मराठी साहित्य – मराठी कविता – ? गुलमोहर ? – सुश्री ज्योति हसबनीस

सुश्री ज्योति हसबनीस

 

? गुलमोहर ?

 

(सुश्री ज्योति हसबनीस जी का पुष्पों एवं प्रकृति के प्रति अपार स्नेह की साक्षी है यह सामयिक कविता। गुलमोहर,  ग्रीष्म ऋतु, पक्षी, पेड़ और पथ; कुछ भी तो नहीं छूटा।  इसके पूर्व हमने सुश्री ज्योति जी की कदंब के फूल पर एक कविता प्रकाशित की थी जिसे पाठको का अपार स्नेह प्राप्त हुआ था। )

 

ऐन ग्रीष्मातील वैशाख वणवा,

तप्त ऊन्हातील दग्ध जाणीवा ।

ओसाड निर्जन रस्ते सारे ,

घरट्यात व्याकुळ पक्षी बिचारे ।

 

अशाच उजाड वळणावरती ,

केशरी छत्र उभारून धरतीवरती ,

होरपळ मिरवीत अंगावरती ,

गुलमोहर उभा निःशब्द एकांती।

 

 

केशर तांबडी पखरण याची ,

करी भलावण सकल पक्ष्यांची ।

गर्द ,विस्तृत छाया त्याची ,

करी शीतल काया पांथस्थांची ।

 

छायेत केशरी या छत्राच्या ,

फुलती मनोरम  प्रीतीचे मळे ,

संगतीत तांबट फुलांच्या ,

रंगून जाती जीव खुळे ।

 

बघूनी दिमाख गुलमोहराचा ,

वैशाख वणवा विझून जाई ।

ऐन ग्रीष्मातील रुबाब त्याचा ,

प्रीतीची मोहोर ऊमटवून जाई ।

 

©  सौ. ज्योति हसबनीस




आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (50) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

(कर्मयोग का विषय)

कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः ।

जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम्‌।।51।।

कर्म बुद्धि रख दृढव्रती देते फल रूचि त्याग

जन्म बंध से मुक्त हो पाते पद निर्वाण।।51।।

 

भावार्थ :   क्योंकि समबुद्धि से युक्त ज्ञानीजन कर्मों से उत्पन्न होने वाले फल को त्यागकर जन्मरूप बंधन से मुक्त हो निर्विकार परम पद को प्राप्त हो जाते हैं।।51।।

 

The wise, possessed of knowledge, having abandoned the fruits of their actions, and being freed from the fetters of birth, go to the place which is beyond all evil. ।।51।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Buddha: The Ultimate Happiness Guru ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Buddha: The Ultimate Happiness Guru

The  Greatest Blessings

Generally, it is believed that the Buddha was a pessimist who preached misery. Nothing can be farther from the truth.

Buddha had great compassion for all beings. He saw their misery, felt deep empathy, explored the causes, and discovered a way out.

Not only that. He gave us a valuable guide for deep and lasting happiness.

The building blocks of an authentically happy life are outlined in the Discourse on Blessings – Maha-mangala Sutta – thus:

  •  Not to associate with the foolish, but to associate with the wise; and to honor those who are worthy of honor
  • To reside in a suitable locality, to have done meritorious actions in the past and to set oneself in the right course 
  • To have much learning, to be skillful in handicraft, well-trained in discipline, and to be of good speech 
  • To support mother and father, to cherish wife and children, and to be engaged in peaceful occupation
  • To be generous in giving, to be righteous in conduct, to help one’s relatives, and to be blameless in action
  • To loathe more evil and abstain from it, to refrain from intoxicants, and to be steadfast in virtue
  • To be respectful, humble, contented and grateful; and to listen to the Dhamma on due occasions 
  • To be patient and obedient, to associate with monks and to have religious discussions on due occasions
  • Self-restraint, a holy and chaste life, the perception of the Noble Truths and the realisation of Nibbana
  • A mind unruffled by the vagaries of fortune, from sorrow freed, from defilements cleansed, from fear liberated

 

These are the greatest Blessings.

Buddha closes the discourse with the words, “Those who thus abide, ever remain invincible, in happiness established. These are the greatest blessings.”

There is no doubt whatsoever that the Buddha is the Ultimate Happiness Guru!

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

 




हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆ – हेमन्त बावनकर

आचार्य भगवत दुबे

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(e-abhivyakti.com  में आज संस्कारधानी जबलपुर के आचार्य भगवत दुबे जी का स्वागत है एवं उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित इस आलेख को प्रस्तुत करते  हुए हम गौरवान्वित अनुभव करते हैं। अंतरराष्ट्रीय खातिलब्ध आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षिप्त में लिखना असंभव है। आपकी गिनती हिन्दी साहित्य में अंतरराष्ट्रीय स्तर के साहित्य मनीषियों में होती है। आचार्य भगवत दुबे जी से दूरभाष इंटरव्यू एवं सोशल मीडिया पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित आलेख।) 

आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 3 पी एच डी (4थी पी एच डी पर कार्य चल रहा है) तथा 2 एम फिल  किए गए हैं। डॉ राज कुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी के साथ रुस यात्रा के दौरान आपकी अध्यक्षता में एक पुस्तकालय का लोकार्पण एवंआपके कर कमलों द्वारा कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्रदान किए गए।

बचपन से ही प्रतिभावन आचार्य जी अपने गुरुओं के प्रिय रहे हैं। वे आज भी अपनी उपलब्धियों का श्रेय अपने गुरुवर सनातन कुमार बाजपेयी जी को देते हैं  जिन्होने न सिर्फ उन्हें प्रोत्साहित किया अपितु, उन्हें हिन्दी और अङ्ग्रेज़ी की शिक्षा भी दी और आर्थिक सहायता भी। आज ऐसे गुरुवर मिलना अत्यंत सौभाग्य की बात है। हम हमेशा ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि ऐसी  गुरु-शिष्य परंपरा सदैव जीवित रहे।

