.

– समाप्त –

मूळ हिंदी  कथा – ‘रिसायकल-बिन में मल्लिका’  मूळ लेखक – भगवान वैद्य `प्रखर’

अनुवाद –  सौ. उज्ज्वला केळकर

संपर्क – 176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170ईमेल  – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ जन्मदिवस विशेष – राजकपूर ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? मनमंजुषेतून ?

☆ जन्मदिवस विशेष – राजकपूर ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

(१४ डिसेंबर हा हिंदी चित्रपट सृष्टीतील श्रेष्ठ अभिनेता,  दिग्दर्शक आणि Showman कै. राजकपूर यांची जयंती. त्यानिमित्त त्यांना श्रद्धांजली ! )

कलेसी बहार आणी तो दुजा तर नाही कोणी

राज कपूर तो जानी अंतर्यामी हिंदुस्थानी  ||ध्रु||

तहान वात्सल्याची जीवा प्रेमाची मायेची

वाट जीवना संस्काराची ना केवळ नात्याची 

द्याया संदेश हसवूनी येई आवारा घेऊनी

राज कपूर तो जानी अंतर्यामी हिंदुस्थानी    ||१||

देश ग्रासला बेकारीने शिकलेला भरडला

धनाढ्य लुच्चे लोभी फसविती दीनांना दुबळ्यांना

दावुनिया चारसोबीसी केले सकल जनांना ज्ञानी

राज कपूर तो जानी अंतर्यामी हिंदुस्थानी  ||२||

मुखड्यामागे पाप धनाच्या, तहानल्या ना पाणी

काळा पैसा खोट्या नोटा कोण गुन्ह्याचा धनी

करितो सर्वांना सावध जागते रहो सांगूनी

राज कपूर तो जानी अंतर्यामी हिंदुस्थानी  ||३||

©️ डाॅ. निशिकान्त श्रोत्री

श्रोत्री निवास, ४०/१-अ, कर्वे रस्ता , पुणे ४११००४

९८९०११७७५४

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ एक वादळ —-जमादार बापू लक्ष्मण लामखडे ☆ प्रा.डॉ.सतीश शिरसाठ ☆

प्रा.डॉ.सतीश शिरसाठ

? इंद्रधनुष्य ?

☆ एक वादळ —-जमादार बापू लक्ष्मण लामखडे ☆ प्रा.डॉ.सतीश शिरसाठ ☆ 

नुकतंच मी एका वादळाविषयी वाचलंय…

अनेक हिंदी चित्रपटांतून देशातील, विशेषतः विस्तीर्ण समुद्रकिनारा लाभलेल्या मुंबईतील अंडरवर्ल्ड जगतातील अनेक पैलू दाखवले जातात. अनेक स्मगलर्स ,गॅन्गस्टर्स – त्यांच्या कामाच्या पध्दती, डावपेच दाखवून कुणीतरी हिरो किंवा प्रामाणिक पोलीस ऑफिसर ते कसे उधळून लावतो हे दाखवले जाते.अर्थात यात रंजकतेचा भाग मोठा असतो. यातील कथानक काल्पनिक असते. असे चित्रपट लोकप्रिय झाले. पण मुंबईतील गँगस्टर्स,स्मगलर्स यांना सळो की पळो करून सोडणारा एक खंदा वीर आपल्या देशात होऊन गेला,आणि त्याने एकेकाळी दैदिप्यमान इतिहास निर्माण केला होता. हा वीर आणि त्याने घडवलेला इतिहास आज कुणाला फारसा माहीत नाही.

२०२२ हे या वीराचे जन्मशताब्दी वर्ष आहे. या निमित्ताने व्हाट्सअप वर एक पोस्ट वाचली आणि त्यातून या  कर्तृत्वाची माहिती झाली, आणि माझ्या शब्दात ती सर्वांपर्यंत पोहोचवावीशी वाटते आहे.  

प्रत्येक भारतीयाला अभिमान वाटावा अशा या वीराचे नाव आहे- जमादार बापू लक्ष्मण लामखडे. २ जुलै १९२२  रोजी जुन्नर तालुक्यातील (जि.पुणे) मंगरूळ पारगाव इथं एका शेतकरी कुटुंबात त्यांचा जन्म झाला. प्लेगच्या साथीत  वडिलांचे निधन झाले होते. मोठा भाऊ मुंबईतील गोदीत कामाला होता. गावी आपल्या आईची करडी शिस्त, आणि रानात शेळया चारताना आजूबाजूच्या निसर्ग यांच्या सान्निध्यात बापू लहानाचा मोठा झाला. त्याची शरीरयष्टी मजबूत बनली. पुढे त्याने चरितार्थासाठी मुंबईच्या गोदीत कामाला सुरुवात केली. 

१९४४ मध्ये मुंबई कस्टममध्ये शिपाई म्हणून तो रूजू झाला. कसलेले शरीर, धाडसी स्वभाव, तीक्ष्ण नजर या जोरावर बापूने कस्टममध्ये अजोड काम केले. १९६०-७० हे दशक हा मुंबई अंडरवर्ल्डचा सुवर्णकाळ म्हणून ओळखला जातो. या काळात अनेक स्मगलर्स आणि गॅन्गस्टर्सनी देशात धुमाकूळ घातला होता. सामाजिक अशांतता आणि अस्थैर्याचे वातावरण निर्माण केले होते. दारू,मटका, स्मगलिंग, यामधून देशाला वेठीस धरले होते.अशा अनेकांवर बापूंनी वचक बसवला होता. अनेक तस्करांना पकडून त्यांच्याकडून त्यांनी त्यावेळी लाखो रूपयांचा मुद्देमाल हस्तगत केला होता. आपले असेच कर्तृत्ववान, धाडसी सहकारी आणि वरिष्ठांच्या सहाय्याने बापूंनी त्याकाळी अनेक गुन्हेगारांवर वचक बसवला होता. त्यांच्या कर्तृत्वाच्या आणि धाडसी यशाच्या अनेक कहाण्या मुंबई कस्टमच्या इतिहासात नोंदल्या गेल्या आहेत.

बापूंना पुढे जमादार पदावर बढती देण्यात आली. त्यांच्या अतुलनीय कार्याबद्दल  १९६४ मध्ये त्यांना राष्ट्रपतीपदाने गौरविण्यात आले. बापू लामखडे यांचे जीवनकार्य हा देशप्रेमाचा धगधगता आविष्कार होता. सततची जागरणं आणि  धावपळीचा परिणाम बापूंच्या शारीरिक स्थितीवर होऊन ते आजारी पडले आणि त्यांचे निधन झाले. ‘ बापूंनी आपल्या धाडसाने मुंबई कस्टमच्या इतिहासात एका कर्तृत्ववान पाठ कायमचा लिहून ठेवला आहे,’ असा उल्लेख मुंबई कस्टमने केला. त्यांना दुसर्‍यांदा मरणोत्तर राष्ट्रपती पदक बहाल करण्यात आले. मुंबईतील कस्टम ऑफिसच्या चौकाला, ” जमादार लक्ष्मण बापू चौक ”  असे नाव देण्यात आले. तसेच त्यांच्या जन्मगावी त्यांचा ब्राॅन्झचा पुतळा उभारण्यात आला आहे.

जमादार बापू लक्ष्मण लामखडे यांचे जीवनकार्य हे साऱ्या भारतीयांसाठी देशाभिमानाचे जाज्वल्य प्रेरणास्रोत आहे.

© प्रा.डाॅ.सतीश शिरसाठ.

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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