हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 95 ☆ सोंध ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ संजय उवाच # 95 ☆ सोंध ☆

असमय बरसात हुई है। कुछ बच्चे घर से मनाही के बाद भी भीगने के आनंद से स्वयं को वंचित होने से रोक नहीं पा रहे हैं। महामारी  के समय में परिजनों की अपनी चिंताएँ हैं। अलग-अलग घर से अपने-अपने बच्चे का नाम लेकर पुकार लग रही है। ऐसे में अपना आनंद अधूरा छोड़कर घर लौटे लड़के को डाँटती उसकी माँ का स्वर कानों में पड़ा, “आई टोल्ड यू मैनी टाइम्स बट यू डोंट लिसन। मिट्टी इज़ डर्टी थिंग.., मिट्टी को हाथ भी नहीं लगाना। यू अंडरस्टैंड?”…इस आभिजात्य(!)  माँ की चिंता कानों में पिघले सीसे की तरह उतरी।

मिट्ट इज़ डर्टी थिंग..!!  सृष्टि के 84 लाख जीवों में से एक मनुष्य को छोड़कर शेष सबका प्रकृति के साथ तादात्म्य है। बुद्धि का वरदान प्राप्त विकास की राह पर चलते मनुष्य से यह तादात्म्य अधिक अपेक्षित है। तथापि अनेक प्राकृतिक आपदाएँ झेलते मनुष्य की भस्मासुरी प्रवृत्ति आश्चर्यचकित करती है। अपनी लघुकथा ‘सोंध’ स्मरण हो आई। कथा कुछ इस प्रकार है-…..

‘इन्सेन्स- परफ्यूमर्स ग्लोबल एक्जीबिशन’.., इत्र बनानेवालों की यह यह दुनिया की सबसे बड़ी प्रदर्शनी थी। लाखों स्क्वेयर फीट के मैदान में हज़ारों दुकानें।

हर दुकान में इत्र की सैकड़ों बोतलें। हर बोतल की अलग चमक, हर इत्र की अलग महक। हर तरफ इत्र ही इत्र।

अपेक्षा के अनुसार प्रदर्शनी में भीड़ टूट पड़ी थी। मदहोश थे लोग। निर्णय करना कठिन था कि कौनसे इत्र की महक सबसे अच्छी है।

तभी एकाएक न जाने कहाँ से बादलों का रेला आसमान में आ धमका। गड़गड़ाहट के साथ मोटी-मोटी बूँदें धरती पर गिरने लगीं। धरती और आसमान के मिलन से वातावरण महकने लगा।

दुनिया के सारे इत्रों की महक अब अपना असर खोने लगी थीं।  माटी से उठी सोंध सारी सृष्टि पर छा चुकी थी।…..

इस लघुकथा का संदर्भ इसलिए कि अपनी क्षणभंगुर कृत्रिमता को अविनाशी प्रकृति के सामने खड़ा करता मनुष्य दयनीय लगने लगा है। मिट्टी से बना आदमी अपनी मिट्टी खुद पलीद कर रहा है।

मिट्टी में मिलने के सत्य को जानते हुए भी मिट्टी से एलर्जी रखने वाली मनुष्य की यह मानसिकता सचमुच भय उत्पन्न करती है।

© संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 51 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 51 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 51) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 51 ☆

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इस सफ़र में नींद

ऐसी खो गई…

हम तो न सोये,

रात थक कर सो गई..!

 

During this journey, the sleep

was  lost in  such  a way

That I could  not  sleep,

but the tired night slept off!

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ले चल ऐ ज़िंदगी फिर से

बचपन की उन गलियों में

जहाँ ना कोई ज़रूरी था

ना ही कोई जरूरत थी….

 

O’life! Take me once again

In those streets of childhood

Where no one was needed

And, there used to be no need!

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मैं इतनी छोटी

कहानी भी न था,

तुम्हें ही जल्दी थी

किताब बदलने की…

 

I  was  not  even

such a short story,

You were only in hurry

to change the book…!

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कभी रंगों से इक नज़्म लिखो

कभी अल्फाज़ों से तस्वीर गढ़ो

कभी खामोशी की आवाज़ सुनो

कभी चुप्पी की इबारत भी पढ़ो

 

Sometime write a

poem with colours

Try ever making a 

picture with the words

Sometime listen to

the voice of reticence

Once in a while read

the narrative of silence..!

