ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (9 जनवरी से 15 जनवरी 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (9 जनवरी से 15 जनवरी 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

महाकवि जयशंकर प्रसाद जी की कविता है

सब जीवन बीत जाता है

धूप छांव के खेल से  सदृश

सब जीवन बीत जाता है ।।

जीवन में कभी दुख के क्षण आते हैं और कभी सुख के । हमें यह मालूम नहीं होता कि  हमारे  जीवन की गाड़ी कब खराब रास्ते पर होगी और कब अच्छे रास्ते पर  । आप सभी को पंडित अनिल पाण्डेय का नमस्कार ।  आज मैं आप सभी के सामने 9 जनवरी से 15 जनवरी 2023 अर्थात विक्रम संवत 2079 शक संवत 1944 के माघ कृष्ण पक्ष की द्वितीया से माघ कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक के  सप्ताह में आपकी गाड़ी कब अच्छे रास्ते पर होगी और कब खराब रास्ते पर बताने के लिए प्रस्तुत हूं।

इस सप्ताह के प्रारंभ में चंद्रमा कर्क राशि में रहेंगे । सिंह और कन्या राशि से होते हुए 14 तारीख को 2:15 रात्रि से तुला राशि में प्रवेश करेंगे । सूर्य प्रारंभ में धनु राशि में रहेंगे अगर 14 तारीख को 3:10 रात्रि से मकर राशि में गमन करेंगे । मंगल प्रारंभ में विश्वास में बकरी रहेंगे और 13 तारीख के 3:12 दिन से वृष राशि में ही मार्गी हो जाएंगे । पूरे सप्ताह वक्री बुध  धनु राशि में  ,गुरु मीन राशि में शनि और शुक्र  मकर राशि में तथा राहु मेष राशि में रहेंगे ।

आइए अब हम राशिफल राशिफल की चर्चा करते हैं

मेष राशि

इस सप्ताह भी  भाग्य आपका अच्छा साथ देगा । कार्यालय में आपकी स्थिति उत्तम रहेगी ।  धन आने की योग है ।  भाई बहनों के साथ उत्तम संबंध रहेंगे ।  आपके स्वास्थ्य में परेशानी आ सकती है । व्यापार ठीक ठाक चलेगा । इस सप्ताह आप के लिए 9 और 15 जनवरी अनुकूल तथा उपयुक्त है । 13 और 14 जनवरी को आप कई कार्यों में असफल हो सकते हैं । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह काले कुत्ते को रोटी खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके सुख में वृद्धि हो सकती है ।मुकदमे में आपको सफलता मिलेगी । भाग्य आपका साथ देगा । आपके स्वयं का स्वास्थ्य ठीक रहेगा । माताजी और जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा । पिताजी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा ।इस सप्ताह आपके लिए 10 ,11 और 12 जनवरी उत्तम एवं अनुकूल है । 15 जनवरी को आपको सचेत रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रातः काल स्नान के उपरांत तांबे के पात्र में जल ,अक्षत और लाल पुष्प लेकर भगवान सूर्य को सूर्य मंत्र के साथ जल अर्पण करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । आपके जीवनसाथी और पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। । माता जी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। । कचहरी के कार्यों में आपको सफलता नहीं मिल पाएगी । धन कम आने का योग है । रोगों से मुक्ति पाना संभव है । इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 जनवरी उत्तम और लाभप्रद हैं  । 9 जनवरी को आपको धन लाभ हो सकता है । इस सप्ताह  आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। । आज का शुभ दिन शुक्रवार है ।

कर्क राशि

अविवाहित जातकों के लिए बहुत सुंदर अवसर है । आपके विवाह की बात अच्छे रूप से चलेगी । प्रेम संबंधों में  भी वृद्धि होगी  । जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा  । आपके संतान का आपको सहयोग प्राप्त होगा । भाइयों से आपका संबंध खराब हो सकता है । अगर आप कर्मचारी हैं तो अधिकारी से बहस में उलझने से बचें। । थोड़ा बहुत धन आने का योग है ।  शत्रु परास्त होंगे । 9 और 15 जनवरी आपके लिए उपयुक्त हैं ।  इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगलवार का व्रत करें और मंगलवार को ही हनुमान जी और मंगल देव की आराधना करें । सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

आपका आपके जीवन साथी का और आपके माताजी का स्वास्थ्य इस सप्ताह ठीक रहेगा । पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो आपको अपने कार्यालय में परेशानी आ सकती है । भाग्य  आपका बहुत कम साथ देगा । नये शत्रु बन सकते हैं । संतान को कष्ट हो सकता है । संतान के संबंध आपसे खराब हो सकते हैं । इस सप्ताह आपके लिए 10 ,11 और 12 जनवरी अनुकूल और लाभदायक हैं । 9 जनवरी को आपको सावधान रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप राहु की शांति हेतु उपाय करवाएं । सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

कन्या राशि

कन्या राशि के अविवाहित जातकों के लिए यह वर्ष  अच्छा है । आपके प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी ।आपके संतान के लिए यह सप्ताह उत्तम रहेगा ।संतान से आपके संबंध भी अच्छे होंगे ।  संतान की उन्नति भी होगी ।  मुकदमों में मामूली सफलता मिल सकती है ।  माताजी को मामूली कष्ट हो सकता है । आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । धन आने का अच्छा योग है । इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 जनवरी उत्तम और लाभप्रद है । 10, 11 और 12 जनवरी को आपको सावधान रहना चाहिए ।  इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गणेश अथर्वशीर्ष का पूरे सप्ताह पाठ करें ।  सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है ।

तुला राशि

इस सप्ताह  लोगों के बीच में आप को सम्मान प्राप्त होगा । माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । सुख की कोई सामग्री आप खरीद सकते हैं । भाइयों से संबंध अच्छा रहेगा । एक बहन या एक भाई से संबंध खराब हो सकता है । आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य थोड़ा बहुत खराब हो सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 9 और 15 जनवरी उत्तम और  कार्य योग्य है। 13 और 14 जनवरी को आपको सावधान रहना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह भगवान शिव का दूध और पानी से अभिषेक करें ।  सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है ।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक हो  सकता है । आपके जीवनसाथी , माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा । इस सप्ताह आपके पास  धन आने का अच्छा योग है । भाई बहनों से संबंध अच्छे रहेंगे । संतान की उन्नति हो सकती है ।  संतान से आपको सहयोग भी प्राप्त होगा। । खर्चे बढ़ेंगे ।  इस सप्ताह आपके लिए 10 ,11 और 12 जनवरी उत्तम और परिणाम दायक है । 15 जनवरी को आपको सचेत रहकर  कार्य करना चाहिए ।  इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप पूरे सप्ताह रूद्राष्टक का पाठ करें और शिवजी का जल से अभिषेक करें । सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

धनु राशि

यह सप्ताह आपके लिए ठीक रहेगा ।  आपके संतान को कष्ट हो सकता है । आपके पास धन आने का अच्छा योग है । आपके सुख में वृद्धि होगी । आप सुख संबंधी कोई सामान क्रय कर सकते हैं ।  आपके घर में कोई शुभ कार्य होगा ।  इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 जनवरी उत्तम फलदायक है । 9 जनवरी को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