संयोगवश आज “पृथ्वी दिवस” पर यह उल्लिखित करन मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है कि – आपकी पर्यावरण विषय पर कविता ‘कर लो पर्यावरण सुधार’ को तमिलनाडू के शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। प्राथमिक कक्षा की मधुर हिन्दी पाठमाला में प्रकाशित आचार्य की कविता में छात्रों को सीखने-समझने के लिए शब्दार्थ दिए गए हैं। साथ ही मौखिक अभ्यास प्रश्नावली भी दी गई है।

आपके महाकाव्य ‘दधीचि’ का उल्लेख के बिना यह आलेख अधूरा होगा। दधीचि महाकाव्य नौ सर्गों में विभक्त है जिनके नाम क्रमशः -‘दधीचि, सुरक्षा, गुरू, वृत्तासुर, मंत्रणा, सुषमा, आश्रम, बलिदान तथा युद्ध है । प्रारम्भ में मंगलाचरण और अन्त में दधीचि वंदना भी दी गयी है । दधीचि की कथा श्रीमद्भागवत, शिवपुराण, महाभारत, स्कन्द पुराण उपनिषद तैत्तिरीय संहिता तथा विभिन्न चरित कोषों में वर्णित है। दधीचि मंत्रवृष्टा ऋषि थे। आपने अपनी मौलिक कल्पना से इस चिर पुरातन कथा को एक नवीन स्वरूप प्रदान कर दिया है। आपने दधीचि को पहले राजा स्वीकार किया है । फिर उनकी आदर्श राज्य व्यवस्था का वर्णन किया है।

आपके ही शब्दों में  ‘‘मैने निश्चय कर लिया कि राजा दधीचि से ऋषि दधीचि तक का वर्णन कर मैं अपनी बात कहूंगा । इस महाकाव्य में दधीचि सर्ग का आधार मेरी यही मौलिक कल्पना शीलता है, जो पुराण प्रसिद्ध दधीचि के आख्यान से प्र्याप्त भिन्न होने हुए भी मूल कथानक से सामंजस्य बनाकर ही सुविकसित हुई है ।

इन्द्र और वृत्तासुर के युद्ध वर्णन पर वे लिखते हैं –

इक ओर वनुज कज्जल गिरि सा, तो लगते मेरू परंदर थे ।
दोनों पहाड़ करके दहाड़ टकाराकर गिरे भयंकर थे ।।
विक पाल डरे दिग्गज डोले, घबड़ाकर चतुर्दिशाओं के ।
जब वाण परंदर के छोड़े जाज्वल्यमान उल्काओं के ।।

Sanso ke Santoor by Acharya Bhagwat Dubey by [Dubey, Acharya Bhagwat] Aakad Bakad by Acharya Bhagwat Dubey: अक्कड़ - बक्कड़

आपके कई ईबुक के स्वरूप में अमेज़न पर उपलब्ध है। इनमें से प्रमुख  साँसों के संतूर एवं अक्कड़-बक्कड़ प्रमुख हैं। साँसों के संतूर काव्य संग्रह  में समाहित दार्शनिक जीवन दृष्टि एवं सत्यम, शिवम, सुंदरम की आराधना हैं,  चिंतन दर्शन सृजन का पाथेय हैं । सासों के संतूर में एक हजार से ज्यादा दोहे हैं इन में श्रंगार सौंदर्य के साथ अन्याय, अनीति,मूल्यों के संकट, शोषण पर प्रहार किया हैं। किन्तु आपकी अधिकतम पुस्तकें प्रिंट स्वरूप में ही हैं।

 

संस्कारधानी के ही वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी ने अभी हाल ही में आचार्य जी से एक संक्षिप्त चर्चा की एवं उनके अनुरोध पर आचार्य भगवत दुबे जी ने लोकतन्त्र के महापर्व पर चुनाव-चकल्लस के अंतर्गत “घोषणा पत्र” शीर्षक से अपनी व्यंग्य रचना का पाठ किया।

इस विशेष विडियो के लिए हम श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी के हृदय से आभारी हैं।

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी द्वारा प्रेषित  विडियो जिसमें आचार्य भगवत दुबे जी ने अपनी  व्यंग्य कविता “घोषणा पत्र” का काव्य पाठ किया है उसे आप यूट्यूब चैनल e-abhivyakti Pune पर भी देख सकते हैं। इसके लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक करें।)

विडियो लिंक   ->>>> आचार्य भगवत दुबे जी की व्यंग्य कविता “घोषणा पत्र” का काव्य पाठ

विस्तृत परिचय

नाम   – आचार्य भगवत दुबे
पिता  – स्व. ओंकार प्रसाद जी दुबे
माता-  – श्रीमती रामकली दुबे
पत्नी  – स्व.श्रीमती विमला दुबे (आदर्श शिक्षिका)
जन्म  – 18.08.43
जन्म स्थान – डगडगा हिनौता चरगवां रोड, जबलपुर (म.प्र.)
शिक्षा  – एम.ए. एल.एल.बी. कोविद (संस्कृत)
व्यावसायिक विवरण-
(1) कृषि (2) रत्नावली महिला महाविद्यालय गढा, जबलपुर में पाच वर्ष तक आचार्य पद पर कार्य किया । (3) मेडिको सोशल वर्कर, मेडीकल कालेज जबलपुर से सेवा निवृत्त  ।

43 प्रकाशित कृतियां: (कुछ प्रमुख)