 

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© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈




ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ आज समवेत प्रयासों की सकारात्मकता जरूरी है ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद

 

ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ आज समवेत प्रयासों की सकारात्मकता जरूरी है ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

प्रिय मित्रो,

यह सदियों में होने वाला अत्यंत दुष्कर समय है । जहाँ हम पड़ोस की किसी एक अकाल मृत्यु से विचलित हो जाते थे उसी देश मे अब तक सवा तीन लाख मृत्यु कोरोना से हो चुकीं हैं , यदि अब दुनिया को ग्लोबल विलेज मानते हैं तो आंकड़े गम्भीर हैं । और यह तो केवल मृत्यु के आंकड़े हैं । कितने ही लोग बुरी तरह से स्वास्थ्य , आर्थिक , रोजगार, चक्रवात/प्राकृतिक आपदा या अन्य तरह से महामारी से प्रभावित हैं । और इस सबका अंत तक सुनिश्चित नहीं है ।

ऐसी भयावहता में केवल सकारात्मक होना ही हमें बचा सकता है । रात के बाद सुबह जरूर होगी पर तब तक धैर्य और जीवन बचाये रखना होगा । यह तभी सम्भव है जब समाज समवेत प्रयास करे । व्यक्ति अपनी रचनात्मक वृत्तियों को एकाकार करे । जिस तरह पायल से आती मधुर झंकार में हर घुंघरू की आवाज शामिल होती है , किन्तु किस घुंघरू की आवाज का समवेत मधुर ध्वनि में क्या योगदान है कहा नही जा सकता , वैसे सकारात्मक माहौल से ही व्यक्ति व समाज इस नकारात्मकता पर विजय पा सकेगा ।

किन्तु दुखद है कि आज राजनेता आरोप प्रत्यारोप में उलझे हैं , मुनाफाखोरी कालाबाजारी चरम पर है । चिकित्सा शास्त्रों की लड़ाई हो रही हैं । राष्ट्र वर्चस्व और विस्तार की लड़ाई लड़ रहे हैं ।

ऐसे कठिन समय में साहित्य का दायित्व है कि समवेत सकरात्मकता के एकात्म का विचार विश्व में अधिरोपित करे ।

जिससे यह सुंदर विश्व पुनः सामान्य हो सके ।

आज बस इतना ही।

विवेक रंजन श्रीवास्तव

संपादक ई- अभिव्यक्ति (हिंदी)   

30 मई  2021




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 52 ☆ बुंदेली ग़ज़ल – बात नें करियो ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित बुंदेली ग़ज़ल    ‘बखत बदल गओ। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 52 ☆ 

☆ बुंदेली ग़ज़ल – बखत बदल गओ ☆ 

बखत बदल गओ, आँख चुरा रए।

सगे पीठ में भोंक छुरा रए।।

 

लतियाउत तें कल लों जिनखों

बे नेतन सें हात जुरा रए।।

 

पाँव  कबर मां लटकाए हैं

कुर्सी पा खें चना मुरा रए।।

 

पान तमाखू गुटका खा खें

भरी जवानी गाल झुरा रए।।

 

झूठ प्रसंसा सुन जी हुमसें

सांच कई तेन अश्रु ढुरा रए।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ग़ज़ल – वही जनून- ए- रवानी लिखनी होगी ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

( ई-अभिव्यक्ति में  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी का हार्दिक स्वागत है। बहुमुखी प्रतिभा के धनि श्री कपूर जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रिय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं। हम ई – अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर  साझा करते रहेंगे।)      

☆ ग़ज़ल – वही जनून- ए- रवानी लिखनी होगी ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

1

कुछ तो अब नई सी कहानी लिखनी होगी।

नए सिरे से बात  पुरानी  लिखनी होगी।।

2

रास्ते जो पीछे  छूट गए   यूँ   ही  कहीं।

ढूंढ कर बात   अनजानी लिखनी होगी।।

3

यूँ ही जान माल का न नुकसान होता रहे।

सोच समझ के समझदानी लिखनी होगी।।

4

असर करे जो   अंदर सीने में उतर कर।

अब वो सब बात जुबानी लिखनी होगी।।

5

काबू के बाहर बहुत कुछ निकला जा रहा।

अब करने सीधाऔघड़दानी लिखनी होगी।।

6

जो जोश कुछ कमजोर हुआ है इस बवा में।

अब खून में वही जोश रवानी लिखनी होगी।।

7

हंस लौट कर आये वापिस वही रंग और ढंग।

लहू में फिर वही जनून- ए- रवानी लिखनी होगी।।

 

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली 

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.५२॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.५२॥ ☆

 

