(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 197 – कथा क्रम (स्वगत)…
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “सॉंझ सकारे सामंजस्य बिठाने...”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 197 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆
☆ “सॉंझ सकारे सामंजस्य बिठाने...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
आषाढ़ मास साधना ज्येष्ठ पूर्णिमा तदनुसार 21 जून से आरम्भ होकर गुरु पूर्णिमा तदनुसार 21 जुलाई तक चलेगी
इस साधना में – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। मंत्र का जप करना है। साधना के अंतिम सप्ताह में गुरुमंत्र भी जोड़ेंगे
ध्यानसाधना एवं आत्म-परिष्कार साधना भी साथ चलेंगी
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।
ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है एक नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है – “गेंड़ी नृत्य से दुनिया भर में पहचान – बनाने वाले पद्मश्री शेख गुलाब”।)
आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –
☆ “गेंड़ी नृत्य से दुनिया भर में पहचान – बनाने वाले पद्मश्री शेख गुलाब” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
शेख गुलाब का जन्म अविभाजित मण्डला जिले के डिंडौरी में हुआ था। अब मण्डला से अलग होकर डिंडौरी भी स्वतंत्र जिला बन गया है। तब यह गाँव बहुत छोटा था। नर्मदा के किनारे। नर्मदा के पानी से होकर इस अंचल की कला और संस्कृति जैसे शेख गुलाब की रगों में दौड़ने-फिरने लगी थी। इलाकाई नाच-गाने का उन्हें जुनून-सा था। सारा समय इसी को तलाशने, देखने, समझने, सुनने-गुनने में बीतता। बिल्कुल शुरुआती दौर में ही उन्होंने इस बात को पकड़ लिया था कि आने वाला समय बाज़ार के साथ मिलकर पारंपरिक कलाओं की इस अनमोल धरोहर पर बड़ा हमला करने वाला है। इसीलिए उन्होंने अपना सारा ध्यान दो बिंदुओं की ओर केंद्रित किया; एक तो लोक कलाओं की परंपरा, स्वरूप, शैली आदि का दस्तावेजीकरण और दूसरे नई पीढ़ी के बीच जाकर इन कलाओं को प्रायोगिक रूप में आगे बढ़ाना। इस काम के लिए उन्हें डिंडौरी का परिवेश जरा संकुचित लग रहा था।
मण्डला जबलपुर रोड पर आदिवासी गांव कालपी है कालपी में हेड-मास्टर की पोस्ट थी, वे एक दर्जा नीचे थे। उन्होंने कहा कि वे अपने-आप को साबित कर दिखाएंगे और न कर पाए तो जीवन-भर प्रमोशन नहीं लेंगे। तब के लोगों के पास रीढ़ की हड्डी नामक दुर्लभ चीज भी हुआ करती थी और वे नियमों की लकीर पीटते बैठे नहीं रहते थे। स्कूल इंस्पेक्टर ने हेड मास्टर साहब को किसी ट्रेनिंग में भेज दिया और शेख गुलाब को कालपी में तैनात कर दिया। यहाँ आकर वे अपने काम में इस तरह जुटे की देश भर में उनका नाम फैलने लगा और दिलीप कुमार जैसी शख्सियत को भी यहाँ आना पड़ा। वे आदिवासी लोक-जीवन पर आधारित एक फ़िल्म “काला आदमी” बनाना चाहते थे।
इस फ़िल्म के नृत्य-संगीत को लेकर शेख गुलाब के साथ उन्होंने लम्बी चर्चा की। आगे यह फ़िल्म बन तो नहीं सकी पर इस मुलाकात की चर्चा के साथ शेख गुलाब का नाम वे भी जानने लगे थे, जो अब तक उनके नाम और काम से वाकिफ़ न थे।
चीनी प्रधानमंत्री चाउ एन लाई के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल भारत आया हुआ था। डेलिगेशन के सम्मान में होने वाले आयोजन के लिए कालपी से शेख गुलाब को याद किया गया। गुलाब साहब के दल को गेंड़ी नृत्य प्रस्तुत करना था।
पंडित नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक, प्रधानमंत्री निवास में शेख गुलाब का इस तरह से आना-जाना रहा कि गोया दरबान भी उन्हें पहचानने लगे थे। शेख गुलाब को अलबत्ता पद्मश्री सम्मान मिल गया था। सम्मान लेने के लिए उन्होंने लोगों के दबाव में एक अदद कुर्ता-सलवार सिलवाया था। वे सादगी पसंद थे। जीवन भर धोती-कुर्ता पहनते रहे। उन्हें लगा कि एक सम्मान के लिए इस तरह से भेस बदलना बहुरूपियों का काम है। आखिरी वक्त में वे मौलिक रूप में आ गए। सलवार-कुर्ता धरा रह गया। बाज लोग तो सम्मान के लिए क्या-क्या स्वांग धर लेते हैं। इन काग के भाग में सम्मान के बदले फ़क़त कुछ मोर पंख होते हैं, जिन्हें इन्हें अपनी दुम में खोंसना होता है।
