हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सुदर्शन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ मार्गशीष साधना🌻

आज का साधना मंत्र  – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – सुदर्शन ??

जब नहीं रहूँगा मैं

और बची रहेगी सिर्फ़ देह,

उसने सोचा….,

सदा बचा रहूँगा मैं

और कभी-कभार

नहीं रहेगी देह,

उसने दोबारा सोचा…,

पहले से दूसरे विचार तक

पड़ाव पहुँचा,

उसका जीवन बदल गया…,

दर्शन क्या बदला,

कल तक जो नश्वर था

आज ईश्वर हो गया..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈



हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 108 ☆ ग़ज़ल – “वह याद चली आती…”☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “वह याद चली आती…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #108 ☆  ग़ज़ल  – “वह याद चली आती…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

दुनियाँ से जुदा, दिल में रहती है जो शरमाई 

वह याद चली आती, जब देखती तनहाई।

 

मिलकर के मेरे दिल को दे जाती है कुछ राहत

जो रखती मुझे हरदम उलझनों में भरमाई।

 

लगती उदास मुझको ये कायनात सारी

तस्वीर तुम्हारी ही आँखों में है समाई।

 

सदा सोते जागते भी सपने मुझे दिखते है

पर फिर से कभी मिलने तुमसे न घड़ी आई।

 

अनुमान के परदे पर कई रूप उभरते है

कभी बातें करते, हँसते पड़ती हो तुम दिखाई।

 

सब जानते समझते धीरज नहीं मन धरता

पलकों में हैं भर जाते कभी आँसू भी बरियाई।

 

मन बार-बार व्याकुल हो साँसें भरा करता

कर पाई कहॉ यादें इन्सान की भरपाई।।

 

दिन आते हैं जाते हैं पर लौट नहीं पाते

देती ’विदग्ध’ दुख यह संसार की सच्चाई।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (7 नवंबर से 13 नवंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (7 नवंबर से 13 नवंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

किसी ने कहा है कि “जो आपके भाग्य में है वह भाग कर आएगा और जो आपके भाग्य में नहीं है वह आकर भी भाग जाएगा “।

14 नवंबर से 20 नवंबर 2022 अर्थात विक्रम संवत 2079 शक संवत 1944 के अगहन मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी से  एकादशी तक के सप्ताह में आपके भाग्य में क्या-क्या है यही बताने के लिए मैं आपके सामने प्रस्तुत हूं । आप सभी को पंडित अनिल पाण्डेय का नमस्कार ।

इस सप्ताह चंद्रमा प्रारंभ में कर्क राशि में रहेगा ।   दिनांक 16 नवंबर को 4:32 सायं से सिंह राशि में और 18 नवंबर को 2:45 रात से कन्या राशि में प्रवेश करेगा । सूर्य प्रारंभ में तुला राशि में रहेगा तथा 17 तारीख को 7:13 प्रातः से वृश्चिक राशि में गोचर करेगा । मंगल पूरे सप्ताह वृष राशि में वक्री रहेगा  ।  बुध और शुक्र वृश्चिक राशि में रहेंगे । गुरु मीन राशि में  वक्री  रहेगा । इसी प्रकार शनि पूरे सप्ताह मकर राशि में रहेगा । आइए अब हम राशिवार राशिफल की बात करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपके पास अच्छा धन आ सकता है । कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी । छोटी मोटी दुर्घटना हो सकती है । इस सप्ताह आपको अपने परिश्रम पर विश्वास करना चाहिए । भाग्य कोई बहुत अच्छा साथ नहीं देगा । संतान का सहयोग भी आपको कम मिलेगा । इस सप्ताह आपके लिए 14 ,15 और 16 नवंबर अच्छे हैं। । 14 ,15 और 16 नवंबर को आप जो भी कार्य करेंगे उनमें आपको सफलता मिलेगी । 19 और 20 नवंबर को आपको कार्यों में असफलता प्राप्त होगी  । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का अभिषेक करें तथा रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

आपके जीवन साथी को कई क्षेत्रों में सफलताएं प्राप्त होगी । व्यापार ठीक ठाक चलेगा । अगर आप अविवाहित हैं तो आपके विवाह के प्रस्ताव आएंगे । प्रेम संबंध बनाने में भी सफलता मिल सकती है । आपका स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है । आपके सुख में कमी आएगी । छोटी मोटी दुर्घटना हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 17 और 18 नवंबर उपयुक्त है ।  सप्ताह घंघके बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गाय को हरा चारा खिलाएं सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य पिछले सप्ताह जैसा ही रहेगा । शत्रु परास्त होंगे । कचहरी के मामलों में आप को हार मिल सकती है । भाइयों और बहनों से क्लेश बढ़ेगा । कार्यालय में आप थोड़ा बहुत परेशान हो सकते हैं । आपको अपनी संतान का सहयोग प्राप्त नहीं होगा । गलत रास्ते से धन आ सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 19 और 20 नवंबर श्रेष्ठ है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह गुरुवार के दिन व्रत रखें और भगवान राम या कृष्ण जी के मंदिर में जा कर पूजा पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । आपके संतान की पदोन्नति हो सकती है । छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी । थोड़ा बहुत धन आने का योग है । व्यापार में उन्नति होगी । इस सप्ताह आपके लिए 14 15 और 16 नवंबर अच्छे हैं । इन तारीखों में आप जो भी कार्य करेंगे उनमें आपको सफलता प्राप्त होगी । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह राम रक्षा स्त्रोत का प्रतिदिन जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आप कोई बड़ी चीज खरीद सकते हैं । जनता में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी । भाग्य आपका साथ नहीं देगा । शत्रु बढ़ेंगे।  आपका स्वास्थ्य नरम गरम रहेगा।  । आपको अपने संतान से कोई विशेष मदद नहीं मिल पाएगी ।   छात्रों की पढ़ाई में व्यवधान आ सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 17 और 18 नवंबर लाभदायक है । 14, 15 और 16 नवंबर को आपको सावधान रहना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शुक्रवार को मंदिर में जाकर भिखारियों के बीच में चावल का दान दें।  सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