मकर राशि

मकर राशि के अविवाहित जातकों के विवाह तय होने का संबंध निकट आ रहा है । इस सप्ताह आपके पास उत्तम प्रस्ताव आएंगे । कचहरी के कार्यों में आपको सफलता मिलेगी । मुकदमे में आप जीत सकते हैं । आपके माताजी और पिताजी को कष्ट हो सकता है । भाइयों से संबंध अच्छे रहेंगे । भाइयों की उन्नति होगी । इस सप्ताह आपको अपनी संतान से सहयोग प्राप्त होगा  । इस सप्ताह आपके लिए 9 और 15 जनवरी शुभ लाभदायक है ।  10 ,11 और 12 जनवरी को आपको सावधान रहना चाहिए ।  इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौमाता को दें ।  सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

यह सप्ताह आपके लिए सामान्य है । धन की अच्छी प्राप्ति हो सकती है । व्यापार में उन्नति होगी । कचहरी के कार्यों में सफलता प्राप्त होगी । दूर देश की यात्रा भी हो सकती है । माताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा । पिताजी को थोड़ी परेशानी हो सकती है । आपकी मानसिक चिंताएं बढ़ सकती हैं । इस सप्ताह आपके लिए 10, 11 और 12 जनवरी उन्नतिदायक हैं । 9, 13 और 14 जनवरी को आप कई कार्यों में असफल हो सकते हैं ।  9, 13 और 14 जनवरी को आपको सावधान रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शनिवार के दिन दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम 3 बार हनुमान चालीसा का जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मीन राशि

यह सप्ताह आपके लिए उत्तम है । अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो आपको अपने कार्यालय में प्रतिष्ठा मिलेगी । आपको अच्छी सीट भी मिल सकती है । धन आने का अच्छा योग है ।आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । जीवनसाथी के पेट में कोई समस्या हो सकती है । भाइयों के साथ संबंध ठीक रहेंगे । आपके प्रेम संबंधों को बल मिलेगा । अगर आप अविवाहित हैं तो विवाह के अच्छे प्रस्ताव आएंगे । इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 जनवरी फलदाई है ।  10, 11 ,12 और 15 जनवरी को आपको सावधान रहना है । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट का उपयोग करें और हमें इसके प्रभाव के बारे में बताएं ।

मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ जादू… ☆ सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर ☆

सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ जादू💦 ☆ सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर ☆

केली जादू त्या निळ्याने

गेले होऊनी मी निळी

भारावूनी गेले मनी

रेशमी शेला सोनसळी

 

घुमे सूर वेळूतूनी

जीवा गारूड जाहले

गात्रागात्रांतूनी माझ्या

नाम कृष्ण कृष्ण वाहिले

 

मीच माझ्या देहात या

कुठे आता रे राहिले

अधिरशा त्या स्वरमयी

मीच पुन्हा झंकारले

 

 सावळ्या त्या रुपाची

 पडे पुन्हा पुन्हा भूल

 मनी दरवळे कान्हा

 उरी मोरपिशी चाहूल

© वृंदा (चित्रा) करमरकर

सांगली

मो. 9405555728

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 134 – हा भास दो घडीचा ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 134 – हा भास दो घडीचा ☆

प्रेमात रंगलो मी । हा भास दो घडीचा।

खोटेच भाव सारे। आभास दो घडीचा।

 

हे स्वप्न भाव वेडे। देऊ नको कुणाला।

स्वप्नात रंगलेला हा रास दो घडीचा।

 

या भाबड्या मनाला। समजाविता कळेना।

या बेगडी फुलांचा। हा वास दो घडीचा।

 

भाळू नको उगा रे। खोट्याच कल्पनांना ।

संपेल हा कधीही ।सहवास दो घडीचा ।

 

जादूत धुंद  होशी।स्वप्नातल्या परीच्या।

येशील भूवरी रे। हा ध्यास दो घडीचा ।

 

सौंदर्य या मनाचे। जाणून घेई आता।

प्रेमास लाभलेला।विश्वास दो घडीचा

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – विविधा ☆ “’सलाम’ आणि बरंच काही…” ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

सौ कल्याणी केळकर बापट

? विविधा ?

☆ “’सलाम’ आणि बरंच काही…” ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट☆

प्रत्येकाच्या आवडीनिवडी ह्या वयापरत्वे, काळापरत्वे बदलत जातात. वाचन ही आपली प्रमुख आवड असली तरी त्याचे विषय, लेखक हे हळूहळू बदलत जातात. साहित्याची मुळातच आवड असल्याने अशाच वयाच्या एका वळणावर पाडगावकरांच्या कवितांची जबरदस्त फँन होते,नव्हे अजूनही आहेच म्हणा. नुकताच  मंगेश पाडगावकरांचा स्मृतीदिन झाला. त्यांना आणि त्यांच्या साहित्यातील योगदानाला कोटी कोटी प्रणाम.

प्रत्येक भाषा आणि त्या त्या भाषेतील सौंदर्य हे वेगवेगळं असतं.त्या भाषांमधील साहित्याची एकमेकांत तुलनाच होऊ शकत नाही. परंतु सगळ्यात प्रिय म्हणालं नं तर बहुतेक प्रत्येकाला आपली स्वतःची मायबोलीच असते. ह्या मायबोलीलाच मायमराठी म्हणू वा मातृभाषा म्हणू. मला तर ह्या मराठीमधील साहित्य वाचतांना अतीव समाधान, आनंद भरभरून मिळतो.कुठल्याही क्लिष्ट विषयाचे आकलन आपल्याला आपल्या मातृभाषेतून चटकन होतं.आपल्या स्वतःच्या भाषेतील भावना ह्या चटकन जाऊन थेट ह्रदयापर्यंत जावून भिडतात. इतकचं कशाला आपण परप्रांतात गेलो असतांना तिकडे सर्रास दुस-या भाषेचा प्रघात असतांना अचानक कुणी आपल्याशी आपल्या मातृभाषेतून संवाद साधला तर इतकं समाधान,इतका अत्यानंद होतो की अगदी ते “कलेजेमे ठंडक”ह्याचा अर्थ अगदी पुरेपूर समजून येतो.असा अनुभव आम्ही बरेचदा तिरुपती ला गेल्यावर घेतलायं.  

पाडगावकरं ह्यांच्या कवितांनी अक्षरशः मराठी रसिक दर्दी प्रेक्षकांना वेड लावलं होतं, नव्हे वेड लावलं आहे.त्यांच्या कवितांबद्दल बोलतांना अक्षरशः बावचळून जायला होतं. कारण त्यांची अमूक एखादी रचना आपल्याला खूप आवडते अस वाटतं नं वाटतं तोच त्यांची दुसरी एखादी काव्य रचना मनाला अधिक स्पर्शून जाते.परत तिसरीच एखादी कविता हळूवारपणे पणे मनाच्या अगदी आतील कप्प्यात शिरुन बसते तर चौथीच एखादी कविता खदखदून हसायला लावून शेवटी खोल विचारात आणून सोडते.त्यांना त्यांच्या “सलाम” ह्या कवितेसाठी 1980 मध्ये साहित्य अकादमी पुरस्कार मिळाला, तसेच महाराष्ट्रभूषण व पद्मभूषण हे मानाचे पुरस्कार देखील प्राप्त झालेत. दुबई येथे झालेल्या विश्व मराठी साहित्य संमेलनाचे अध्यक्षपद त्यांनी भुषविलं. त्यांनी मुंबई विद्यापीठातून मराठी व संस्कृत ह्या दोन भाषांमध्ये एम.ए.केलं.श्री वसंत बापट, वि.दा. करंदीकर व पाडगावकरं ह्या त्रिमूर्ती ने एकत्र काव्यवाचन करण्याची प्रथा सुरू केली. त्यांनी स्वतःची अशी एक आगळीवेगळीच शैली निर्माण केली. वात्रटिका, उपरोधिक कविता, प्रेमाच्या कविता ह्यात त्यांचा हातखंडा होता. पाडगावकरांच्या खूप सा-या आवडणा-या कविता आहेत त्यापैकी काही पुढीलप्रमाणे, “जेव्हा तुझ्या बटांना, उधळी मुजोर वारा, “सलाम”,”चिऊताई चिऊताई दार उघड”,”सांगा कसं जगायचं”,”तुमचं आमचं सेम असतं”,ह्या रचना तर चिरकाल स्मरणात राहणाऱ्या आहेत. “या जन्मावर या जगण्यावर शतदा प्रेम करावे” ह्या गाण्याने तर कित्येक जणांना नैराशेच्या खाईतून बाहेर काढले आहे.