(1) स्मृतिगंधा  वियोग श्रंगार प्रधान गीत संग्रह 1990 प्रकाशक हिन्दी मंच भारती, जबलपुर.
(2) अक्षर मंत्र  साक्षरता से संबंधित गीत संग्रह 1996 जिला साक्षरता साहित्य समिति, जबलपुर.
(3) शब्दों के संवाद  एक हजार दोहों का संग्रह  1996 मेघ प्रकाशन दिल्ली.
(4) हरीतिमा  पर्यावरण विषयक दोहा संग्रह 1996 विकास एवं पर्यावरण संस्था.
(5) रक्षा कवच  विभिन्न रोगों के लक्षण, कारण, दुष्परिणाम एवं निदान विषयक गीत संग्रह(स्वास्थ्य शिक्षा हेतु) 1997 पलाश प्रकाशन.
(6) संकल्परथी  वनवासियों की जीवन पद्धति, संस्कृति और पंचायती राज की परिकल्पना पर केन्द्रित काव्य कृति 1997 एन आई डब्ल्यू, सी वाई डी, जबलपुर.
(7) बजे नगाडे काल के  जबलपुर की भूकम्प त्रासदी पर केन्द्रित दोहा संग्रह 1997 महापौर जबलपुर.
(8) वनपांखी (गीत)   जल, जंगल, जमीन, विस्थापन एवं लोक संस्कृति पर केन्द्रित गीत संग्रह 1998 आदिवासी स्वशासन के लिए राष्ट्रीय मोर्चा.
(9) दधीचि (महाकाव्य)   विश्वशांति के लिए समकालीन प्रासंगिकता के परिपे्रक्ष्य में महर्षि दधीचि के आत्मोत्सर्ग पर केन्द्रित बीसवीं सदी के उत्तरार्ध का सर्वाधिक चर्चित महाकाव्य 1998 समय प्रकाशन दिल्ली.
(10) जियो और जीने दो (गीत)       मानवाधिकारों पर केन्द्रित काव्य कृति 1990 मानव अधिकार कानून नेटवर्क की ओर से
(11) विषकन्या (मद्यनिषेध)  मद्य निषेध विषयक गीत-लोकगीत संग्रह 1999 एन आई डब्ल्यू, सी वाई डी, जबलपुर.
(12) शंखनाद (राष्ट्रीय गीत)    राष्ट्रीय पृष्ठभूमि पर केन्द्रित ओज गीत संग्रह 1999 समय प्रकाशन दिल्ली
(13) चुभन (गजलें)   गजल संग्रह 2000 प्रकाशन मंचदीप जबलपुर
(14) दूल्हा देव  कहानी संग्रह (अधिकांश आंचलिक कहानियां) 2000 समय प्रकाशन दिल्ली
(15) शब्द विहंग (दोहे)   एक हजार दोहों का संग्रह 2001 पाथेय प्रकाशन जबलपुर
(16) प्रणय ऋचाएं (गीत)  श्रंगार गीत संग्रह 2000 पाथेय प्रकाशन जबलपुर
(17) कांटे हुए किरीट (काव्य)  व्यंग्य गीत संग्रह 2001 कांटे हुए किरीट म.प्र.आंचलिक साहित्यकार परिषद.
(18) करूणा यज्ञ पशु-पक्षी, जीव-जन्तु पर्यावरण एवं गोरक्षा पर केन्द्रित काव्यकृति 2001 श्री कृष्ण गोपाला जीव रक्षा केन्द्र दुर्ग, छत्तीसगढ.
(19) हिन्दी तुझे प्रणाम  हिन्दी भाषा की दशा-दिशा एवं संवर्धन की पृष्ठभूमि पर केन्द्रित काव्य संग्रह 2003 अनुभव प्रकाशन गाजियाबाद.
(20) कसक (गजलें)  गजल संग्रह 2003 अनुभव प्रकाशन गाजियाबाद.
(21) शिकन (गजलें)   गजल संग्रह 2004 अनुभव प्रकाशन गाजियाबाद.
(22) हिरण सु्रगंधों के (नवगीत)   नवगीत संग्रह
(23) घुटन  गजल संग्रह
(24) हम जंगल के अमलतास नवगीत संग्रह
(25) अक्कड बक्कड  बाल गीत
(26) मां ममता की मूर्ति          गीत संग्रह
(27) सांई की लीला अपार       गीत संग्रह
(28) अटकन चटकन  बाल गीत
(29)  यादों के लाक्षागृह  नवगीत संग्रह
(30)  चहकते चितचोर  बालगीत संग्रह
(31)  गीत ये पीरी पही के  जनगीत संग्रह
(32)  गरजते शिला खण्ड  व्यंग्य संग्रह
(33)  मृग तृष्णा   लघुकथा संग्रह
(34)  संशय के संग्राम  खण्ड काव्य
(35)  गागर में सागर  हाकु काव्य
(36)  भक्ति की भागीरथी   भक्ति गीत संग्रह
(37)  सृजन सोपान  गद्य आलेख
(38) संस्कृतियों के सेतु   चिन्तन आलेख संग्रह
(39) अटकन चटकन  बाल गीत संग्रह
(40)  अक्कड़ बक्कड़  बाल गीत संग्रह
इसके अतिरिक्त पाँच हजार दोहे अभी भी अप्रकाशित हैं ।

संपादन –
(1)  मधुसंचय    जबलपुर के कवियों की रचनाओं का संकलन
(2)  मानस मंदाकिनी  गोस्वामी तुलसीदास के कृतित्व पर केन्द्रित स्मारिका
(3)  गौरवान्विता   कादम्बिनी क्लब जबलपुर की स्मारिका
(4)  यशस्विनी कादम्बरी के साहित्यकार/पत्रकार सम्मान समारोह की स्मारिका
(5)  धरोहर    काव्य संकलन
(6)  विरासत   काव्य संकलन
(7)  अमानत   काव्य संकलन
(8)  सौगात    काव्य संकलन
(9)  दीपशिखा    त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका

