डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना के दोहे…।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 183 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे… ☆

ग्रीष्म काल की तपन का, अब होता आभास।

झुलस रहे देखो सभी, बस वर्षा की आस।।

धरती तपती ताप से, पंछी हैं बेहाल।

सूखे है जल कूप अब, बुरा हुआ है हाल।।

गर्मी जब से आ गई, नहीं मिली है ठांव।

गांव-गांव सब सूखते, गायब होती छांव।।

जितनी बढ़ती तपन हैं, सूरज खेले दांव।

धीरे-धीरे बढ़ रहे, वर्षा के अब पांव।।

धरती कहे आकाश से, तपन बहुत है आज।

बरसो घन अब आज तुम, हे बादल सरताज।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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