साठहून अधिक वर्षांच्या लेखन कारकिर्दीत पाडगावकरांनी इतर भाषांतील साहित्यकृतींचे अनुवादही भरपूर केले. ‘थॉमस पेनचे राजनैतिक निबंध’ हा त्यांनी केलेला अनुवाद १९५७ साली प्रकाशित झाला होता आणि २००९-१०मध्ये ‘बायबल’चा अनुवाद प्रकाशित झाला. कमला सुब्रह्नण्यम या लेखिकेच्या मूळ इंग्रजी महाभारताचा पाडगांवकरांनी ‘कथारूप महाभारत’ या नावाचा दोन-खंडी अनुवाद केला आहे. या दीर्घ कालावधीत त्यांनी विविध विषयांवरच्या पंचवीसहून अधिक पुस्तकांचा अनुवाद केला. निबंध, कथा, कविता, कादंबरी, नाटक, इतिहास, चरित्र, आत्मचरित्र असे सर्व साहित्यप्रकार आणि विविध विषय यांत आहेत.

त्यांनी केलेल्या एकूण अनुवादांमधे १७  साहित्यकृतींचे अनुवाद आहेत. याशिवाय जे. कृष्णमूर्ती यांच्या ‘Education And The Significance Of Life’ या पुस्तकाचा ‘शिक्षण : जीवनदर्शन’ या नावाने त्यांनी अनुवाद केला आहे. निवडक समकालीन गुजराती कवितांचा त्यांनी केलेला अनुवाद ‘अनुभूती’ या नावाने प्रकाशित झालेला आहे. मीरा, कबीर आणि सूरदास यांच्या निवडक पदांचे अनुवाद त्यांनी केले आहेत. आणि ‘ज्युलिअस सीझर’, ‘रोमिओ आणि ज्युलिएट’, ‘दी टेम्पेस्ट’ या शेक्सपिअरच्या तीन नाटकांचे ‘मुळाबरहुकूम भाषांतरे’ही त्यांच्या नावावर आहेत. पाडगावकर यांनी या तीनही पुस्तकांना दीर्घ प्रस्तावना लिहिलेल्या आहेत आणि परिशिष्टांत भाषांतराविषयीची स्पष्टीकरणे दिलेली आहेत. अशाच दीर्घ प्रस्तावना ‘कबीर’ आणि ‘सूरदास’ या पुस्तकांनाही आहेत. अनुवादांचा आस्वाद घेताना या प्रस्तावनांमधील विविध संदर्भांचा उपयोग होतो.

पाडगावकरांच्या साहित्यिक कारकिर्दीत ‘मीरा’ या अनुवादित पुस्तकामध्ये मीराबाईंचे चरित्र,जीवन आणि काव्य या विषयी लिहिलेले आहे. मीराबाईचे काव्य पाडगावकरांनीच प्रथम मराठीत आणले असे त्यात म्हटले आहे.

एकदा पाडगावकरांची पावसावरची कविता ‘लिज्जत’ने पाहिली आणि पाडगावकरांना विचारले, ‘आमच्या जाहिरातीत वापरू का ही कविता?’ पाडगावकरांनी आनंदाने परवानगी दिली आणि ती जाहिरात अनोखी ठरली.  पाडगावकरांना लोक गंमतीने पापडगावकर म्हणू लागले.

पाडगावकरांनी मराठी बालकुमार साहित्य संमेलन, विश्व साहित्य संमेलन ह्यांचे अध्यक्षपद भुषविले. त्यांना सलाम ह्या काव्यसंग्रहासाठी साहित्य अकादमी पुरस्कार,महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार ,पद्मभूषण पुरस्कार,महाराष्ट्र साहित्य परिषदेचा म.सा.प. सन्मान पुरस्कार प्राप्त झाले होते.

खरंच अशा महान विभूती आपल्यासाठी खूप सारा अनमोल खजिना ठेऊन गेलेत हे नक्की.

©  सौ.कल्याणी केळकर बापट

9604947256

बडनेरा, अमरावती

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ पायथागोरसचा ओहम्स लॉ… श्री हर्षद वा. आचार्य ☆ प्रस्तुती – सुश्री स्नेहलता गाडगीळ☆

सुश्री स्नेहलता दिगंबर गाडगीळ

? जीवनरंग ?

☆ पायथागोरसचा ओहम्स लॉ… श्री हर्षद वा. आचार्य ☆ प्रस्तुती – सुश्री स्नेहलता गाडगीळ ☆

परवा सुट्टी म्हणून हॉटेलात जेवायला जायचा प्लॅन ठरला. सहकुटुंब ठाण्याच्या एका नवीनच चालू झालेल्या मस्त हॉटेलात गेलो. आम्ही बसतो न बसतो तेवढ्यात आमच्या  शेजारच्याच टेबलवर चौघे जण येऊन बसले. दोन पुरुष आणि दोन बायका. जोडपी वाटत नव्हती. मित्रमैत्रीणीच असावेत. चाळीशीच्या आसपासचे असतील.

आम्ही काय ऑर्डर करायची ते ठरवत होतो. त्या चौघांचाही विचारविनिमय चालू होता. त्यातला एक जण दिसायला जरा वेगळाच होता. अतिशय कृश शरीर. टक्कल. आणि सतत धाप लागल्यासारखं पण मोठ्या आवाजात बोलणं. बाकीचे तिघे मात्र सामान्य माणसासारखे वागत-बोलत होते. आमची ऑर्डर देउन झाली. त्यांनीही चौघांमध्ये ८-९ डीशेस मागवल्या. मी, बायको आणि मुलीने एकमेकांकडे पाहिलं. ‘किती अधाशीपणा’ असा भाव तिघांच्याही नजरेत होता.

दोघांच्याही टेबलवर ऑर्डर प्रमाणे डिशेस येऊ लागल्या. खाताना अर्थातच गप्पा चालू होत्या. त्या चौघांच्या  गप्पाटप्पा चालू होत्या. विषयांतर होत होत ‘शाळेत शिकलेलं किती उपयोगी पडतं’ ह्या विषयावर बोलणं आलं. दोघीपैकी एक जण म्हणाली,” ए जो कोणी पायथागोरस थिअरमचं स्टेटमेंट म्हणून दाखवेल त्याला  माझ्याकडून चॉकलेट ब्राऊनी”. लगेच तो वेगळा दिसणारा पुरुष मोठ्याने बोलू लागला,” So long as the physical state of the conductor remains the same, the current flowing through a conductor is directly proportional to the potential difference applied across its ends.”