विशेष
शताधिक पुस्तकों की समीक्षा तथा अनेक पुस्तकों की भूमिका लेखन ।

कैसिट्स –
(1)  ह्यूमन वेलफेयर एण्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन इन्दौर द्वारा रक्षा कवच के गीतों का कैसिट ।
(2)  श्री अजय पाण्डेय राष्ट्रीय अध्यक्ष मानवाधिकार समिति द्वारा बनवाया गया राष्ट्रीय रचनाओं का कैसिट ‘दुर्गावती‘    श्रीमती सोनिया गांधी अ.भा.राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा लोकार्पित ।
(3)  लगभग एक दर्जन लोक गायकों के कैसिटों में लोकगीत सम्मिलित ।
(4)  श्री आशोक गीते खण्डवा द्वारा व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केन्द्रित पुस्तक ‘अभिव्यक्ति‘ का प्रकाशन ।
(5)  परिक्रमा संस्था जबलपुर द्वारा सन् 2003 के लिए कराये गये एक गुप्त सर्वेक्षण में जबलपुर के दस चर्चित व्यक्तित्वों में सम्मानित।
(6)  क्राइस्ट चर्च व्यापस सीनियर सेकेन्डरी स्कूल के तीन छात्रों द्वारा लघु शोध पत्र ।
(7)  कुसुम महाविद्यालय सिवनी मालवा एम.ए. अंतिम वर्ष की छात्रा द्वारा व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर शोध कार्य संपन्न
(8)  पी.एच.डी. के अनेक शोध प्रबन्धों में संदर्भ ।
(9)  कुरूक्षेत्र विश्व विद्यालय से दोहों पर एम.फिल. (हिसार से राजकुमार द्वारा)
(10) कामराज युनिवर्सिटि से नवगीत पर एम.फिल. प्रारंभ (छात्रा निर्मला मलिक द्वारा, निदेशक ्रडाॅ. राधेश्याम शुक्ल)
(11) डॉ ओंकार नाथ द्विवेदी के निर्देशन में, प्रियंका श्रीवास्तव द्वारा सुल्तानपुर से महाकाव्य दधीचि पर पी..एच.डी. प्रारंभ

शताधिक सम्मान – अलंकरण (कुछ प्रमुख) 