शेख गुलाब को सबसे ज्यादा मकबूलियत गेंड़ी नाच की वजह से मिली। गेंड़ी नाच की इससे पहले कोई सुदीर्घ परम्परा नहीं रही। इसकी शुरुआत संयोगवश हुई और इसी नृत्य ने शेख गुलाब को खूब नाम दिया। बारिश वाले दिनों में जब खेतों में कीचड़ होता है तब किसान गेंड़ी का इस्तेमाल यहाँ आने-जाने में करते हैं।
गेंड़ी नाच की कोई स्थापित परम्परा नहीं रही। वर्ष 1952 में शेख गुलाब मिडिल स्कूल के अपने छात्रों को लोक-नृत्य की तालीम दे रहे थे। गाँव के कुछ लड़के गेड़ियों में चढ़कर नाच का देखने आए थे। जब अभ्यास खत्म हुआ गेंड़ी में सवार दर्शकों में से एक बालक हू ब हू नाच की नकल करने लगा। शेख गुलाब के जेहन में उसी तरह बिजली कौंध गई जैसे बारिश में पतंग उड़ाते हुए बेंजामिन फ्रेंकलिन के जेहन में चमकी होगी। उन्हें लगा कि लोक-नृत्य गेड़ियों पर भी किए जा सकते हैं। उन्होंने बालकों के लिए कतिपय छोटी-छोटी गेड़ियाँ बनवाई और इन पर छोटे-छोटे बालकों ने जरा बड़ा काम कर दिखाया।
गेंड़ी वाला करतब नृत्य तक सीमित नहीं रहा। गेंड़ी पर सवार होकर फुटबॉल भी खेला जा सकता है। जाने कैसे यह खबर ऑल इंडिया फुटबॉल एसोसिएशन तक पहुँच गई। उन्होंने कालपी की गेंड़ी फुटबॉल टीम को कोलकाता ( तब कलकत्ता) आमंत्रित किया। फुटबॉल वहाँ के लोगों ने खूब देखा था, पर गेंड़ी फुटबॉल एक अजूबा था। पूरे शहर में गेंड़ी फुटबॉल खेलने वाले बालकों के ‘कट आउट’ लग गए थे। बालक अपने ही होर्डिंग्स को हैरानी से देख रहे थे और यकीन नहीं कर पा रहे थे कि ये वही हैं। एमसीसी की क्रिक्रेट टीम भी वहीं थी। टीम के कप्तान हावर्ड जाफरी अपने दल-बल के साथ मैदान में मौजूद थे। मण्डला वाले इलाके में तब जंगल और भी घने हुआ करते थे, इसलिए टीम के नामकरण में थोड़ा ‘जंगलीपन’ जरूरी था। एक टीम का नाम ‘शेर दल’ था और दूसरा ‘भैंसा दल’ था। जंगली भैंस और शेर के बीच भिड़ंत बहुत जबरदस्त होती है। यहाँ भी जबरदस्त टक्कर हुई और दोनों दलों ने मिलकर लोगों का दिल जीत लिया। जैसा शोर गोल होने पर मचता है, इस मुकाबले में वैसा शोर एक-एक ‘किक’ पर मचता था, जो गेड़ियों से लगाई जाती थी। अगले दिन के अखबार मैच के विवरण से भरे पड़े थे।
अगले ही बरस, यानी वर्ष 1954 में दिल्ली की गणतंत्र दिवस की परेड में पहली बार लोक-नृत्यों को शामिल किया गया। मध्य-प्रदेश की टीम तैयार करने की जिम्मेदारी प्रख्यात कथक नृत्यांगना सितारा देवी को सौंपी गई। सितारी देवी के बारे में ज्यादा जानना हो तो उन पर लिखा मंटो का आलेख पढ़ना चाहिए। सितारा शास्त्रीय कलाकार थीं और उनके जिम्मे जो टीम दी गई वो लोक-कलाकार थे। एक विधा कड़े अनुशासन और प्रशिक्षण वाली और इसके बरक्स दूसरी विधा ऐसी जो सहज जीवन शैली से आती है और थोड़ा खिलंदड़ापन लिए हुए होती है। दोनों के बीच पटरी बैठ नहीं पा रही थी। सितारा देवी भी असहज महसूस कर रही थीं। पंडित रविशंकर शुक्ल ने एक अभ्यास देखा तो वे पूरी तरह से उखड़ गए। उन्होंने शेख गुलाब का नाम सुन रखा था। आखिरकार लोक-कलाकारों की यह मंडली शेख गुलाब के हवाले कर दी गई। वे इसी काम के लिए बने थे।
कलाकारों के इस दल ने दिल्ली की परेड में जमकर नाच दिखाया। दर्शकों में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अलावा फिल्मकार व्ही शांताराम भी मौजूद थे। वे “झनक झनक पायल बाजे” की तैयारी में लगे हुए थे। व्ही शांताराम ने कलाकारों के कैम्प में आकर शेख गुलाब से भेंट की और कहा कि वे एक बार फिर से इस नृत्य की रिहर्सल देखने की ख्वाहिश रखते हैं। रिहर्सल हुई। व्ही शांताराम की पूरी टीम रिहर्सल के दौरान नृत्य देखकर झूमती रही। फिर अगले दिन पूरी वेशभूषा के साथ शूटिंग की बात हुई। गाँव के कुछ बालक जानते भी न थे कि शूटिंग क्या बला होती है। पर वे जमकर नाचे। व्ही शांताराम ने नृत्य के इस टुकड़े को अपनी फिल्म में जगह दी।