वा! वा!वा! तिघांनीही त्याचं तोंडभरून कौतुक करून टाळ्या वाजवल्या आणि लगेच वेटरला चॉकलेट ब्राऊनी ची ऑर्डर दिली. आता तर टेबलवर जागाच उरली नव्हती. आधी मागवलेल्या आठ डिश सुद्धा जवळपास तशाच होत्या. बहुतेक डिशेस चाखल्यादेखील नव्हत्या. एकदोन फक्त नुसती चव घेऊन ठेवल्यासारख्या.

आम्हाला तिघांनाही तो प्रकार विचित्र वाटला. एकतर अन्नाची नासाडी. मोठमोठ्याने बोलणं. कहर म्हणजे पायथागोरस थियरम म्हणून ओहम्स लॉ म्हणून दाखवणं. वर इतरांनी त्याचंच कौतुक करणं. आम्ही नजरेनेच एकमेकांशी बोलत होतो. ‘असे काय हे मूर्ख, माजोरडे’ ह्यावर आमचं एकमत झालं. आम्ही  आपसात दुसरं बोलणं चालू केलं तरी बाजूच्या टेबलवरचा प्रकार खटकत होताच.

दोघांचंही जेवण जवळपास एकत्रच आटोपलं. बिलं आलं. मी आणि तो कार्ड स्वाईप करण्यासाठी काउन्टरपाशी गेलो. त्याने मला जरासं ढकलूनच स्वतःच कार्ड पुढे केलं. मी जराशा त्रासिक नजरेने त्याच्याकडे पाहिलं. तो बिल देऊन ते दोघे मित्र पान खाऊया म्हणून टपरीकडे वळले.

मागून येणाऱ्या दोघींशी माझी नजरानजर झाली. आमच्या चेहऱ्यांवरची नापसंती त्यांना स्पष्ट दिसली असावी. त्यांच्यातली एक जण (ब्राऊनीचं बक्षीस देणारी) पुढे येऊन म्हणाली,” सॉरी..तुम्हाला हे सगळं विचित्र वाटत असेल ना…आम्ही मस्तवाल, माजलेले आहोत असं वाटत असेल.” मी उत्तरादाखल केवळ खांदे उडवले. ती पुढे म्हणाली, “तुम्ही ऐकणार असाल तर मी काही सांगू का?”. मी, बायको आणि मुलगी गोंधळून उभे राहिलो. दरवाजाची वाट मोकळी करून थोडे बाजूला उभे राहिलो.

ती बोलू लागली,” ‘त्याचं’ वागणं-बोलणं ह्याकडे दुर्लक्ष करा. He is terminally ill. कदाचित दिवाळीपर्यंत तो आपल्यात नसेल. त्याच्याच आग्रहाखातर ही आम्हा बालमित्रमैत्रिणींची छोटीशी फेयरवेल पार्टी होती…त्याच्यासाठीच… त्याच्याच खर्चाने….” तिला हुंदका आवरला नाही.

आम्ही तिघेही सुन्न होऊन आळीपाळीने त्याच्याकडे, त्या दोघींकडे आणि एकमेकांकडे पाहत उभे राहिलो. त्याचं कृश शरीर, टक्कल, धाप लागल्यासारखं बोलणं हे सगळं आता पटत होतं. आता दोघींपैकी दुसरी स्त्री म्हणाली,” आणि हो..त्याने पायथागोरस थियरम म्हणून ओहम्स लॉ म्हणून दाखवला. हे आम्हालाही कळलं. पण आम्हाला हसवण्याचा त्याचा हा प्रयत्न होता हेही आम्हाला कळत होतं. बाय द वे, He is M.Tech., Ph.D from IIT”. त्यामुळे… now you understand?”

इतक्यात पानं घेऊन ते दोघे आले. “Let’s go buddies…Hurry…Time is running…” असं बोलत ‘त्या’ने त्या दोघींच्या हातातल्या पार्सलच्या पिशव्या घेतल्या. पिशव्या घेता घेता त्याने आमच्याकडे पाहिलं. आमचे चेहरे पाहून त्याला सारं समजलं. तो मोठ्याने म्हणाला,” ओह गॉड, पचकल्या का ह्या दोघी? सगळं सांगितलं असेलच.” थोडं स्वतःशीच तर थोडं आमच्याकडे पाहून हसत तो म्हणाला,” ह्यांना वाटतंय मी दिवाळी पर्यंत तरी असेन..पर आपुन का प्लॅन अलगीच है। दसऱ्यालाच सीमोल्लंघन”. असं म्हणून त्याने त्या पार्सल केलेल्या डिशेस वाटण्यासाठी सिग्नल जवळ उभ्या असलेल्या भिकारीणीला आणि एक तृतीयपंथीयाला जवळ बोलवलं. जाता जाता मला उद्देशून “Sorry for the push at the counter…But you know…I don’t have much time left…Need to hurry..” असं म्हणून तो चालू लागला.

त्याच्या पाठमोऱ्या आकृतीकडे पाहून आम्हाला पायथागोरसचा नवीनच सिद्धांत समजत होता…

(सकारात्मकता) वर्ग + (समाधान) वर्ग = (जीवन जगणं) वर्ग.

लेखक : श्री हर्षद वा. आचार्य

संग्राहिका  : स्नेहलता गाडगीळ

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ मराठी — लेखक – डाॅ. विनय काटे ☆ प्रस्तुती – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

❤️ मनमंजुषेतून ❤️

☆ मराठी — लेखक – डाॅ. विनय काटे ☆ प्रस्तुती – श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ☆

माझा लय जीव हाय ह्या बाईवर. मस्त, मोकाट, उंडारल्या खोंडासारखी भाषा ! लावल तितके अर्थ कमी ! पंढरपूरच्या घाटापासून ते पुण्यातल्या पेठेपर्यंत किती कळा तिच्या अंगात !

नाकातून आवाज आला की लगेच कळतं की कोकणातून लेले किंवा नेने आलेत. “रांडेच्या” म्हणले की लगेच कोल्हापुरी पांढरा रस्सा आठवतो. ” का बे छिनालच्या ” म्हणलं की सोलापूरची शेंगा चटणी आणि “पोट्ट्या” म्हणलं  की नागपुरी सावजी जेवण. पोरीच्या तोंडून ” मी तिथे गेलो” आणि  “ऐकू आलं  म्हणलं  की सांगली !! “काय करून राहिला?” म्हणलं की नाशिक, “करूलाल?” म्हणलं की लातूर आणि ” विषय संपला ” म्हणलं की पुणे !! हेल काढून बोललेला नगरी किंवा बीडचा आणि “ळ” चा “ल” केला की कोकणी ! एका वाक्यात माणसाचं गाव कळतं.

हिंदी बोलताना तर मराठी माणूस लगेच कळतो. आमच्या इतकी हिंदीची चिंधी कुणीच केली नसेल. मराठी माणसाचे हिंदी आणि मुसलमान बागवान लोकांची मराठी म्हणजे विष विषाला मारते त्यातला प्रकार. ” हमारी अडवणूक हो रही है ” हे मराठी हिंदी, आणि ” वो पाटी जरा सरपे ठिवो ” ही बागवानी मराठी ऐकून मी लय खुश होतो राव ! मराठी खासदार आणि राजकारणी लोकांचं हिंदी ऐकून तर हिंदी पत्रकारांना घाम फुटत असावा.