1)  कहानी ‘दूल्हादेव‘ के लिये म.प्र.आंचलिक साहित्यकार परिषद की ओर से स्व. श्री रामेश्वर शुक्ला अंचल की अध्यक्ष्ता में मुख्य  अतिथि कादम्बिनी के पूर्व संपादक श्री राजेन्द्र अवस्थी द्वारा स्व. नर्मदा प्रसाद खरे स्मृति सम्मान 1000 रू. नगद।
(2)  दोहा संग्रह ‘शब्दों के संवाद‘  पर अखिल भरतीय संस्था अभियान द्वारा ‘भाषा भूषण‘ अलंकरण एक हजार रूपये के पुरस्कार।
(3)  दधीचि महाकाव्य पर स्व. रामानुजलाल श्रीवास्तव ‘ऊंट‘ बिलहरवी की स्मृति में ‘महाकवि निराला सम्मान‘ मुख्य अतिथि डॉ राममूति त्रिपाठी द्वारा।
(4) दधीचि महाकाव्य पर ‘गुजरात हिन्दी विद्यापीठ‘ की ओर से मुख्य अतिथि महामहिम राज्यपाल श्री सुन्दर सिंह भण्डारी द्वारा ‘हिन्दी गरिमा सम्मान‘ (ताम्रपत्र)
(5) 1999 की सर्वश्रेष्ठ पद्यकृति ‘दधीचि‘ के लिए अ.भा. अभियान संस्था जबलपुर द्वारा ‘दिव्य‘ अलंकरण ‘हिन्दी रत्न‘ एवं पाँच हजार रूपये ।
(6)  ‘मंचदीप‘ जबलपुर की ओर से ‘दधीचि‘ महाकाव्य पर पद्म श्री गोपाल दास नीरज सम्मान 11000 रूपये एवं भव्य अलंकरण स्वयं नीरज जी के कर कमलों से ।
(7) अखिल भारतीय साहित्यकार कल्याण मंच रायबरेली द्वारा कहानी संग्रह ‘दूल्हा देव‘ पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान मुख्य अतिथि डॉ गिरिजाशंकर त्रिवेदी संपादक नवनीत (मुम्बई) द्वारा ।
(8) डॉ. अम्बेडकर राष्ट्रीय अस्मिता दर्शी साहित्य अकादमी उज्जैन (म.प्र.) द्वारा दधीचि महाकाव्य पर ‘डॉ. अम्बेडकर सम्मान‘ अध्यक्ष डॉ. पुरूषोत्तम सत्यप्रेमी एवं मुख्य अतिथि डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा ।
(9) म.प्र.आंचलिक साहित्यकार परिषद के सप्तम अधिवेशन हर्रई जागीर में दधीचि महाकाव्य पर श्रीमती राधा सिंह संस्कृति सम्मान 1100 रू. मुख्य अतिथि डॉ. बालेन्दु शेखर तिवारी द्वारा ।
(10) अ.भा. साहित्य कला मंच मुरादाबाद द्वारा समग्र लेखन पर स्व. सतीश चन्द्र अग्रवाल स्मृति सम्मान साहित्य श्री 2100 रू. डॉ. विश्वनाथ शुक्ल द्वारा ।
(11) अ.भा. सृष्टि समाकलन समिति जालौन (उ.प्र.)द्वारा महाकाव्य दधीचि पर ‘काव्य किरीट‘ सम्मान ।
(12) शिव संकल्प साहित्य परिषद नर्मदा पुरम (म.प्र.) द्वारा महाकाव्य दधीचि पर ‘पं. राधेलाल शर्मा हिामंशु‘ सम्मान ।
(13) 4 मई, 2003 को साहित्य, संस्कृति कला संगम अकादमी परियावा प्रताप गढ द्वारा समग्र लेखन पर ‘विद्यावाचस्पति‘ मानदोपाधि ।
(14) हिन्दी प्रचारिणी समिति छिन्दवाडा द्वारा सारस्वत सम्मान ।
(15) साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था छिन्दवाडा द्वारा महाकाव्य दधीचि के लिए सम्मानित ।
(16) यू.एस.एम. पत्रिका तथा युवा साहित्य मंडल गाजियाबाद के वार्षिकोत्सव पर त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल डाॅ माता प्रसाद एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल बी सत्यनारायण रेड्डी द्वारा वरिष्ठ साहित्य सेवी सम्मान ।
(17) श्री ऋषिकेश सेवाश्रम (धर्माधिष्ठान) अलीगढ द्वारा धर्मनिष्ठ सम्मानोपाधि ।
(18) आपदा प्रबंधन संस्थान भोपाल एवं संवाद सोसायटी फार एडवोकेसी एण्ड डेवलपमेंट जबलपुर द्वारा भूकम्प त्रासदी पर लिखित काव्यकृति ‘बजे नगाडे काल के‘ पर प्रशस्ति पत्र ।
(19) 1999 में ध्रुव प्रकाशन अहमदाबाद द्वारा श्रेष्ठ सृजन हेतु सारस्वत सम्मान ।
(20) म.प्र.लेखक संघ बैतूल (म.प्र.) द्वारा 16.4.2001 को ‘काव्याचार्य‘ सम्मानोपाधि ।
(21) नव सप्तक साहित्य श्रंखला के अंतर्गत प्रथम काव्यसप्तक के लिए चयनित एवं उसमें प्रकाशन के लिए उद्योग नगर गाजियाबाद द्वारा गौरवशाली रचनाकार के रूप् में सम्मानित ।
(22) माण्डवी प्रकाशन गाजियाबाद द्वारा काव्यकृति ‘कांटे हुए किरीट‘ के लिए ‘निर्मला देवी साहित्य स्मृति‘ सम्मान ।
(23) अ.भा.कवि सम्मेलन संयोजन समिति हाथरस द्वारा ‘काव्य प्रसून‘ सम्मान ।
(24) इंडियन फिजिकल सोसायटी सेन्ट्रल जोन द्वारा मनोरोग एवं चिकित्सा शिक्षा विषयक काव्यकृति ‘रक्षा कवच‘ के लिए सम्मानित ।
(25) सन् 2002 में ऋतंभरा साहित्यिक मंच कुम्हारी (छत्तीसगढ) द्वारा उत्कृष्ट काव्य धर्मिता के लिए सम्मानित ।
(26) कला साहित्य एवं उल्लेखनीय समाज सेवा के लिए साहित्यिक  संस्था खजुरी कला (भोपाल) द्वारा ‘दर्पण सृजन श्री‘ सम्मान ।
(27) अ.भा.साहित्यकार कल्याण मंच रायबरेली द्वारा वर्ष 2001 में दधीचि महाकाव्य पर ‘‘सूफी संत कवि जायसी सम्मान‘‘।
(28) साहित्यिक सांस्कृतिक क्रीडा एवं समाज सेवी संस्था जबलपुर द्वारा साहित्य सृजन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवा के लिए ‘हरिशंकर परसाई‘ सम्मान ।
(29) मानव सेवा संस्थान, भोपाल द्वारा 1998 में उत्कृष्ट साहित्य सृजन के लिए ‘साहित्य श्री‘ सम्मान एवं 252 रू. नगद।
(30) अमेरिकन बायोगाफिकल संस्था द्वारा राशि भुगतान करने की शर्त का विरोध करने के बाद भी रिसर्च बोर्ड की मानद सदस्यता प्रदत्त ।
(31) अ.भा. साहित्य परिषद बालाघाट द्वारा प्रशस्ति पत्र प्रदत्त ।
(32) संस्कार भारती राष्ट्रीय संगोष्ठी मेरठ प्रान्त द्वारा ‘संस्कार भारती सम्मान 2001.
(33) महावीर सेवा संस्थान कादीपुर, प्रतापगढ द्वारा दोहा संग्रह शब्दों के संवाद के लिए हिन्दी दिवस 1999 को ‘‘साहित्य शिरोमणि‘‘ सम्मान।
(34) 10 नवम्बर 2002 को भारती परिषद प्रयाग द्वारा उ.प्र. के विधान सभाध्यक्ष पं. केशरी नाथ त्रिपाठी के जन्मोत्सव पर श्रेष्ठ साहित्य सृजन के लिए सम्मानित ।
(35) संस्कार भारती शिक्षण संस्थान विक्रमपुर सुल्तानापुर द्वारा सुदीर्घ, उत्कृष्ठ सृजन साधना के लिए ‘बाबा पुरूषोत्तम दास स्मृति हस्त्राब्दि प्रतिभा सम्मान 2001.
(36) श्री राज राजेश्वरी त्रिपुर सुन्दरी मंदिर पवई, अमरपुर की ओर से माननीय श्री विश्वनाथ दुबे नगर निगम जबलपुर एवं गृह मंत्री श्री रघुवंशी द्वारा ‘सप्तर्षि सम्मान‘.
(37) पाथेय प्रकाशन जबलपुर द्वारा पाथेय श्री अलंकरण ।
(38) 24 दिसम्बर, 2001 को म.प्र. लेखक संघ जबलपुर द्वारा पत्रकार ‘स्व. हीरालाल गुप्त स्मृति समारोह में सम्मानित ।
(39) उत्कृष्ट साहित्यिक पत्रकारिता के लिए दैनिक सी. टाइम्स जबलपुर की ओर से परम पूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी द्वारा प्रशस्ति पत्र ।
(40) विमल स्मृति संस्था एवं आदर्श महिला मण्डल सीहोर द्वारा 6 जून, 2001 को उत्कृष्ट एवं प्रचुर साहित्य सृजन के लिए सम्मानित ।
(41) कहानी सग्रह दूल्हादेव पर नर्मदा अभियान द्वारा श्रीनाथ द्वारा राजथान से ‘‘हिन्दी भूषण‘‘ सम्मान ।
(42) सरिता साहित्य परिषद सहिनवां सुलनपुर द्वारा ‘कीर्ति भारती‘ (सर्वोच्च) सम्मान ।
(43) साहित्य साधना परिषद मैनपुरी द्वारा समग्र लेखन पर 20.02.05 को ‘‘कौशलो देवी अग्रवाल सम्मान‘‘ ।
(44) अखिल भारतीय साहित्य संस्कृति कला संगम अकादमी परियावा (प्रतापगढ) द्वारा समग्र लेखन पर ‘विद्यावारिधि‘ मानद उपाधि 2005.
(45) जन पत्रकार संघ नई दिल्ली द्वारा अभिनन्दन 2005.
(46) खानकाह सूफी दीदार शाह चिश्ती संस्था द्वाराा मध्यप्रदेश काव्य रत्न सम्मान 2005.
(47) डॉ. राम निवास ‘मानव‘ अभिनन्दन समिति हिसार (हरियाणा) द्वारा साहित्य शिरोमणि सम्मान.
(48) कांटे हुए किरीट पर ‘दुष्यंतसम्मान‘ खानकाह सूफी दीदार शाह चिश्ती हाजी मलंग शाह बाडी बी ओ बाडी पो. कल्याण 42130 ठाणे द्वारा 2.10.2005 को ।
(49) अखिल भारतीय साहित्य परिषद (कोटा इकाई) राजस्थान द्वारा डाॅ महेन्द्र सम्मान 2005.
(50) भारत भारती संस्थान गुना द्वारा स्वर्ण जयन्ती सृजनधर्मी सम्मान 2005.
(51) हिन्दी भाषा कुंभ दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा बैंगलोर द्वारा सम्मनित 2006.
(52) हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा मथुरा अधिवेश में ‘वाग्विदांवर‘ सम्मान 6 अगस्त 2006 को ।
(53) मध्यप्रदेश हिन्दी  लेखक संघ भोपाल द्वारा वर्ष 2006 का ‘अक्षर आदित्य‘ सम्मान 2100 रूपये ।
(54) म.प्र. तुलसी साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा वर्ष 2005 के लिए ‘तुलसी सम्मान‘ 1100 रूपये ।
(55) डॉ. चित्रा चतुर्वेदी द्वारा अपने पिता न्यायमूर्ति स्व. ब्रज किशोर चतुर्वेदी की स्मृति में स्थापित तुलसी सम्मान वर्ष 2006.
(56) हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा विधावागीश सम्मान 2006.
(57) हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा महादेवी वर्मा सम्मान 2007.
(58) कवि ‘‘रत्न‘‘ सम्मान भारती परिषद प्रयाग 2007.
(59) विद्यावारिधि (मानद) साहित्य प्रभा शिखर सम्मान 2007 देहरादून ।
(60) हिन्दी साहित्य सम्मेलन  कटक (उडीसा) 24 जून, 2007 ‘‘सारस्वत संस्तन‘‘ सम्मान ।
(61)  हिन्दी भाशा सम्मेलन पटियाला द्वारा 18 अपे्रल, 2010 को ‘‘साहित्य भूशण अलंकरण ।
(62)  14 सितंबर, 2010 को प्रतिभा सम्मेलन समारोह समिति गढा जबलपुर द्वारा गढा गौरव सम्मान ।
(63)  विक्रमशिला विश्वविद्यालय गांधीनगर ईशुपुर (भागलपुर) द्वारा ‘विद्यासागर‘ मानद उपाधि ।