अविवाहित जातकों के विवाह के प्रस्ताव आएंगे ।  आपके जीवनसाथी के पेट में पीड़ा हो सकती है । आपकी संतान सुखी रहेगी । भाइयों और बहनों से संबंध ठीक-ठाक रहेगा । भाग्य से आपको थोड़ी बहुत मदद मिल पाएगी ।    19  और 20 नवंबर  सप्ताह में आप के सबसे अच्छे दिन हैं । 17 और 18 नवंबर को आप कई कार्यों में असफल हो सकते हैं । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप पूरे सप्ताह विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का उत्तम योग है । आपके साथ छोटी मोटी दुर्घटना हो सकती है। भाइयों के साथ आपका वैर बढ़ेगा । विवाहित जातकों के विवाह में बाधा आएगी ।  14 , 15 और 16 नवंबर को आप जो भी कार्य करेंगे वे  सभी कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण होंगे । 19 और 20 नवंबर को आपको सतर्क रहना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा । जीवन साथी के स्वास्थ्य में थोड़ी तकलीफ आ सकती है । व्यापार अच्छा चलेगा । विवाह के प्रस्ताव आएंगे । बहनों से बहुत अच्छे संबंध रहेंगे । संतान के साथ संबंधों में बाधा आ सकती है । पढ़ाई में व्यवधान आएंगे । इस सप्ताह आपके लिए 17 और 18 नवंबर उत्तम है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है ।

धनु राशि

कचहरी के कार्यों में सफलता का योग है । आपके संतान को कष्ट हो सकता है । आप के सुख में कमी आ सकती है । भाग्य कम साथ देगा । इस सप्ताह आपके लिए 19 और 20 तारीख को उत्तम है । 19 और 20 को आप जो भी काम करेंगे उसमें आपको सफलता मिल सकती है। 14 15 और 16 नवंबर को आपको सतर्क होकर कोई भी कार्य करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह मंगलवार का व्रत करें और मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जा कर पूजा पाठ करें  ।  सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । आपके पास धन आने का अच्छा योग है । आपको अपनी पुत्री से सुख प्राप्त होगा । पुत्री से आपको बहुत सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों को पढ़ाई में परेशानी आ सकती है । कचहरी में स्थिति आपकी खराब हो सकती है ।  इस सप्ताह आपके लिए 14 15 और 16  नवंबर शुभ एवं लाभप्रद है। ।   14 ,15 और 16 नवंबर को आप जो भी कार्य करेंगे उसमें आपको सफलता प्राप्त होगी ।  17 और 18 नवंबर को आपको कई कार्यों में हानि उठानी पड़ सकती है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह काले कुत्ते को रोटी खिलाएं ।  सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

आपके पास गलत रास्ते से धन आने का योग है । भाग्य साथ देगा । दूर की यात्रा पर आप जा सकते हैं । कार्यालय में आपको अपने अधिकारियों से सहयोग प्राप्त होगा । आपके  अधीनस्थ आपको परेशान कर सकते हैं । समाज में आपकी प्रतिष्ठा गिर सकती है । नए शत्रु बन सकते हैं । इस सप्ताह आपके लिए 17 और अट्ठारह नवंबर उपयुक्त एवं लाभप्रद है । इस सप्ताह में नए कार्य  करने का कम प्रयास करें । आप को चाहिए कि आप इस सप्ताह  शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे दिया जलाएं और पीपल की सात बार परिक्रमा करें । इसके अलावा आपको शनिवार को शनि देव का पूजन करना चाहिए। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मीन राशि

मीन राशि के अविवाहित जातकों के पास विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं । भाग्य आपका इस सप्ताह अच्छा साथ देगा । आपके कई बिगड़ते हुए काम बन सकते हैं । धन आने का अच्छा योग है । भाइयों से तनाव रहेगा । एक बहन से अच्छे संबंध रहेंगे । आपको और आपके जीवन साथी को पेट में तकलीफ हो सकती है। आपके लिए 19 और 20 नवंबर उत्तम और कार्य सिद्धि योग्य है। 17 और 18 नवंबर को आपको सतर्क होकर कार्य करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह अपने गुरुदेव को प्रसन्न करने का प्रयास करें । इसके अलावा प्रतिदिन अपने माता और पिता का प्रातः काल चरण स्पर्श करें। । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट का उपयोग करें और हमें इसके प्रभाव के बारे में बताएं ।

मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ साद… ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ साद… ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆

आम्ही सेक्युलॅरिझमच्या

घोषणा देत होतो

तेव्हा, त्यांनी

शस्त्रास्त्रे जुळवली.

आम्ही शांततेचा माहोल

निर्माण करत होतो

तेव्हा यांनी जिहाद पुकारला.

आम्ही धाडले

निषेधाचे खलिते

त्यांच्याकडे.

त्यांनी खलित्यांचेच 

बोळे पेटवून

आमच्याच घरात टाकले.

आता अनिकेत झाल्यावर तरी

जागू द्या आत्मभान

अभ्युत्थानार्थ संभावणारा युगपुरूष

आपल्याच आत्मगर्भात

वाट पाहत आसेल

आपल्या आर्त कळांची

© श्रीमती उज्ज्वला केळकर

संपर्क -17 16/2 ‘गायत्री’ प्लॉट नं. 12, वसंत दादा साखर कामगारभावन के पास , सांगली 416416 महाराष्ट्र

मो. 9403310170, email-id – [email protected] 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 128 – नको साजणी तू ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 128 – नको साजणी तू ☆

नको साजणी तू ।अशी दूर आता।

मनी आसवांचा । नको पूर आता।

 

तुझा छंद माझ्या। जिवाला जडे हा।

तुझ्या दर्शनाने । टळे धूर आता।

 

अशा शांत वेळी । नको हा दुरावा।

तुझा हात हाती ।असे नूर आता।

 

किती भाव नेत्री। तुझ्या दाटलेले।

इशारा कशाला । जुळे सूर आता।

 

तुझा स्पर्श भासे जणू चांदण्याचा।

उगी लाजण्याने। अशी चूर आता।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – विविधा ☆ संस्कृत साहित्यातील स्त्रिया…3 ☆ डॉ मेधा फणसळकर ☆

डॉ मेधा फणसळकर

? विविधा ?