एकाच गोष्टीला प्रतिशब्द तरी किती ? बायको, पत्नी, सौभाग्यवती, अर्धांगिनी, सौ, खटलं, कुटुंब, बारदान, बाई, गृहमंत्री, मंडळी—- इत्यादी सगळ्याचा अर्थ एकच– ! “इ” सारख्या आडवळणी शब्दापासून पण सुरु होणारे कितीतरी वेगवेगळे अर्थाचे शब्द… जसे की “इस्कोट”, “इरड करणे”, “इरल”, “इकनं”. — “ग्न” ने शेवट होणारे चार शब्द मराठीत आहेत … लग्न, मग्न, नग्न आणि भग्न. किती मस्त क्रम आहे ना? हे “ग्न” बाबत आमच्या मास्तरच ज्ञान !

इदुळा, येरवा, आवंदा, कडूस पडाय, झुंजूमुंजू, दोपार, सांच्याला, रातीला, तांबडं फुटायला— यातून जो वेळ कळतो त्याची मजा am, pm ला कधीच येणार नाही. कोरड्यास, आमटी, कट, शेरवा, तर्री, शॅम्पल यातला फरक कळायला महाराष्ट्र उभाआडवा बघावा लागतो. खेकडा कुठला आणि चिंबोरी कुठली? उंबर कुठलं आणि दोड्या कुठल्या? शाळू, ज्वारी आणि हायब्रीड यातला पोटभेद कळायला रानातली मराठी लागते. कडवाळ कुठलं न मका कुठला हे शेरातला शाना कदीबी सांगू शकत नाय !

खाण-पिणं असू द्या, जनावरं-जित्राब असू द्या, शिव्याशाप असू द्या, लाडाची नाव असू द्या, वेळ-काळाची गणित असू द्या, हुमान-कोडी असू द्या, ओव्या-अभंग असू द्या, अंगाई असू द्या, सणवार असू द्या, झाडाझुडुप असू द्या, शेतीची अवजारे असू द्या, कापडचोपड असू द्या नाहीतर अजून काही,—- मराठी प्रत्येक ठिकाणी वेगळी असते. प्रत्येक गावात, शहरात, कामात, धंद्यात … सगळीकडे मराठीचा वेगळा बाज असतो, अंदाज असतो आणि लकब असते. दिवसातून ५ वेळा कपडे बदलणाऱ्या अवखळ, सुकुमार पोरीसारखी ही भाषा सगळीकडे नवनवे रंग उधळत असते.

माय मराठी… तुझ्यावर लय जीव आहे बाये !!! अशीच उंडारत राहा… वारं पिलेल्या खोंडासारखं !!

लेखक : डॉ. विनय काटे

प्रस्तुती : श्री सुहास रघुनाथ पंडित

सांगली (महाराष्ट्र)

मो – 9421225491

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ पुण्याची कहाणी:  कालची अन् आजची! – सुश्री प्रज्ञा रामतीर्थकर ☆ प्रस्तुती – सौ.बिल्वा शुभम् अकोलकर ☆

? इंद्रधनुष्य ?

☆ पुण्याची कहाणी:  कालची अन् आजची! – सुश्री प्रज्ञा रामतीर्थकर ☆ प्रस्तुती – सौ.बिल्वा शुभम् अकोलकर 

आटपाट नगर होतं ​—-विद्येचं माहेरघर होतं ​​​​

​​​​सह्याद्रीच्या कुशीत होतं​​​​—-टेकड्यांच्या मुशीत होतं ​​​​

​​

मुळा-मुठा निर्मळ होती ​​​​​—-गोड पाण्याची चंगळ होती ​​

​​​काळ्या मातीत कस होता​​​​​​—-वरण भात बस्स होता​​​​​​

 

निसर्गाचं देणं होतं ​​​​—-पाताळेश्वरी लेणं होतं ​​​​

​​​​नाव त्याच पुणं होतं ​​​​—-खरंच काही उणं नव्हतं ​​​​

​​​​​

शिवबाचं बालपण होतं​​​—-जिजामातेचं धोरण होतं​​​

​​मोगलाई कारण होतं​​​—-पुण्याचं ज्वलन होतं​​​

​​​

​छत्रपतींचं स्वराज्य होतं​​​​—-पेशव्यांचं अटकेपार राज्य होतं​​​​

​​​​निधड्या छातीचे मावळे होते​​​​—-पराक्रमाने न्हायले होते​​​​

 

पर-स्त्री मातेसमान होती​​​​—-कोल्ही-कुत्री गुमान होती​​​​

​​नवसाला पावणारे गणपती होते​​​​—-तालमीसाठी मारुती होते​​​​

​​

चिरेबंदी वाडे होते​​​​—-आयुर्वेदाचे काढे होते​​​​

अंगणात रांगोळी होती​​​​​​—-घराची दारं उघडी होती​​​​​

​​​​

संध्याकाळी दिवेलागणी होती​​​​—-घरोघरी शुभंकरोती होती​​​​

गृहिणी अन्नपूर्णा होत्या​​​​—-तडफदार स्वयंसिद्धा होत्या

​​​​

जेवायला साधी पत्रावळ होती ​​—-चौरस आहाराने परिपूर्ण होती​​​

वेदांचा अंगिकार होता​​​​​​​—-विद्वान लोकांचा संचार होता​​​​​​

 

टिळकांची सिंहगर्जना होती​​​​—-आगरकरांची सुधारणा होती​​​​

​​​​फडके चाफेकरांचं बंड होतं—-सावरकरांचं अग्निकुंड होतं

​​​

रानडे, फुले, कर्वे झटले होते​​​—-बायकांचे जगणे फुलले होते​​​

​​विद्वत्तेची पगडी होती​​​​—-सन्मानाची भिकबाळी होती​​​​

 

घरंदाज पैठणी होती—-शालीन नथणी होती

काटकसरीचा वारा होता —-उधळपट्टीला थारा नव्हता

 

सायकलींचे शहर होतं—-निवृत्त लोकांचे घर होतं  

एका दमात पर्वती चढणं होतं—-दुपारी उसाचा रस पिणं होतं 

 

पुण्याची मराठी प्रमाण होती​​​​—-शुद्धतेची कमाल होती​​​​

कलाकारांची कर्मभूमी होती​​​—-पुणेकरांची दाद जरूरी होती​​​

 

सवाई गंधर्व, वसंत उत्सव होते —-पुणेकरांना अभिमानास्पद होते 

​​​​सार्वजनिक मंडळे विधायक होती​​​​—-समाज-स्वास्थ्याला तारक होती​​​​

​​​​:

:

पण परंतु किंतु….​​​​​…. 