आचार्य भगवत दुबे
प्रकाशन – बहुचर्चित दधीचि (महाकाव्य) एवं दूल्हादेव (कहानी संग्रह)
सहित काव्य विधा की तेईस कृतियां प्रकाशित । देश की शताधिक पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन
संपादन – मधुसंचय, धरोहर,अमानत, विरासत, सौगात एवं उपलब्धि काव्य संग्रह तथा त्रैमासिक  दीपशिखा के साथ ही मानस मंदाकिनी एवं कादम्बरी (स्मारिका) का प्रतिवर्ष संपादन ।
विशेष  – तीन लघु शोध पत्र, दो एम फिल संपन्न एवं पी.एच.डी., संपन्नता की ओर ।
सम्मान – देश की अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मान एवं उपाधियां/ अलंकार ।

  • अग्रज श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी के प्रोत्साहन पर रचित आलेख – हेमन्त बावनकर 



हिन्दी साहित्य – लघुकथा – ☆ एक छोटी भूल ☆ – डॉ कुन्दन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

☆ एक छोटी भूल ☆

(प्रस्तुत है  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  की एक विचारोत्तेजक लघुकथा। )

 

हम एक शिविर में थे। शिविर बस्ती से दूर प्रकृति के अंचल में, वन विभाग की एक इमारत में लगा था। इमारत के अगल-बगल और सामने दूर  तक ऊँचे पेड़ थे। खूब छाया रहती थी।रात भर पेड़ हवा से सरसराते रहते।

उस सबेरे हम चार लोग इमारत के पास टीले पर बैठे थे। दूर दूर तक पेड़ ही पेड़ थे और हरयाली। उनके बीच से बल खाती काली सड़क। कहीं कहीं इक्के दुक्के कच्चे घर। कुछ दूर पुलियाँ बन रही थीं। वहाँ कुछ हरकत दिखायी पड़ रही थी। शायद कोई इमारत बनाने की तैयारी थी।

पटेल की सिगरेट ख़त्म हो गयी थी। उसे तलब लगी थी। करीब एक फर्लांग दूर सड़क के किनारे दूकान थी,  लेकिन पटेल अलसा रहा था।

तभी पास से एक पंद्रह सोलह साल का लड़का निकला। पुरानी, गंदी, आधी बाँह की कमीज़ और पट्टेदार अंडरवियर।

पटेल ने उसे बुलाया। पचास का नोट दिया, कहा, ‘ज़रा एक सिगरेट का पैकेट ले आओ।’

लड़का बोला, ‘साहब, मुझे काम पर पहुँचना है।देर हो जाएगी।’

पटेल बोला, ‘अरे, नहीं होगी देर। दौड़ के ले आओ।’

लड़का नोट लेकर चला गया। हम वहीं बैठे गप लड़ाते रहे।

थोड़ी देर में लड़का लौटा।उसने पटेल को पैकेट और बाकी पैसे दिये।पटेल ने पैसे जेब में डाल लिये और पैकेट खोलने लगा।

लड़का एक क्षण खामोश रहा। फिर बोला, ‘साहब, दूकान पर ठेकेदार मिल गया था। हमें वहाँ देखकर नाराज हो गया। बोला अब काम पर आने की जरूरत नहीं है। यहीं आराम करो।’

पटेल ने ओठों में सिगरेट दबाये, माथा सिकोड़कर पूछा, ‘तो?’