आश्वास्यैवं प्रथमविरहोदग्रशोकां सखीं ते

शैलाद आशु त्रिनयनवृषोत्खातकूटान निवृत्तः

साभिज्ञानप्रहितकुशलैस तद्वचोभिर ममापि

प्रातः कुन्दप्रसवशिथिलं जीवितं धारयेथाः॥२.५२॥

पहले विरह से अधिक शोकआकुल

सखी को तेा अपनी बंधा धैर्य भाई

 

शिव के वृषभ श्रृंग से छिन्न उत्खात

कैलाश से शीघ्र लेकर बिदाई

ता क्षेम संदेश मम प्रियतमा से

जो प्रेषित किन्ही बोध संकेत द्वारा

प्रातः सुमन कुंद सम क्षीण होते

मेरे प्राण तन का मिला दो सहारा

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




सूचना/Information ☆ सम्पादकीय निवेदन : काही सूचना ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

? सम्पादकीय निवेदन : काही सूचना ?

1)  आपल्या ई अभिव्यक्ती (मराठी) साठी लेखन करणार्या साहित्यिकांची संख्या दिवसेंदिवस वाढत आहे. त्यांच्या साहित्याबरोबरच त्यांची वैयक्तिक व कार्यकर्तृत्वाची ओळख व्हावी म्हणून आपण त्यांचा परिचय व फोटो या अंकात देत असतो. अद्यापही अनेकांचे फोटो व परिचय उपलब्ध झालेले नाहीत.

तरी सर्वांना नम्र विनंती की ज्यांचे फोटो व परिचय आमचेकडे पाठवलेले नाहीत त्यांनी त्यांच्या पुढील लेखनाबरोबर ते पाठवावेत व सर्वांना आपला परिचय करून द्यावा.

 

2)  काही कथा व लेख हे एकापेक्षा जास्त भागांमध्ये प्रकाशित होत असतात.असे लेखन पाठवत असताना काही वेळेला त्याचे भाग पाडताना योग्य ती काळजी घेतली जात नाही,असे दिसते.तरी आवश्यक ती काळजी घ्यावी.उदाहरणार्थ:

 – पहिला भाग संपला की क्रमशः असे लिहावे.

 – पुढचा भाग लिहीताना ,पहिल्या भागातील अंतीम मजकुराचा उल्लेख करावा. म्हणजे वाचताना क्रम लक्षात येईल. तसेच भाग पाठवताना क्रम पहावा.

 

दर्जेदार साहित्य सादर करणे हे आपले सर्वांचेच उद्दिष्ट असल्याने आपण आमच्या अडचणी समजून घ्याल अशी खात्री आहे.

 

संपादक मंडळ, ई-अभिव्यक्ती (मराठी)

श्रीमती उज्ज्वला केळकर 

Email- [email protected] WhatsApp – 9403310170

श्री सुहास रघुनाथ पंडित 

Email –  [email protected]WhatsApp – 94212254910

सौ. मंजुषा मुळे

संपर्कासाठी :  Email –  [email protected] WhatsApp – 9822846762

 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ वि. दा. च्या स्मरणी……! ☆ श्रीशैल चौगुले

श्रीशैल चौगुले

? कवितेचा उत्सव ?

☆ वि. दा. च्या स्मरणी……! ☆ श्रीशैल चौगुले ☆ 

चिरुन भिंती    भेदून कारा

वचन सागरा     धन्य मायभू.

 

अजून गर्जना   वायूत लहरे

दिशात बहरे    स्वातंत्र्यानांदे.

 

पूर्वेचा अलोक   प्रभाती सांगतो

नितचा रंगतो   पराक्रमी त्या.

 

इतिहास थोर    कर्तव्या शौर्य

हिंदवीत धैर्य     मृदाभक्तीत.

 

प्रसन्न रत्नाकर  थरथरे जळ

विनायका बळ   हिंद तीराशी.

 

शब्दांतून ऊमटे  हृदयाची भाषा

घुमवीत दिशा    सावरकर.

 

प्रार्थना सचित्ती  भूमीत अखंड

पुरुषार्थी बंड    भारतदेशा.

 

गौरवा अनंत   क्षितीजा प्रणाम

लोचनात धाम    अथांगप्राण.

 

© श्रीशैल चौगुले

९६७३०१२०९०

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ माझी कविता ☆ श्रीमती अनुराधा फाटक

श्रीमती अनुराधा फाटक

? कवितेचा उत्सव ?

☆ माझी कविता ☆ श्रीमती अनुराधा फाटक ☆ 

माझी कविता

पोपडतो कोंभ पर्णद्वयातून

आणि उमलते फूल कळीतून

तशीच फुलते शब्द कळ्यातून

कविता  माझी !