☆ संस्कृत साहित्यातील स्त्रिया…3 ☆ डॉ मेधा फणसळकर ☆ 

द्रौपदी

महाभारतातील एक महत्वपूर्ण पात्र म्हणजे द्रौपदी! वास्तविक संपूर्ण महाभारताचा विचार करता कथेची नायिका द्रौपदी व नायक श्रीकृष्ण आहे असे म्हणावे लागेल.

द्रौपदीच्या चरित्राचा अभ्यास करताना असे लक्षात येते की तिच्या स्वभावाचे अनेक चांगले- वाईट कंगोरे होते. स्वयंवराचा ‛पण’ अर्जुनाने जिंकला असला तरी कुंतीच्या सांगण्यावरून ती पाचही पांडवांचा पती म्हणून स्वीकार करते. यातून तिच्यातील आज्ञाधारक सून जाणवते. पण ज्यावेळी पांडवांवर संकट येते आणि कोणताही निर्णय घेण्यास ते असमर्थ ठरत त्यावेळी योग्य सल्ला द्यायचे काम तीच खंबीरपणे करत असे. प्रसंगी त्यांच्या चुका दाखवण्यातही ती मागेपुढे पाहत नसे. द्युतात हरल्यावर पांडवांना जेव्हा वनवासात जावे लागले तेव्हाही तिने त्यांच्या मनात प्रतिशोधाची ज्योत सतत जागी ठेवण्याचा प्रयत्न केला. एका प्रसंगात ती युधिष्ठिराला म्हणते,“ पूर्वी सकाळी ज्या सुंदर भूपाळी आणि वाद्यवादनाने तुम्हाला जाग येत असे तेच तुम्ही सर्व राजे आता सकाळच्या कोल्हेकुईने जागे होता. जिथे तुम्ही पंचपक्वान्नांचा आस्वाद घेत होता तेच तुम्ही आता कंदमुळांवर गुजराण करत आहात. ज्या भीमाच्या गदेच्या प्रहाराची सर्वाना भीती वाटते तो भीम जंगलातील झाडांवर कुऱ्हाडीचा प्रहार करून लाकडे गोळा करत आहे….” अशाप्रकारे आपल्या कर्तव्याची आपल्या पतींना जाणीव करून देणारी ती कर्तव्यदक्ष आणि महत्वाकांक्षी स्त्री वाटते.

आजच्या काळातही अजूनही स्त्री- पुरुष यांच्या मैत्रीच्या निखळ नात्यावर फारसा विश्वास ठेवला जात नाही. पण त्या काळात द्रौपदी आणि श्रीकृष्ण यांची मैत्री अनोखी होती. त्यांच्यात खऱ्या अर्थाने सखा, भाऊ आणि सवंगड्याचे नाते होते. म्हणूनच तिला ‛कृष्णा’ या नावानेही ओळखले जात असे. ज्यावेळी भर दरबारात तिला डावावर लावण्यात आले आणि तिला निर्वस्त्र करण्याचा प्रयत्न केला गेला तेव्हा तिला केवळ कृष्णाचीच आठवण झाली. तिने स्वतःच्या रक्षणासाठी कृष्णाचा धावा करताना म्हटले,“ माझा कोणी पती नाही, माझा कोणी पुत्र नाही, माझा कोणी पिता नाही. हे मधुसूदन, तुझे माझे तर कोणतेच नाते नाही. पण तू माझा सच्चा मित्र- सखा आहेस. म्हणून तू माझे रक्षण करावेस.” असे म्हणून तिने केवळ त्यांच्यातील मैत्रभावनेलाच हात घातला नाही तर त्याला आपल्या कर्तव्याचीही जाणीव करून दिली. इतकेच नव्हे तर त्याचवेळी कुरुवंशातील ज्येष्ठ आणि श्रेष्ठ व्यक्तींना दूषण देण्यासही ती कचरली नाही. वास्तविक द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, धृतराष्ट्र यांनी ही सर्व विपरीत घटना घडत असताना ते थांबवणे गरजेचे होते. त्यामुळे अन्यायाविरुद्ध लढण्याची आणि आपला अधिकार हक्काने मागणारी द्रौपदी निश्चितच सर्व स्त्रियांसाठी आदर्श ठरावी.

जोपर्यंत तिच्या या अपमानाचा बदला घेतला जात नाही तोपर्यंत तिने आपले केस मोकळे सोडले होते. दुर्योधनाच्या रक्तानेच वेणी बांधण्याची तिने प्रतिज्ञा केली होती. आणि जोपर्यंत तिचे ते मोकळे केस दिसत होते तोपर्यंत तिच्या पतींना तिच्या अपमानाचा आणि त्याचा बदला घेण्याचा विसर पडू नये हीच तिची त्यामागची भावना असावी. यातून तिच्यामधील निश्चयी आणि तितकीच आपल्या मताशी ठाम असणारी स्त्री दिसून येते.

जितकी ती प्रसंगी कठोर होत असे तितकीच ती मनाने कोमल होती. जयद्रथ म्हणजे खरे तर तिच्या नणंदेचा पती! पण तो तिचे अपहरण करतो आणि नंतर त्याच्या या अपराधासाठी त्याला ठार मारण्याची युधिष्ठिराकडे मागणी होत असताना ती आपल्या नणंदेला वैधव्य प्राप्त होऊ नये म्हणून सर्वाना त्यापासून परावृत्त करते. मात्र जयद्रथाला आपल्या या दुष्कृत्याची सतत जाणीव राहावी म्हणून त्याचा चेहरा विद्रुप करण्याची आज्ञा देते.