श्री जय प्रकाश पाण्डेय
416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002 मोबाइल 9977318765
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
Dr. Suresh Kumar Mishra, known for his wit and wisdom, is a prolific writer, renowned satirist, children’s literature author, and poet. He has undertaken the monumental task of writing, editing, and coordinating a total of 55 books for the Telangana government at the primary school, college, and university levels. His editorial endeavors also include online editions of works by Acharya Ramchandra Shukla.
As a celebrated satirist, Dr. Suresh Kumar Mishra has carved a niche for himself, with over eight million viewers, readers, and listeners tuning in to his literary musings on the demise of a teacher on the Sahitya AajTak channel. His contributions have earned him prestigious accolades such as the Telangana Hindi Academy’s Shreshtha Navyuva Rachnakaar Samman in 2021, presented by the honorable Chief Minister of Telangana, Mr. Chandrashekhar Rao. He has also been honored with the Vyangya Yatra Ravindranath Tyagi Stairway Award and the Sahitya Srijan Samman, alongside recognition from Prime Minister Narendra Modi and various other esteemed institutions.
Dr. Suresh Kumar Mishra’s journey is not merely one of literary accomplishments but also a testament to his unwavering dedication, creativity, and profound impact on society. His story inspires us to strive for excellence, to use our talents for the betterment of others, and to leave an indelible mark on the world. Today we present his satire The Great Water Heist: A Tale of Thirst and Greed.
☆ Witful Warmth# 10 ☆
☆ Satire ☆ The Great Water Heist: A Tale of Thirst and Greed ☆ Dr. Suresh Kumar Mishra ‘Uratript’ ☆
In the once-thriving metropolis of Dryville, the water crisis had reached new heights. The city’s residents were forced to rely on the black market for their daily hydration needs, shelling out exorbitant prices for a few precious liters of water.
Enter our hero, the cunning and resourceful water tycoon, Mr. Drysdale. With his fleet of water tankers and army of heavily-armed water guards, he controlled the city’s water supply with an iron fist.
As the city’s thirst intensified, Mr. Drysdale’s profits skyrocketed. He became the undisputed king of the water mafia, with a fortune rivaling that of the city’s wealthiest billionaires.
But Mr. Drysdale’s reign was not without its challenges. A group of rebels, led by the fearless and hydrated Aurora, vowed to take down the water tycoon and restore the city’s water supply to its rightful owners – the people.
As the battle for water supremacy raged on, the city’s residents were caught in the crossfire. They were forced to choose between their loyalty to Mr. Drysdale and their thirst for freedom.
In the end, it was a race against time. Would Aurora and her rebels succeed in overthrowing Mr. Drysdale and restoring the city’s water supply, or would the water tycoon’s grip on the city prove too strong to break?
The fate of Dryville hung in the balance, as the city’s residents prayed for a miracle – or at least a decent shower.
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – “माँ…“।)
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “मौसम बड़ा सुहाना है”)
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता ‘परिवर्तन…‘।)