 

औद्योगिक क्रांती झाली​​​​—-पुण्यामध्ये पिंपरी आली​​​​

​​चारी दिशांनी कामगार आले​​​​​​—-स्थानिक मात्र बेरोजगार झाले​​​​​​

​​

​​​कारखाने धूर ओकू लागले ​​—-पुणेकर सारखे खोकू लागले ​​

​संगणकाची नांदी झाली ​​—-हिंजवडीची चांदी झाली ​​

​​

पुण्याची आय-टी पंढरी झाली​​—-तज्ञांची मांदियाळी आली​​

तांत्रिक भाषा ओठावर रूजली​​​​​—-मराठी मात्र मनातच थिजली​​​​​

 

उंच इमारतींचे पीक आले​​—-शेती करणे अहित झाले 

टेकड्यांवर हातोडा पडला—-सह्याद्रीच तेवढा कळवळला 

 

मुळा-मुठा सुकून गेली—-सांडपाण्याने बहरून आली

​​​​​रस्ता गाड्यांमध्ये हरवत गेला​​​​​​—-चालताना श्वास कोंडत गेला 

 

पिझा बर्गर ‘जेवण’ झाले—-सार्‍यांनाच आजारपण आले 

डॉक्टरांनी आपली दुकाने थाटली —-बँकांनी आरोग्यासाठी कर्जे दिली

​​​​​

‘युज अँड थ्रो’ प्रतिष्ठेचे झाले​​​​​​—-जागोजागी ढीग कचऱ्याचे आले​​​​​​

​​​​तरुणाई  रेव पार्टीत रंगली​​​​—-चारित्र्याची कल्पना मोडीत निघाली​​​​

​​

मारामारी, खून, बलात्कार झाले​​—-निर्ढावलेल्या मनांचे साक्षात्कार झाले ​​—– 

​​​​

​एकेकाळची पुण्य नगरी​​​​—-

होतेय आता पाप नगरी​​​​—-

भिन्न प्रांतीयांची भाऊगर्दी—-

कुठे हरवला अस्सल पुणेरी?​​​​​—-

कुठे हरवला अस्सल पुणेरी?​​​​​—-

 

प्रस्तुती –  सुश्री प्रज्ञा रामतीर्थकर

संग्रहिका: सौ.बिल्वा शुभम् अकोलकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ बायको… ☆ प्रस्तुती – श्री अमोल अनंत केळकर ☆

श्री अमोल अनंत केळकर

? वाचताना वेचलेले ?

☆ बायको… ☆ प्रस्तुती – श्री अमोल अनंत केळकर ☆ 

प्रत्येकाच्या नशिबात

एक बायको असते

आपणास कळतही नसते

डोक्यावर ती केव्हा बसते

 

बायको इतरांशी बोलताना

गोड, मृदू स्वरात बोलते

अजून ब्रह्मदेवाला कळाले नाही

नवऱ्याने काय पाप केले असते

 

ज्ञानेश्वराने भिंत चालवली

बायको त्यांचं कौतुक करते

सालं! नवरा अख्खं घर चालवितो

तेव्हा मात्र बायको गप्प असते

 

वस्तू कुठे ठेवली

हे बायको विसरते

दिवसभर नवऱ्यावर

उगीचच डाफरते

 

लग्नात पाचवारी बायकोला

खूप होत होती मोठी

आता नऊवारी गोल नेसताना

बायकोला होतेय खूपच छोटी

 

बायकोच्या प्रेमाची गड्यांनो

तर्‍हाच खूप  न्यारी असते

पाहिजे तेव्हा रेशन लागते

नको तेव्हा उतू जाते

 

वयाच्या साठीनंतर

एक मात्र बरं असतं

बायको ओरडली तरी

नवऱ्याला ऐकू येत नसतं

 

       काट्याकुट्याच्या रस्त्यातून

       नवरा किती मस्तीत चालतो

       याला कारण खरं बायकोचा

       मस्त, धुंद सहवास असतो

 

   बायको गावाला गेली की

  देवाशपथ, करमत नसतं

   क्षणाक्षणाला रुसणारं

   घरात कुणीच नसतं

 

   नवरा-बायकोचं

   वेगळंच नातं असतं

   एकमेकांचं चुकलं तरी

   एकमेकांच्याच मिठीत जातं

 

       बायकोवर रागावलो तरी

       तिचं नेहमी काम पडतं

       थोडावेळ जवळ नसली तर

       आपलं सर्वच काही अडत असतं

 

       अव्यवस्थित संसाराला

       व्यवस्थित वळण लागतं

       त्यासाठी मधूनमधून

       बायकोचं ऐकावंच लागतं

 

       सुना-नातवंडासह आता

       घर चांगलं सजले आहे

       बायको एकटी सापडत नाही

       दुःख मात्र एवढंच आहे.

 

      बायकोशी भांडताना

      मन कलुषित नसावं

      दोघांचं भांडण

      खेळातलंच असावं

 

      नाती असतात पुष्कळ

      पण नसतो कुणी कुणाचा

      खरं फक्त एकच नातं

      असतं नवरा  बायकोचं

संग्राहक : अमोल केळकर

बेलापूर, नवी मुंबई, मो ९८१९८३०७७९

poetrymazi.blogspot.in, kelkaramol.blogspot.com

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈



मराठी साहित्य – ☆ पुस्तकांवर बोलू काही ☆ “देव’ माणूस” – संकल्पना – सौ.ज्योत्स्ना तानवडे ☆ परिचय – सौ. राधिका भांडारकर ☆

सौ राधिका भांडारकर

? पुस्तकावर बोलू काही ?

☆ “देव’ माणूस” – संकल्पना – सौ.ज्योत्स्ना तानवडे ☆ परिचय – सौ. राधिका भांडारकर ☆ 

पुस्तक परिचय

पुस्तकाचे नाव – ‘देव’ माणूस

संकल्पना – सौ.ज्योत्स्ना तानवडे.

प्रकाशक – सोहम क्रिएशन अँड पब्लिकेशन

प्रकाशन – २९/०५/२०२२

सौ ज्योत्स्ना तानवडे यांच्या संकल्पनेतून साकारलेलला  *’देव’माणूस हा स्मृति संग्रह नुकताच वाचनात आला आणि त्याविषयी आवर्जून लिहावं असं वाटलं म्हणून —

सौ. ज्योत्स्ना तानवडे  यांनी अत्यंत कृतज्ञतापूर्वक भावनेने, त्यांचे  परमपूज्य वडील कै. श्री. बाळकृष्ण अनंत देव तथा श्री आप्पासाहेब देव, माळशिरस. यांच्या जन्मशताब्दी वर्षाच्या निमित्ताने या पुस्तक रूपाने एक आगळीवेगळी श्रद्धांजली त्यांना अर्पण केली आहे.

‘देव’माणूस ही स्मरणपुस्तिका आहे आणि या पुस्तकात जवळजवळ ५८ हितसंबंधितांनी कै. आप्पासाहेब देव यांच्या आठवणींना उजाळा दिला आहे.

ही भावांजली वाचताना कै. आप्पासाहेब देव या महान, ऋषीतुल्य, समाजाभिमुख, लोकमान्य व्यक्तीचे अलौकिक दर्शन होते. वास्तविक तसे म्हटले तर ही स्मरणपुस्तिका सौ. ज्योत्स्ना तानवडे यांचा समस्त परिवार, नातेवाईक, स्नेही, मित्रमंडळी अथवा त्यांच्या संबंधितांतल्या व्यक्तींचा स्मृती ठेवा असला तरी माझ्यासारख्या अनोळखी व्यक्तींसाठी सुद्धा हे पुस्तक जिव्हाळ्याचे ठरते हे विशेष आहे. अर्थातच त्याचे कारण म्हणजे या सर्वांच्या आठवणींच्या माध्यमातून झिरपणाऱ्या एका अलौकिक व्यक्तीच्या दिव्यत्वाच्या प्रचितीने खरोखरच आपलेही कर सहजपणे जुळले जातात. हा देवमाणूस सर्वांचाच होऊन जातो.

नित्य स्मरावा!

उरी जपावा !!

मनी पूजावा !!!

अशीच भावना वाचणाऱ्यांची होते.   म्हणूनच हे पुस्तक केवळ त्यांच्याच परिवाराचे न उरता ते सर्वांचेच होते.