ती पाच पतींची पत्नी असली तरी वारंवार असे जाणवत राहते की ती भीमावर मनापासून प्रेम करत होती. कारण ज्या ज्या वेळी तिच्यावर संकट आले त्या त्या वेळी तो पती म्हणून तिच्या पाठीशी उभा राहिला. वस्त्रहरणाच्या वेळी पण त्याने एकट्यानेच त्याविरुद्ध आवाज उठवला होता. त्यामुळे जेव्हा द्रौपदीचा अंतिम काळ आला त्यावेळी ती भीमाला म्हणाली,“ जर पुन्हा जन्म मिळालाच तर तुझीच पत्नी व्हायला मला आवडेल.” द्रौपदीमधील ही प्रेमिका मनाला मोहवून जाते.

अशी ही महाभारताची नायिका असणारी द्रौपदी अनेक आयामातून संस्कृत साहित्यात भेटत जाते. काहीजणांच्या मते केवळ द्रौपदीच्या अहंकारी स्वभावाने आणि रागामुळे संपूर्ण महाभारत घडले. पण माझ्या मते या संपूर्ण कथेत द्रौपदीवर जितका अन्याय झालेला दिसतो तितका इतर कोणत्याही स्त्रीवर झालेला दिसत नाही. राजघराण्यातील असूनही संपूर्ण जीवन संघर्ष आणि दुःखात गेले. मुले असूनही मातृत्व नीट उपभोगता आले नाही. सौंदर्यवती असूनही नेहमीच पाच पतींमध्ये विभागली गेली. ज्याच्यावर तिचे खऱ्या अर्थाने प्रेम होते त्याला पूर्णपणे समर्पित होऊ शकत नव्हती. आणि या सर्व प्रतिकूल परिस्थितीतही ती तितकीच खंबीर होती. पण तरीही शेवटी ती एक सामान्य स्त्री होती. म्हणूनच काही वेळा प्रेम, ईर्षा, राग या सहज भावना तिच्यात उफाळून येत असाव्यात. त्यामुळे हे सामान्यत्वच उराशी बाळगून तिने आपले असामान्यत्व सिद्ध केले होते असेच म्हणावे लागेल.

© डॉ. मेधा फणसळकर

सिंधुदुर्ग.

मो 9423019961

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ ‘हद्द…’ – भाग – 4 ☆ श्री आनंदहरी ☆

श्री आनंदहरी

?जीवनरंग ?

 ☆ ‘हद्द…’ – भाग – 4 ☆  श्री आनंदहरी  ☆ 

तात्यांनी थबकून कानोसा घेतला. कण्हण्याचा आवाज जरा मोठ्यांनी आला. ‘ हा त्याचाच आवाज.. तो अडलकलाय इथं..’ तात्यांनी ओळखले, बायकोला हाक मारली. कंदील बाजूला ठेवून बॅटरी तिच्या हातात दिली. ‘तुळई बाजूला करून त्याला बाहेर काढायलाच हवं… पण एवढी मोठी तुळई, ती ही एका बाजूने मलब्याखाली अडकलेली, आपल्याला हलेल तरी का ?’ तात्यांच्या मनात विचार आला…  ‘ पण काहीही झालं तरी त्याला बाहेर काढायलाच हवं.. आपल्यालाच हलवायला हवी तुळई, एवढया रात्री मदतीला येणार तरी कोण ? गाव तसे कोसावर.. त्यात हा पाऊस आणि रात्र.. तिथंवर जाऊन माणसे गोळा करून आणेपर्यंत त्याला काही झाले तर.. ? नाहीsनाहीss! आपणच करायला हवं काहीतरी..’ मनात आलेल्या नकारात्मक  विचारांनी दचकून त्यांनी मनातून ते विचार झटकले आणि तुळई हलवायचा प्रयत्न करू लागले. तुळई त्यांना तसूभर सुद्धा हलली नाही. त्यांनी बॅटरीचा झोत तुळईवर पडेल अशी बाजूच्या दगडावर बॅटरी ठेऊन बायकोला मदतीला बोलावले. दोघे मिळून तुळई हलवण्याची धडपडू लागले पण तुळई जरासुद्धा हलली नाही.

       ही तुळई हलवून बाजूला करण्याची ताकद आता आपल्या या म्हाताऱ्या हातात उरलेली नाही याची जाणीव झाली तेंव्हा त्यांच्या डोळ्यांतून ओघळलेली आसवे पावसाच्या थेंबाबरोबर गालावरून ओघळून गेली.  त्यांनी सदऱ्याच्या ओल्या बाहीनेच डोळे टिपले. क्षणभर हताश झालेल्या मनाला सावरले. त्यांनी क्षणभर ‘ आकाशातील देवाला ‘ हॅट जोडले आणि काहीसा विचार करून तुळईच्या बाजूचे दगड बाजूला करायला सुरुवात केली. काही दगड- माती बाजूला सारल्यावर त्यांना तो दिसला.. अर्धा दगड- मातीत गाडला गेलेला दगड-तुळईच्या बेचक्यात राहिल्याने वाचलेला, रक्तबंबाळ झालेला. तो दिसताच तात्यांनी बायकोला जवळ बोलावून कंदील, बॅटरी पुन्हा व्यवस्थित बाजूला ठेवायला सांगून तिच्यासह दगड, विटा, माती बाजूला करायला सुरुवात केली.