लड़का बोला, ‘हमारी आज की मजूरी चली गयी, साहब।’

पटेल अपना असमंजस छिपाने के लिए माचिस जलाकर सिगरेट सुलगाने लगा।

आधे मिनट हम सब खामोश बैठे रहे। फिर पटेल उठ कर खड़ा हो गया, बोला, ‘चलो,नाश्ते का वक्त हो गया।’

हम सब उस लड़के से आँखें चुराते धीरे धीरे इमारत की तरफ बढ़ने लगे।

लड़का वहीं खड़ा हमें देखता रहा। इमारत में घुसने से पहले हमने घूम कर देखा। वह हमारी तरफ देखता वहीं खड़ा था।

 

© कुन्दन सिंह परिहार
जबलपुर (म. प्र.)



हिन्दी साहित्य- कविता – ☆ पृथ्वी दिवस पर विशेष – विपदा भू पर आई ☆ – सुश्री मालती मिश्रा ‘मयंती’

सुश्री मालती मिश्रा ‘मयंती’

विपदा भू पर आई

(अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर विशेष   सुश्री मालती मिश्राजी  की  अतिसुन्दर सामयिक कविता।)
धरती से अंबर तक देखो,
घटा धुएँ की छाई।
दसों दिशाएँ हुईं प्रदूषित,
विपदा भू पर आई।
नदियाँ नाले एक हो रहे,
रहे धरा अब प्यासी।
नष्ट हो रही हरियाली भी
मन में घिरी उदासी।
पीने का पानी भी बिकता,
बाजारों  में भाई…….
धरती से अंबर तक देखो,
घटा धुएँ की छाई।
हरियाली की चादर ओढ़े,
थी धरती मुस्काती।
लहर-लहर निर्मल धलधारा,
देख सदा हर्षाती।
वन-कानन अरु पर्वत ऊँचे,
गौरव-भू कहलाते।
मस्त पवन फिर दसों दिशा में,
नित सौरभ फैलाते।
मधुर भोर की शीतल बेला
आज पड़े न दिखाई…….
धरती से अंबर तक देखो,
घटा धुएँ की छाई।
उन्नति की खातिर मानव ने
जंगल नदियाँ पाटे।
हरियाली को छीन धरा से,
नकली पौधे बाँटे।
जहर घोलकर अब नदियों में
बनाये कारखाने।
धरती का सौंदर्य मिटा कर,
मन ही मन  हर्षाने ।
अपने सुख खातिर मानव ने,
भू की खुशी मिटाई…….
धरती से अंबर तक देखो,
घटा धुएँ की छाई।
©मालती मिश्रा ‘मयंती’✍️
दिल्ली
मो. नं०- 9891616087



मराठी साहित्य – मराठी कविता – ? पळस ? – सुश्री ज्योति हसबनीस

सुश्री ज्योति हसबनीस

 

? पळस ?

 

अग्नीशिखा ही भुईवरची

निसर्गाने सफाईने रोवली

रेखीव रचना किमयागाराची

आसमंत चितारून गेली

 

केशरी लावण्याचा

दिमाख ऐन बहरातला

मखमली सौंदर्याचा

रूबाब निळ्या छत्रातला

 

पेटती मशाल ही रानातली

की रंगभूल ही मनातली

प्रणयातूर ऊर्मि जणू ही

उत्सुक तप्त श्वासांतली

 

धगधगता अंगार क्रोधाचा

जणू आसमंती झेपावला

विखार अंतरीचा

जणू अणूरेणूतून पेटला

 

जणू निखारे अस्तनीचे

बाळगले विधात्याने

आणि छत्र निळाईचे

केले बहाल ममत्वाने

 

वाटेवरचा पळस

खुप काही सांगून गेला

ईश्वरी अगाधतेचा

अमीट ठसा उमटवून गेला

 

©  सौ. ज्योति हसबनीस

 

 




आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (50) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

(कर्मयोग का विषय)

 

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते ।

तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्‌ ।।50।।

बुद्धिमान शुभ-अशुभ से रहता कोसों दूर

अतः युद्ध कर योग है कर्मो से भरपूर।।50।।

 

भावार्थ :   समबुद्धियुक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है अर्थात उनसे मुक्त हो जाता है। इससे तू समत्व रूप योग में लग जा, यह समत्व रूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात कर्मबंध से छूटने का उपाय है।।50।।

 

Endowed with wisdom (evenness of mind), one casts off in this life both good and evil deeds; therefore, devote thyself to Yoga; Yoga is skill in action. ।।50।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 




योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ The Happiness Formula ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Happiness Activities​

Lesson 5 

As we know by now, 50% of happiness is in our genes, 10% depends on the circumstances of life and the rest 40% can be cultivated by us by taking up activities, intentionally and voluntarily, that bring joy and happiness.

These intentional activities we call Happiness Activities.

You can find activities that fit your interests, your values and your needs.

Let us classify and list a few activities to make it clear:

Everyone needs to spare time regularly for at least one activity to take care of the body, mind and soul. It may be aerobics, yoga, meditation, walking, or any of the physical exercises.

Stress is the major concern in modern life. One needs to learn how to cope with stress, trauma, and hardships of life.

Finding flow and living in the present is the surest path to authentic happiness. You can choose a happiness activity that helps you enhance flow experience.

You can enrich your life by developing positive relationships and by broadening social connections.

Committing to your goals and a committed goal pursuit leads to accomplishments, thus enhancing your happiness quotient.

You may want to enhance your positive emotions about the past by practicing gratitude or your positive emotions about the future by practicing optimism.