नावातही देव आणि व्यक्तिमत्वातही देवच म्हणून हा ‘देव’माणूस!कै. बाळकृष्ण अनंत देव* तथा आप्पासाहेब देव  यांचा २९/०५/१९२२ ते १५/०२/१९८८ हा जीवन काल. त्यांचे बाळपण, वंशपरंपरा, शालेय जीवन, जडणघडण, सहजीवन, पारिवारिक, व्यावसायिक, सामाजिक जीवनाविषयीचा त्यांच्या कुटुंबीयांनी आणि संबंधितांनी स्मृतिलेखनातून घेतलेला हा आढावा अतिशय वाचनीय, हृद्य आणि मनाला भारावून टाकणारा आहे.

सोलापूर जिल्ह्यातल्या माळशिरस या गावी स्थित राहून वकिलीचा पेशा सांभाळून स्वतःच्या समाजाभिमुख, कलाप्रेमी, धार्मिक वृत्तीने  गाव आणि गावकरी यांच्या विकासासाठी अत्यंत तळमळीने झटणाऱ्या, धडपडणाऱ्या एका लोकप्रिय अनभिषिक्त राजाची, लोकनेत्याची एक सुंदर कहाणी,  निरनिराळ्या व्यक्तींनी सादर केलेल्या आठवणीतून साकार होत जाते.

सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

वडिलांच्या आठवणीत रमलेली ज्योत्स्ना लिहिते, “…तुमचे व्यक्तिमत्व होतेच चतुरस्त्र! किती रुपे आठवावी तुमची! वकिली कोट घालून कोर्टात बाजू मांडणारे तुम्ही, शाळेत झेंडावंदन करणारे! सोवळे नेसून खणखणीत आवाजात महिम्न म्हणणारे तुम्ही, पांढरा पोषाख, कपाळी बुक्का, गळ्यात टाळ घालून वारीत अभंग म्हणणारे तुम्ही,. मुलांनातवंडांच्या गराड्यात,चांदण्यात ओसरीवर पेटी वाजवणारे, कटाव गाणारे तुम्ही… तुमचे व्यक्तिमत्व खूपच खास होते…”

मोहिनी देव त्यांची सून सांगते,

” मला आयुष्यात कुठल्याही गोष्टीचा अभिमान वाटला नाही. वाटला फक्त ती. आप्पासाहेब यांची सून म्हणवून घेण्याचा…”

आप्पासाहेब एक दुर्मिळ व्यक्तिमत्व, एक आधुनिक धर्मात्मा, एक देव माणूस, एक स्वयंभू व्यक्तिमत्व, एक ऊर्जा स्त्रोत, अनाथांची माऊली, अशी भावपूर्ण संबोधने देऊन  अनेकांनी त्यांना भावांजली अर्पण केली आहे.  ते वाचताना मन हरखून जाते.

मोहन पंचवाघ त्यांच्याबद्दल म्हणतात,

“… त्यांचा पहाडी आवाज, बुद्धिमत्ता, कोर्ट कामाची एकूणच पद्धती यामुळे अख्ख्या माळशिरस मध्ये त्यांचा दरारा, दबदबा, वचक होता. पण त्यांच्याबद्दल सर्वांच्या मनात आदरयुक्त भावना होती.  त्यांच्याकडे समस्या घेऊन जाणारी व्यक्ती कधीही विन्मुख परत गेली नाही….”

मदन भास्करे म्हणतात,

” असंख्य पक्षकारांना धीर आणि न्याय देण्याचे महान पुण्य कर्म आप्पासाहेबांनी जीवनभर केले.  कित्येकांकडून त्यांनी एक पैसाही फी म्हणून घेतली नाही. उलट कोर्ट फी  सुद्धा वेळ आली तर ते स्वतःच भरत. असा हा महात्मा!….”

सर्वांच्या स्मृती लेखनामध्ये उत्स्फूर्तपणा जाणवतो. अत्यंत जिव्हाळ्यांने, आपलेपणाने आणि प्रामाणिकपणे व्यक्त झालेली शुद्ध मने इथे आढळतात. म्हणून हे पुस्तक म्हणजे विचारांची, आचारांची, संस्कारांची चालती बोलती गाथाच वाटते.

या पुस्तकात एका आदर्श व्यक्तीची कहाणी वाचत असताना, अदृश्यपणे त्यांच्या पाठीशी सावलीसारखी वावरणारी एक दिव्य व्यक्ती म्हणजे कै. मालतीबाई देव— या लोकनायकाची सहचारिणी. एक सुंदर, हसतमुख, प्रसन्न, कलाप्रेमी, सुसंस्कृत, धार्मिक, पतीपरायण, सामाजिक जाणीवा जपणारी, सुगरण आणि सुगृहिणी. अनेक  भूमिकांतून व्यक्त होणारं, *सौ. मालतीबाई देव हे व्यक्तिमत्वही तितकच मनावर बिंबतं . आणि प्रत्येकाच्या आठवणीतून त्याचा उल्लेख झाल्याशिवाय राहात नाही.एक शून्य पुढे टाकल्यानंतर संख्येची किंमत जशी वाढते तद्वतच *कै. मालतीबाई देव यांचं अस्तित्व कै. आप्पासो देव यांच्या जीवनात होतं.

हे पुस्तक वाचून झाल्यावर मी ज्योत्स्नाला म्हटले,

“ही स्मरणपुस्तिका केवळ तुमच्या पुरती नसून ती परिचित अपरिचित सर्वांसाठीच, आपली वाटणारी आहे”

हे स्मरण पुस्तक  प्रसिद्ध करण्यामागे ज्योत्स्नाची भूमिका, पुढच्या पिढीला या आदर्श व्यक्तिमत्त्वांची सदैव ओळख रहावी आणि त्यातून त्यांचीही मने संस्कारित व्हावीत ही तर आहेच. पण आज आपण  समाजातलं जे तुटलेपण, संवादाचं, नात्यांचं हरवलेपण अनुभवत आहोत त्यासाठीही अशा पुस्तकांचे  वाचन, माणसाला जीवनाविषयी, जगण्याविषयी विचार करायला लावणारं, मागे वळून पाहायला लावणारं, आपल्या संस्कृती, परंपरा याविषयीच्या  महानतेचा पुनर्विचार करायला लावणारं ठरतं.

आणि खरोखरच समारोपात जेव्हा ज्योत्स्ना म्हणते,

आठवताना स्मृती साऱ्या

कंठ पुन्हा दाटून येतो

त्यांच्या पोटी पुन्हा जन्म दे

 विठुरायाला विनवितो …

तेव्हा या ओळींवरच आपले श्रद्धांजली पूर्वक अश्रूही नकळत ओघळतात .