      ” घाबरू नको, आम्ही आलोय, काढतो तुला बाहेर. “

      त्याला ऐकू जाईल का ? समजेल का ? याचा विचार न करता दगड बाजूला करता करता तात्या मोठ्याने त्याला म्हणाले.  वय झालेल्या तात्यांच्यात बारा हत्तीचं बळ आले होते. मनात फक्त त्याला बाहेर काढायचा, त्याला वाचवायचा विचार होता. ते तुळईच्या बाजूचे दगड बाजूला करत असतानाच एक दगड  त्यांच्या पायाची सालटे काढीत घरंगळत खाली गेला.अगदी थोडक्यात त्यांचा पाय वाचला होता. तात्या त्याकडे दुर्लक्ष करून बायकोच्या मदतीने मलबा बाजूला करण्यासाठी धडपडत होते. तुळईच्या वरचा, बाजूचा मलबा बाजूला करून झाल्यावर तात्यांनी पुन्हा तुळई हलवायचा प्रयत्न केला. तुळई जरा हलल्यासारखी वाटली तेंव्हा त्यांना आणखी हुरूप आला.

      ” ए, इकडे ये आणि जरा जोर लाव. ” त्यांनी बायकोला बोलावले आणि ते चार म्हातारे हात तुळई हलवण्यासाठी धडपडू लागले. कितीतरी वेळ प्रयत्न करून त्यांनी थोडी थोडी करत तुळई बाजूला केली.  बाजूला केलेल्या तुळईच्या आधारानेच तात्या बेचक्यात त्याच्याजवळ उतरले. त्यांनी त्याच्या पायावरील मलबा बाजूला केला. दरम्यान तो बेशुद्ध पडला असावा. तात्यांनी आणि त्यांच्या बायकोने प्रयत्नांची शिकस्त करत कसातरी त्याला उचलून बाजूला आणत घरात आणला. त्याला पलंगावर ठेवून ते थकले-भागलेले दोन जीव विसावले. 

                                  क्रमशः...

© श्री आनंदहरी

इस्लामपूर जि. सांगली – मो  ८२७५१७८०९९

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ पँपरींग… लेखिका – सुश्री शितल ☆ प्रस्तुती – सुश्री स्नेहलता दिगंबर गाडगीळ ☆

सुश्री स्नेहलता दिगंबर गाडगीळ

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☆ पँपरींग… लेखिका – सुश्री शितल ☆ प्रस्तुती – सुश्री स्नेहलता दिगंबर गाडगीळ ☆

खरंतर या इंग्लिश शब्दाला मराठीत खूप छान अर्थ आहेत—- लाड , कोड,  कौतुक , जपणूक,  सांभाळणे , गोंजारणे ……अर्थातच या सगळ्या क्रिया किंवा इतिकर्तव्य ही आपल्या आसपास असणाऱ्या लोकांनी एकमेकांसोबत करायची असतात. आपले कुटुंबिय किंवा आपले वडिलधारे लोक आपलं कौतुक करत असताना आपण लहानपणापासून पहात आलोय. तद्वतच आपणही आपल्या जवळच्या लोकांचं यथायोग्य कौतुक आणि लाड करतोच.  

कौतुक आणि लाड हे समोरच्याने केले की त्याचा गोडवा वाढतो. 

पण …पण…पण  धावत्या जगाबरोबर आत्मकेंद्रित होत चाललेली माणसं, संकुचित आणि इर्षेखोर मनं , कामाच्या व्यापाच्या नावाखाली मी भोवती आखून घेतलेली नेणीवेची आवर्तनं, यांच्या वावटळात या पॅंपरिंगचाचा अक्षऱश: पाचोळा होतोय … मी आणि माझं काम हे सगळ्यात मोठं, दुसरा माझ्यापेक्षा मोठा होऊच नये ही भावना, किंवा मी माझ्या व्यापातून इतरांना वेळ देऊच शकत नाही, आता ज्याने त्याने स्वावलंबी व्हावं ही जाणीवेची धग, नात्यांच्या आणि भावभावनांच्या बंधांना एकटेपणाचे चटके देत राहतीय ..

बाहेरचे, परके, नातेवाईक वगैरे ठीक आहे. पण कधी कधी आपल्या घरच्या रक्ताच्या नात्यांकडूनही असाच अनुभव तरळून जातो, आणि मग येते एक विषण्णता, वैराग्य, किंवा चीड आणि क्रोध. 

पण खरं सांगायचं तर हे सगळं आता इतकं पुढं गेलंय ना, की आपण ठरवलं तरीही यात बदल करु शकत नाही. सोशल लाईफ , सोशल मीडिया आणि सोशल एडिक्शनच्या तिकडीवर सोशल अवेयरनेसचं मात्र वाटोळं होत चाललंय .. 

मी , माझा , माझं , मला , या ‘ म ‘ च्या आवर्तनात गुरफटलेला प्रत्येक माणूस समोरच्यापासून दूर आणि मग्रूर होत चाललाय. यात सगळेच आले– अगदी तुम्ही आणि मी सुद्धा ….. 

पण हे झालं समोरच्यासाठी. जेव्हा अशा पॅंपरींगची गरज मला स्वत:ला असते तेव्हा काय करावं बरं … आली का पंचाईत– म्हणजे दुसऱ्यासाठी विणलेल्या जाळ्यात आता आपणही अडकणार तर ?—–   आज आता मला कुणाच्या तरी खंबीर खांद्याची, कुरवाळणाऱ्या हातांची आणि मायेच्या कुशीची गरज आहे, पण कुणीच नाहीये सोबत किंवा  ते कुणी करत नाहीये ….