We will be taking up some proven happiness activities from each of these sections in our subsequent lessons.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]




ई-अभिव्यक्ति: संवाद-26 – डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव – (साहित्यकार को सीमाओं में मत बांधे)

डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव 

अतिथि संपादक – ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–26 

(कल आपने डॉ मुक्ता जी के मनोभावों को ई-अभिव्यक्ति: संवाद-25 में अतिथि संपादक के रूप में आत्मसात किया। इसी कड़ी में मैं डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव जी का हृदय से आभारी हूँ। उन्होने मेरा आग्रह स्वीकार कर आज के अंक के लिए अतिथि संपादक के रूप में अपने उद्गार प्रकट किए।डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव जी ने  ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–22  के संदर्भ में अपनी बेबाक राय रखी। यह सत्य है कि साहित्यकार को सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। साहित्यकार भौतिक जीवन के अतिरिक्त अपने रचना संसार में भी जीता है। अपने आसपास के चरित्रों या काल्पनिक चरित्रों के साथ सम्पूर्ण संवेदनशीलता के साथ। डॉ प्रेम कृष्ण जी का  हार्दिक आभार।)

? साहित्यकार को सीमाओं में मत बांधे ?

इसमें कोई संदेह नहीं कि साहित्यकार के पीछे उसका अपना भी कोई इतिहास, घटना/दुर्घटना अथवा ऐसा कोई तथ्य रहता है जो साहित्यकार में  भावुकता एवं संवेदनाएं ही नहीं उत्पन्न करता है, बल्कि उसे नेपथ्य में प्रोत्साहित अथवा उद्वेलित भी करता है, जिसके परिणाम स्वरूप वह रचना को कलमबद्ध कर पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास करता है। इसीलिए कहा गया है “वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान”। परन्तु यह  आवश्यक नहीं है कि उसकी सभी रचनाएँ उसकी आत्मबीती घटनाओं से ही प्रेरित हों।

कवि की कविता सिर्फ उसकी आप बीती और उसकी आत्माभिव्यक्ति ही नहीं होती बल्कि उसके आसपास के अन्य व्यक्तियों के साथ जो कुछ घट रहा होता है, वह उसे भी अपनी संवेदना से महसूस ही नहीं करता है बल्कि अभिव्यक्त करने का प्रयास भी करता है। प्रणयबद्ध पक्षी युगल के प्रातः काल नदी किनारे आखेटक द्वारा तीरबद्ध करने पर उन पक्षियों की पीड़ा के रूप में आदिकवि वाल्मीकि के मुंह से जो अनुभूतियाँ एवं उद्गार सर्व प्रथम साहित्य के असीम अनंत संसार को प्राप्त हुए वह कविता ही तो थी।

जब तक साहित्यकार, चाहे किसी भी विधा में क्यों न हो, अपने हृदय में दबे हुए उद्गार कलमबद्ध कर के पाठकों तक नहीं पहुंचा देता, वह छटपटाता रहता है । गर्भ में पल रहे बच्चे की मनोभावनाओं की कल्पना इतनी सहज एवं आसान नहीं है पर असंभव भी नहीं।  स्त्री कवियित्रि ही उन मनोभावों को किसी पुरुष कवि की परिकल्पना से अधिक सहज स्वरूप दे सकती है क्योंकि वह गर्भ में नौ महीने शिशु को पालती है। ऐसा भी नहीं है क्योंकि पुरूष भी शिशु को नौ महीने पिता के रूप में अपने मन मस्तिष्क में पालता है और अनुभूतियाँ एवं संवेदनाएं शरीर से पहले और शरीर से अधिक मन और मस्तिष्क में उपजती हैं । तभी तो नर और नारी में कामकेलि के पूर्व हृदय में प्रेम उत्पन्न होना आवश्यक है। प्रेम विहीन कामक्रिया तो एक शारीरिक भूख है जो मनुष्य को पशुओं के समकक्ष लाकर खड़ा कर देती है जो हमारे मनुष्य होने पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है।

ऐसा भी नहीं है कि पुरुष साहित्यकार नारी की भावनाओं का चित्रण जितना नारी साहित्यकार कर सकती है उतना नहीं कर सकता है और नारी साहित्यकार पुरूषों की भावनाओं का चित्रण उतना बखूबी नहीं कर सकता है जितना कि पुरुष साहित्यकार। प्रेमचंद, शरतचंद, रवीन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र ने अपने साहित्य में नारी भावनाओं का चित्रण पूर्ण संवेदना के साथ बखूबी किया है। इसी प्रकार नारी साहित्यकारों ने भी पुरुषों की भावनाओं का चित्रण भली-भांति किया है। जब साहित्यकार अपने पात्रों का चित्रण करता है तो वह स्वयं को भूल जाता है और अपने द्वारा सर्जित पात्रों की जिंदगी जीता है और उसके पात्र की अनुभूतियाँ एवं संवेदनाएं उसमें पूर्णतया आत्मसात हो जातीं हैं। साहित्यकार की व्यष्टि से समष्टि और समष्टि से इष्ट तक की यात्रा तभी पूर्ण होती है जब वह पुरुष होकर नारी और नारी हो कर पुरूष की भावनाओं एवं संवेदनाओं को महसूस कर अभिव्यक्त कर सकते हैं। इतना ही नहीं प्रेम चंद जैसे साहित्यकारों ने तो पशुओं की भी अनुभूतियों, भावनाओं एवं संवेदनाओं का चित्रण बडी़ ही मार्मिकता से किया है – उनके द्वारा कथ्य दो बैलों की जोड़ी कहानी इस का सटीक उदाहरण है। कृशनचंदर द्वारा सर्जित एक गधे की आत्मकथा भी ऐसा ही एक ज्वलंत उदाहरण है। इसीलिये तो कहा गया है “जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि”। आवश्यकता है तो केवल इस बात की कि साहित्यकार अपने उत्तरदायित्वों को पूरी ईमानदारी से निभाएं क्योंकि साहित्य समाज का सिर्फ दर्पण ही नहीं होता है बल्कि समाज का मार्गदर्शन भी करता है।

इति।

डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव 

(अतिथि संपादक- ई-अभिव्यक्ति)

20 अप्रैल 2019