© सौ. राधिका भांडारकर

पुणे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #164 ☆ अपेक्षा व उपेक्षा ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख अपेक्षा व उपेक्षा । यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 164 ☆

☆ अपेक्षा व उपेक्षा ☆

‘अत्यधिक अपेक्षा मानव के जीवन को वास्तविक लक्ष्य से भ्रमित कर मानसिक रूप से दरिद्र बना देती है।’ महात्मा बुद्ध मन में पलने वाली अत्यधिक अपेक्षा की कामना को इच्छा की परिभाषा देते हैं। विलियम शेक्सपीयर के मतानुसार ‘अधिकतर लोगों के दु:ख एवं मानसिक अवसाद का कारण दूसरों से अत्यधिक अपेक्षा करना है। यह पारस्परिक रिश्तों में दरार पैदा कर देती है।’ वास्तव में हमारे दु:ख व मानसिक तनाव हमारी ग़लत अपेक्षाओं के परिणाम होते हैं। सो! दूसरों से अपेक्षा करना हमारे दु:खों का मूल कारण होता है, जब हम दूसरों की सोच को अपने अनुसार बदलना चाहते हैं। यदि वे उससे सहमत नहीं होते, तो हम तनाव में आ जाते हैं और हमारा मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है; जो हमारे विघटन का मूल कारण बनता है। इससे पारिवारिक संबंधों में खटास आ जाती है और हमारे जीवन से शांति व आनंद सदा के लिए नदारद हो जाते हैं। सो! मानव को अपेक्षा दूसरों से नहीं; ख़ुद से रखनी चाहिए।

अपेक्षा व उपेक्षा एक सिक्के के दो पहलू हैं। यह दोनों हमें अवसाद के गहरे सागर में भटकने को छोड़ देते हैं और मानव उसमें डूबता-उतराता व हिचकोले खाता रहता है। उपेक्षा अर्थात् प्रतिपक्ष की भावनाओं की अवहेलना करना; उसकी ओर तवज्जो व अपेक्षित ध्यान न देना दिलों में दरार पैदा करने के लिए काफी है। यह सभी दु:खों का कारण है। अहंनिष्ठ मानव को अपने सम्मुख सब हेय नज़र आते हैं और  इसीलिए पूरा समाज विखंडित हो जाता है।

मनुष्य इच्छाओं, अपेक्षाओं व कामनाओं का दास है तथा इनके इर्द-गिर्द चक्कर लगाता रहता है। अक्सर हम दूसरों से अधिक अपेक्षा व उम्मीद रखकर अपने मन की शांति व सुक़ून उनके आधीन कर देते हैं। अपेक्षा भिक्षाटन का दूसरा रूप है। हम उसके लिए कुछ करने के बदले में प्रतिदान की अपेक्षा रखते हैं और बदले में अपेक्षित उपहार न मिलने पर उसके चक्रव्यूह में फंस कर रह जाते हैं। वास्तव में यह एक सौदा है, जो हम भगवान से करने में भी संकोच नहीं करते। यदि मेरा अमुक कार्य सम्पन्न हो गया, तो मैं प्रसाद चढ़ाऊंगा या तीर्थ-यात्रा कर उनके दर्शन करने जाऊंगा। उस स्थिति में हम भूल जाते हैं कि वह सृष्टि-नियंता सबका पालनहार है; उसे हमसे किसी वस्तु की दरक़ार नहीं। हम पारिवारिक संबंधों से अपेक्षा कर उनकी बलि चढ़ा देते हैं, जिसका प्रमाण हम अलगाव अथवा तलाक़ों की बढ़ती संख्या को देखकर लगा सकते हैं। पति-पत्नी की एक-दूसरे से अपेक्षाओं की पूर्ति ना होने के कारण उनमें अजनबीपन का एहसास इस क़दर हावी हो जाता है कि वे एक-दूसरे का चेहरा तक देखना पसंद नहीं करते और तलाक़ ले लेते हैं। परिणामत: बच्चों को एकांत की त्रासदी को झेलना पड़ता है। सब अपने-अपने द्वीप में कैद रहते हुए अपने-अपने हिस्से का दर्द महसूसते हैं, जो धीरे-धीरे लाइलाज हो जाता है। इसका मूल कारण अपेक्षा के साथ-साथ हमारा अहं है, जो हमें झुकने नहीं देता। एक अंतराल के पश्चात् हमारी मानसिक शांति समाप्त हो जाती है और हम अवसाद के शिकार हो जाते हैं।

मानव को अपेक्षा अथवा उम्मीद ख़ुद से करनी चाहिए, दूसरों से नहीं। यदि हम उम्मीद ख़ुद से रखते हैं, तो हम निरंतर प्रयासरत रहते हैं और स्वयं को लक्ष्य की पूर्ति हेतू झोंक देते हैं। हम असफलता प्राप्त होने पर भी निराश नहीं होते, बल्कि उसे सफलता की सीढ़ी स्वीकारते हैं। विवेकशील पुरुष अपेक्षा की उपेक्षा करके अपना जीवन जीता है। अपेक्षाओं का गुलाम होकर दूसरों से उम्मीद ना रखकर आत्मविश्वास से अपने लक्ष्य की प्राप्ति करना चाहता है। वास्तव में आत्मविश्वास आत्मनिर्भरता का सोपान है।

क्षमा से बढ़ कर और किसी बात में पाप को पुण्य बनाने की शक्ति नहीं है। ‘क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात्’ अर्थात् क्षमा सबसे बड़ा धन है, जो पाप को पुण्य में परिवर्तित करने की क्षमता रखता है। क्षमा अपेक्षा और उपेक्षा दोनों से बहुत ऊपर होती है। यह जीने का सर्वोत्तम अंदाज़ है। हमारे संतजन व सद्ग्रंथ इच्छाओं पर अंकुश लगाने की बात कहते हैं। जब हम अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण कर लेंगे, तो हमें किसी से अपेक्षा भी नहीं रहेगी और ना ही नकारात्मकता का हमारे जीवन में कोई स्थान होगा। नकारात्मकता का भाव हमारे मन में निराशा व दु:ख का सबब जगाता है और सकारात्मक दृष्टिकोण हमारे जीवन को सुख-शांति व आनंद से आप्लावित करता है। सो! हमें इन दोनों मन:स्थितियों से ऊपर उठना होगा, क्योंकि हम अपना सारा जीवन लगा कर भी आशाओं का पेट नहीं भर सकते। इसलिए हमें अपने दृष्टिकोण व नज़रिए को बदलना होगा; चिंतन-मनन ही नहीं, मंथन करना होगा। वर्तमान स्थिति पर विभिन्न आयामों से दृष्टिपात करना होगा, ताकि हम अपनी संकीर्ण मनोवृत्तियों से ऊपर उठ सकें तथा अपेक्षा उपेक्षा के जंजाल से मुक्ति प्राप्त कर सकें। हर परिस्थिति में प्रसन्न रहें तथा निराशा को अपने हृदय मंदिर में प्रवेश ने पाने दें तथा प्रभु कृपा की प्रतीक्षा नहीं, समीक्षा करें, क्योंकि परमात्मा हमें वह देता है, जो हमारे लिए हितकर होता है। सो! हमें उसकी रज़ा में अपनी रज़ा मिला देनी चाहिए और सदा उसका शुक्रगुज़ार होना चाहिए। हमें हर घटना को एक नई सीख के रूप में लेना चाहिए, तभी हम मुक्तावस्था में रहते हुए जीते जी मुक्ति प्राप्त कर सकेंगे। इस स्थिति में हम केवल अपने ही नहीं, दूसरों के जीवन को भी सुख-शांति व अलौकिक आनंद से भर सकेंगे। ‘संत पुरुष दूसरों को दु:खों से बचाने के लिए दु:ख सहते हैं और दुष्ट लोग दूसरों को दु:ख में डालने का हर उपक्रम करते हैं।’ बाल्मीकि जी का यह कथन अत्यंत सार्थक है। सो! अपेक्षा व उपेक्षा का त्याग कर जीवन जीएं। आपके जीवन में दु:ख भूले से भी दस्तक नहीं देगा। आपका मन सदा प्रभु नाम की मस्ती में खोया रहेगा–मैं और तुम का भेद समाप्त हो जाएगा और जीवन उत्सव बन जाएगा।

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