अशा वेळी तडक उठावं– मस्त आवडीचे कपडे घालावे– मोठा प्लान असेल तर बॅगच भरावी —–

आणि कर्तव्य, जाणीवा, व्याप,  जबाबदारीची  सगळी लक्तरं आपल्याच अंगणातल्या झाडाखाली ठेवून … सरळ स्टार्टर मारावा आणि आपल्या आवडीच्या ठिकाणी जाऊन बसावं —- अगदी एकटं —-डोंगराच्या कड्यावर , नदीच्या काठावर , मंदिराच्या गाभाऱ्यात किंवा निर्जन बेटावर — आपल्याला आवडेल अशा ठिकाणी जावं , आपल्याला आवडतं  ते खावं , आपल्याला आवडतं ते संगीत लावावं, आवडेल तसं हसावं, आवडेल तसं रडावं , आवडेल तसं बागडावं, आवडेल ते……ते सगळं करावं —– 

—–उघड्या माळावर बसून आपणच आपल्या कौतुकाचं एक छानसं भाषण करावं— आपणच त्यावर टाळ्या वाजवाव्या— आपल्याला आवडती फुलं आपणच गिफ्ट करावी—- रोमॅंटिक साँग लावून अगदी मध्यरात्री वाईनच्या ग्लाससोबत सोलो डान्स करावा —- आपणच आरशात बघून आपल्यालाच कॉम्प्लीमेंट द्यावी —-  आपणच आपल्या फोटोला करकचून मिठी मारावी —- खळखळून हसावं, देखणं दिसावं, आणि स्वत:च्या मिठीत स्वत:च विसावावं …….. मस्त समुद्रावर जावून त्याच्या डोळ्यात डोळे घालून त्याची खोली मोजावी – आव्हान द्यावं सागराला — चल  मोजून पाहू कोण जास्त गहिरं आहे – तुझं अंतरंग, की मी — माझ्या मनाचे तरंग. 

—– मस्त मनसोक्त वागावं, मनसोक्त जगावं आणि दुःख, तणाव, व्याप, एकटेपणाची खेटरं भिरकावून द्यावीत खोल दरीत आणि शांत झोपी जावं ………  

—– कारण सकाळी उठायचं असतं— पुन्हा  एकदा  त्याच आपमतलबी जगाशी सामना करायला —- नव्या उमेदीने आणि नव्या ताकदीने ——

लेखिका : सुश्री शितल

प्रस्तुती : सुश्री स्नेहलता दिगंबर गाडगीळ

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ तो कल्याण करी — तो मुरारी वनचरी — तो रामकृष्णहरी…  सौ.प्रिया श्रीनिवास जोग ☆ प्रस्तुती – सौ. गौरी गाडेकर ☆

सौ. गौरी गाडेकर

📖 वाचताना वेचलेले 📖

☆ तो कल्याण करी — तो मुरारी वनचरी — तो रामकृष्णहरी…  सौ.प्रिया श्रीनिवास जोग ☆ प्रस्तुती – सौ. गौरी गाडेकर

आज गर्भरेशमी लाल रंगाचा शालू सीतामाईंच्या अंगावर अगदी खुलून दिसत होता. साक्षात लक्ष्मीचे तेज, तिचे ऐश्वर्य त्यांच्या मुखावर विलसत होते. पण कधी आपल्या रुपाचा त्यांना गर्व नाही झाला. अत्यंत सालस अन् सोज्ज्वळ अशी ती सीतामाई ! दाशरथी रामाची जनकनंदिनी सीता ! 

खरंतर देवळात आवळी पूजनाची चाललेली तयारी पाहून सीतामाई खुलल्या होत्या. वनवासातले भोग भोगून त्या मानवी जीवन खूप जवळून समजल्या होत्या. म्हणून तर माणसांच्यात घटकाभर त्यांनाही रमायला आवडत असावे. तितक्यात कुणीतरी एका कुंडीत लावलेले आवळीचे झाड तिथे आणून ठेवले. पाठोपाठ भगवान विष्णूंचा ध्यानस्थ फोटोही तिथे मांडण्यात आला. कुंडीभोवती फुलांची रांगोळी काय, फुलांचे तुळशीचे हार काय !! ती कुंडीतली छोटीशी आमलकी अर्थात आवळीच हो, लाजून चूर होतेय असा सीतामाईंना भास झाला. तिची इवली इवलाली नाजूक पाने तिने जणू लाजबावरी होऊन मिटून घेतली होती असंच वाटत होतं. खरंतर किती साधंसच तिचं रुप, पण श्रीविष्णूंच्या सान्निध्यात ते अधिकच खुललं होतं. ती अधिकच सौंदर्यवती भासत होती. नववधूचे भाव तिच्यावर विलसत होते. खरंतर नववधू तर सध्या वृंदादेवी आहेत. पण तरीही ही आमलकी किती आनंदात दिसत होती. औटघटकेचे तिचे हे सुख, हे सान्निध्य, पण ती अत्यंत समाधानी होती. सीतामाई एकटक तिच्याकडे पहात होत्या. ते रामरायांच्या चतुर नजरेने बरोबर टिपलं. थोडीशी थट्टा करायची लहर त्यांना स्वस्थ बसू देईना. त्यांनी एकवार लक्ष्मणाकडेही पाहिलं. पण तो काय बोलणार अशावेळी. तो बिचारा आपले धनुष्य सावरीत स्वस्थ उभा !!

श्रीराम — सीते, हे सीते , अशा एकटक कुठे पाहताय नक्की ? तुमच्याहून रुपाने कुणी सरस आहे की काय ?

सीतामाई – लटके हसत मान वेळावत, “अहो तसंच काही नाही. पण आज ती आमलकी पहा ना कशी अनुपम दिसतेय. आजचा दिवस तिच्या भाग्याचा. हेवा नाही हो आमच्या मनी. आपले एकपत्नी व्रत आम्ही जाणत नाही का ? पण तिचे उजळलेले रुप नेत्रात साठवावे वाटते हो. आज तिला विष्णूंचे सान्निध्य लाभलंय. त्यांचा परीस स्पर्श तिला मिळतोय. त्यांची कृपादृष्टी आज तिच्यावर आहे. समाधान मिळतंय हो ते पाहून.

श्रीराम— सीते हे वैभव तर तिच्या ओटीत तुम्हीच घातलंत ना. तिच्या झाडाखाली विष्णूरुपात पूजा करुन–तेही तुमच्या लक्ष्मीरुपात. आपण उभयतांनी तिथेच वास केला म्हणून तर तिचे माहात्म्य थोर झाले.