घुसमट होता शब्द छळांची

सैरभैर अस्वस्थ तळमळ

मुक्त होते प्रसववेदनेतून

कविता माझी !

विचार दगडावर शब्दांचे घण

घडते मूर्ती नामी त्यातून

शिल्पच साकारते सुंदर

कविता माझी !

आकाशी खेळते चंचल चपला

भेदून जाते घन ओथंबला

उतरते अलगद भूवर

कविता माझी !

स्वप्नामधली नुमजे पडझड

आठवत ती मनीची धडधड

शब्दा शब्दामध्ये मीच शोधते

कविता माझी !

 

© श्रीमती अनुराधा फाटक

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈




मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ मातृदिन …. ☆ परवीन कौसर

?जीवनरंग ?

☆ मातृदिन …. ☆ परवीन कौसर

सकाळी उठल्यावर अचानकच तिला आपल्या प्रकृतीत काही तरी बिघाड होत आहे असे जाणवू लागले. काहीशी कमजोरी आणि डोळ्यासमोर अंधारी आली.लगेचच तिला तिच्या नवऱ्याने दवाखान्यात नेले. तिथे तिच्या तपासण्या करण्यात आल्या.आणि तातडीने उपचार सुरू झाले. काही तपासण्याचे रिपोर्ट दुसऱ्या दिवशी येणार होते. तोपर्यंत आलेल्या रिपोर्ट प्रमाणे उपचार डॉक्टरांनी सुरू केले होते. सलाईन, इंजेक्शन दिले होते. औषधांमुळे तिला झोप लागली.

“आई …ये आई उठ न. हे बघं मी तुला  जेवण करून आणले आहे.” तिच्या अंगावर लहान लहान हाताने कोणीतरी स्पर्श करून हलवत उठविण्याचा प्रयत्न करत होते. यामुळे ती एकदम खडबडून जागी झाली. बघते तर समोर लहान म्हणजे अगदी १० वय वर्षाचा मुलगा आपल्या एका हातात डबा घेऊन उभा होता. त्याला बघून तिने आपले डोळे पुन्हा बंद केले.  पुन्हा त्या मुलाने ” ये आई उठ न. बघं किती वेळ झाला. तुला भूक लागली असेल‌. ही तुझी रोजची जेवणाची वेळ आहे. डॉक्टरांनी पण जेवण द्या लवकर म्हणून सांगितले आहे.आणि ही बघ राणी पण भुकेली झाली आहे.तिला पण चारायचे आहे मला. आता तू नाही चारू शकणार तिला.”

हे ऐकताच  तिने तिचे भरलेले डोळे हळूहळू उघडले आणि त्या मुलांचा हात हातात घेऊन रडू लागली. आणि म्हणाली “बाळा माफ कर मला. मी खरंच खुप वाईट आहे. मी तुला कधीच प्रेम केले नाही. सवतीचा मुलगा म्हणून फक्त आणि फक्त घृणा केली. तुला कधी वेळेवर जेवण दिले नाही. ताजे तर अन्न तुला मिळालेच नाही. याउलट राणीचे उष्टे अन्न दिले मी. आणि तुझ्या बाबांना पण तुझ्या विरूद्ध काही तरी खोटे सांगून कित्येक रात्री उपाशी झोपवले. आणि एकदा तर तू भुकेने व्याकूळ होऊन खाण्यासाठी बिस्कीट डब्यातून काढून घेतला तर त्या हातावर मी चटका दिला. आणि आज त्याच हाताने तू जेवण बनवून आणलास माझ्या साठी. मला माफ कर बाळा.मी तुझी गुन्हेगार आहे. याचीच शिक्षा म्हणून मी इथे आहे बघं आज. ” म्हणत ती रडू लागली.

हे ऐकून त्या मुलाने तिचे डोळे पुसले आणि डब्यातील दुधभात तिला चारु लागला. आज हे त्याच्या आईने त्याला गर्भात असताना केलेले संस्कार आणि तिची ममता त्याच्या मनात भरलेली होती.

आज तिला तो दुधभात पंचपक्वांन भासू लागला होता.आईचे जेवण झाल्यावर त्याने आपल्या छोट्या बहीणीला भात चारला. हे दृश्य पाहून आई वडील दोघेही आपल्या अश्रूंना थांबवू शकले नाही.

त्या दोघांना त्या बाळाच्या चेहऱ्यावर एका निरागस ममता माई आईचे तेज ओसंडून वाहत आहे हे दिसू लागले.

खऱ्या अर्थाने हाच मातृदिन साजरा झाला.

©® परवीन कौसर 

बेंगलोर

९७४०१९७६५७

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