सीतामाई— ते सारं स्मरणात आहे हो. पण मी आता वेगळाच विचार करतेय. आपण राम अवतारात १४ वर्षे वनांतरी काढली. आणि त्या गोकुळातल्या कृष्णाने गाईगुरांबरोबर गोपगोपींबरोबर वनविहार केला. दोन्ही अवतारात वनात वास होताच. पण किती फरक पडला ना दोहोंत. कृष्ण अवतारात आपला एकमेकांचा सहवास किती ते जरा आठवावंच लागेल. तुमचा सहवास लाभला तो राधेला आणि वृंदेलाच.

श्रीराम — अवतारलीला होत्या त्या सर्व. पण हा राम मात्र सीतारामच किंवा सीताकांत म्हणून स्मरला जातो हेही सत्य आहे ना–

“ सीताकांत स्मरण जयजयराम “ —  लक्ष्मणाने हळूच जयजयकार करत श्रीरामांना आपले अनुमोदन दर्शवले.

आता यावर सीतामाई निरुत्तर. पण रामांना कोपरखळी मारायचीच होती. त्यांचे लक्ष तितक्यात समोर गेलं. लाडू, पेढे, पोहे, चित्रान्ना, केळी, फुटाणे,- भगवंतासमोर किती ते भोग मांडले जात होते. पाणी फिरवून नैवेद्य दाखवला जात होता. रामराया आशिर्वाद मुद्रेत होते. स्मित हास्य चेहेऱ्यावर उमटत होते. ते पाहून सीतामाई चटकन म्हणाल्या, 

“ अहो ऐकलंत का, तो नैवेद्य कृष्णार्पण आहे बरं. रामराय काय वनवासी, कंदमुळं खाऊन राहिलेले. तुम्हाला कुठला नैवेद्य दाखवायचा हा भक्तांना कायम प्रश्न पडत असावा. त्यामुळे सगळा नैवेद्य कृष्णार्पणच !! आणि हो, इथे श्रीविष्णूसहस्रनाम आवर्तन होणार आहे हे पण ध्यानात असू दे. “  

श्रीराम — “ होय सीते जाणून आहोत ते आम्ही. ‘ सहस्र नाम तत्तुल्य रामनाम वरानने ‘ –  ठाऊक आहे ना.

रामकृष्णहरी हा या युगासाठी अत्यंत सोपा मंत्र आहे. जो हा मंत्र जपेल त्याचे कल्याण होईल. आवर्तन श्रीविष्णूसहस्रनामाचे पण साक्षीला राम आहे हे महत्त्वाचे !!”

सीतामाई — एकवचनी रामाचे कुठलेही वचन कसे हो उणे पडावे. आम्ही निरुत्तर आहोत. तुमच्या बाणांप्रमाणे तुमचे वाक्बाणही अमोघ आहेत हे मान्य आहे आम्हाला.”

श्रीराम -राम अवतारात वनवासी राहिलो. पण कृष्ण अवतारात खरे निसर्ग सान्निध्य मोकळेपणाने अनुभवले. गोपांचा जीवनाधार तो गोवर्धन, त्यावरील वृक्ष राजी, यमुनेचा तो खळाळ अन् तिचे ते धीरगंभीर डोह, यमुना तटावरचा तो कदंब, आवळी, ते वृंदावन, गोधन, वेणूनादाने नादावलेले इतरही पशुपक्षी, हे सारे तर सृष्टीचे भाग. ही विपुल सृष्टी आहे. म्हणून मानवी जीवन समृद्ध आहे. म्हणूनच फक्त गोवर्धन नव्हे तर सर्व सृष्टीचे वर्धन व्हावे आणि अर्थातच पुढील पिढीसाठी संवर्धनही तितकेच महत्वाचे हे जाणून तशा लिला रचल्या. तशा कथा रचल्या आणि त्यातून कालातीत असे संदेश मानव जातीला दिले.” 

सीतामाई — होय त्यासाठी गीतेची निर्मिती झाली. विभूतीयोगाद्वारे आपली विभूती निसर्गाच्या कोणकोणत्या रुपात आहे हे सांगितलंत. तेच मुख्य सूत्र धरुन आपल्या ऋषीमुनींनी सणवारांची रचना केली, असंच म्हणायचं आहे ना ?”

लक्ष्मण — “ मध्येच बोलतोय श्रीरामा. शेषरुपात या पृथ्वीचा भार आम्ही तोलतोय म्हणून जे वाटतंय ते बोलू का–”

सीतामाई — “ अहो भाऊजी, परवानगी  काय हो मागताय? अहो बोलू शकता तुम्ही. तुमचे आमच्यात शाश्वत स्थान आहेच.”

लक्ष्मण — “ मानवाने त्याच्या कल्याणाकरता घालून दिलेल्या परंपरांचे पालन करावे यासाठी खरेतर मीच मनोभावे प्रार्थना करेन. कारण मानवाची चुकीची पावले धरणीला भारभूत होतात. आणि पर्यायाने मलाही.”

श्रीराम– “ अगदी योग्य बोललास लक्ष्मणा ! धर्माचे पालन व रक्षण करण्यासाठी परंपरांचे  आणि पर्यावरणाचेही समजून उमजून जतन हेही महत्त्वाचे. काळाची बदलती पावले ओळखण्याइतका माणूस सूज्ञ आहेच. त्याने फक्त हितकारी मार्गावर पावले टाकत समस्त मानव जातीचे कल्याण साधावे.” 

रामराया कल्याण करायला उत्सुक आहेतच. ते सर्वांच्या हृदयातच स्थित आहेत. ते फक्त ओळखावे आणि ज्याने त्याने आपले कल्याण साधावे.

लेखिका : सौ.प्रिया श्रीनिवास जोग, चिंचवड पुणे

संग्राहिका :सौ. गौरी गाडेकर

संपर्क – 1/602, कैरव, जी. ई. लिंक्स, राम मंदिर रोड, गोरेगाव (पश्चिम), मुंबई 400104.

फोन नं. 9820206306

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – पुस्तकांवर बोलू काही ☆ सरमिसळ… श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆ प्रस्तुती – सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

?पुस्तकावर बोलू काही?

☆ सरमिसळ… श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆ प्रस्तुती – सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी 

पुस्तकाचे नाव—– सरमिसळ

लेखक—- प्रमोद वामन वर्तक

मुद्रक— सुविधा एंटरप्राइजेस ठाणे

मूल्य—- सप्रेम भेट

प्रकाशन – ग्रंथाली

श्री प्रमोद वर्तक यांच्या ‘सरमिसळ’ या पहिल्या पुस्तकाचे प्रकाशन १५ ऑक्टोबर २०२२ रोजी ठाणे येथे संपन्न झाले. रिझर्व बँकेचे हाऊस मॅगझिन ‘विदाऊट रिझर्व’ मधून त्यांचा साहित्य प्रवास सुरू झाला.  तेथील मराठी साहित्य मंडळाच्या भित्ती पत्रकात लिहिलेले त्यांचे ताज्या घडामोडींवरील  खुसखुशीत लेख वाचकांच्या पसंतीला उतरू लागले. तसेच त्यांनी बँकेच्या स्पोर्ट्स क्लबने आयोजिलेल्या एकांकिका स्पर्धेत दुसरे बक्षीसही पटकावले.

सातत्य हा प्रमोद वर्तक यांच्या लेखनाचा स्थायीभाव आहे. सिंगापूर मुक्कामी त्यांच्या साहित्यकलेला बहर आला. कविता, चारोळ्या, ललित लेखन, विनोदी प्रहसने अशा वाङ्मयाच्या अनेक शाखांमधून त्यांनी मनसोक्त मुशाफिरी केली. सिंगापूरच्या मराठी मंडळातही बाजी मारली. मंडळांने आयोजिलेल्या कविता स्पर्धेत मधुराणी प्रभुलकर यांनी प्रमोद यांच्या  कवितेची निवड केली आणि सिंगापूर मराठी मंडळाच्या वेब सिरीज मध्ये ती कविता सादर करून प्रमोद यांनी मानाचे पान पटकावले.

आपल्या समूहावरील लेखनामधून त्यांच्या सर्वस्पर्शी लिखाणाचा परिचय आपल्याला झाला आहे. विविध दिवाळी अंकातून त्यांच्या कथा, कविता, ललित लेख आपल्याला भेटतात आणि दिवाळीचा आनंद वृद्धिंगत करतात.

‘सरमिसळ’ पुस्तकाच्या तीन भागांपैकी पहिल्या भागात त्यांनी सर्वसाधारणपणे एक शब्द घेऊन त्याचा विस्तार केला आहे. हे वाचताना आपण आपलेच अनुभव वाचीत आहोत असे वाटते.  जेव्हा लेखकाच्या लेखणीतून आपल्यापर्यंत ते अनुभव पोहोचतात तेव्हा वेगळीच गंमत आणतात. या दृष्टीने यातील चिमटा, वजन ,पायरी, प्रश्न असे अनेक लेख वाचण्यासारखे आहेत.

श्री प्रमोद वामन वर्तक

सिंगापूरच्या वास्तव्यामध्ये त्यांच्या लेखणीला अधिक बहर आला. मोरू आणि पंत यांच्यातील चाळीच्या पार्श्वभूमीवरील खुसखुशीत संवाद, त्यांची मजेशीर प्रश्नोत्तरे  आपल्याला अगदी जवळची वाटतात. तसेच पती- पत्नीमधील कौटुंबिक रुसवे फुगवे, खटकेबाज संवाद आणि गोड शेवट  संवाद रूपाने आपल्या मनात रेंगाळत राहतात. पुस्तकाचा  तिसरा भाग कवितांचा आहे. कविता म्हणजे काय? ती कशी सुचते? कशी व्यक्त होते? मनातल्या आणि जगातल्या अनेक विषयांवर त्यांची कविता सहज शब्द रूपाने भेटते. या दृष्टीने पाठमोरी, राधेचा शेला, आभाळाची तीट, रंग महाल, मन पाखरू पाखरू अशा कविता आवर्जून वाचण्यासारख्या आहेत. विविध दिवाळी अंकातून त्यांचे लेख ,कविता आपल्याला भेटतात आणि दिवाळीचा आनंद वृद्धिंगत करतात.

पुस्तकाचे मुखपृष्ठ आकर्षक आहे. मुंबईला दादरच्या ‘अहमद सेलर’  बिल्डिंगमध्ये त्यांच्या आयुष्याचा बराच काळ गेला. त्या चाळीच्या  चित्राची झलक मुखपृष्ठावर आहे. ही चाळीची पार्श्वभूमी त्यांच्या लेखांमधूनही आपल्याला दिसते. एक चित्र अर्थातच रिझर्व बँकेचे! जिथे त्यांच्या आयुष्याला स्थैर्य मिळाले आणि लेखन प्रवास सुरू झाला ती आदरणीय रिझर्व बँक! तिसरे  लेकीकडील सिंगापूरचे वास्तव्य दर्शविणारे. तेथील  वेगळ्या वातावरणात निवांतपणे त्यांना अनेक अनुभवांना शब्दरूप  देता आले आणि मुखपृष्ठावरील चौथे गावाकडचं घर दिसते ते आवास-अलिबाग येतील बहिणीचे घर. या साऱ्यांनी त्यांचे जीवन व्यापलेले आहे. त्यामुळे कस्तुरी सप्रे यांनी कल्पकतेने काढलेले हे मुखपृष्ठ आपल्याला आवडते.  पुस्तकाची छपाई बरीचशी निर्दोष आहे. ‘सरमिसळ’  मधील सर म्हणजे उच्च  प्रतीचे तर मिसळ ही नेहमीच चविष्ट असते पण आपल्याला मिसळीची एक डिश अपुरीच वाटते आणि आपण दुसऱ्या डिशची प्रतीक्षा करतो. प्रमोद वर्तक यांच्या अशाच खमंग ,चविष्ट, रसदार मिसळीच्या दुसऱ्या डिशची आपण सर्वजण  वाट बघूया.

पुस्तक परिचय –  सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